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कोरोना महामारी की वजह से 63 फीसदी तक नेत्रदान में आई कमी

जितने लोग पहले नेत्रदान के लिए आगे आ रहे थे, उनके जरिए लोगों को नया जीवन और एक रोशनी दी जाती थी, उसमें कमी आई है. साथ ही कोरोना का असर आंखों पर भी पड़ रहा है, जिसको लेकर ईटीवी भारत ने एम्स अस्पताल के आई कैजुअलिटी, आरपी सेंटर की प्रोफेसर डॉ. नम्रता शर्मा से खास बातचीत की.

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Published : Sep 8, 2021, 9:23 PM IST

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नई दिल्ली : कोरोना वायरस ने लोगों की जिंदगी बदल दी है. इसका असर अंगदान (Organ Donation) पर भी पड़ा है. दिल्ली के एम्स (All India Institute of Medical Sciences) अस्पताल के मुताबिक इस साल नेत्रदान (Eye donation) में 63 फीसदी की कमी आई है.

आई बैंक ऑफ एसोसिएशन की वरिष्ठ डॉ. नम्रता शर्मा ने बताया कोरोना के कारण नेत्रदान और कॉर्निया ट्रांसप्लांट (Cornea Transplant) में भारी कमी आई है. आई बैंक ऑफ एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक हर साल जो 50,000 कॉर्निया डोनेशन के जरिए कलेक्ट किए जाते थे, उसमें 63 फ़ीसदी की कमी आई है. वहीं डोनेटेड कॉर्निया जो ट्रांसप्लांट किए जाते थे उसमें 52 फ़ीसदी की कमी कोरोना के चलते आई है.

आरपी सेंटर की प्रोफेसर डॉ. नम्रता शर्मा से खास बातचीत

डॉ. नम्रता ने बताया कि कोरोना के चलते आंखों के कॉर्निया, रेटिना, ऑप्टिक, नर्वे, लेंस, कंजेक्टिव आदि पर कितना असर पड़ा है. इसको लेकर भी एम्स अस्पताल द्वारा कई स्टडी की जा रही है. डॉक्टर ने कहा कि जिन लोगों को कोरोना हो गया है, उनकी आंखों को चेक किया जा रहा है कि उनकी आंखों के अलग-अलग हिस्सों में क्या संक्रमण पहुंचा है. इसके साथ ही डोनेशन में जो कार्निया हमें मिले हैं, उनकी भी जांच की जा रही है. जिससे कि यह पता लगाया जा सकेगा कि इस कोरोना का संक्रमण क्या आंखों तक भी पहुंचा है. आंखों के जो अलग-अलग हिस्से कॉर्निया, रेटीना, ऑप्टिक, नर्व आदि होते हैं इनको संक्रमण में कितना इफेक्ट किया है.

कोरोना संक्रमित व्यक्ति का कॉर्निया ट्रांसप्लांट क्यों नहीं किया गया? इस सवाल पर डॉ. नम्रता कहती हैं कि मौजूदा समय में नेत्रदान में भारी कमी इसीलिए आई है, क्योंकि आई डोनेशन के दौरान जो कार्निया टिशु मिले थे, उसमें से कई संक्रमित पाए गए. ऐसे में संक्रमित मरीजों का कॉर्निया और संक्रमित पाया गया, कॉर्निया बिल्कुल भी ट्रांसप्लांट नहीं किया जा रहा है. इसके साथ ही डॉक्टर ने कहा कि जो लोग नेत्रदान करना चाहते हैं लेकिन यदि वह संक्रमित हो गए हैं तो उन्हें 28 दिन का इंतजार करना होगा जब तक कि उनकी रिपोर्ट नेगेटिव नहीं आती है. उनका नेत्रदान तभी हो सकता है जब वो कोरोना संक्रमित नहीं होंगे.

डॉ. नम्रता ने बताया कि कोरोना के साथ-साथ म्यूकोरमाइक्रोसिस (Mucormycosis) का असर भी आंखों पर पड़ा है. इसके चलते कई लोगों में ब्लाइंडनेस आ गई, जिसको लेकर भी एम्स अस्पताल द्वारा रिसर्च की जा रही है. साथ ही उन्होंने कहा क्योंकि मौजूदा समय में लोग वर्चुअली ज्यादा एक्टिव हो गए हैं. ऑनलाइन क्लासेज, वर्क फ्रॉम होम, आदि किया जा रहा है. मोबाइल फोन लैपटॉप टेबलेट पर ही काम हो रहे हैं. जिसके कई फायदे भी हैं तो कई नुकसान भी हैं. सबसे ज्यादा असर इनका आंखों पर पड़ता है क्योंकि लगातार स्क्रीन पर काम करने से आंखों में ड्राइनेस और तनाव होता है. लगातार स्क्रीन पर देखने से आई ब्लिंक नहीं होती है.

ये भी पढ़ें: ये भी पढ़ें: नेत्रदान या वरदान : ...ताकि आपकी नजर से भी काेई देख सके दुनिया....

