ETV Bharat / city

मंत्री ने कहा- चीनी की मार्केट वैल्यू कम इसलिए बंद हुईं मिलें, कांग्रेस का पलटवार- मंत्री जी मार्केट नहीं जाते

बिहार के गन्ना उद्योग मंत्री प्रमोद कुमार ने बंद चीनी मिलों को लेकर एक अजीबोगरीब बयान दिया. उन्होंने कहा है कि चीनी की मार्केट वैल्यू कम है इसलिए चीनी मिलें बंद हो रही हैं. उनके इस बयान पर सीएलपी लीडर अजीत शर्मा ने पलटवार किया है. पढ़ें पूरी खबर.

sugar
sugar
author img

By

Published : Aug 29, 2021, 6:18 PM IST

भागलपुर: औद्योगीकरण और कृषि आधारित उत्पादन पर जोर देने के बावजूद उत्तर बिहार में एक के बाद एक चीनी मिलें (Sugar Mills in Bihar) बंद हो रही हैं. कभी बिहार देश में अकेले 40% चीनी उत्पादन करता था. आजादी के पहले करीब 30 चीनी मिलें बिहार में थीं. धीरे-धीरे एक-एक कर मिलें बंद होती गयीं. अब मात्र आधा दर्जन चीनी मिलें सुचारू रूप से चल रही हैं.

ये भी पढ़ें: भागलपुर: साड़ी व्यवसाई के घर डकैती का पुलिस ने किया खुलासा, एक आरोपी गिरफ्तार

चुनावी सभा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने कहा था कि बंद सभी चीनी मिलों को चालू कराया जाएगा और युवाओं को उसमें रोजगार मिलेगा. इधर, बिहार के गन्ना उद्योग मंत्री प्रमोद कुमार (Minister Pramod Kumar) ने जिस तरह से कहा है कि चीनी का मार्केट वैल्यू कम है और अब बिहार सरकार इथेनॉल नीति लेकर आयी है. इथेनॉल लगाने के लिए हजारों इन्वेस्टरों ने ऑनलाइन आवेदन किया है. उन्हें अनुदान दिया जाएगा. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि बंद पड़ी चीनी मिलों को लेकर बिहार सरकार की क्या नीति है.

मंत्री से जब पूछा गया कि बंद चीनी मिलों को लेकर सरकार क्या कर रही है तो उन्होंने कहा अभी जो चीनी मिलें बंद हैं वह पुरानी टेक्नोलॉजी की हैं. अब नयी टेक्नोलॉजी आ गयी है. उसमें मैनपावर कम लग रहा है. पहले मिल में क्रॉसिंग होता था. वह क्विंटल से अब टन में हो रहा है. अब चीनी की मार्केट वैल्यू कम है.

बिहार सरकार ने इथेनॉल नीति पेश किया है, इथेनॉल नीति का मार्केटिंग हो गया है. पेट्रोलियम कंपनियां इसे लेंगी. गन्ना के जूस से इथेनॉल बनाना है. अब इसमें नए-नए इन्वेस्टर आ रहे हैं. 6 महीना गन्ने के जूस से बनाया जाएगा और 6 महीना ग्रेन से बनाएगा. मक्का से भी बनाएगा. इससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी. विदेशी मुद्रा के मामले में देश मजबूत होगा. यह विजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है. बिहार देश का पहला राज्य है जहां इथेनॉल नीति लागू है.

वहीं उन्होंने कहा कि सरकार चीनी मिल नहीं चलाती है. प्राइवेट कंपनी चीनी मिल चलाती है. प्राइवेट कंपनी को हम लोग अनुदान देते हैं. इसके लिए प्रमोशन नीति लागू है. उन्होंने कहा कि प्रमोशन नीति के तहत 7 करोड़ मिल लगाने के लिए अनुदान दिया जाता है. बिजली उत्पादन के लिए 5 करोड़ दिया जाता है. इसी तरह जीएसटी और बैंक ऋण में भी अनुदान दे रहे हैं.

ये भी पढ़ें: बिहार के कानून मंत्री का अजीबोगरीब तर्क- 'अपराध कोई नहीं रोक सकता, इंग्लैंड में भी होता है'

वहीं, उन्होंने कहा कि जिन चीनी मिल मालिकों ने किसानों के गन्ने के एवज में भुगतान नहीं किया है, उनकी संपत्ति की नीलामी कर किसानों के बकाये का भुगतान किया जाएगा. इसके साथ ही किसानों को समय पर भुगतान नहीं करने वाले चीनी मिलों का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि 3 मिल सासामुसा, रीगा और प्रतापपुर पर ही किसानों का बकाया होने की बात सामने आयी है. इन पर कार्रवाई की जा रही है.

