चेन्नई: तमिलनाडु विधानसभा ने यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) के संशोधित नियमों की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है. प्रस्ताव में तर्क दिया गया है कि नए नियम राज्य की स्वायत्तता का उल्लंघन करते हैं और उसके हायर एजुकेशन सिस्टम को कमजोर करते हैं. बता दें कि विवाद के केंद्र में कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यपालों को अधिक अधिकार देने का निर्णय है.
UGC का तर्क है कि विश्वविद्यालयों के लिए अधिक स्वायत्तता और शैक्षणिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए ये बदलाव आवश्यक हैं. हालांकि, तमिलनाडु सरकार का तर्क है कि यह कदम राज्य के अधिकारों का उल्लंघन करता है और अपनी शिक्षा प्रणाली को संचालित करने की उसकी क्षमता को कमजोर करता है
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने क्या कहा?
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राज्य विधानसभा को संबोधित करते हुए यूजीसी के कदम की कड़ी निंदा करते हुए कहा, "यह संघीय सिद्धांतों का उल्लंघन है और इसका तमिलनाडु के छात्रों के भविष्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा." स्टालिन ने इस बात पर भी जोर दिया कि राज्य सरकार अपने शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता को कम करने के किसी भी प्रयास को बर्दाश्त नहीं करेगी. उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्य को अपनी शिक्षा प्रणाली को संचालित करने का अधिकार है और यूजीसी की कार्रवाई उसके अधिकार का अतिक्रमण है.
विश्वविद्यालयों को नष्ट करने का फैसला
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने विश्वविद्यालयों को बर्बाद करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं. यूजीसी ने नियम बनाए हैं कि कुलपति के चयन के लिए गठित की जाने वाली चयन समिति का निर्णय राज्यपाल करेंगे. कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल को देना विश्वविद्यालयों को बर्बाद करने का ही तरीका है. इसीलिए वे ऐसा करने जा रहे हैं. इस मुद्दे पर तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच पहले से ही मतभेद है.
स्टालिन ने कहा कि राज्यपाल ने कुलपति का चयन करने के लिए यूजीसी द्वारा रेकमेंडेड सदस्यों को चयन समिति में नियुक्त किया. हम इसे स्वीकार नहीं करते. जब इस विवाद का कोई रचनात्मक समाधान नहीं निकला है, तो यह सही नहीं है. राज्यपालों को मनमाने ढंग से कुलपति नियुक्त करने के लिए अधिक अधिकार देना उचित नहीं है.
यूजीसी वह कर रहा है, जो उसे नहीं करना चाहिए
डीएमके अध्यक्ष ने कहा कि इसे राज्य सरकारों द्वारा अपने संसाधनों और आर्थिक ताकत से बनाए गए विश्वविद्यालयों को हड़पने का अवैध प्रयास माना जाना चाहिए. यह नियम संघीय सिद्धांत के विरुद्ध है. राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप करना जनता द्वारा चुनी गई राज्य सरकारों का अपमान करना है.
शिक्षा पर केवल जनता द्वारा चुने गए लोगों का ही अधिकार होना चाहिए. तभी सभी लोगों को पूर्ण रूप से शिक्षा प्रदान की जा सकती है.उन्होंने आगे कहा कि जो लोग कुछ वर्षों तक नियुक्त पदों पर रहते हैं और फिर चले जाते हैं, वे किसी राज्य के लोगों की मूल भावनाओं को नहीं समझ सकते. केंद्र सरकार शिक्षा के क्षेत्र में वह नहीं कर रही है जो उसे करना चाहिए.
तमिलनाडु के सीएम ने कहा, "केंद्र सरकार उन निजी विश्वविद्यालयों पर लगाम लगाने के लिए कोई प्रयास करने से इनकार करती है जो असीमित शुल्क और बिना आरक्षण के सीमाओं का उल्लंघन कर रहे हैं. केंद्र सरकार अपने बजट य में उच्च शिक्षा के लिए वित्तीय आवंटन को कम कररही है.
केंद्र सरकार, जिसने शिक्षा विभाग की ओर से तमिलनाडु में आईआईटी, आईआईएम या केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसे एक भी नए उच्च शिक्षा संस्थान की स्थापना नहीं की है. केंद्र सरकार, जो आईआईटी जैसे उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्गों के वैधानिक शिक्षण पदों को भरने के लिए कदम उठाने में विफल रही है. और केंद्र सरकार, जो राज्यों के नियंत्रण में विश्वविद्यालयों को अपने पूर्ण नियंत्रण में लाने की कोशिश कर रही है."
यूजीसी के फैसले के खिलाफ विपक्षी दल एकजुट
तमिलनाडु में विपक्षी दल भी यूजीसी के संशोधित नियमों के विरोध में एकजुट हो गए हैं. मंत्री गोवी चेझियान सहित विभिन्न दलों, कांग्रेस और पीएमके के नेताओं ने राज्य में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर इन परिवर्तनों के संभावित प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की है.
कांग्रेस के राजेश कुमार, पीएमके के जीके मणि और वीसीके के अलूर शानवास जैसे सदस्यों ने विभिन्न दलों का प्रतिनिधित्व करते हुए अपनी चिंताओं को व्यक्त किया और प्रस्ताव का समर्थन किया. वहीं, भाजपा के नैनार नागेंद्रन ने इस प्रस्ताव का विरोध किया.
राजनीतिक निहितार्थ
राज्य सरकार ने यूजीसी के नियमों को अदालत में चुनौती देने की कसम खाई है, जिससे कानूनी लड़ाई की संभावना बढ़ गई है. यह गतिरोध भारतीय उच्च शिक्षा में राज्य की स्वायत्तता और केंद्रीय नियंत्रण के बीच चल रहे तनाव को भी उजागर करता है.
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