डॉ. नम्रता ने लोगों से अपील की कि वह बढ़-चढ़कर नेत्रदान के लिए आगे आना चाहिए. उन्होंने कहा कि नेत्रदान वर्चुअल माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा है, पहले किसी एक स्थान पर कार्यक्रम होते थे तो ज्यादा लोगों तक यह नहीं पहुंचता था. लेकिन अब ऑनलाइन माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोग इसके बारे में जागरूक हो रहे हैं.

नई दिल्ली : कोरोना वायरस ने लोगों की जिंदगी बदल दी है. इसका असर अंगदान (Organ Donation) पर भी पड़ा है. दिल्ली के एम्स (All India Institute of Medical Sciences) अस्पताल के मुताबिक इस साल नेत्रदान (Eye donation) में 63 फीसदी की कमी आई है.

आई बैंक ऑफ एसोसिएशन की वरिष्ठ डॉ. नम्रता शर्मा ने बताया कोरोना के कारण नेत्रदान और कॉर्निया ट्रांसप्लांट (Cornea Transplant) में भारी कमी आई है. आई बैंक ऑफ एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक हर साल जो 50,000 कॉर्निया डोनेशन के जरिए कलेक्ट किए जाते थे, उसमें 63 फ़ीसदी की कमी आई है. वहीं डोनेटेड कॉर्निया जो ट्रांसप्लांट किए जाते थे उसमें 52 फ़ीसदी की कमी कोरोना के चलते आई है.

आरपी सेंटर की प्रोफेसर डॉ. नम्रता शर्मा से खास बातचीत

डॉ. नम्रता ने बताया कि कोरोना के चलते आंखों के कॉर्निया, रेटिना, ऑप्टिक, नर्वे, लेंस, कंजेक्टिव आदि पर कितना असर पड़ा है. इसको लेकर भी एम्स अस्पताल द्वारा कई स्टडी की जा रही है. डॉक्टर ने कहा कि जिन लोगों को कोरोना हो गया है, उनकी आंखों को चेक किया जा रहा है कि उनकी आंखों के अलग-अलग हिस्सों में क्या संक्रमण पहुंचा है. इसके साथ ही डोनेशन में जो कार्निया हमें मिले हैं, उनकी भी जांच की जा रही है. जिससे कि यह पता लगाया जा सकेगा कि इस कोरोना का संक्रमण क्या आंखों तक भी पहुंचा है. आंखों के जो अलग-अलग हिस्से कॉर्निया, रेटीना, ऑप्टिक, नर्व आदि होते हैं इनको संक्रमण में कितना इफेक्ट किया है.

कोरोना संक्रमित व्यक्ति का कॉर्निया ट्रांसप्लांट क्यों नहीं किया गया? इस सवाल पर डॉ. नम्रता कहती हैं कि मौजूदा समय में नेत्रदान में भारी कमी इसीलिए आई है, क्योंकि आई डोनेशन के दौरान जो कार्निया टिशु मिले थे, उसमें से कई संक्रमित पाए गए. ऐसे में संक्रमित मरीजों का कॉर्निया और संक्रमित पाया गया, कॉर्निया बिल्कुल भी ट्रांसप्लांट नहीं किया जा रहा है. इसके साथ ही डॉक्टर ने कहा कि जो लोग नेत्रदान करना चाहते हैं लेकिन यदि वह संक्रमित हो गए हैं तो उन्हें 28 दिन का इंतजार करना होगा जब तक कि उनकी रिपोर्ट नेगेटिव नहीं आती है. उनका नेत्रदान तभी हो सकता है जब वो कोरोना संक्रमित नहीं होंगे.

डॉ. नम्रता ने बताया कि कोरोना के साथ-साथ म्यूकोरमाइक्रोसिस (Mucormycosis) का असर भी आंखों पर पड़ा है. इसके चलते कई लोगों में ब्लाइंडनेस आ गई, जिसको लेकर भी एम्स अस्पताल द्वारा रिसर्च की जा रही है. साथ ही उन्होंने कहा क्योंकि मौजूदा समय में लोग वर्चुअली ज्यादा एक्टिव हो गए हैं. ऑनलाइन क्लासेज, वर्क फ्रॉम होम, आदि किया जा रहा है. मोबाइल फोन लैपटॉप टेबलेट पर ही काम हो रहे हैं. जिसके कई फायदे भी हैं तो कई नुकसान भी हैं. सबसे ज्यादा असर इनका आंखों पर पड़ता है क्योंकि लगातार स्क्रीन पर काम करने से आंखों में ड्राइनेस और तनाव होता है. लगातार स्क्रीन पर देखने से आई ब्लिंक नहीं होती है.

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डॉ. नम्रता ने लोगों से अपील की कि वह बढ़-चढ़कर नेत्रदान के लिए आगे आना चाहिए. उन्होंने कहा कि नेत्रदान वर्चुअल माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा है, पहले किसी एक स्थान पर कार्यक्रम होते थे तो ज्यादा लोगों तक यह नहीं पहुंचता था. लेकिन अब ऑनलाइन माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोग इसके बारे में जागरूक हो रहे हैं.

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