सीएलपी लीडर अजीत शर्मा (Ajit Sharma) ने मंत्री के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि उन्हें चीनी के मार्केट वैल्यू का पता नहीं है. मंत्री जी को बाजार जाना चाहिए. उन्हें चीनी की कीमत पता करनी चाहिए. हर घर में चीनी का उपयोग होता है. सीएलपी लीडर ने कहा कि एक समय बड़े पैमाने पर बिहार में चीनी मिलों में लोगों को रोजगार मिलता था. लेकिन एक-एक कर चीनी मिलें बंद हो रही हैं. मंत्री जी कहते हैं सरकार चीनी मिल नहीं चलाती है. उसके लिए प्रमोशन नीति लागू है. मंत्री जी को नहीं पता है कि सरकार चाहे तो सब कुछ कर सकती है.

देखें वीडियो

अजीत शर्मा ने कहा कि मंत्री जी चीनी मिल को लेकर इस तरह से बोल रहे हैं. सरकार का काम है रोजगार देना, कल कारखाने खोलना, चीनी उद्योग तो बिहार का सबसे बड़ा उद्योग हुआ करता था. मंत्री जी के बायान से लगता है कि सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. अजीत शर्मा ने कहा कि चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री चीनी मिलों को लेकर जो कह रहे थे, वह नीति बदल अब गई क्या ? अजीत शर्मा ने सरकार से बंद चीनी मिलों को खोलने की मांग की.

बिहार चीनी के उत्पादन के लिए जाना जाता था. देश के कुल चीनी उत्पादन का 40% बिहार में होता था. देश की आजादी से पहले बिहार में 33 चीनी मिलें हुआ करती थीं लेकिन आज 28 चीनी मिले हैं. इनमें से भी सिर्फ 11 मिलें ऐसी हैं जो इस वक्त चालू हालत में हैं. इनमें से भी 10 मिलों का मालिकाना हक प्राइवेट कंपनियों के पास है.

साल 1933 से लेकर 1940 तक बिहार में चीनी मिलों की संख्या बढ़ती गई और उत्पादन भी खूब बड़ा ,लेकिन इसके बाद चीनी मिलों की हालत बिगड़ने लगी. इसके बाद 1977 से लेकर 1985 तक बिहार सरकार ने चीनी मिलों का अधिग्रहण शुरू किया था. इस दौरान दरभंगा की सकरी चीनी मिल, रयाम, लोहट मिल, पूर्णिया की बनमनखी चीनी मिल, पूर्वी चंपारण और समस्तीपुर की मिलें सरकार के पास आ गईं.

साल 1997-1998 के दौर में ये मिले संभाली नहीं जा सकी और एक के बाद एक मिले बंद होने लगीं. दरभंगा की सकरी मील बिहार में बंद होने वाली सबसे पहली चीनी मिल मानी जाती है. साल 1977 में जब राज्य की कपूरी ठाकुर सरकार ने इस मिल का अधिग्रहण किया था तो लोगों में उम्मीद जगी कि सब कुछ ठीक हो जाएगा.

ये भी पढ़ें: बिहार में लगवाया झारखंड के कोटे की कोरोना वैक्सीन से कैंप, हुए कई चौंकाने वाले खुलासे

बात करते हैं साल 2005 की बिहार स्टेट शुगर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के तहत तमाम चीनी मिलों को रिवाइव करने का काम सौंपा गया. इसके बाद राज्य सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी गई जिसमें दरभंगा की रयाम मिल, लोहट मिल और मोतीपुर मिल को छोड़कर अन्य सभी मिलों को कृषि पर आधारित अन्य फैक्ट्री में तब्दील करने का प्रस्ताव पेश किया गया. इस रिपोर्ट में सकरी मिलकर डिस्टलरी (शराब कारखाना) बनाने का प्रस्ताव भी दिया गया था.

साल 2008 में नीलामी हुई और इनमें से ज्यादातर मिलों को प्राइवेट कंपनियों ने खरीदा. रयाम और सकरी मिल को श्री तिरहुत इंडस्ट्रीज ने खरीदा है लेकिन यह मिल कभी नहीं खुल पाई. जिन कंपनियों को इन प्लांट में निवेश करके इन्हें चलाना था, उन्होंने कभी निवेश नहीं किया.

