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बिहार के गया से है प्रभु श्रीराम और मां सीता का पौराणिक संबंध, सीता कुंड पिंड वेदी है साक्ष्य

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Published : Aug 5, 2020, 6:01 AM IST

बिहार के गया में स्थित सीताकुंड पिंड वेदी माता सीता और राजा दशरथ को अर्पित उनके पिंडदान की पौराणिक मान्यताओं को सत्यापित करता है. सीता कुंड भगवान राम, मां सीता और लक्ष्मण के साथ गयाजी के उस संबंध का साक्षी है जो त्रेता युग से जगत-संसार में मौजूद है.

Sitakund Pind Vedi
Sitakund Pind Vedi

गया: दिवंगत आत्माओं की शांति एवं मोक्ष के लिए देश-दुनिया में 'मुक्तिधाम' के रूप में विख्यात बिहार के गयाजी में माता सीता ने भगवान श्रीराम के पिता और अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. जिसके बाद राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी.

भारत में बहुत से ऐसे नगर, राज्य और स्थान हैं जिनका महत्व अलौकिक है लेकिन बिहार के गया को विश्व में मुक्तिधाम के रूप में जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि गयाजी में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को मुक्ति मिल जाती है. वैसे तो पूरे साल गया में पिंडदान किया जाता है लेकिन पितृपक्ष के मौके पर पिंडदान का विशेष महत्व है. गया धाम का जिक्र गरुड़ पुराण समेत कई ग्रंथों में भी दर्ज है. ऐसा भी कहा जाता है कि गयाजी में श्राद्ध करने मात्र से ही आत्मा को विष्णु लोक की प्राप्ति हो जाती है.

गयाजी से खास रिपोर्ट

राजा दशरथ ने की पिंडदान की मांग
एक पौराणिक कथा के अनुसार, वनवास काल के दौरान भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ पिता दशरथ का श्राद्ध करने गया धाम पहुंचते हैं. पिंडदान के लिए दोनों भाई जरूरी सामान लेने जाते हैं और फल्गु नदी के तट पर माता सीता उनका इंतजार करती हैं. काफी समय बीत जाने के बावजूद दोनों भाई वापस नहीं लौटते तभी अचानक राजा दशरथ की आत्मा माता सीता के पास आकर पिंडदान की मांग करते हैं.

Sitakund Pind Vedi
सीता कुंड द्वार

इन पांचों को माना साक्षी
राजा दशरथ की मांग पर माता सीता फल्गु नदी के किनारे बैठकर वहां लगे केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू के पिंड बनाकर उनके लिए पिंडदान करती हैं. कुछ समय बाद जब भगवान राम और लक्ष्मण सामग्री लेकर लौटते हैं, तब सीता उन्हें बताती हैं कि वह महाराज दशरथ का पिंडदान कर चुकी हैं. इस पर श्रीराम बिना सामग्री पिंडदान को मानने से इंकार करते हुए सीता से इसका प्रमाण मांगते हैं.

Sitakund Pind Vedi
सीताकुंड में पिंड वेदी

भगवान राम के प्रमाण मांगने पर माता सीता ने केतकी के फूल, गाय और बालू मिट्टी से गवाही देने के लिए कहा, लेकिन वहां लगे वट वृक्ष के अलावा किसी ने भी सीताजी के पक्ष में गवाही नहीं दी. इसके बाद सीताजी ने महाराज दशरथ की आत्मा का ध्यान कर उन्हीं से गवाही देने की प्रार्थना की. उनके आग्रह पर स्वयं महाराज दशरथ की आत्मा प्रकट हुई और कहा कि सीता ने उनका पिंडदान कर दिया है. अपने पिता की गवाही पाकर भगवान राम आश्वस्त हो जाते हैं.

