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ये हैं बिहार के 'ग्रीन मैन' दिलीप कुमार सिकंदर, लगा चुके हैं 1 लाख से ज्यादा पेड़ - sikandar planted one lakh tree

गया के दशरथ मांझी, जिन्होंने छेनी और हथौड़ा से पहाड़ को चीर दिया और रास्ता बनाकर लाखों लोगों को सहूलियत दी. वहीं, हाल में चर्चित हुए लौंगी भुईयां जिन्होंने 30 साल के अथक मेहनत से 5 किलोमीटर तक नहर काटकर पहाड़ के पानी को खेतों तक पहुंचाया. जिसे अब कैनाल मैन के नाम से लोग जानते हैं. वहीं सिकंदर पहाड़ों पर लाखों पेड़ पौधे लगाकर ग्रीन मैन ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर हो गये.

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Published : Sep 28, 2020, 7:41 AM IST

Updated : Sep 28, 2020, 10:38 PM IST

गया: बिहार सरकार को 'जल जीवन हरियाली' कार्यक्रम के लिए दो भागरथी गया जिले से मिल गए हैं. पहला कैनाल मैन लौंगी भुइंया जिसने पांच किलोमीटर नहर बनाकर जल संचय का काम किया. वहीं दूसरा 'ग्रीन मैन' से प्रसिद्ध दिलीप कुमार सिकंदर जिसने निर्जन पहाड़ को लाखों पेड़ लगाकर हरा भरा कर दिया है.

'नदियों में पानी नहीं, पहाड़ निर्जन'
गया के रहने वाले दिलीप कुमार सिकंदर ने शहर में स्थित ब्रह्मयोनि पर्वत पर लाखों पौधा रोपण कर वीरान जगह को हराभरा बना दिया है. गया को लेकर धारणा है कि यहां की नदियों में पानी नहीं रहता है और पहाड़ निर्जन रहता है. इस धारणा को सिकन्दर ने बदल दिया.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ब्रह्मयोनि पहाड़ पर सिकंदर की मेहनत
अब गया का पहाड़ हराभरा रहता है. इसके पीछे कोई प्राकृतिक घटना नहीं, बस एक व्यक्ति की जुनून और मेहनत है. मजदूर सिकंदर बिना सरकारी मदद लिए पहाड़ों पर जहां मिट्टी और पानी का साधन नहीं है उस जगह को हरा भरा कर दिया है. ब्रह्मयोनि पहाड़ का कई क्षेत्र सिकंदर की मेहनत से जंगलनुमा बन गया है.

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ब्रह्मयोनि पर्वत पर दिलील कुमार सिकंदर.

एक लाख से ज्यादा पौधा रोपण
सिकंदर बताते हैं कि 'ब्रह्मयोनी पहाड़ पर 1982 से अब तक 45 साल बीत जाने पर भी हर दिन पौधारोपण करते हैं. पुराने पेड़ का देखभाल करते हैं. उन्होंने बताया कि अबतक अनगिनत पौधा लगा चुके हैं. एक अंदाज से एक लाख से ज्यादा पौधा लगा दिया हूं. मुझे पौधा लगाने का या पेड़ों की देखभाल करने के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. मुझे इनसे प्यार है. मैं इन पेड़ पौधों को अपने संतान जैसा पालता हूं.'

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बगीचा में लगे पेड़.

1982 का वो दिन...
1982 में बरसात की मौसम में मेरा पूरा परिवार इस स्थान पर पिकनिक मनाने आया था. ये जगह पूरा वीरान था. पेड़ पौधों का नामोनिशान नहीं था. बस पहाड़ पर दर्जनों छोटे मोटे झरने थे. मैं अपने पिताजी से पूछा ये पहाड़ पर पेड़ क्यों नहीं हैं? तो उन्होंने कहा कि यहां बिना पानी क नदी और बिना पेड़ पौधे के पहाड़ होते हैं. इसलिए यह निर्जन है.

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पौधा में पानी डालते सिकंदर.

45 सालों से लगा रहे पेड़
सिकंदर बताते हैं कि उन्हें यह बात खल गयी. उन्होंने आगे कहा, 'मैंने उस दिन से ठान लिया कि मैं इस पहाड़ को हरा भरा कर दूंगा. घर से जेब खर्च से एक खोदने वाला खंती बनाया और चोरी करके पौधा लाकर इस पहाड़ पर लगाने लगा. ये दिनचर्या में बन गया घर से खेलने के बहाने निकलता और यहां पहाड़ में पेड़ पौधा लगाता था. ये सिलसिला 45 सालों से चला आ रहा है. अब तक अनगिनत पेड़ पौधे लगा चुका हूं आज पूरा ब्रह्मयोनि पर्वत हरा-भरा है.'

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शहीद जवानों की याद में पौधा रोपण.

बस एक लक्ष्य-हर तरफ हो हरियाली
दिलीप कुमार ने कहा कि, 'मैं दिन में मजदूरी का काम करता हूं. मुझे पेड़ पौधा की सेवा करने के लिए पैसे आ जाते हैं तो इस पहाड़ पर आकर घंटो काम करता हूं. इस बरसात में जितना काम करूंगा, उतना ही फायदा होगा. इसलिए मैं रात में 3 बजे तक तो कभी-कभी सुबह तक काम करता हूं. मेरा बस एक लक्ष्य है हर तरफ सिर्फ हरा भरा रहे.'

