मुजफ्फरपुर: मुजफ्फरपुर और आसपास के जिले में एईएस (चमकी बुखार) से बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है. अब तक इस बीमारी से 168 बच्चों की मौत हो चुकी है. 19 वें दिन बुधवार को देर रात तक मुजफ्फरपुर में कुल 8 बच्चों की जान इस बीमारी से चली गई. इनमें से 7 बच्चों की मौत एसकेएमसीएच औ एक की केजरीवाल अस्पताल में हुई है.
इस बीच मुजफ्फरपुर के अस्पताल की तस्वीर बदल गई है. पीआईसीयू के साथ सामान्य वार्ड को आईसीयू में तब्दील कर दिया गया है. वार्ड में कूलर और एसी लगाये गए हैं. मरीज के परिजन और लोगों को नियमों का कड़ाई से पालन करने के निर्देश दिए गए हैं. साथ ही आईसीयू में अंदर प्रवेश पर सख्ती बरतने को कहा गया है. लेकिन सवाल वही है कि यह व्यवस्था अगर एईएस का प्रकोप फैलने से पहले की गई होती तो बच्चों की जानें बचायी जा सकती थीं.
आधिकारिक आंकड़ा 113
डॉक्टर और स्वास्थ्य अधिकारी अभी भी बीमारी की सटीक प्रकृति और सटीक कारण के बारे में अंधेरे में हैं. राज्य और केंद्र सरकारों के पास भी इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, मुजफ्फरपुर और पड़ोसी जिलों में अबतक 113 बच्चों की मौत हो चुकी है.
मुजफ्फरपुर में हुई 11 चिकित्सा अधिकारियों की तैनाती
राज्य के स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया है कि दरभंगा, सुपौल और मधुबनी के कुल 11 चिकित्सा अधिकारियों की तैनाती मुजफ्फरपुर में की गयी है. इसके अलावा अन्य जिलों में तैनात तीन बाल रोग विशेषज्ञों और 12 नर्सों को मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन को रिपोर्ट करने का निर्देश दिया गया है.
बीमारी के कारणों का पता नहीं: मुख्य सचिव
बिहार के मुख्य सचिव दीपक कुमार ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि यहां तक कि सरकार को भी स्पष्ट रूप से पता नहीं है कि वास्तव में एईएस के प्रकोप के पीछे का कारण क्या है. यह बीमारी 1995 से मुजफ्फरपुर में नियमित रूप से दर्ज किया गया है. उन्होंने कहा, 'हमें अभी भी पता नहीं है कि यह लीची के सेवन, कुपोषण या उच्च तापमान और आर्द्रता जैसी पर्यावरणीय स्थितियों के कारण जैसे- वायरस, बैक्टीरिया, टॉक्सिन प्रभाव के कारण हुआ है. उन्होंने कहा, 'कई शोध किए गए हैं, जिनमें रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र, अटलांटा (यूएस) के विशेषज्ञों की एक टीम शामिल है, लेकिन अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला है.' एसकेएमसीएच के मुख्य चिकित्सा अधिकारी एस. पी. सिंह ने कहा कि इस बीमारी के फैलने के पीछे की वजह की पुष्टि नहीं की जा सकी है.
'उच्च तापमान और आर्द्रता है वजह'
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन, जो खुद एक डॉक्टर हैं, जिन्होंने तीन दिन पहले मुजफ्फरपुर का दौरा किया था और एसकेएमसीएच में कई बच्चों की जांच की थी, ने कहा कि मौतों का कारण इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन और उपापचय प्रणाली से संबंधित हो सकता है. उन्होंने वायरल संक्रमण या टॉक्सिन प्रभाव के कारण एईएस की संभावना को भी खारिज नहीं किया, जो संभवत: लीची के सेवन के साथ-साथ उच्च तापमान और आर्द्रता के कारण हो सकता है.
एईएस पर शोध की आवश्यकता : केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री
इसे ध्यान में रखते हुए, हर्षवर्धन ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र और एम्स पटना के सहयोग से मुजफ्फरपुर में एक अत्याधुनिक, बहु-विषयक अनुसंधान इकाई की स्थापना के साथ ही एईएस पर शोध की आवश्यकता पर जोर दिया.
