पटना: बिहार के कइ जिले दशकों पहले नक्सल प्रभावित (Naxalism In Bihar) हुआ करते थे. इन सभी जिलों में नक्सलियों ने अपना गढ़ बना रखा था. लगभग चार दशक तक नक्सलियों नें बिहार में खूब तांडव मचाया. हालांकि सरकार की नीतियों की वजह से अब नक्सलियों (Bihar naxal free) के पांव उखड़ चुके हैं. सीआरपीएफ का दावा है कि बिहार से नक्सलियों का पूरी तरह से खात्मा हो चुका है और यह सब कई बड़े नक्सलीयों के गिफ्तारी या मुड़भेड़ में मारे जाने की वजह से मुमकिन हो सका है. हालांकि अभी भी कई नक्सली रडार पर हैं.
औरंगाबाद जिले में कभी नक्सलियों की तूती बोलती थी: राजधानी पटना स्थित सीआरपीएफ मुख्यालय में पदस्थापित कमांडेंट मुन्ना कुमार सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बताया कि 'बिहार के 5 जिला जो खासकर नक्सलि प्रभावित हुआ करता था और नक्सलियों का गढ़ माना जाता था. चक्र बंदा जो कि गया और औरंगाबाद जिले में है वहां कभी नक्सलियों की तूती बोलती थी. लेकिन अब उन इलाकों में नक्सलियों का पूरी तरह से खात्मा हो चुका है. यही नहीं जहां नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था वहां अब कोबरा बटालियन के द्वारा अपना कैंप स्थापित कर दिया गया है'.
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मुन्ना कुमार सिंह नें बताया कि इन्हीं इलाकों में नक्सलियों का बड़ा लीडर संदीप यादव काफी सक्रिय था. जिसकी मौत के बाद पूरी तरह से नक्सली खत्म हो गया है. सीआरपीएफ के कमांडेंट ने बताया कि 'संदीप यादव के मौत के बाद उसके साथियों ने समर्पण करना शुरू कर दिया और कुछ साथियों ने सीआरपीएफ की मदद कर उनके अड्डों का पर्दाफाश कराया जहां से भारी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ बड़े हथियार के अलावा कई आपत्तिजनक सामान बरामद किया गया था'.
'चक्र बांध के जंगलों में नक्सली छुप कर रहते थे: मुन्ना कुमार सिंह ने बताया कि 'चक्र बंधा के जंगलों में नक्सलियों द्वारा कई ऐसे गुफाओं को बनाया गया था जिसमें 50 से 100 की संख्या में नक्सली छुप कर रहते थे. वैसे कइ स्थानों पर अब सीआरपीएफ ने कब्जा कर लिया है. इन इलाकों से सीआरपीएफ के कोबरा बटालियन के द्वारा टिफिन बम एके-47, आईडी बम बनाने वाले कइ सामग्री बरामद किया गया था'. चक्र बंदा जंगल में जो फॉरेस्ट के रोड थे उसे बनाने का महत्वपूर्ण कार्य इसी वर्ष किया गया है जिससे सामान्य लोग अब घूमने के लिए भी वहां जा सकते हैं. किसी तरह का भय अब नहीं है. दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र नक्सलियों का भीमबांध माना जाता था जो कि जमुई लखीसराय और मुंगेर का हुआ करता था.
नक्सल प्रभावित इलाकों के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश: कमांडेंट मुन्ना कुमार सिंह ने दावा किया कि इन इलाकों में जहां पहले खेती का नामोनिशान नहीं हुआ करता था. अब उन्हीं इलाकों में बहुत अच्छी खेती हो रही है. वहां के लोग अब खेती पर निर्भर हो रहे हैं. इसके अलावा इन इलाकों में नक्सलियों के द्वारा कहीं ना कहीं अफीम जैसी नशीली पदार्थ उगाया जाता था. उसे भी पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है. नक्सल प्रभावित इलाकों के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार की योजना के तहत उन्हें गाय, भेड़, बकरियों के अलावा कई तरह के सुविधा मुहैया कराई जा रही है. इसके अलावा सीआरपीएफ के द्वारा भी उनसे सामग्रियां खरीदी जाती है ताकि उनका भी भरण पोषण हो सके.