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पेड़ के लिए गड्ढा खोदते दिलीप.

ज्यादातर नीम का पेड़ लगाया
सिकंदर बताते हैं कि 'मैं इन पहाड़ों पर ज्यादातर नीम का पेड़ लगाया हूं. इसके पीछे कारण है निम का बीज आसानी से मिल जाता है. उसे बोकर हजारों निम के पौधे लगाए जा सकते हैं. उसके बाद फलदार में आम का पेड़ लगाया हूं. मुझे अभी एक पौधरोपण करने में 200 रुपये के लगभग खर्च होता है. मैं हर दिन अखबार पढ़ता हूं. अगर मुझे पता चलता है कि कोई सैनिक शहीद हो गया है तो उसके नाम से छायादार या फलदार पौधा लगाता हूं. मैं एक स्वंत्रता सेनानी और शहीदों के नाम फलदार पेड़ों का पार्क बनाया हूं. इसमें ज्यादा से ज्यादा स्वंतत्रता सेनानियों के नाम पर पेड़ हैं. देश पर जान कुर्बान करने वाले सैनिकों के नाम हरेक पेड़ हैं.'

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पहाड़ों पर खंती लेकर दिलीप कुमार सिकंदर

'पूरी रात काम करते हैं, घनघोर जंगल में किसी का डर नहीं लगता'
ब्रह्मयोनि पर्वत के बगल में बसा दलित बस्ती का एक युवक बताता है कि 'मेरी उम्र 19 वर्ष है. जब से होश संभाला हूं तबसे इनको इन पहाड़ो में काम करते देखता हूं. ये पूरी रात काम करते हैं, इन्हें इस घनघोर जंगल में किसी का डर नहीं लगता है. इनके पास से कई खतरनाक गुजर जाते लेकिन इनको हानि नही पहुंचाते हैं.'

विडंबना तो इस बात की है कि दिलीप कुमार सिकंदर के कामों की सरकार और जिला प्रशासन ने कई बार सराहना की है. लेकिन आज तक कोई आर्थिक मदद या बड़ा सम्मान नहीं दिया है. वैसे एक बार सम्मानित हए हैं. इसके बारे में दिलीप बताते हैं कि, 'सूबे के उपमुख्यमंत्री मेरे कामों को देखने आये थे, मेरे द्वारा किये गए कामों को देखा. मुझे एक बार श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में प्रशस्ति पत्र दिया गया.'

सिंकन्दर कहते हैं मुझे सरकार से सम्मान नहीं चाहिए. सम्मान तो ये पेड़-पौधे हैं. सम्मान एक प्रेरणा है. दूसरे लोगों के लिए मैं एक प्रेरणा बन जागृत करना चाहता हूं.

गया: बिहार सरकार को 'जल जीवन हरियाली' कार्यक्रम के लिए दो भागरथी गया जिले से मिल गए हैं. पहला कैनाल मैन लौंगी भुइंया जिसने पांच किलोमीटर नहर बनाकर जल संचय का काम किया. वहीं दूसरा 'ग्रीन मैन' से प्रसिद्ध दिलीप कुमार सिकंदर जिसने निर्जन पहाड़ को लाखों पेड़ लगाकर हरा भरा कर दिया है.

'नदियों में पानी नहीं, पहाड़ निर्जन'
गया के रहने वाले दिलीप कुमार सिकंदर ने शहर में स्थित ब्रह्मयोनि पर्वत पर लाखों पौधा रोपण कर वीरान जगह को हराभरा बना दिया है. गया को लेकर धारणा है कि यहां की नदियों में पानी नहीं रहता है और पहाड़ निर्जन रहता है. इस धारणा को सिकन्दर ने बदल दिया.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ब्रह्मयोनि पहाड़ पर सिकंदर की मेहनत
अब गया का पहाड़ हराभरा रहता है. इसके पीछे कोई प्राकृतिक घटना नहीं, बस एक व्यक्ति की जुनून और मेहनत है. मजदूर सिकंदर बिना सरकारी मदद लिए पहाड़ों पर जहां मिट्टी और पानी का साधन नहीं है उस जगह को हरा भरा कर दिया है. ब्रह्मयोनि पहाड़ का कई क्षेत्र सिकंदर की मेहनत से जंगलनुमा बन गया है.

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ब्रह्मयोनि पर्वत पर दिलील कुमार सिकंदर.

एक लाख से ज्यादा पौधा रोपण
सिकंदर बताते हैं कि 'ब्रह्मयोनी पहाड़ पर 1982 से अब तक 45 साल बीत जाने पर भी हर दिन पौधारोपण करते हैं. पुराने पेड़ का देखभाल करते हैं. उन्होंने बताया कि अबतक अनगिनत पौधा लगा चुके हैं. एक अंदाज से एक लाख से ज्यादा पौधा लगा दिया हूं. मुझे पौधा लगाने का या पेड़ों की देखभाल करने के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. मुझे इनसे प्यार है. मैं इन पेड़ पौधों को अपने संतान जैसा पालता हूं.'

