हैदराबाद : उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार अगर अलीगढ़ और मैनपुरी की जिला पंचायतों के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है तो दोनों जिलों के नाम बदल जाएंगे. अलीगढ़ का नाम बदलकर हरिगढ़ (Harigarh) हो जाएगा और मैनपुरी को लोग मयन नगर (Mayan Nagar) से जानेंगे.
योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में शहरों के नाम बदलने की जो यात्रा मुगलसराय से शुरू की थी, वह विधानसभा चुनाव से पहले अलीगढ़ में जाकर ठहरी है. सबसे पहले मुगलसराय को पंडित दीन दयाल उपाध्याय नगर बनाया गया. फिर इलाहाबाद और फैजाबाद का नंबर आया, जो प्रयागराज और अयोध्या में तब्दील हो गए. . अभी तक देश में स्थानीय देवी-देवताओं और भाषाई आधार पर नाम बदले गए, मगर यह यूपी सरकार की मंशा है या संयोग मगर यह सच है कि योगी राज में जिन शहरों के नाम बदले गए, उसमें मुस्लिम पहचान शामिल है
13 जिले हैं बदलाव की लिस्ट में !
बीजेपी के नेता गाहे-बगाहे उत्तर प्रदेश के 13 जिलों के नाम बदलने की वकालत करते रहे हैं, जिनके मुस्लिम नाम हैं. बिहार के पूर्व राज्यपाल लालजी टंडन ने लखनऊ का नाम बदलकर लक्ष्मणपुर या लखनपुर करने की सलाह दी थी. इसी तरह सुल्तानपुर को कुशपुरा या कुशभवनपुर बनाने की चर्चा है. इसके अलावा अकबरपुर, फर्रूखाबाद, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, गाजीपुर, फिरोजाबाद, शाहजहांपुर, मुरादाबाद, मिर्जापुर, आजमगढ़ और फतेहपुर सीकरी के नाम को लेकर भी सियासत होती रही है.
सभी दलों ने समय-समय पर बदले शहरों के नाम
ऐसा नहीं है कि सिर्फ उत्तर प्रदेश में जगहों के नाम बदले गए. सभी दलों ने अपनी-अपनी दलीलों के साथ समय-समय पर शहरों के नाम बदले हैं. आजादी के बाद सबसे पहले ' सिमला' को शिमला किया गया. 1956 से पहले वाराणसी का नाम बनारस था. 1961 में गोवा की राजधानी पंजिम से बदलकर पणजी हो गई. 1974 में बड़ौदा को बड़ोदरा बनाया गया था. 1978 में पूना का नाम बदलकर पुणे किया गया. 1983 से गौहाटी को गुवाहाटी कहा जाने लगा.
2014 : कर्नाटक में एक साथ 12 शहरों के नाम बदले गए थे
नवंबर 2014 में कर्नाटक के 12 शहरों के नाम बदले गए. बेंगलोर नाम बदलने के बाद बेंगलुरु बन गया. इसी तरह मैसूर को मैसूरू और मैंगलोर को मंगलुरू का नाम मिला. उस समय कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया की सरकार थी. नवीन पटनायक के शासनकाल में 2011 में उड़ीसा राज्य भी ओडिशा हो गया. मनोहर जोशी के कार्यकाल के दौरान 1995 में बॉम्बे के नाम मुंबई में बदला गया. 1996 में तमिलनाडु की राजधानी मद्रास से चेन्नै हो गई.
2001 में कलकत्ता भी कोलकाता हो गया. उस दौरान पश्चिम बंगाल के सीएम बुद्धदेब भट्टाचार्य थे. सितंबर 2016 में हरियाणा में गुड़गांव का नाम बदलकर गुरुग्राम किया गया. उसका पड़ोसी जिला मेवात भी नूंह बन गया. इसके अलावा कई शहरों के नाम बदले गए. 1987 में वाल्टेयर को विशाखापट्टनम का नाम मिला. 1991 में त्रिवेंद्रम भी तिरुवनंतपुरम बना और 2006 में पांडिचेरी का नाम पुड्डुचेरी हो गया.
