पटना: बिहार एनडीए में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है. बीजेपी हो या जेडीयू, दोनों एक दूसरे के खिलाफ बयान दे रहे हैं. बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल ( Bihar BJP President Sanjay Jaiswal ) ने सीधे नीतीश कुमार की शराबबंदी पर ही सवाल उठा दिया है. यही नहीं, संजय जायसवाल ने सीएम नीतीश ( CM Nitish Kumar ) और उनके सहयोगियों को सलाह दी है कि मीडिया की दुनिया से बाहर निकलकर देख लीजिए, शराबबंदी और पुलिस की भूमिका अच्छे से समझ में आ जाएगी.
दरअसल, जेडीयू प्रवक्ता अभिषेक झा सोशल मीडिया पर बिहार बीजेपी अध्यक्ष को टैग कर कुछ सवाल पूछे थे. जेडीयू प्रवक्ता के बयान पर संजय जायसवाल भड़क गए और उन्होंने सोशल मीडिया पर लंबा-चौड़ा पोस्ट लिखकर सीएम नीतीश को भी लपेट लिया. अभिषेक झा ने ट्वीटर लिखा था "बिहार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष @sanjayjaiswalMP जी, आप आत्मचिंतन कीजिए और अपने गिरेबान में झांक कर देखिए कि बीते एक वर्ष में आपने एनडीए गठबंधन के खिलाफ कितने बयान दिए हैं?
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इसके बाद अभिषेक झा लिखते हैं कि "यदि स्मरण ना हो तो सभी बयानों का संकलन करके आपको भेजा जा सकता है. शराबबंदी सरकार की नीति रही है लेकिन जहरीली शराब पीने से आपके लोकसभा क्षेत्र में जब कुछ लोगों की मृत्यु हुई थी, आप संवेदना व्यक्त करने और सांत्वना स्वरूप पैसे बांटने गए थे. एनडीए सरकार की नीति के हिसाब से आपका यह आचरण सही था या गलत?
जेडीयू प्रवक्ता के इस ट्वीट पर बिहार बीजेपी अध्यक्ष भड़क गए. संजय जायसवाल ने फेसबुक पर लिखा कि 'मेरी प्रवृत्ति नहीं है कि मैं अपने ऊपर किए गए व्यक्तिगत आरोपों का जवाब दूं. आज मुझे पता चला कि जदयू प्रवक्ता अभिषेक झा जी मेरे लोकसभा क्षेत्र में जहरीली शराब के कारण हुए मृत्यु में, मेरे जाने पर मुझसे जवाब मांग रहे हैं. जदयू के प्रवक्ता का मुझसे सवाल करना बताता है कि यह सवाल जदयू के द्वारा है क्योंकि प्रवक्ता दल की बातें रखता है, अपनी व्यक्तिगत नहीं.'
बीजेपी अध्यक्ष आगे लिखते हैं 'मैं माननीय अभिषेक झा जी को बता दूं कि मैं जहरीली शराब से हुई मौतों के परिवारजनों के घर गया था और अगर भविष्य में भी कभी मेरे लोकसभा क्षेत्र में इस तरह की दुर्घटना घटेगी तो मैं हर हालत में जाऊंगा और आर्थिक मदद भी करुंगा. अगर कोई व्यक्ति जहरीली शराब से मरता है तो उसने निश्चित तौर पर अपराध किया है, पर इससे प्रशासनिक विफलता के दाग को बचाया नहीं जा सकता और जब मैं इस शासन के एक घटक का अध्यक्ष हूं, तो यह मेरी भी विफलता है.
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मैं उन गरीबों से इंसानियत के नाते मिलने गया था. मैं अच्छे से जानता हूं कि मरने वालों ने अपराध किया है इसलिए सरकार द्वारा उन्हें किसी प्रकार की मदद संभव नहीं थी. उन सभी परिवारों को अंतिम क्रियाकर्म में थोड़ी सी मदद करने का काम मैंने किया है क्योंकि गुनाहगार मरने वाले थे ना कि उनके परिवारजन. वैसे भी मैं अभिषेक झा जी को याद दिला दूं कि मैंने संपूर्ण मीडिया के सामने कहा था कि शराबबंदी कानून की पुनः समीक्षा होनी चाहिए. मैं सौ फीसदी शराबबंदी का समर्थक हूं और मानता हूं कि शराब बहुत बड़ा सामाजिक अपराध है जो पूरे परिवार को बर्बाद कर देता है.
फिर भी मैं यह मानता हूं कि जिस श्रेणी का अपराध हो सजा उसी श्रेणी की होनी चाहिए. दिल्ली से कोई परिवार दार्जिलिंग छुट्टियां मनाने जा रहा है और उसके गाड़ी में बिहार में एक बोतल शराब पकड़ी गई और उस परिवार की गाड़ी नीलाम हो जाती है. ऐसी कम से कम 5 घटनाएं मैं व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं. 10 वर्ष के जेल का प्रावधान केवल उन पुलिस अधिकारियों के लिए होना चाहिए जिन्होंने माननीय नीतीश कुमार के इतने अच्छे सामाजिक सोच को नुकसान पहुंचाया है.
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इसके बाद संजय जायसवाल लिखते हैं कि 'अगर मेरी बात समझ में नहीं आ रही हो तो मीडिया की दुनिया से बाहर जाकर अपने पंचायत के किसी भी आम व्यक्ति से संपर्क कर लें. आपको शराबबंदी और पुलिस की भूमिका अच्छे से समझ में आ जाएगी.
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