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20 साल पहले दलाई लामा का प्रवचन सुनने आई थी महिला, अब बिहार की बन गईं हैं 'मम्मी जी'

फ्रांसीसी महिला जेनी पेरे 2001 में तिब्बतियों के आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाई लामा (Dalai Lama) का प्रवचन सुनने गया आईं थीं. लेकिन उसके बाद यहीं की होकर रह गईं और अब सभी इन्हें मम्मी जी के नाम से जानते हैं. पढ़िए मम्मी जी की पूरी कहानी..

French Woman became Mummy jee
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Published : Aug 21, 2021, 6:12 PM IST

गया: आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाई लामा (Dalai Lama) का प्रवचन सुनने के लिए फ्रांसीसी महिला जेनी पेरे (French Woman Jenny Pere) 2001 में ज्ञान की धरती बोधगया (Bodhgaya) आईं थीं. लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि फिर कभी जेनी वापस अपने देश नहीं लौटी. अब 80 साल की जेनी को सभी मम्मी जी (Mummy jee) के नाम से पुकारते हैं.

यह भी पढ़ें- गया: फ्रांस की समाजसेविका ने गांव की महिलाओं के साथ मनाई क्रिसमस, गरीबों को वितरण किया गया कंबल

जेनी पेरे जब बोधगया टेंपल से लेकर होटल के रास्तों के बीच से गुजर रही थी तो उनकी नजर गरीब बच्चों पर पड़ी. गरीब बच्चों का दर्द देखकर जेनी पेरे का मन व्याकुल हो उठा और उन्होंने फैसला लिया कि इन बच्चों की मदद करेंगी. उसके बाद जेनी ने फ्रांस का अपना घर बार छोड़ दिया और बोधगया में ही रहने लगीं. जेनी पेरे इन गरीब बच्चों को आवासीय शिक्षा देने में लगी हैं. यही नहीं अनाथ बच्चों को मां जैसा प्यार जेनी से मिलने लगा तो बच्चों ने जेनी पेरे का नाम 'मम्मी जी' रख दिया. आज जेनी पेरे 'मम्मी जी' के नाम से विख्यात हैं.

देखें वीडियो

गरीब बच्चों के लिए निशुल्क स्कूल, अनाथ बच्चों के लिए आवासीय स्कूल, वहीं छात्राओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न तरह की निशुल्क व्यवसायिक प्रशिक्षण का काम जेनी कर रही हैं. फ्रांसीसी महिला जेनी पेरे बताती हैं कि साल 2001 में बोधगया आयी थी. तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का टीचिंग चल रहा था.

महाबोधी मंदिर से लेकर होटल जाने के रास्ते के बीच मैंने कई बच्चों को भीख मांगते, इधर उधर भटकते देखा. इन बच्चों की किसी को चिंता नहीं थी. मैंने सोचा कि इन बच्चों का उत्थान किया जाए. तब ही भगवान बुद्ध के विचार सार्थक होंगे. मैने ठान लिया कि इन बच्चों को काबिल बनाऊंगी. मैंने शुरूआत में बोधगया के लोगों के साथ मिलकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. शुरुआत में बच्चे कम आये लेकिन जैसे जैसे बच्चों का शैक्षणिक विकास होने लगा वैसे वैसे बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ.- जेनी पेरे उर्फ मम्मी जी,समाजसेविका

जेनी पेरे ने मम्मी जी एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट की शुरूआत की. साथ ही अनाथ बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय भी बनवाया. जहां बच्चों के रहने खाने की व्यवस्था की गई. बच्चों को सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने की जरूरत थी. बाकी सारी चिंताओं का समाधान जेनी पेरे उर्फ मम्मी जी ने कर दिया था.

जेनी पेरे ने कहा 'मुझे भारत में क्या मिलेगा यह सोचकर नहीं आई थी. लेकिन भारत में मुझे बहुत सम्मान मिला. जब हर वर्ग, हर उम्र के लोग मुझे मम्मी जी कहकर पुकारते हैं तो यह सम्मान किसी भारत रत्न से कम नहीं होता है. हर कोई मुझमे मां देखता है और मैं अपने बच्चों की तरह उनकी सेवा करती हूं.'

बोधगया में जेनी पेरी के सारथी बने मुन्ना पासवान ने उनकी काफी मदद की. मम्मी जी एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट के सचिव मुन्ना पासवान बताते हैं कि मम्मी जी का फ्रांस में भरा पूरा परिवार है. लेकिन उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी गया के बच्चों के नाम कर दी है.