हाल के दिनों में पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की सख्ती की वजह से विजय आर्य उर्फ यशपाल भिखारी उर्फ मिथिलेश मेहता जहां गिरफ्तार किए गए. वहीं संदीप उर्फ विजय यादव की मौत संदेहास्पद स्थिति में हुई. नक्सलियों के कद और पद को समझने के लिए संगठन के पद को समझना जरूरी है. नक्सली संगठन में सबसे ऊपर पीबीएम पोलित ब्यूरो मेंबर उसके सीसीएम सेंट्रल कमेटी मेंबर उसके बाद सैक स्पेशल एरिया कमेटी और फिर उसके बाद आरसी रीजनल कमेटी मेंबर का नाम आता है.
आपको बता दें कि कुछ नक्सली ऐसे थे जिन्होंने पुलिस के साथ-साथ खुफिया एजेंसियों की भी नींद भी हराम कर रखी थी. उनमें से प्रशांत बोस उर्फ किशन दा का नाम आता था जो कि संगठन में सबसे बड़े माने जाते थे और उन्हें पीवीएम पोलितब्यूरो मेंबर कहा जाता था. इसके अलावा दूसरा नाम विजय आर्य उर्फ यशपाल का है जो देश भर में माओवादी जन संगठन का प्रमुख है. जिसे आधे दर्जन से ज्यादा भाषा की जानकारी थी. उसे पहली बार साल 2011 में गिरफ्तार किया गया था.
जहानाबाद जेल ब्रेक कांड मामले में विजय आर्य उर्फ यशपाल मुख्य आरोपी था जिसकी गिरफ्तारी साल 2022 में हुआ है। तीसरा सबसे बड़ा नाम मिथिलेश मेहता उर्फ भिखारी का आता है जो सीसीएम का मेंबर था और बूढ़ा पहाड़ इसके कब्जे में था. भिखारी के सिर पर 2500000 का इनाम घोषित था उसे गया कि इमामगंज से गिरफ्तार किया गया था। चौथा सबसे बड़ा नाम नक्सली प्रदुमन शर्मा उर्फ साकेत स्पेशल एरिया कमेटी का सदस्य था. प्रदुमन शर्मा को हजारीबाग से गिरफ्तार किया गया था. पांचवा मसौढ़ी का रहने वाला उमेश यादव उर्फ राधेश्याम और फिर विमल दा जिसने आत्मसमर्पण किया था. इसके अलावा छक्का नाम संदीप उर्फ विजय यादव जिसका डेड बॉडी पुलिस के द्वारा बरामद हुआ था.
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सीआरपीएफ के अनुसार बिहार से पूरी तरह से लाल सलाम का खात्मा हो चुका है. नक्सल प्रभावित राज्य में छत्तीसगढ़ और झारखंड के बाद तीसरा नाम बिहार का था. हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय के द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार बिहार में जहां 16 जिला नक्सल प्रभावित हुआ करता था वह घटकर अब 10 रह गए है. जिसमें मुजफ्फरपुर, नालंदा, जहानाबाद, समेत छह जिलों को नक्सल प्रभाव से मुक्त (six Bihar districts Naxal free) घोषित कर दिया गया था।
पूर्ण रूप से नक्सलियों का खात्मा कहना अभी सही नहीं: बिहार पुलिस मुख्यालय के एडीजी जितेंद्र सिंह गंगवार की माने तो पूर्ण रूप से नक्सलियों का खात्मा कहना अभी सही नहीं है, परंतु यह जरूर कहा जा सकता है कि नक्सलियों का प्रभाव लगभग खत्म होने के कागार पर है. इसका सबसे बड़ा कारण फरार चल रहे नक्सलियों की गिरफ्तारी और मुठभेड़ में मारे जाने के साथ-साथ उनके सरेंडर को माना जा रहा है. उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि साल 2020 में जहां 134 नक्सलियों की गिरफ्तारी की गई थी. वहीं साल 2021 में यह घटकर 116 पर पहुंचा और साल 2022 में 88 नक्सली जो फरार चल रहे थे उनकी गिरफ्तारी हुई है. नक्सलियों की गिरफ्तारी की गिरती संख्या को देखकर यह कहा जा सकता है कि बिहार से नक्सलियों का खात्मा लगभग हो चुका है.