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गया का 'ग्वावा मैन'...जिसने बंजर टापू पर उगा दिए 10 हजार अमरूद के पेड़

गया (Gaya) के सत्येंद्र मांझी जिसने दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi) से प्रेरित होकर बंजर टापू पर 10 हजार अमरूद के पेड़ उगा दिए. सत्येंद्र मांझी गौतम (Satyendra Manjhi Gautam) को लोगों ने उनके काम और मेहनत के कारण 'ग्वावा मैन' की उपाधि दी है. देखें रिपोर्ट..

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Published : Aug 21, 2021, 6:36 PM IST

Updated : Aug 21, 2021, 8:45 PM IST

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गया: बिहार के गया जिले (Gaya) में बेलागंज प्रखंड के इमलियाचक गांव में सत्येंद्र मांझी गौतम (Satyendra Manjhi Gautam) को लोगों ने उनके काम और मेहनत के कारण 'ग्वावा मैन' की उपाधि दी है. सत्येंद्र मांझी 2004 से अब तक फल्गु नदी के बीचो-बीच बने टापू पर 10 हजार अमरूद के पेड़ लगाए हैं.

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सत्येंद्र मांझी ने बंजर भूमि में अमरूद का पौधा लगाने का कार्य पर्वत पुरूष दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi) के आदेश पर शुरू किया था. सत्येंद्र मांझी गौतम के कार्यों से खुश होकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने सत्येंद्र मांझी को बाल संरक्षण आयोग का सदस्य बनाया था.

देखें रिपोर्ट

दरअसल, बिहार का गया जिला जिसे राज्य की धार्मिक नगरी भी कहा जाता है. इस जिले में अपने मेहनत के बल पर पर्वत पुरूष दशरथ मांझी, कैनाल मैन लौगी भुइयां का नाम देश विदेशों तक पहुंचा है. अब 'ग्वावा मैन' के नाम की भी काफी चर्चा हो रही है. 'ग्वाभा मैन' पिछले 15 सालों से फल्गु नदी के बीचो बीच बने टापू पर दशरथ मांझी को प्रेरणा मानकर दस हजार अमरूद के पेड़ों का बगीचा बना दिया है.

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फल्गु नदी पर बना टापू बिल्कुल बंजर रहता है. ऐसी बंजर भूमि पर पिछले 15 सालों में सत्येंद्र मांझी ने 10 हजार से अधिक अमरूद के पेड़ लगाए हैं. जिसके बाद लोगों ने उन्हें 'ग्वावा मैन' की उपाधि दी है. ग्रामीण लाल देव मांझी बताते हैं कि सत्येंद्र मांझी इस काम को करने से पहले बच्चों को शिक्षा देते थे. गांव और आसपास के लोग उनको गुरुजी कहकर पुकारते थे. गांव में जब से पर्वत पुरूष दशरथ मांझी आये तब से अमरूद का बगीचा लगाने का विचार उनके मन में आया.

''शुरुआत में लोग उन्हें पागल कहते थे. लोग कहते थे कि मास्टरवा पागल हो गया है, बालू पर अमरूद रोप रहा है. लेकिन, इनके पागलपन ने उसी बालू को उपजाऊ बनाकर आज एक विशाल अमरूद का बगीचा बना दिया है. इस अमरूद के बगीचे से पूरे गांव के लोग मुफ्त भरपेट अमरूद खा सकते हैं. इसके अलावा पूजा-पाठ और शादी समारोह में मुफ्त अमरूद ले जाते हैं.''- लाल देव मांझी, ग्रामीण

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सत्येंद्र गौतम मांझी उर्फ 'ग्वावा मैन' बताते हैं कि साल 2004 में दशरथ मांझी मेरे गांव आये थे. इसी बगीचे पर रुककर उन्होंने मुझे कहा था कि गौतम इस पर बगीचा लगाओ इस जगह को हरियाली में तब्दील कर दो. मैंने उनसे कहा कि इस बालू और बंजर भूमि पर एक पौधा नहीं टिकेगा. उन्होंने कहा कि मेहनत करो सब होगा. मैंने काफी दिनों तक इसको नजरअंदाज किया.