मम्मी जी का पूरा परिवार फ्रांस में ही रहता है. मम्मी जी यहां के बच्चों के प्यार और अपने फर्ज के कारण अपने परिवार के पास नहीं जाती हैं. जेनी पेरे ने उन बच्चों को काबिल और हुनरमंद बनाया है जो कभी सपने में भी स्कूल जाने की बात नहीं सोच सकते थे.- मुन्ना पासवान, सचिव, मम्मी जी एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट

जेनी पेरे बच्चों के साथ ही महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए कंप्यूटर कोर्स, ब्यूटीशियन, मेहंदी, सिलाई, कढ़ाई, नृत्य संगीत की निशुल्क ट्रेनिंग देती हैं. इन 20 सालों में मम्मी जी के प्रयास से अत्यधिक गरीब और अनाथ बच्चे हुनरमंद होकर एक मुकाम तक पहुंचे हैं.

मम्मी जी एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट में कम्प्यूटर ऑपरेटर का काम कर रहे जितेंद्र ने बताता है कि मैं मांझी समाज से आता हूं. हमारे समाज में दो जून की रोटी मिल जाये यही काफी होता है. मम्मी जी की नजर मुझ पर पड़ी उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित किया. मैंने दसवीं तक की पढ़ाई मम्मी जी के स्कूल से ही किया है. पढ़ाई करने के बाद कहीं जॉब नहीं मिला तो मम्मी जी ने कंप्यूटर ऑपरेटर का जॉब दे दिया. मेरे दो बच्चे भी इसी स्कूल में निशुल्क पढ़ाई कर रहे हैं.

80 वर्षीय मम्मी जी पिछले 20 सालों से समाजसेवा कर रही हैं. मम्मी जी वर्तमान में 500 से अधिक बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रही हैं. साथ ही गया जिले के अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र बाराचट्टी और इमामगंज में सिलाई प्रशिक्षण केंद्र भी संचालित कर रही हैं.

जेनी पेरे ने कोरोना महामारी के दौरान हुए लॉकडाउन में एक हजार परिवारों को एक सप्ताह का राशन उपलब्ध करवाया था. इसके अलावा मार्च से मई माह तक अगलगी की घटनाओं में पीड़ित परिवारों को आर्थिक मदद भी दी थी. मम्मी जी को समाज में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए दर्जनों सम्मान मिल चुके हैं. ईटीवी मीडिया समूह ने भी 'बिहारी हो तो ऐसा' सम्मान से इनको नवाजा है. जेनी पेरे को नोबल इंडिया अवार्ड, इंटरनेशनल स्टेटस अवार्ड, गोल्ड स्टार अवॉर्ड, मातृ टेरेसा सद्भावना अवार्ड, इंदिरा गांधी अवॉर्ड सहित दर्जनों सम्मान देश विदेश में मिल चुके हैं.

यह भी पढ़ें- गया में कोरोना के योद्धाओं का फ्रांसीसी समाजसेविका ने किया सम्मानित

यह भी पढ़ें- समाजेसवी की शिकायत पर बोधगया पहुंची फ्रांस की कॉन्सलेट जनरल, SSP से मांगी मदद

गया: आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाई लामा (Dalai Lama) का प्रवचन सुनने के लिए फ्रांसीसी महिला जेनी पेरे (French Woman Jenny Pere) 2001 में ज्ञान की धरती बोधगया (Bodhgaya) आईं थीं. लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि फिर कभी जेनी वापस अपने देश नहीं लौटी. अब 80 साल की जेनी को सभी मम्मी जी (Mummy jee) के नाम से पुकारते हैं.

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जेनी पेरे जब बोधगया टेंपल से लेकर होटल के रास्तों के बीच से गुजर रही थी तो उनकी नजर गरीब बच्चों पर पड़ी. गरीब बच्चों का दर्द देखकर जेनी पेरे का मन व्याकुल हो उठा और उन्होंने फैसला लिया कि इन बच्चों की मदद करेंगी. उसके बाद जेनी ने फ्रांस का अपना घर बार छोड़ दिया और बोधगया में ही रहने लगीं. जेनी पेरे इन गरीब बच्चों को आवासीय शिक्षा देने में लगी हैं. यही नहीं अनाथ बच्चों को मां जैसा प्यार जेनी से मिलने लगा तो बच्चों ने जेनी पेरे का नाम 'मम्मी जी' रख दिया. आज जेनी पेरे 'मम्मी जी' के नाम से विख्यात हैं.

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गरीब बच्चों के लिए निशुल्क स्कूल, अनाथ बच्चों के लिए आवासीय स्कूल, वहीं छात्राओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न तरह की निशुल्क व्यवसायिक प्रशिक्षण का काम जेनी कर रही हैं. फ्रांसीसी महिला जेनी पेरे बताती हैं कि साल 2001 में बोधगया आयी थी. तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का टीचिंग चल रहा था.