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बगीचा में लगे पेड़.

1982 का वो दिन...
1982 में बरसात की मौसम में मेरा पूरा परिवार इस स्थान पर पिकनिक मनाने आया था. ये जगह पूरा वीरान था. पेड़ पौधों का नामोनिशान नहीं था. बस पहाड़ पर दर्जनों छोटे मोटे झरने थे. मैं अपने पिताजी से पूछा ये पहाड़ पर पेड़ क्यों नहीं हैं? तो उन्होंने कहा कि यहां बिना पानी क नदी और बिना पेड़ पौधे के पहाड़ होते हैं. इसलिए यह निर्जन है.

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पौधा में पानी डालते सिकंदर.

45 सालों से लगा रहे पेड़
सिकंदर बताते हैं कि उन्हें यह बात खल गयी. उन्होंने आगे कहा, 'मैंने उस दिन से ठान लिया कि मैं इस पहाड़ को हरा भरा कर दूंगा. घर से जेब खर्च से एक खोदने वाला खंती बनाया और चोरी करके पौधा लाकर इस पहाड़ पर लगाने लगा. ये दिनचर्या में बन गया घर से खेलने के बहाने निकलता और यहां पहाड़ में पेड़ पौधा लगाता था. ये सिलसिला 45 सालों से चला आ रहा है. अब तक अनगिनत पेड़ पौधे लगा चुका हूं आज पूरा ब्रह्मयोनि पर्वत हरा-भरा है.'

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शहीद जवानों की याद में पौधा रोपण.

बस एक लक्ष्य-हर तरफ हो हरियाली
दिलीप कुमार ने कहा कि, 'मैं दिन में मजदूरी का काम करता हूं. मुझे पेड़ पौधा की सेवा करने के लिए पैसे आ जाते हैं तो इस पहाड़ पर आकर घंटो काम करता हूं. इस बरसात में जितना काम करूंगा, उतना ही फायदा होगा. इसलिए मैं रात में 3 बजे तक तो कभी-कभी सुबह तक काम करता हूं. मेरा बस एक लक्ष्य है हर तरफ सिर्फ हरा भरा रहे.'

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पेड़ के लिए गड्ढा खोदते दिलीप.

ज्यादातर नीम का पेड़ लगाया
सिकंदर बताते हैं कि 'मैं इन पहाड़ों पर ज्यादातर नीम का पेड़ लगाया हूं. इसके पीछे कारण है निम का बीज आसानी से मिल जाता है. उसे बोकर हजारों निम के पौधे लगाए जा सकते हैं. उसके बाद फलदार में आम का पेड़ लगाया हूं. मुझे अभी एक पौधरोपण करने में 200 रुपये के लगभग खर्च होता है. मैं हर दिन अखबार पढ़ता हूं. अगर मुझे पता चलता है कि कोई सैनिक शहीद हो गया है तो उसके नाम से छायादार या फलदार पौधा लगाता हूं. मैं एक स्वंत्रता सेनानी और शहीदों के नाम फलदार पेड़ों का पार्क बनाया हूं. इसमें ज्यादा से ज्यादा स्वंतत्रता सेनानियों के नाम पर पेड़ हैं. देश पर जान कुर्बान करने वाले सैनिकों के नाम हरेक पेड़ हैं.'

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पहाड़ों पर खंती लेकर दिलीप कुमार सिकंदर

'पूरी रात काम करते हैं, घनघोर जंगल में किसी का डर नहीं लगता'
ब्रह्मयोनि पर्वत के बगल में बसा दलित बस्ती का एक युवक बताता है कि 'मेरी उम्र 19 वर्ष है. जब से होश संभाला हूं तबसे इनको इन पहाड़ो में काम करते देखता हूं. ये पूरी रात काम करते हैं, इन्हें इस घनघोर जंगल में किसी का डर नहीं लगता है. इनके पास से कई खतरनाक गुजर जाते लेकिन इनको हानि नही पहुंचाते हैं.'

विडंबना तो इस बात की है कि दिलीप कुमार सिकंदर के कामों की सरकार और जिला प्रशासन ने कई बार सराहना की है. लेकिन आज तक कोई आर्थिक मदद या बड़ा सम्मान नहीं दिया है. वैसे एक बार सम्मानित हए हैं. इसके बारे में दिलीप बताते हैं कि, 'सूबे के उपमुख्यमंत्री मेरे कामों को देखने आये थे, मेरे द्वारा किये गए कामों को देखा. मुझे एक बार श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में प्रशस्ति पत्र दिया गया.'

सिंकन्दर कहते हैं मुझे सरकार से सम्मान नहीं चाहिए. सम्मान तो ये पेड़-पौधे हैं. सम्मान एक प्रेरणा है. दूसरे लोगों के लिए मैं एक प्रेरणा बन जागृत करना चाहता हूं.

Last Updated : Sep 28, 2020, 10:38 PM IST
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