ये भी पढ़ें: सोता रहा पुल निर्माण निगम, चुराते रहे चोर.. कबाड़ दुकान पर पड़ा छापा तो उड़े पुलिस के होश

भागलपुर: औद्योगीकरण और कृषि आधारित उत्पादन पर जोर देने के बावजूद उत्तर बिहार में एक के बाद एक चीनी मिलें (Sugar Mills in Bihar) बंद हो रही हैं. कभी बिहार देश में अकेले 40% चीनी उत्पादन करता था. आजादी के पहले करीब 30 चीनी मिलें बिहार में थीं. धीरे-धीरे एक-एक कर मिलें बंद होती गयीं. अब मात्र आधा दर्जन चीनी मिलें सुचारू रूप से चल रही हैं.

ये भी पढ़ें: भागलपुर: साड़ी व्यवसाई के घर डकैती का पुलिस ने किया खुलासा, एक आरोपी गिरफ्तार

चुनावी सभा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने कहा था कि बंद सभी चीनी मिलों को चालू कराया जाएगा और युवाओं को उसमें रोजगार मिलेगा. इधर, बिहार के गन्ना उद्योग मंत्री प्रमोद कुमार (Minister Pramod Kumar) ने जिस तरह से कहा है कि चीनी का मार्केट वैल्यू कम है और अब बिहार सरकार इथेनॉल नीति लेकर आयी है. इथेनॉल लगाने के लिए हजारों इन्वेस्टरों ने ऑनलाइन आवेदन किया है. उन्हें अनुदान दिया जाएगा. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि बंद पड़ी चीनी मिलों को लेकर बिहार सरकार की क्या नीति है.

मंत्री से जब पूछा गया कि बंद चीनी मिलों को लेकर सरकार क्या कर रही है तो उन्होंने कहा अभी जो चीनी मिलें बंद हैं वह पुरानी टेक्नोलॉजी की हैं. अब नयी टेक्नोलॉजी आ गयी है. उसमें मैनपावर कम लग रहा है. पहले मिल में क्रॉसिंग होता था. वह क्विंटल से अब टन में हो रहा है. अब चीनी की मार्केट वैल्यू कम है.

बिहार सरकार ने इथेनॉल नीति पेश किया है, इथेनॉल नीति का मार्केटिंग हो गया है. पेट्रोलियम कंपनियां इसे लेंगी. गन्ना के जूस से इथेनॉल बनाना है. अब इसमें नए-नए इन्वेस्टर आ रहे हैं. 6 महीना गन्ने के जूस से बनाया जाएगा और 6 महीना ग्रेन से बनाएगा. मक्का से भी बनाएगा. इससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी. विदेशी मुद्रा के मामले में देश मजबूत होगा. यह विजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है. बिहार देश का पहला राज्य है जहां इथेनॉल नीति लागू है.

वहीं उन्होंने कहा कि सरकार चीनी मिल नहीं चलाती है. प्राइवेट कंपनी चीनी मिल चलाती है. प्राइवेट कंपनी को हम लोग अनुदान देते हैं. इसके लिए प्रमोशन नीति लागू है. उन्होंने कहा कि प्रमोशन नीति के तहत 7 करोड़ मिल लगाने के लिए अनुदान दिया जाता है. बिजली उत्पादन के लिए 5 करोड़ दिया जाता है. इसी तरह जीएसटी और बैंक ऋण में भी अनुदान दे रहे हैं.

ये भी पढ़ें: बिहार के कानून मंत्री का अजीबोगरीब तर्क- 'अपराध कोई नहीं रोक सकता, इंग्लैंड में भी होता है'

वहीं, उन्होंने कहा कि जिन चीनी मिल मालिकों ने किसानों के गन्ने के एवज में भुगतान नहीं किया है, उनकी संपत्ति की नीलामी कर किसानों के बकाये का भुगतान किया जाएगा. इसके साथ ही किसानों को समय पर भुगतान नहीं करने वाले चीनी मिलों का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि 3 मिल सासामुसा, रीगा और प्रतापपुर पर ही किसानों का बकाया होने की बात सामने आयी है. इन पर कार्रवाई की जा रही है.