महाबोधी मंदिर से लेकर होटल जाने के रास्ते के बीच मैंने कई बच्चों को भीख मांगते, इधर उधर भटकते देखा. इन बच्चों की किसी को चिंता नहीं थी. मैंने सोचा कि इन बच्चों का उत्थान किया जाए. तब ही भगवान बुद्ध के विचार सार्थक होंगे. मैने ठान लिया कि इन बच्चों को काबिल बनाऊंगी. मैंने शुरूआत में बोधगया के लोगों के साथ मिलकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. शुरुआत में बच्चे कम आये लेकिन जैसे जैसे बच्चों का शैक्षणिक विकास होने लगा वैसे वैसे बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ.- जेनी पेरे उर्फ मम्मी जी,समाजसेविका

जेनी पेरे ने मम्मी जी एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट की शुरूआत की. साथ ही अनाथ बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय भी बनवाया. जहां बच्चों के रहने खाने की व्यवस्था की गई. बच्चों को सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने की जरूरत थी. बाकी सारी चिंताओं का समाधान जेनी पेरे उर्फ मम्मी जी ने कर दिया था.

जेनी पेरे ने कहा 'मुझे भारत में क्या मिलेगा यह सोचकर नहीं आई थी. लेकिन भारत में मुझे बहुत सम्मान मिला. जब हर वर्ग, हर उम्र के लोग मुझे मम्मी जी कहकर पुकारते हैं तो यह सम्मान किसी भारत रत्न से कम नहीं होता है. हर कोई मुझमे मां देखता है और मैं अपने बच्चों की तरह उनकी सेवा करती हूं.'

बोधगया में जेनी पेरी के सारथी बने मुन्ना पासवान ने उनकी काफी मदद की. मम्मी जी एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट के सचिव मुन्ना पासवान बताते हैं कि मम्मी जी का फ्रांस में भरा पूरा परिवार है. लेकिन उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी गया के बच्चों के नाम कर दी है.

मम्मी जी का पूरा परिवार फ्रांस में ही रहता है. मम्मी जी यहां के बच्चों के प्यार और अपने फर्ज के कारण अपने परिवार के पास नहीं जाती हैं. जेनी पेरे ने उन बच्चों को काबिल और हुनरमंद बनाया है जो कभी सपने में भी स्कूल जाने की बात नहीं सोच सकते थे.- मुन्ना पासवान, सचिव, मम्मी जी एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट

जेनी पेरे बच्चों के साथ ही महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए कंप्यूटर कोर्स, ब्यूटीशियन, मेहंदी, सिलाई, कढ़ाई, नृत्य संगीत की निशुल्क ट्रेनिंग देती हैं. इन 20 सालों में मम्मी जी के प्रयास से अत्यधिक गरीब और अनाथ बच्चे हुनरमंद होकर एक मुकाम तक पहुंचे हैं.

मम्मी जी एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट में कम्प्यूटर ऑपरेटर का काम कर रहे जितेंद्र ने बताता है कि मैं मांझी समाज से आता हूं. हमारे समाज में दो जून की रोटी मिल जाये यही काफी होता है. मम्मी जी की नजर मुझ पर पड़ी उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित किया. मैंने दसवीं तक की पढ़ाई मम्मी जी के स्कूल से ही किया है. पढ़ाई करने के बाद कहीं जॉब नहीं मिला तो मम्मी जी ने कंप्यूटर ऑपरेटर का जॉब दे दिया. मेरे दो बच्चे भी इसी स्कूल में निशुल्क पढ़ाई कर रहे हैं.

80 वर्षीय मम्मी जी पिछले 20 सालों से समाजसेवा कर रही हैं. मम्मी जी वर्तमान में 500 से अधिक बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रही हैं. साथ ही गया जिले के अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र बाराचट्टी और इमामगंज में सिलाई प्रशिक्षण केंद्र भी संचालित कर रही हैं.

जेनी पेरे ने कोरोना महामारी के दौरान हुए लॉकडाउन में एक हजार परिवारों को एक सप्ताह का राशन उपलब्ध करवाया था. इसके अलावा मार्च से मई माह तक अगलगी की घटनाओं में पीड़ित परिवारों को आर्थिक मदद भी दी थी. मम्मी जी को समाज में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए दर्जनों सम्मान मिल चुके हैं. ईटीवी मीडिया समूह ने भी 'बिहारी हो तो ऐसा' सम्मान से इनको नवाजा है. जेनी पेरे को नोबल इंडिया अवार्ड, इंटरनेशनल स्टेटस अवार्ड, गोल्ड स्टार अवॉर्ड, मातृ टेरेसा सद्भावना अवार्ड, इंदिरा गांधी अवॉर्ड सहित दर्जनों सम्मान देश विदेश में मिल चुके हैं.

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