भोपाल, अहमदाबाद और हैदराबाद पर भी खूब हुई चर्चा
देश में कई शहर हैं, जिनके नाम बदलने की चर्चा हो रही है. गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी कह चुके हैं कि राज्य सरकार अहमदाबाद को कर्णावती के नाम पर बदलने पर विचार कर रही है. लोकसभा चुनाव से पहले नाम परिवर्तन किया जा सकता है. मध्यप्रदेश सरकार की मंशा है कि राजा भोज के नाम पर भोपाल का नाम भोजपाल कर दिया जाए. नालंदा के पास बख्तियारपुर स्टेशन है. माना जाता है कि इसका नाम अक्रांता बख्तियार खिलजी के नाम पर है. लोग इसे भी बदलने की मांग कर रहे हैं. हैदराबाद का नाम भी भाग्यलक्ष्मी नगर करने को लेकर भाजपा उत्साहित है. तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने भी पश्चिम बंगाल राज्य का नाम बांग्ला करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है.
क्यों बदले गए शहरों और राज्यों के नाम
1. सबसे पहले यह तर्क दिया गया कि अंग्रेजों ने शहरों के मूल नाम बदल दिए थे. उन्होंने कलकत्ता, बॉम्बे, उड़ीसा, पांडिचेरी जैसे नाम अपनी भाषा की सहूलियत के हिसाब से रखे थे.
2. कर्नाटक सरकार ने 12 जिलों के नाम बदलने का तर्क शहरों के नाम बदलने के पीछे कन्नड़ भाषा के सही उच्चारण का दिया था.
3. 2014 के बाद बदले गए इसके पीछे शहरों के पुराने नाम की दलील दी गई और बताया गया कि लोगों की अकांक्षा को ध्यान में रखते हुए बदलाव किए गए.
4. कई शहर के नाम वहां के स्थानीय नायकों के नाम पर रखे गए. 2015 में राजाहमुंद्री का नाम बदलकर राजामहेंद्रवर्मन किया गया. यह बदलाव 11वीं सदी के शासक राजा महेंद्रवर्मन के सम्मान में किया गया. चेन्नै का नाम भी राजा चेंगप्पा से ही प्रभावित है.
5. इसके अलावा ममता बनर्जी की सरकार ने तर्क दिया है कि बैठक में अल्फाबेट के हिसाब से क्रम के कारण वेस्ट बंगाल का नंबर सबसे अंत में आता है, इसलिए नाम बदलना जरूरी है.
कई जगहों पर तो जरूरत भी थी नाम बदलना
राजस्थान के अलवर में एक इलाके का नाम था, चोर बसाई. इसी तरह बिहार के रोहतास जिले में एक जगह थी नचनिया. इन दोनों इलाकों के लोग अपने गांव के नाम से परेशान थे. उन्हें लोगों को बताने में शर्म आती थी. 2018 में दोनों इलाकों के नाम बदले गए. चोर बासाई अब सिर्फ बासाई से जानते हैं और नचनिया गांव काशीपुर हो गया है. इसी तरह हरियाणा के फतेहाबाद के गांडा गांव का नाम बदलकर अजित नगर रखा गया. इसी तरह हिसार के किन्नर गांव के लोग इसका नाम बदलना चाहते थे. 2017 में गांव का नाम गैबी नगर कर दिया गया.
शहर का नाम बदलने की प्रक्रिया क्या है?
किसी भी राजनीतिक घोषणा के साथ ही किसी शहर, गांव या जिला का नाम नहीं बदल जाता है. इसके लिए केंद्र सरकार की गाइडलाइन के तहत प्रक्रिया का पालन करना होता है. राज्य सरकार को गजट में नोटिफिकेशन से पहले गृह मंत्रालय, रेल मंत्रालय, टेलिकॉम और पोस्टल मिनिस्ट्री के अलावा और सर्वे ऑफ इंडिया से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना होता है.
- गांव, कस्बा और शहर का नाम बदलने के लिए जरूरी है कि जनप्रतिनिधि विधायक और सांसद इसके लिए लिखित तौर से मांग करें. अपनी मांग में वह नाम बदलने का स्पष्ट कारण बताए.