सीएलपी लीडर अजीत शर्मा (Ajit Sharma) ने मंत्री के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि उन्हें चीनी के मार्केट वैल्यू का पता नहीं है. मंत्री जी को बाजार जाना चाहिए. उन्हें चीनी की कीमत पता करनी चाहिए. हर घर में चीनी का उपयोग होता है. सीएलपी लीडर ने कहा कि एक समय बड़े पैमाने पर बिहार में चीनी मिलों में लोगों को रोजगार मिलता था. लेकिन एक-एक कर चीनी मिलें बंद हो रही हैं. मंत्री जी कहते हैं सरकार चीनी मिल नहीं चलाती है. उसके लिए प्रमोशन नीति लागू है. मंत्री जी को नहीं पता है कि सरकार चाहे तो सब कुछ कर सकती है.

देखें वीडियो

अजीत शर्मा ने कहा कि मंत्री जी चीनी मिल को लेकर इस तरह से बोल रहे हैं. सरकार का काम है रोजगार देना, कल कारखाने खोलना, चीनी उद्योग तो बिहार का सबसे बड़ा उद्योग हुआ करता था. मंत्री जी के बायान से लगता है कि सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. अजीत शर्मा ने कहा कि चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री चीनी मिलों को लेकर जो कह रहे थे, वह नीति बदल अब गई क्या ? अजीत शर्मा ने सरकार से बंद चीनी मिलों को खोलने की मांग की.

बिहार चीनी के उत्पादन के लिए जाना जाता था. देश के कुल चीनी उत्पादन का 40% बिहार में होता था. देश की आजादी से पहले बिहार में 33 चीनी मिलें हुआ करती थीं लेकिन आज 28 चीनी मिले हैं. इनमें से भी सिर्फ 11 मिलें ऐसी हैं जो इस वक्त चालू हालत में हैं. इनमें से भी 10 मिलों का मालिकाना हक प्राइवेट कंपनियों के पास है.

साल 1933 से लेकर 1940 तक बिहार में चीनी मिलों की संख्या बढ़ती गई और उत्पादन भी खूब बड़ा ,लेकिन इसके बाद चीनी मिलों की हालत बिगड़ने लगी. इसके बाद 1977 से लेकर 1985 तक बिहार सरकार ने चीनी मिलों का अधिग्रहण शुरू किया था. इस दौरान दरभंगा की सकरी चीनी मिल, रयाम, लोहट मिल, पूर्णिया की बनमनखी चीनी मिल, पूर्वी चंपारण और समस्तीपुर की मिलें सरकार के पास आ गईं.

साल 1997-1998 के दौर में ये मिले संभाली नहीं जा सकी और एक के बाद एक मिले बंद होने लगीं. दरभंगा की सकरी मील बिहार में बंद होने वाली सबसे पहली चीनी मिल मानी जाती है. साल 1977 में जब राज्य की कपूरी ठाकुर सरकार ने इस मिल का अधिग्रहण किया था तो लोगों में उम्मीद जगी कि सब कुछ ठीक हो जाएगा.

ये भी पढ़ें: बिहार में लगवाया झारखंड के कोटे की कोरोना वैक्सीन से कैंप, हुए कई चौंकाने वाले खुलासे

बात करते हैं साल 2005 की बिहार स्टेट शुगर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के तहत तमाम चीनी मिलों को रिवाइव करने का काम सौंपा गया. इसके बाद राज्य सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी गई जिसमें दरभंगा की रयाम मिल, लोहट मिल और मोतीपुर मिल को छोड़कर अन्य सभी मिलों को कृषि पर आधारित अन्य फैक्ट्री में तब्दील करने का प्रस्ताव पेश किया गया. इस रिपोर्ट में सकरी मिलकर डिस्टलरी (शराब कारखाना) बनाने का प्रस्ताव भी दिया गया था.

साल 2008 में नीलामी हुई और इनमें से ज्यादातर मिलों को प्राइवेट कंपनियों ने खरीदा. रयाम और सकरी मिल को श्री तिरहुत इंडस्ट्रीज ने खरीदा है लेकिन यह मिल कभी नहीं खुल पाई. जिन कंपनियों को इन प्लांट में निवेश करके इन्हें चलाना था, उन्होंने कभी निवेश नहीं किया.

ये भी पढ़ें: सोता रहा पुल निर्माण निगम, चुराते रहे चोर.. कबाड़ दुकान पर पड़ा छापा तो उड़े पुलिस के होश

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.