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सीतामढ़ी: परंपरागत खेती से किसानों को नुकसान, नए प्रभेदों की तरफ बढ़ाया कदम

कृषि विभाग ने स्वर्णा सब 1 धान विकसित किया है जो बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के किसानों के लिए काफी उपयुक्त साबित होगा. पानी और जल जमाव का असर इस प्रभेदों पर नहीं होता है.

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Published : Jun 18, 2019, 9:57 AM IST

परंपरागत प्रभेदों की खेती से किसानों को नुकसान

सीतामढ़ी: जिले का अधिकांश प्रखंड बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है. इस क्षेत्र के किसानों को प्रति वर्ष बाढ़ के कारण काफी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है. ऐसे में जिले के किसान परंपरागत प्रभेदों की खेती छोड़ नए प्रभेदों की खेती कर अपने जीवन में बदलाव ला सकते हैं.

परंपरागत प्रभेदों की खेती से किसानों को नुकसान
बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र के किसान अब तक धान की उन प्रभेदों की खेती करते आ रहे हैं जो वर्षों पूर्व से चली आ रही है. ऐसे में उन्हें आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ता है. धान की खेती के लिए नदी किनारे के खेतों में कानहर, भासर, परवापाख जैसे प्रभेदों का इस्तेमाल किया जाता है.

पेश है रिपोर्ट

नए प्रभेदों के इंतजार में किसान
किसान बताते हैं कि इसका पौधा अधिक लंबा होने के कारण बाढ़ ग्रस्त खेतों में थोड़ी बहुत उपज हो जाती है. लेकिन जितनी लागत खेती में लगती है उतनी आमदनी नहीं हो पाती है. लिहाजा किसान अब नए प्रभेदों के इंतजार में हैं, ताकि खेतों में अधिक उपज हो और आर्थिक स्थिति में सुधार आ सके.

स्वर्णा सब 1 धान से किसानों को मिलेगा लाभ
इसके लिए कृषि विभाग ने स्वर्णा सब 1 धान विकसित किया है जो बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के किसानों के लिए काफी उपयुक्त साबित होगा. जिला कृषि पदाधिकारी ने बताया कि जहां जलजमाव होता है वैसे जगहों पर अगर किसान स्वर्णा सब 1 लगाएं तो पानी और जल जमाव का असर इस प्रभेदों के ऊपर नहीं होता है. कुछ बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में किसान इसकी खेती कर रहे हैं. उन्हें अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है.

sitamadhi
अनिल कुमार राय, जिला कृषि पदाधिकारी

50 से 60 क्विंटल तक उपज की जा सकती है
स्वर्णा सब 1 प्रभेद लगाकर एक हेक्टेयर में 50 से 60 क्विंटल तक की उपज की जा सकती है. यह 150 से 160 दिनों के भीतर तैयार हो जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि 10 से 15 दिनों तक रोजाना पानी में डूबे रहने के बावजूद इसका पौधा पुनर्जीवित होकर ज्यादा से ज्यादा उपज प्रदान करता है. इसके ऊपर पानी का प्रभाव नहीं होता है. इसके लिए सरकार की ओर से सब्सिडी का भी प्रावधान दिया गया है.

सीतामढ़ी: जिले का अधिकांश प्रखंड बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है. इस क्षेत्र के किसानों को प्रति वर्ष बाढ़ के कारण काफी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है. ऐसे में जिले के किसान परंपरागत प्रभेदों की खेती छोड़ नए प्रभेदों की खेती कर अपने जीवन में बदलाव ला सकते हैं.

परंपरागत प्रभेदों की खेती से किसानों को नुकसान
बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र के किसान अब तक धान की उन प्रभेदों की खेती करते आ रहे हैं जो वर्षों पूर्व से चली आ रही है. ऐसे में उन्हें आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ता है. धान की खेती के लिए नदी किनारे के खेतों में कानहर, भासर, परवापाख जैसे प्रभेदों का इस्तेमाल किया जाता है.

पेश है रिपोर्ट

नए प्रभेदों के इंतजार में किसान
किसान बताते हैं कि इसका पौधा अधिक लंबा होने के कारण बाढ़ ग्रस्त खेतों में थोड़ी बहुत उपज हो जाती है. लेकिन जितनी लागत खेती में लगती है उतनी आमदनी नहीं हो पाती है. लिहाजा किसान अब नए प्रभेदों के इंतजार में हैं, ताकि खेतों में अधिक उपज हो और आर्थिक स्थिति में सुधार आ सके.

