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Independence Day Special.. 15 साल की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े, मैसेंजर के रूप में दिया बहुमूल्य योगदान

पूरे देश में Azadi Ka Amrit Mahotsav की धूम है. लोग स्वतंत्रता दिवस के जश्न की तैयारी में लगे हुए हैं. ऐसे में आज आजादी की लड़ाई के जीवित बचे सिपाहियों की जुबानी उनकी अनकही दास्तां सुनने का अवसर मिलना गर्व की बात होगी. ईटीवी भारत पर मसौढ़ी के स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र सिंह के संघर्ष की कहानी उन्हीं की जुबानी सुनिये.

स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र सिंह
स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र सिंह
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Published : Aug 14, 2022, 12:37 PM IST

Updated : Aug 14, 2022, 1:23 PM IST

पटनाः आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) के उपलक्ष्य पर इस बार पूरा देश 76वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, ऐसे में आज उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को महापुरुषों को याद करने का दिन है. ऐसे में बिहार की राजधानी पटना से सटे मसौढ़ी में रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र सिंह ने ब्रिटिश हुकूमत से संघर्ष की अपनी यादों को ईटीवी भारत के साथ साझा किया है.

ये भी पढ़ेंः पटना के बिहटा में स्कूली बच्चों ने निकाली 75 मीटर लंबा पैदल तिरंगा यात्रा

कुछ अनसुनी यादें: स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र सिंह का संघर्ष इतिहास के पन्नों में दर्ज है. वह महज 15 साल की उम्र में भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े थे. रामचंद्र सिंह का जीवन भारत छोड़ो आंदोलन ने बदल कर रख दिया. भारत छोड़ो आंदोलन साल 1942 को शुरू हुआ जब वह रामचंद्र जी की उम्र महज 15 साल की थी इतनी छोटी उम्र में ही स्वतंत्र आंदोलन में कूद पड़े थे. रामचंद्र सिंह ने बताया कि अपने युवा दोस्तों के साथ योजना बनाते थे आजादी के संघर्ष के दौरान गुप्त सूचनाएं आंदोलनकारियों को देते थे. अंग्रेजों की सूचनाएं स्वतंत्रता सेनानियों तक पहुंचाने के अलावा संदेशों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में उनकी पूरी युवा टीम अहम रोल निभाती थी. रामचंद्र सिंह ने बताया कि उस समय हमलोगों के 15 युवाओं की टीम हुआ करती थी जो मीटिंग के दौरान अंग्रेजों की हर एक योजनाओं को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम मैसेंजर के रूप में करते थे. वह तीन बार जेल भी जा चुके हैं. जेल के अंदर भी भारत छोड़ो के नारे लगाए थे.

आजादी के दीवानों ने कुर्बान कर दी जवानी :आजादी की अहमियत शायद आज की युवा पीढ़ी उतना नहीं समझ पाएंगे, लेकिन स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वालों को इसकी कीमत बखूबी पता है. ब्रिटिश हुकूमत से संघर्ष में तब अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले आजादी के दीवानों ने अपनी जिंदगी और जवानी भी कुर्बान कर दी थी. ऐसे में मसौढ़ी के घोरहुआं गांव के रहने वाले रामचंद्र सिंह महज 15 साल की उम्र में आजादी की जंग में शामिल हो गए थे और आज 95 साल की उम्र में भी इनकी बूढ़ी हड्डियों में वही जोश खरोश है. मसौढ़ी में अधिकांश स्वतंत्रता सेनानी काल काल्वित हो गए हैं. पूरे मसौढ़ी अनुमंडल में 15 स्वतंत्रता सेनानी सरकारी रिकाॅर्ड में हैं.

''मैंने एक सपना देखा था कि देश में कोई भूखा न रहे. सभी के पास रोजगार हो. आजादी की जंग लड़ते हुए यही सोचा था कि मेरे भारत में गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी जैसी समस्या नहीं होगी. सभी को स्वास्थ्य सुविधाएं मिलेगी. लेकिन 95 साल की उम्र में भी उनके कई सपने अधूरे हैं, लेकिन देश आगे बढ़ रहा है'' -रामचंद्र सिंह, स्वतंत्रता सेनानी

ये भी पढ़ेंः वैशाली में युवाओं ने निकाली बाइक रैली, वंदे मातरम के नारों के साथ शहर भ्रमण

पटनाः आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) के उपलक्ष्य पर इस बार पूरा देश 76वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, ऐसे में आज उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को महापुरुषों को याद करने का दिन है. ऐसे में बिहार की राजधानी पटना से सटे मसौढ़ी में रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र सिंह ने ब्रिटिश हुकूमत से संघर्ष की अपनी यादों को ईटीवी भारत के साथ साझा किया है.

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कुछ अनसुनी यादें: स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र सिंह का संघर्ष इतिहास के पन्नों में दर्ज है. वह महज 15 साल की उम्र में भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े थे. रामचंद्र सिंह का जीवन भारत छोड़ो आंदोलन ने बदल कर रख दिया. भारत छोड़ो आंदोलन साल 1942 को शुरू हुआ जब वह रामचंद्र जी की उम्र महज 15 साल की थी इतनी छोटी उम्र में ही स्वतंत्र आंदोलन में कूद पड़े थे. रामचंद्र सिंह ने बताया कि अपने युवा दोस्तों के साथ योजना बनाते थे आजादी के संघर्ष के दौरान गुप्त सूचनाएं आंदोलनकारियों को देते थे. अंग्रेजों की सूचनाएं स्वतंत्रता सेनानियों तक पहुंचाने के अलावा संदेशों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में उनकी पूरी युवा टीम अहम रोल निभाती थी. रामचंद्र सिंह ने बताया कि उस समय हमलोगों के 15 युवाओं की टीम हुआ करती थी जो मीटिंग के दौरान अंग्रेजों की हर एक योजनाओं को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम मैसेंजर के रूप में करते थे. वह तीन बार जेल भी जा चुके हैं. जेल के अंदर भी भारत छोड़ो के नारे लगाए थे.

आजादी के दीवानों ने कुर्बान कर दी जवानी :आजादी की अहमियत शायद आज की युवा पीढ़ी उतना नहीं समझ पाएंगे, लेकिन स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वालों को इसकी कीमत बखूबी पता है. ब्रिटिश हुकूमत से संघर्ष में तब अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले आजादी के दीवानों ने अपनी जिंदगी और जवानी भी कुर्बान कर दी थी. ऐसे में मसौढ़ी के घोरहुआं गांव के रहने वाले रामचंद्र सिंह महज 15 साल की उम्र में आजादी की जंग में शामिल हो गए थे और आज 95 साल की उम्र में भी इनकी बूढ़ी हड्डियों में वही जोश खरोश है. मसौढ़ी में अधिकांश स्वतंत्रता सेनानी काल काल्वित हो गए हैं. पूरे मसौढ़ी अनुमंडल में 15 स्वतंत्रता सेनानी सरकारी रिकाॅर्ड में हैं.

''मैंने एक सपना देखा था कि देश में कोई भूखा न रहे. सभी के पास रोजगार हो. आजादी की जंग लड़ते हुए यही सोचा था कि मेरे भारत में गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी जैसी समस्या नहीं होगी. सभी को स्वास्थ्य सुविधाएं मिलेगी. लेकिन 95 साल की उम्र में भी उनके कई सपने अधूरे हैं, लेकिन देश आगे बढ़ रहा है'' -रामचंद्र सिंह, स्वतंत्रता सेनानी

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Last Updated : Aug 14, 2022, 1:23 PM IST
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