''फिर एक दिन सोचा कि एक अनपढ़ दशरथ मांझी ने 22 सालों में पहाड़ तोड़ दिया था, तो मैंने तो पीजी तक पढ़ाई की है. मैं प्रयास करता हूं. जिसके बाद मैं एक अमरूद का पेड़ लेकर निकल पड़ा. शुरूआती दिनों में एक अमरूद का पौधा लगाना मुश्किल था. नदी में और आसपास पानी नहीं था. घर से पानी लाकर पटवन करता था. शुरुआत के दो साल मानसिक और शारारिक काफी परेशानी झेलना पड़ी. गांव से लेकर परिवार के बीच में उपहास का केंद्र बिंदु रहता था.''- सत्येंद्र गौतम मांझी, ग्वावा मैन

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उन्होंने कहा कि मैं पिछले 15 सालों से मेहनत कर रहा हूं. जिसका नतीजा है कि आज 10 हजार अमरूद के पेड़ में अमरूद के फल लगे हुए हैं. मुझे सरकार ने काफी सम्मान दिया है. राज्य की राजधानी और जिला मुख्यालय से इतनी दूर रहने के बावजूद सीएम ने मेरे कामों की सराहना की है. जिसके बाद मुझे बाल संरक्षण आयोग का सदस्य बना दिया गया.

बता दें कि सत्येंद्र मांझी अमरूद का पौधा लगाने के लिए प्रसिद्ध हैं. अपने नर्सरी में सैकड़ों अमरूद के पौधे लगा रखे हैं, जिससे लोगों को बिल्कुल मुफ्त में देते हैं. बस शर्त रहती है कि पौधे को पेड़ बनाना होगा. अब लोग सत्येंद्र मांझी से आम के पेड़ मांग रहे हैं. ऐसे में सत्येंद्र मांझी शहर की गलियों और कचरे में फेंकी गुठलियों को चुनते हैं और अपनी नर्सरी में तैयार करके किसानों को मुफ्त में आम का पौधा दे रहे हैं.

गया: बिहार के गया जिले (Gaya) में बेलागंज प्रखंड के इमलियाचक गांव में सत्येंद्र मांझी गौतम (Satyendra Manjhi Gautam) को लोगों ने उनके काम और मेहनत के कारण 'ग्वावा मैन' की उपाधि दी है. सत्येंद्र मांझी 2004 से अब तक फल्गु नदी के बीचो-बीच बने टापू पर 10 हजार अमरूद के पेड़ लगाए हैं.

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सत्येंद्र मांझी ने बंजर भूमि में अमरूद का पौधा लगाने का कार्य पर्वत पुरूष दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi) के आदेश पर शुरू किया था. सत्येंद्र मांझी गौतम के कार्यों से खुश होकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने सत्येंद्र मांझी को बाल संरक्षण आयोग का सदस्य बनाया था.

देखें रिपोर्ट

दरअसल, बिहार का गया जिला जिसे राज्य की धार्मिक नगरी भी कहा जाता है. इस जिले में अपने मेहनत के बल पर पर्वत पुरूष दशरथ मांझी, कैनाल मैन लौगी भुइयां का नाम देश विदेशों तक पहुंचा है. अब 'ग्वावा मैन' के नाम की भी काफी चर्चा हो रही है. 'ग्वाभा मैन' पिछले 15 सालों से फल्गु नदी के बीचो बीच बने टापू पर दशरथ मांझी को प्रेरणा मानकर दस हजार अमरूद के पेड़ों का बगीचा बना दिया है.