स्वर्णा सब 1 धान से किसानों को मिलेगा लाभ
इसके लिए कृषि विभाग ने स्वर्णा सब 1 धान विकसित किया है जो बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के किसानों के लिए काफी उपयुक्त साबित होगा. जिला कृषि पदाधिकारी ने बताया कि जहां जलजमाव होता है वैसे जगहों पर अगर किसान स्वर्णा सब 1 लगाएं तो पानी और जल जमाव का असर इस प्रभेदों के ऊपर नहीं होता है. कुछ बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में किसान इसकी खेती कर रहे हैं. उन्हें अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है.

sitamadhi
अनिल कुमार राय, जिला कृषि पदाधिकारी

50 से 60 क्विंटल तक उपज की जा सकती है
स्वर्णा सब 1 प्रभेद लगाकर एक हेक्टेयर में 50 से 60 क्विंटल तक की उपज की जा सकती है. यह 150 से 160 दिनों के भीतर तैयार हो जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि 10 से 15 दिनों तक रोजाना पानी में डूबे रहने के बावजूद इसका पौधा पुनर्जीवित होकर ज्यादा से ज्यादा उपज प्रदान करता है. इसके ऊपर पानी का प्रभाव नहीं होता है. इसके लिए सरकार की ओर से सब्सिडी का भी प्रावधान दिया गया है.

Intro:जिले के बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के किसान परंपरागत प्रभेदों की खेती छोड़। नए प्रभेदों की खेती कर जीवन में ला सकते हैं बदलाव।


Body:सीतामढ़ी जिले का अधिकांश प्रखंड बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। इसलिए इस क्षेत्र के किसानों को प्रति वर्ष बाढ़ की विभीषिका के कारण आर्थिक स्थिति तबाह हो जाती है। बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र के किसान अब तक धान की उन प्रभेदों की खेती करते आ रहे हैं जो वर्षों पूर्व से चली आ रही है। धान की खेती के लिए नदी किनारे के खेतों में कानहर, भासर, परवापाख जैसे प्रभेदों का इस्तेमाल किया जाता है। किसानों का बताना है कि इसका पौधा अधिक लंबा होने के कारण बाढ़ ग्रस्त खेतों में थोड़ी बहुत उपाय मिल जाती है। लेकिन जितनी लागत खेती में लगता है उतनी भी आमदनी नहीं मिल पाती है। लिहाजा किसान अब नए प्रभेदों के इंतजार में हैं। ताकि अधिक उपज लेकर अपने आर्थिक स्थिति में बदलाव ला सके। इसके लिए कृषि विभाग ने स्वर्णा सब 1 धान विकसित किए हैं। जो बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों के किसानों के लिए काफी उपयुक्त साबित होगा। जिला कृषि पदाधिकारी ने बताया कि जहां जलजमाव होता है वैसे जगहों पर अगर किसान स्वर्णा सब 1 लगाएं तो पानी और जल जमाव का असर इस प्रभेद के ऊपर नहीं होता है। कुछ बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में जो किसान इसकी खेती कर रहे हैं। तो उससे अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है। स्वर्णा सब 1 प्रभेद लगाकर एक हेक्टेयर में 50 से 60 क्विंटल तक की उपज ली जा सकती है। यह 150 से 160 दिनों के भीतर तैयार हो जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि 10 से 15 रोज तक पानी में डूबे रहने के बावजूद इसका पौधा पुनर्जीवित हो कर उपज ज्यादा से ज्यादा प्रदान करता है। इसके ऊपर पानी का प्रभाव नहीं होता। इसके लिए सरकार की ओर से सब्सिडी का भी प्रावधान दिया गया है। जिला कृषि पदाधिकारी ने यह भी बताया कि सीतामढ़ी जिले का अधिकार प्रखंड बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। इसलिए इस क्षेत्र के किसानों को प्रति वर्ष बाढ़ की विभीषिका के कारण आर्थिक स्थिति तबाह हो जाती है। किसान अब तक उस प्रभेदों की खेती करते आ रहे हैं जो बरसो पूर्व से चली आ रही है।इसलिए उन्हें तंगी का सामना करना पड़ता है। किसानों का बताना है कि पुराने प्रभेदों का पौधा अधिक लंबा होने के कारण बाद ग्रस्त खेतों में थोड़ी बहुत उपज मिल जाती है। लेकिन लागत जो लगता है। उसकी तुलना में उपज नहीं मिल पाती है। हम लोग नए प्रभेदों के इंतजार में हैं। ताकि उसे लगाकर अधिक लाभ ले सके। बाइट-1. अनिल कुमार राय। जिला कृषि पदाधिकारी सीतामढ़ी। बाइट-2. मनोज कुमार, रूपेश कुमार और रामनरेश सिंह जिले के किसान। पी टू सी---------- विजुअल-----1.2


Conclusion:पी टू सी--राहुल देव सोलंकी। सीतामढ़ी।
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