बच्चों में कमजोरी, ऐंठन और फिर चेतना खोना जैसे लक्षण
हालांकि, मुजफ्फरपुर के एक भूमिहीन मजदूर हरदेव मांझी, जिनके चार वर्षीय बेटे का इलाज एसकेएमसीएच में किया जा रहा है, उन्होंने कहा, "मेरे बेटे को पिछले हफ्ते अचानक तेज बुखार आ गया, उसके बाद ऐंठन हुआ और बाद में वह बेहोश हो गया, जिसके बाद, हम उसे इलाज के लिए अस्पताल ले आए। उसकी हालत में थोड़ा सुधार दिख रहा है.' मांझी ने बताया कि ज्यादातर बच्चों को पहले तेज बुखार हुआ और उसके बाद कमजोरी, ऐंठन और फिर चेतना खोना जैसे लक्षण देखे गए.
एईएस के लिए इलाज करवा रही छह साल की बच्ची की मां मारला देवी ने कहा कि उनकी बेटी का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने बताया कि दिमागी सूजन और तेज बुखार के कारण वह बेहोश हो गई थी. उन्होंने कहा, 'हमने केवल तेज बुखार और ऐंठन के लक्षण देखे.'
अत्यधिक गर्मी के दौरान एईएस का प्रकोप : पीडियाट्रिक्स विभाग के प्रमुख
एसकेएमसीएच के पीडियाट्रिक्स विभाग के प्रमुख गोपाल शंकर साहनी ने कहा कि एईएस का प्रकोप अत्यधिक गर्मी के दौरान हुआ. उन्होंने कहा, "हमने ऐसी जानकारी एकत्र की है, जो बताती है कि बच्चों के शरीर का तापमान ऐंठन के बाद बढ़ेगा। वह सोडियम की कमी से हाइपोग्लाइकेमिया (बहुत कम रक्त शर्करा) से भी पीड़ित हैं.'
'बच्चों में बुखार के अचानक शुरू होने के बाद मानसिक समस्याएं'
केजरीवाल अस्पताल के राजीव कुमार ने कहा कि एईएस से पीड़ित बच्चों में बुखार के अचानक शुरू होने के बाद मानसिक समस्याएं होना आम बात है. उन्होंने कहा, कि 'ऐसी स्थिति में, हम माता-पिता को सलाह दे रहे हैं कि वे अपने बच्चों को इलाज के लिए बिना देरी किए निकटतम पीएचसी या अस्पताल में ले जाएं. उनके जल्दी आगमन के साथ जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है.' एईएस के शिकार ज्यादातर बच्चे गरीब तबके के होते हैं, जिनमें दलित, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (ईबीसी) और मुस्लिम शामिल हैं.'
'एईएस पीड़ित ज्यादातर कुपोषित बच्चे हैं'
मुजफ्फरपुर में एक जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा, 'एईएस पीड़ित ज्यादातर समाज के वंचित वर्ग के कुपोषित बच्चे हैं, वे गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणियों (बीपीएल) से हैं.'
AES प्रभावित ब्लॉकों और गांवों में सर्वेक्षण : मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा मंगलवार को मुजफ्फरपुर का दौरा करने के बाद, सरकार ने उन ब्लॉकों और गांवों में एक सर्वेक्षण शुरू किया है. उन्होंने प्रभावित परिवारों के सामाजिक-आर्थिक प्रोफाइल और उनके रहने की स्थिति का अध्ययन करने के लिए कहा है, जहां सबसे अधिक संख्या में मौतें हुई हैं.
क्या हैं चमकी बुखार के लक्षण?
एईएस और जेई (जापानी इंसेफलाइटिस) को उत्तरी बिहार में चमकी बुखार कहते हैं. इससे पीड़ित बच्चों को तेज बुखार आता है और शरीर में ऐंठन होती है. इसके बाद बच्चे बेहोश हो जाते हैं. बच्चों को उलटी और चिड़चिड़ेपन की शिकायत भी रहती है.