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फल्गु नदी पर बना टापू बिल्कुल बंजर रहता है. ऐसी बंजर भूमि पर पिछले 15 सालों में सत्येंद्र मांझी ने 10 हजार से अधिक अमरूद के पेड़ लगाए हैं. जिसके बाद लोगों ने उन्हें 'ग्वावा मैन' की उपाधि दी है. ग्रामीण लाल देव मांझी बताते हैं कि सत्येंद्र मांझी इस काम को करने से पहले बच्चों को शिक्षा देते थे. गांव और आसपास के लोग उनको गुरुजी कहकर पुकारते थे. गांव में जब से पर्वत पुरूष दशरथ मांझी आये तब से अमरूद का बगीचा लगाने का विचार उनके मन में आया.

''शुरुआत में लोग उन्हें पागल कहते थे. लोग कहते थे कि मास्टरवा पागल हो गया है, बालू पर अमरूद रोप रहा है. लेकिन, इनके पागलपन ने उसी बालू को उपजाऊ बनाकर आज एक विशाल अमरूद का बगीचा बना दिया है. इस अमरूद के बगीचे से पूरे गांव के लोग मुफ्त भरपेट अमरूद खा सकते हैं. इसके अलावा पूजा-पाठ और शादी समारोह में मुफ्त अमरूद ले जाते हैं.''- लाल देव मांझी, ग्रामीण

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सत्येंद्र गौतम मांझी उर्फ 'ग्वावा मैन' बताते हैं कि साल 2004 में दशरथ मांझी मेरे गांव आये थे. इसी बगीचे पर रुककर उन्होंने मुझे कहा था कि गौतम इस पर बगीचा लगाओ इस जगह को हरियाली में तब्दील कर दो. मैंने उनसे कहा कि इस बालू और बंजर भूमि पर एक पौधा नहीं टिकेगा. उन्होंने कहा कि मेहनत करो सब होगा. मैंने काफी दिनों तक इसको नजरअंदाज किया.

''फिर एक दिन सोचा कि एक अनपढ़ दशरथ मांझी ने 22 सालों में पहाड़ तोड़ दिया था, तो मैंने तो पीजी तक पढ़ाई की है. मैं प्रयास करता हूं. जिसके बाद मैं एक अमरूद का पेड़ लेकर निकल पड़ा. शुरूआती दिनों में एक अमरूद का पौधा लगाना मुश्किल था. नदी में और आसपास पानी नहीं था. घर से पानी लाकर पटवन करता था. शुरुआत के दो साल मानसिक और शारारिक काफी परेशानी झेलना पड़ी. गांव से लेकर परिवार के बीच में उपहास का केंद्र बिंदु रहता था.''- सत्येंद्र गौतम मांझी, ग्वावा मैन

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उन्होंने कहा कि मैं पिछले 15 सालों से मेहनत कर रहा हूं. जिसका नतीजा है कि आज 10 हजार अमरूद के पेड़ में अमरूद के फल लगे हुए हैं. मुझे सरकार ने काफी सम्मान दिया है. राज्य की राजधानी और जिला मुख्यालय से इतनी दूर रहने के बावजूद सीएम ने मेरे कामों की सराहना की है. जिसके बाद मुझे बाल संरक्षण आयोग का सदस्य बना दिया गया.

बता दें कि सत्येंद्र मांझी अमरूद का पौधा लगाने के लिए प्रसिद्ध हैं. अपने नर्सरी में सैकड़ों अमरूद के पौधे लगा रखे हैं, जिससे लोगों को बिल्कुल मुफ्त में देते हैं. बस शर्त रहती है कि पौधे को पेड़ बनाना होगा. अब लोग सत्येंद्र मांझी से आम के पेड़ मांग रहे हैं. ऐसे में सत्येंद्र मांझी शहर की गलियों और कचरे में फेंकी गुठलियों को चुनते हैं और अपनी नर्सरी में तैयार करके किसानों को मुफ्त में आम का पौधा दे रहे हैं.

Last Updated : Aug 21, 2021, 8:45 PM IST
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