पटना: 2005-06 में जहां कुल बजट की मात्र 31.71 प्रतिशत राशि योजना मद में रखी जाती थी, वहीं 15 साल बाद बिहार में बजट का आंकड़ा बढ़कर 50 फीसदी के पार हो गया है. इस बार चुनावी साल में बजट पेश किया जाना है. उम्मीद है कि इस बार लोकलुभावन बजट पेश होगा.
बिहार ने पेश की मिसाल
बिहार ने बेहतर वित्तीय प्रबंधन की मिसाल पेश की है. बेहतर वित्तीय प्रबंधन का नतीजा है कि पिछले 15 साल में बजट का आकार 8 गुना बढ़कर 2 लाख करोड़ तक पहुंच गया. बिहार ने विकास दर के मायने में अव्वल स्थान हासिल किया.
राजस्व में हुई बढ़ोतरी
बता दें कि बिहार में एनडीए ने सत्ता संभालने के तुरंत बाद राज्य की वित्तीय स्थिति पर एक श्वेत पत्र प्रस्तुत किया था. उस समय राज्य पर कुल ऋण 42 हजार 498 करोड़ था, जो कि सकल घरेलू उत्पाद का 70.12% था. 2005-06 के दौरान जहां 4 हजार 83 करोड़ राजस्व प्राप्त हुए थे. वहीं, 2018-19 में ये आंकड़ा बढ़कर 35 हजार 447 करोड़ हो गया. शुरुआती दौर में सरकार ने पथ निर्माण विभाग को प्राथमिकता की सूची में सबसे ऊपर रखा था. वहीं, आज बिहार सरकार शिक्षा पर सबसे ज्यादा 17.36% खर्च कर रही है.
राजस्व संग्रह मामले में अपेक्षित सफलता
हाल के कुछ सालों में राज्य के बजट में औसतन 5 से 7 हजार करोड़ रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. 15 सालों के दौरान बिहार ने राजस्व संग्रह के मामले में भी अपेक्षित सफलता हासिल की. राजस्व संग्रह इस दौरान करीब 9 गुना बढ़ गया. बेहतर वित्तीय प्रबंधन का नतीजा था कि साल 2017-18 के दौरान बिहार ने विकास दर के मायने में सभी राज्यों को पछाड़ते हुए 11.3 फीसदी का लक्ष्य हासिल किया. 2005-06 से 2016-17 तक राज्य की वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर लगभग औसतन 10.52% रही.
अर्थशास्त्रियों की राय
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस 15 साल के दौरान मूल्य में बढ़ोतरी हुई. इस दौरान केंद्र से मिलने वाली राशि में भी बढ़ोतरी हुई है, जिसके कारण बजट के आकार में इजाफा हुआ. सरकार के खर्च का मतलब है कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ काम हुए हैं. लेकिन, क्वालिटी के स्तर पर अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है. वहीं, भूमि सुधार मंत्री रामनारायण मंडल ने भी खुशी जताते हुए कहा है कि यह उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के बेहतर वित्तीय प्रबंधन का नतीजा है.
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