पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) अपने अब तक के कार्यकाल के दौरान एक दर्जन से अधिक मंत्रियों को कैबिनेट से हटा चुके हैं. 2020 में मेवालाल चौधरी को शिक्षा मंत्री बनाया था लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण 3 दिन में ही उनसे इस्तीफा ले लिया. उससे पहले मंजू वर्मा को मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में हटाया था. पूर्व सीएम जीतनराम मांझी, अवधेश कुशवाहा, रामाधार सिंह की भी किसी ना किसी मामले में नीतीश मंत्रिमंडल से छुट्टी कर दी गई थी. साथ ही 2013 में जब बीजेपी और जेडीयू का रिश्ता टूटा तो नीतीश कुमार ने बीजेपी कोटे के 11 मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया था. खास बात ये है कि पहले जितने भी मंत्रियों को उन्होंने हटाया कभी भी बीजेपी से लिखित अनुशंसा लेने की जरूरत नहीं पड़ी लेकिन मुकेश सहनी की बर्खास्तगी (Mukesh Sahani Dismissed From Nitish Cabinet) मामले में स्थिति बदली हुई दिखती है. माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री ने मछुआरों की नाराजगी से बचने के लिए सहनी की बर्खास्तगी को बीजेपी के मत्थे डाल दिया.
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नीतीश को मछुआरों की नाराजगी का डर: दरअसल, वीआईपी चीफ मुकेश सहनी (VIP Chief Mukesh Sahani) मछुआरों के बड़े नेता बन चुके हैं. बिहार में करीब 4 फीसदी मछुआरा वोट बैंक है. इसीलिए ये माना जा रहा है कि नीतीश कुमार सीधे तौर पर मछुआरों को नाराज नहीं करना चाहते हैं. आरजेडी विधायक विजय मंडल का भी कहना है कि मछुआरा समाज का बड़ा वोट बैंक है और उसका डर हो सकता है लेकिन नीतीश कुमार के पास खुद अपना वोट बैंक नहीं है. ऐसे में वह तो दूसरे के वोट बैंक पर ही मुख्यमंत्री बने हुए हैं. वहीं सीपीआईएम के विधायक अजय कुमार का भी कहना है कि यह पूरी तरह से सियासत है, क्योंकि मुख्यमंत्री को पूरा अधिकार है किसी को मंत्री बनाने और हटाने का. इसके लिए भला बीजेपी की लिखित अनुशंसा की क्या जरूरत होनी चाहिए.
बीजेपी की सफाई: मुकेश सहनी की बर्खास्तगी पर हालांकि भारतीय जनता पार्टी के नेता सीएम नीतीश कुमार का बचाव कर रहे हैं. बीजेपी विधायक निक्की हेंब्रम का कहना है मुकेश सहनी दरअसल बीजेपी कोटे से मंत्री बनाए गए थे. उनका कहना है कि विधानसभा चुनाव के दौरान ही साफ हो गया था कि वीआईपी को बीजेपी ने अपने कोटे से सीटें दी थी. ऐसे में उनको कैबिनेट से हटाने के लिए फैसला तो बीजेपी को ही करना था. निक्की कहती हैं कि जहां तक मछुआरा समाज की नाराजगी की बात है तो बीजेपी के साथ मछुआरा समाज खड़ा है. इस समाज के कई बड़े नेता पहले से बीजेपी में मौजूद हैं.
जेडीयू की चुप्पी: वहीं, जेडीयू ने पूरे मामले में चुप्पी साध रखी है. पहले भी मुकेश सहनी के खिलाफ पार्टी के नेता खुलकर कुछ भी बोलने से बचते रहे हैं और अभी भी मुकेश सहनी मामले में कुछ भी बोलना नहीं चाहते हैं. अहम बात है कि मुकेश सहनी मछुआरा समाज के आरक्षण की मांग करते रहे हैं और आंदोलन भी चलाते रहे हैं. जानकार भी कहते हैं कि बिहार में 3 से 4 प्रतिशत वोट बैंक मछुआरा समाज का है. कई ऐसी विधानसभा सीट हैं, जिन पर जीत-हार का फैसला इस समाज के लोग करते हैं.
बीजेपी-वीआईपी में तल्खी: आपको बता दें कि बिहार में 2020 विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी भी एनडीए के साथ चुनाव लड़ी थी. 11 सीट वीआईपी को मिली थी, जिसमें से 4 विधायक चुनाव जीते थे. हालांकि खुद मुकेश सहनी सहरसा की सिमरी बख्तियारपुर सीट से चुनाव हार गए लेकिन बीजेपी ने उन्हें विधान परिषद भेजकर नीतीश कैबिनेट में पशुपालन मंत्री बनाया. सब कुछ ठीक चल रहा था कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी ने मोर्चा खोल दिया. पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ उन्होंने अभियान चलाना शुरू कर दिया. जिससे बीजेपी के साथ उनके रिश्ते लगातार बिगड़ते चले गए.
सहनी के प्रति जेडीयू में नरमी: यूपी चुनाव के बाद सहनी ने बिहार विधान परिषद चुनाव में एनडीए से अलग कई सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए. बोचहां विधानसभा उपचुनाव में भी बीजेपी के खिलाफ उन्होंने अपना कैंडिडेट दे दिया. जिसके बाद बीजेपी ने पहले उनके तीनों विधायक को पार्टी में भी शामिल करा लिया और फिर मुकेश सहनी को मंत्रिमंडल से भी बाहर निकलवा दिया. बीजेपी के नेता भले ही सहनी को लेकर हमलावर हों लेकिन नीतीश कुमार और जेडीयू के बाकी नेता मुकेश सहनी को लेकर खुलकर बोलने से लगातार बच रहे हैं. शायद अभी भी जेडीयू की ओर से ये मैसेज देने की कोशिश हो रही है कि सीएम ने नहीं, बल्कि बीजेपी ने 'सन ऑफ मल्लाह' को मंत्रिमंडल से बाहर निकाला है.
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