नई दिल्ली : संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण आज से शुरू हुआ. बजटीय प्रस्तावों के लिए संसद की मंजूरी लेना और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए बजट पेश करना सरकार के एजेंडा में शीर्ष पर है. इसी के तहत लोक सभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जम्मू-कश्मीर के लिए बजट संबंधी प्रस्ताव पेश किया. सदन में इस पर दोपहर के भोजन के बाद चर्चा शुरू की गई. 22 सांसदों ने चर्चा में भाग लिया. इसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जवाब दिया.
चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस सांसद रवनीत बिट्टू ने कहा कि सांसदों को भाषाई मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए. इससे पहले केंद्रीय मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कई ऐतिहासिक तथ्यों का जिक्र कर केंद्र सरकार के फैसलों से हो रहे लाभ गिनाए.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जम्मू कश्मीर के लिये वित्त वर्ष 2022-23 का 1.42 लाख करोड़ रूपये का बजट पेश किया. उन्होंने जम्मू कश्मीर के लिये वित्त वर्ष 2021-22 के लिए अनुदान की अनुपूरक मांग भी पेश कीं जो 18,860.32 करोड़ रुपये की हैं. उन्होंने इसके साथ एक प्रस्ताव भी पेश किया जिसमें कुछ नियमों को निलंबित करके सदन में इसे पेश किये जाने के दिन ही चर्चा शुरू करने की अनुमति देने की बात कही गई.
प्रस्ताव में कहा गया है, 'यह सभा, लोकसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों के नियम 205 को जम्मू कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र सरकार के वर्ष 2022-23 के बजट तथा वित्त वर्ष 2021-22 के अनुदान की अनुपूरक मांगों को लागू करने के संबंध में निलंबित करती है ताकि बजट को उसी दिन प्रस्तुत किया जा सके और उस पर चर्चा की जा सके.' बता दें कि संसदीय कार्यवाही से जुड़े नियम 205 में यह उपबंध है कि बजट पर उस दिन कोई चर्चा नहीं होगी जिस दिन इसे सभा में प्रस्तुत किया जाता है.
चर्चा में भाग लेते हुए एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास पर केंद्र सरकार से तीखा सवाल किया है. उन्होंने कहा कि पहले की सरकारों ने पिछले 60 साल में क्या किया, बार-बार ऐसा कहना पुराना डायलॉग हो चुका है. उन्होंने कहा कि केवल अनुच्छेद 370 हटाने का जिक्र करते रहने से जम्मू-कश्मीर के लोगों के जीवन में बदलाव नहीं आने वाला. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में महिलाओं और बच्चों का जीवन संवारने के लिए निवेश किए जाने की जरूरत है, इससे किसी को इनकार नहीं है, लेकिन एक सवाल वे जरूर करना चाहेंगी, जम्मू-कश्मीर के लिए वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में कश्मीरी पंडितों के लिए क्या प्रावधान किए गए हैं, सरकार को यह बताना चाहिए.
तेलंगाना की हैदराबाद सीट से लोक सभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी जम्मू-कश्मीर के लिए बजट और अनुदान की अनुपूरक मांग पर चर्चा में भाग लिया. उन्होंने कहा कि कश्मीर में बेरोजगारी 7.2 फीसद है जो पूरे देश में सबसे अधिक है. उन्होंने JKIDC के गठन पर कहा कि यह एक शैतान बनाने की तरह है. इसके फैसलों को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती जो गलत है. उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में गलत फैसलों को चुनौती देने के प्रावधान होते हैं. बकौल ओवैसी, केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को कठपुतली की तरह नियंत्रित करना चाहती है.
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प्रस्ताव का विरोध करते हुए कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि बजट की जांच परख एवं चर्चा करना इस सदन की बुनियादी जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा नहीं है, ऐसे में इस पर चर्चा करने की जिम्मेदारी इस सदन की है. उन्होंने सवाल किया कि जब सदस्यों के पास बजट से जुड़ा कोई कागज नहीं है तो फिर किस चीज पर चर्चा होगी? तिवारी ने कहा कि इस पर कल चर्चा होनी चाहिए और आसन को इस बारे में व्यवस्था देनी चाहिए.
आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन ने कहा कि नियम में 205 बहुत स्पष्ट है कि बजट को पेश करने के दिन इस पर चर्चा नहीं होगी और संविधान में इसका प्रावधान है. उन्होंने कहा कि सदस्यों के पास बजट की कोई प्रति नहीं है तो वे कैसे देखेंगे कि जम्मू-कश्मीर का हित सुनिश्चित हो.
भोजनावकाश के बाद लोक सभा में वित्त वर्ष 2021-22 के लिए केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के लिए अनुदान की अनुपूरक मांगों पर चर्चा शुरू होने पर भी आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन ने बजट पेश किये जाने के दिन ही इस पर चर्चा कराये जाने को लेकर व्यवस्था का प्रश्न उठाया .
