गया: बिहार के गया में इन दिनों एशियन ओपन बिल नाम के पक्षी की तादाद काफी संख्या (Asian Openbill Birds in Gaya)में देखी जा रही है. इन्हें विदेशी मेहमान भी कहा जाता है. वर्ष 1940 में सबसे पहले यह सात समुंदर पार से आए थे. पक्षी विशेषज्ञ का दावा है कि 1940 के बाद से इन्होंने भारत में अपनी संख्या काफी बढ़ा ली है और अब दक्षिण भारत से उत्तर भारत और फिर अन्य स्थानों पर यह मौसम अनुकूल बसेरा जमाते हैं. मानसून का प्रतीक है एशियन ओपन बिल पक्षी (Asian Openbill Bird) फरवरी में चाइना की तरफ चले जाते हैं.
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गया में एशियन ओपन बिल नाम के पक्षियों की काफी तादाद : एशियन ओपन बिल पक्षी मानसून का प्रतीक होता है. बरसात के मौसम की दस्तक के साथ ही इसका आगमन हो जाता है. यह सामान्यत जून से लेकर फरवरी तक अपना बसेरा जमाए रहते हैं. फरवरी तक यानी करीब 6 महीने तक बसेरा बनाए रहते हैं और फिर दक्षिण भारत और चाइना की तरफ चले जाते हैं. प्रजनन काल में ये दो से तीन अंडे देते हैं, जो डेढ़ किलो तक वजनी रहता है, गया में सरकारी क्वार्टरों पर होता है इनका बसेरा रहता है.
सरकारी क्वार्टरों पर होता है इनका बसेरा : गया में इन दिनों एशियन ओपन बिल पक्षी की संख्या गया शहरी इलाके में काफी तादाद में देखी जा सकती है. बड़ी बात यह है कि यह पक्षी सिर्फ सरकारी क्वार्टरों में ही अपना ठिकाना बनाते हैं. यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि आखिर यह सरकारी क्वार्टरों में ही क्यों बसेरा करते हैं. यह अभी राज ही बना हुआ है, लेकिन पक्षी विशेषज्ञों की माने तो सरकारी दफ्तरों में यह खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं और यदि यह दूसरे स्थानों पर रहते हैं तो इनका शिकार भी कर लिया जाता है. ऐसे में इनकी पसंद सरकारी क्वार्टर ही होते हैं, जहां बड़े-बड़े पेड़ों पर ही अपना बसेरा बनाते हैं. इनको मारना कानून जुर्म भी है. फिलहाल में एशियन ओपन बिल का बसेरा कई सरकारी क्वार्टरों में है. उदाहरण के तौर पर गया समाहरणालय, डाक बंगला परिसर, डीडीसी आवास, जिला परिषद कार्यालय समेत कई सरकारी दफ्तरों में इन्हें आराम से बड़ी संख्या में देखा जा सकता है.
1940 में हुआ था आगमन, साइबेरियन पक्षी कहते थे : पक्षी विशेषज्ञों की माने तो प्रजनन काल में यह दो से तीन अंडे देते हैं. इनका वजन लगभग डेढ़ किलोग्राम होता है. इ़नका रंग चमकीला सफेद होता है. सफेद से घेसन रंग और फिर प्रजनन काल में इनके रंग में भी परिवर्तन होता है. इनके पैरों की लंबाई 23 इंच होती है. एशियन ओपन बिल पक्षी किस चोंच में बड़ा गैप होता है, जो घोंघा और केंचुआ को आसानी से पकड़ लेता है. 1940 में सबसे पहले इनका आगमन हुआ था. कहा जाता है कि यह विदेशी मेहमान है और कनाडा, आस्ट्रेलिया आदि स्थानों से पहली दफा भारत में आए थे और उसके बाद कई राज्यों में अपना बसेरा बनाया. इसके बाद भारत के कई राज्यों में काफी तादाद में इनका बसेरा हो चुका है और इसे एशियन एशियन ओपन बिल के नाम से जाना जाता है. इसकी आबादी बिहार में लाखों की तादाद में हो चुकी है. गया में अभी हजारों की संख्या में है.
सुंदरता के कारण लोगों के बीच होते हैं आकर्षण का केंद्र : एशियन ओपन बिल अपनी सुंदरता के कारण भी जाने जाते हैं. यह काफी आकर्षक होते हैं. यही वजह है कि लोग इसे और इसके गतिविधि को देखने के लिए काफी देर पेड़ों के नीचे खड़े हो जाते हैं. यह आसमान में काफी ऊंचाई में काफी देर तक उड़ सकते हैं. एशियन ओपन बिल को जांघिल भी कहा जाता है. कई तरह से हानिकारक साबित हो रहे हैं एशियन ओपन बिल, पक्षी विशेषज्ञों की माने तो कई तरह तरह से ये हानिकारक भी साबित हो रहे हैं. यह सुंदर जरूर है, तो हानिकारक भी हैं. जिस पेड़- पौधे पर घोंसला बनाते हैं वह गंजे हो जाते हैं और उसमें पतियां खत्म होती चली जाती है. उनकी बीट भी बदबू भरी होती है. यह पक्षी घोंघा खाता है जो कि किसान का मित्र कहा जाता है. किसान के मित्र घोघा और केंचुआ को यह काफी हानि पहुंचाता है. अपने लंबे चौड़े चोंच से आराम से एशियन बिल केंचुआ का शिकार कर लेता है. ऐसे में यह पक्षी किसानों का दोस्त नहीं हो सकता है.
'इस बार 2022 में एक नई बात यह देखी जा रही है कि नई प्रजाति की ब्लैक हेड स्पेसीज भी इस वर्ष गया में प्रजनन कर रही है. इसके 6-7 जोड़े देखे गए हैं. खासियत यह है कि आज तक इसका प्रजनन गया या बिहार में नहीं देखा गया था. प्रथम बार इस पक्षी ने घोंसला का निर्माण किया है. सरकारी क्वार्टरों में ही यह भी अपना ठिकाना बनाए हुए हैं.' - मोहम्मद दानिश मसूद, पक्षी विशेषज्ञ
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