गया: बिहार के बोधगया में एक अनोखा स्कूल है जो बच्चों से फीस के बदले में कचरा लेता है. पहली बार में सुनने में यह भले ही अजीब लगे, लेकिन ऐसा ही है. बोधगया में सेवाबीघा गांव पदमपानी स्कूल (padampani school in bodh gaya) किसी भी आम स्कूल जैसा ही दिखता है. खास बात ये है कि स्कूल में बच्चों से फीस नहीं ली जाती (Gaya School charges waste not fees from students) हैं. साथ ही बच्चों को किताबें और स्टेशनरी भी फ्री में दी जाती है.
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इस स्कूल में फीस के बदले लिया जाता है कचरा : हालांकि, फीस की एवज में बच्चों को स्कूल से घर आने के दौरान रास्ते में मिलने वाला कचरा लेकर आने को कहा जाता है. बच्चों को यह कचरा स्कूल के बाहर बने डस्टबीन में डालना होता है. बाद में इस कचरे को रिसाइकिल होने के लिए भेज दिया जाता है. इस तरह यह स्कूल छात्रों को पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता के साथ ही भूजल संरक्षण की भी सीख देता है.
''कचरे के रूप में स्कूल फीस लेने के पीछे मुख्य उद्देश्य बच्चों में जिम्मेदारी की भावना का अहसास कराना है. इससे वह ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण के खतरों के प्रति जागरूक हो सकें. इसके अलावा कई स्टूडेंट्स स्वच्छता और जल प्रबंधन के लिए भी आसपास के गांवों में काम करते हैं. स्कूल में प्राइमरी से आठवीं क्लास तक 250 स्टूडेंट्स हैं. इस स्कूल के पास ही विश्व ऐतिहासिक धरोहर महाबोधि महाविहार मंदिर भी है.'' - मीरा कुमारी, स्कूल प्रिंसिपल
स्कूल में कचरा लेकर जाते हैं बच्चे : दरअसल, साल 2014 में पदमपानी स्कूल ने इसकी शुरूआत की थी. उस वक्त स्कूल में करीब 250 बच्चे थे. यहां सबसे ज्यादा महादलित और पिछड़ा वर्ग की जाति के बच्चे पढ़ने आते हैं. यहां के बच्चों में अनुशासन भी देखने को मिलता है. जिन बच्चों ने टीवी तक नहीं देखी उनके लिए लैपटॉप और स्मार्ट क्लास तक की व्यवस्था हैं. यहां के बच्चे धड़ल्ले से लैपटॉप चलाते हैं. स्कूल प्रबंधन ने बच्चों को मुफ्त शिक्षा, किताबें और मिड डे मील देने का फैसला किया. फीस के बदले बच्चों से कहा गया, जब वे स्कूल आते हैं तो अपने साथ कचरा लेते आएं और स्कूल के बाहर रखे डस्टबिन में डाल दें. साथ ही, स्कूल से जाते वक्त वाटर बॉटल का पानी पौधों में डालना है.
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''फीस के रूप में हम कचरा इकट्ठा करते हैं जो बाद में रिसाइकिल के लिए भेजा जाता है. अच्छी शिक्षा के अलावा हमें प्रकृति के महत्व के बारे में भी जानकारी दी जाती है. साथ ही इससे हमें अपने क्षेत्र को साफ रखने में भी मदद मिलती है.'' - चांदनी कुमार, छात्रा, पदमपानी स्कूल
''यह एक अनोखा स्कूल है, जो हमें काफी पसंद है. हम रास्ते में और घर में पड़े कचरे को लेकर यहां पर आते हैं और यहां विद्यालय में डस्टबिन में स्टोर करते हैं. यह पर्यावरण संरक्षण के मकसद से किया जाता है. कचरे के रूप में प्लास्टिक समेत अन्य चीजें मिलती है. उसे ले आते हैं और डस्टबिन में डालने के बाद उसे एकत्रित कर रीसाइक्लिंग के लिए भेजा जाता है. इस तरह से पर्यावरण प्रदूषण से बचाव होता है. बताते हैं कि यहां एक तरह से निशुल्क पढ़ाई हम लोगों को दी जाती है.'' - डॉली कुमारी, छात्रा, पदमपानी स्कूल
कोरिया के पर्यटक हुए थे प्रभावितः इतना ही नहीं, स्कूल के छात्र भी अपने स्तर पर रिसाइकल प्रोजेक्ट करते हैं, जैसे प्लास्टिक की बोतलों में पौधे लगाना. पदमपानी स्कूल के डायरेक्टर मनोरंजन कुमार कहते हैं कि शुरुआत में बच्चों की यूनिफॉर्म, किताबों और मिडडे मील का खर्च स्थानीय लोगों से चंदा लेकर किया जाता था. साल 2018 में कोरिया के कुछ पर्यटक यहां आए. उन लोगों ने स्कूल देखा और इससे काफी प्रभावित हुए. इसके बाद से हर नियमित रूप से वे लोग डोनेशन देते हैं. इन पैसों को स्कूल के इंफ्रास्ट्रक्टचर व बच्चों पर खर्च किया जाता है. बता दें कि यह स्कूल दक्षिण कोरिया द्वारा संचालित है.
''यहां से सारे कचरे को इकट्ठा कर रिसाइकलिंग के लिए भेजा जाता है. हमारा मकसद छात्रों को पर्यावरण के प्रति जागरुक रहने और हरियाली का संदेश देना है. बच्चों की मदद से विद्यालय परिसर में लगे पेड़ों की देखभाल भी की जाती है. स्कूल में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे गरीब परिवार से आते हैं. इन बच्चों को खेलकूद और दूसरी गतिविधियों के अलावा सामाजिक और सांस्कृतिक शिक्षा भी दी जाती है. हमारा लक्ष्य है कि वैश्विक धरोहर महाबोधि मंदिर के आसपास की सभी जगह साफ-सुथरा रहे और वहां कोई गंदगी न हो.'' - मनोरंजन कुमार, डायरेक्टर, पदमपानी स्कूल
आखिर क्या है मकसद? : इतना ही नहीं, मनोरंजन बताते हैं कि, इन इलाकों में लोग पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं से अनजान थे. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी गरीब परिवार से आते हैं. इसलिए, हमारी कोशिश ये थी कि बच्चों को कम उम्र से ही साफ-सफाई और पर्यावरण के बारे में समझाना समझाना हैं. शुरुआत में छात्र कचरा उठाने के लिए राजी नहीं हुए. लेकिन जब उन्हें समझाया कि अपने आसपास साफ-सफाई रखना जरूरी है, तो धीरे-धीरे छात्र इस मुहिम के साथ जुड़ते चले गए.
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