दरभंगा: मिथिलांचल (Mithilanchal) में पारंपरिक रूप से तालाबों में मखाना की खेती (Makhana Farming) की जाती है. दरभंगा का मखाना अनुसंधान केंद्र (Makhana Research Center Darbhanga) खेतों में भी मखाना की खेती को प्रोत्साहन दे रहा है. इसके तहत मखाना अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक किसानों को बिचड़ा और तकनीकी सहायता उपलब्ध करा रहे हैं.
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बरसात के मौसम में कम पानी में सामान्य धान-गेहूं की खेतों में तालाब विधि से कम लागत पर ज्यादा मुनाफे के साथ मखाना की खेती हो रही है. इस मखाने की क्वालिटी तालाब में उपजाए गए मखाने की तुलना में बेहतर होती है. इसी के तहत मॉनसून शुरू होने के बाद मखाने के बिचड़े खेतों में लगाए गए हैं.
मखाना को प्रोत्साहन देने की भारत सरकार की योजना के बाद किसानों की रुचि मखाना की खेती में बढ़ रही है. मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा के वरीय वैज्ञानिक डॉ. बीआर जाना ने बताया कि तालाब विधि की तुलना में खेतों में मखाना की खेती ज्यादा फायदेमंद है. उन्होंने कहा कि बारिश के पानी से खेतों में मखाना की खेती की जा सकती है.
वरीय वैज्ञानिक ने कहा कि इस विधि से मखाना की उपज एक हेक्टेयर में 1.7 टन से लेकर 2 टन तक होती है. उन्होंने बताया कि मार्च के महीने में इसका बिचड़ा तैयार किया जाता है और जून-जुलाई में मखाना खेतों में रोपा जाता है.
वरीय वैज्ञानिक डॉ. बीआर जाना ने बताया कि एक हेक्टेयर में करीब 3 हजार की लागत आती है और आमदनी 10 हजार तक होती है. उन्होंने कहा कि जून-जुलाई के महीने में तालाबों से मखाना निकाल लिया जाता है. उसके बाद खेतों में मखाना लगाकर किसान अतिरिक्त आमदनी कर सकते हैं.
डॉ. बीआर जाना ने कहा कि भारत सरकार ने मखाना को प्रोत्साहित करने की योजना बनाई है. उसके बाद से मिथिलांचल के किसानों में उत्साह है. उन्होंने कहा कि दरभंगा और मधुबनी जिले के कई किसान मखाना अनुसंधान केंद्र से बिचड़ा ले गए हैं और इसकी खेती कर रहे हैं.
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