Sitakund Pind Vedi
सीताकुंड पिंड वेदी मंदिर

मां सीता ने दिया श्राप

वहीं, फल्गु नदी और केतकी के फूलों के झूठ बोलने पर क्रोधित माता सीता ने फल्गु को सूख जाने का श्राप दे दिया. श्राप के कारण आज भी फल्गु नदी का पानी सूखा रहता है और केवल बरसात के दिनों में इसमें कुछ पानी होता है. नदी के दूसरे तट पर मौजूद सीताकुंड का पानी भी सूखा रहता है इसलिए आज भी यहां बालू मिट्टी या रेत से ही पिंडदान किया जाता है.

गया: दिवंगत आत्माओं की शांति एवं मोक्ष के लिए देश-दुनिया में 'मुक्तिधाम' के रूप में विख्यात बिहार के गयाजी में माता सीता ने भगवान श्रीराम के पिता और अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. जिसके बाद राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी.

भारत में बहुत से ऐसे नगर, राज्य और स्थान हैं जिनका महत्व अलौकिक है लेकिन बिहार के गया को विश्व में मुक्तिधाम के रूप में जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि गयाजी में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को मुक्ति मिल जाती है. वैसे तो पूरे साल गया में पिंडदान किया जाता है लेकिन पितृपक्ष के मौके पर पिंडदान का विशेष महत्व है. गया धाम का जिक्र गरुड़ पुराण समेत कई ग्रंथों में भी दर्ज है. ऐसा भी कहा जाता है कि गयाजी में श्राद्ध करने मात्र से ही आत्मा को विष्णु लोक की प्राप्ति हो जाती है.

गयाजी से खास रिपोर्ट

राजा दशरथ ने की पिंडदान की मांग
एक पौराणिक कथा के अनुसार, वनवास काल के दौरान भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ पिता दशरथ का श्राद्ध करने गया धाम पहुंचते हैं. पिंडदान के लिए दोनों भाई जरूरी सामान लेने जाते हैं और फल्गु नदी के तट पर माता सीता उनका इंतजार करती हैं. काफी समय बीत जाने के बावजूद दोनों भाई वापस नहीं लौटते तभी अचानक राजा दशरथ की आत्मा माता सीता के पास आकर पिंडदान की मांग करते हैं.

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सीता कुंड द्वार

इन पांचों को माना साक्षी
राजा दशरथ की मांग पर माता सीता फल्गु नदी के किनारे बैठकर वहां लगे केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू के पिंड बनाकर उनके लिए पिंडदान करती हैं. कुछ समय बाद जब भगवान राम और लक्ष्मण सामग्री लेकर लौटते हैं, तब सीता उन्हें बताती हैं कि वह महाराज दशरथ का पिंडदान कर चुकी हैं. इस पर श्रीराम बिना सामग्री पिंडदान को मानने से इंकार करते हुए सीता से इसका प्रमाण मांगते हैं.

Sitakund Pind Vedi
सीताकुंड में पिंड वेदी

भगवान राम के प्रमाण मांगने पर माता सीता ने केतकी के फूल, गाय और बालू मिट्टी से गवाही देने के लिए कहा, लेकिन वहां लगे वट वृक्ष के अलावा किसी ने भी सीताजी के पक्ष में गवाही नहीं दी. इसके बाद सीताजी ने महाराज दशरथ की आत्मा का ध्यान कर उन्हीं से गवाही देने की प्रार्थना की. उनके आग्रह पर स्वयं महाराज दशरथ की आत्मा प्रकट हुई और कहा कि सीता ने उनका पिंडदान कर दिया है. अपने पिता की गवाही पाकर भगवान राम आश्वस्त हो जाते हैं.

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सीताकुंड पिंड वेदी मंदिर

मां सीता ने दिया श्राप

वहीं, फल्गु नदी और केतकी के फूलों के झूठ बोलने पर क्रोधित माता सीता ने फल्गु को सूख जाने का श्राप दे दिया. श्राप के कारण आज भी फल्गु नदी का पानी सूखा रहता है और केवल बरसात के दिनों में इसमें कुछ पानी होता है. नदी के दूसरे तट पर मौजूद सीताकुंड का पानी भी सूखा रहता है इसलिए आज भी यहां बालू मिट्टी या रेत से ही पिंडदान किया जाता है.

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