- विधायक और सांसद का प्रस्ताव पहले प्रदेश की कैबिनेट में रखा जाता है. मंजूर होने पर उसे राज्यपाल के पास भेजा जाता है.
- राज्यपाल उसे अधिसूचित कर केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजते हैं. गृह मंत्रालय अन्य संबंधित मंत्रालयों और संगठनों के साथ रेकॉर्ड चेक करता है. उसमें यह देखा जाता है कि उस नए प्रस्तावित नाम से कोई अन्य शहर या गांव तो नहीं है. अगर कोई तकनीकी दिक्कत हो तो गृह मंत्रालय इस प्रस्ताव को रिजेक्ट भी कर सकता है.
- गृह मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद राज्य सरकार गजट में नोटिफिकेशन करती है और सभी संबंधित करीब 90 विभागों और जिलों को सूचित करती है.
- इसके बाद ही सरकारी दस्तावेजों में नाम बदले जाते हैं और नए नाम की मुहर बनती है.
राज्य का नाम बदलने में संसद का रोल महत्वपूर्ण
राज्य का नाम बदलने की प्रक्रिया इससे अलग है. राज्य का नाम बदलने की शुरुआत विधानसभा या संसद से होती है. संविधान के अनुच्छेद तीन और चार के अनुसार, विधानसभा के प्रस्ताव को संसद में बिल के तौर पर पेश किया जाता है. संसद में मंजूरी के बाद राष्ट्रपति की सहमति जरूरी होती है. इस प्रक्रिया का दूसरा पहली भी है. संसद भी राज्य का नाम भेजने की पहल कर सकती है. फिर उस प्रस्ताव को मंजूरी के लिए संबंधित विधानसभा को भेजा जाता है. केंद्र के लिए स्थानीय विधानसभा की मंजूरी बाध्यकारी नहीं है. मगर उसके लिए एक निश्चित समय सीमा तक इंतजार करना होता है. संसद में बहुमत से पारित प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की मुहर लगते ही राज्य का नाम बदल जाता है.
नाम बदलने से बीजेपी को चुनावी लाभ की उम्मीद कम
नाम बदलने की कथा उत्तरप्रदेश से शुरू हुई थी तो खत्म भी यूपी से ही. माना जा रहा कि 2022 के विधानसभा से पहले अलीगढ़ का नाम बदलकर बीजेपी ने सियासी चाल चली है. अगर इस मुद्दे पर विरोध और समर्थन की बहस चली तो वोटों का ध्रुवीकरण आसान होगा. राजनीतिक विश्लेषक शरद त्रिपाठी भी मानते हैं कि यह चुनावी हथकंडा ही है. उनका कहना है कि इस तरह के प्रस्तावों को जरूरत से ज्यादा तूल देने से बीजेपी को फायदा कम और नुकसान ज्यादा होगा.
उनका मानना है कि चुनाव में नाम परिवर्तन बड़ा मुद्दा नहीं होगा. बीजेपी विधानसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ेगी. ऐसे में महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे हावी रह सकते हैं. वह इससे इत्तेफाक नहीं रखते कि आज के युवा और फर्स्ट टाइम वोटर ऐसे चुनावी प्रयोगों से प्रभावित होंगे. जो समर्थक हैं वह हर मुद्दे पर बीजेपी के साथ हैं, मगर इसका बीजेपी को चुनावी फायदा नहीं मिलेगा.
बीजेपी के कई नेता मुस्लिम शहरों को नाम बदलने की कवायद को सही ठहराते हैं. एक नेता ने बताया कि योगी सरकार जनभावनाओं के आधार पर शहरों का नाम बदल रही है. इलाहाबाद को प्रयागराज और फैजाबाद को अयोध्या बनाने के दौरान किसी ने आधिकारिक तौर पर आपत्ति दर्ज नहीं कराई. यह आने वाले विधानसभा चुनाव में तय होगा कि बीजेपी का यह दांव कितना सफल होता है.