इस पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि 2014 में भी दिल्ली केंद्रशासित क्षेत्र के लिए तत्कालीन संप्रग सरकार ने बजट के साथ अनुपूरक मांगों को चर्चा के लिए रखा था. उन्होंने कहा कि उस समय भी आसन ने अनुमति दी थी और इस बार भी अध्यक्ष ने इसके लिए अनुमति दी है.
वहीं, पीठासीन सभापति भर्तृहरि महताब ने कहा कि ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी राज्य के बजट पर चर्चा उसके प्रस्तुत किये जाने के दिन ही हो रही है. उन्होंने कहा कि पूर्व में भी ऐसा हुआ है और इसी प्रकार की अनुदान की अनुपूरक मांगें भी प्रस्तुत किये जाने के दिन ही चर्चा के लिए ली गयी हैं. महताब ने कहा कि सदन हमेशा नियमों से नहीं चलता, परिपाटियों से भी चलता है और नियम 205 को निलंबित करते हुए चर्चा की अनुमति केवल आसन ने नहीं दी बल्कि पूरे सदन ने इस पर मंजूरी दी है.
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भाजपा के निशिकांत दुबे ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 357 के अनुसार, जब कहीं विधायिका नहीं है तो संसद को अधिकार है और अनुच्छेद 118 के तहत उसे अधिकार है कि संसद को इस तरह के वित्तीय काम को जल्द से जल्द पूरा करना चाहिए.
इस पर पीठासीन सभापति भर्तृहरि महताब ने कहा कि वह लोकसभा अध्यक्ष की ओर से सदन को बताना चाहते हैं कि आगामी वित्त वर्ष के लिए अनुदानों की मांगें वित्त वर्ष की शुरुआत से पूर्व ही प्रस्तुत की जाती हैं और पारित होती हैं. उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 115 में निर्दिष्ट प्रावधान का भी उल्लेख किया और कहा कि सरकार को आवश्यकता है तो सरकार अनुदान की अनुपूरक मांगें ला सकती है. उन्होंने कहा कि इन पर एक सार्थ चर्चा करने से नियम का उल्लंघन नहीं होता, इसलिए व्यवस्था के प्रश्न को खारिज किया जाता है. महताब ने यह भी कहा कि ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी राज्य के बजट पर चर्चा उसके प्रस्तुत किये जाने के दिन ही हो रही है. उन्होंने कहा कि पूर्व में भी ऐसा हुआ है और इसी प्रकार की अनुदान की अनुपूरक मांगें भी प्रस्तुत किये जाने के दिन ही चर्चा के लिए ली गयी हैं.
वहीं, कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि अन्य केंद्रशासित प्रदेश हैं, लेकिन जम्मू कश्मीर के बजट पर इस सदन में अलग से चर्चा क्यों हो रही है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार यह परंपरा डाल रही है तो चंडीगढ़, लक्षद्वीप और दमन दीव के बजट पर भी चर्चा होनी चाहिए.
संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने विरोध करने वाले सदस्यों से पूछा कि 2014 में दिल्ली के लिए अनुदान की अनुपूरक मांगों पर चर्चा के समय कांग्रेस सदस्य ने विरोध क्यों नहीं किया. इस पर तिवारी ने कहा कि 2014 में भाजपा विपक्ष में थी, उसे तब आपत्ति दर्ज करानी चाहिए थी. उन्होंने कहा कि यह बचाव का कोई तर्क नहीं है.
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इससे पहले दोपहर दो बजे वित्त वर्ष 2021-22 के लिए डिमांड फॉर ग्रांट फॉर यूनियन टेरिटरी ऑफ जम्मू-कश्मीर पर चर्चा शुरू होने के बाद एनके प्रेमचंद्रन और मनीष तिवारी ने एक बार फिर आपत्ति जताई. हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि यूपीए के कार्यकाल में पहले भी ऐसा हो चुका है. कांग्रेस व अन्य सांसदों की आपत्ति निराधारा है. भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भी कहा कि संविधान के आर्टिकल 357 के तहत केंद्र सरकार के पास जम्मू-कश्मीर के संबंध में फैसला लेने का पूरा अधिकार है. ऐसा इसलिए क्योंकि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा भंग है, ऐसे में संसद राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के हित में फैसले ले सकती है.
इससे पहले वित्त मंत्री की ओर से प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी, केरल की कोल्लम सीट से निर्वाचित सांसद आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन और टीएमसी सांसदों ने इस पर आपत्ति जताई. मनीष तिवारी ने कहा कि कांग्रेस इस प्रस्ताव पर चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन सरकार की ओर से कोई बजटीय दस्तावेज नहीं दिए गए हैं. ऐसे में प्रावधानों या आर्थिक फैसलों पर चर्चा कैसे की जा सकती है.
हालांकि, संक्षिप्त आपत्तियों को सुनने के बाद पीठासीन सभापति राजेंद्र अग्रवाल ने कहा, स्पीकर की ओर से इस प्रस्ताव को सदन के एजेंडे में सूचीबद्ध किया गया है. ऐसे में स्पीकर के अधिकार पर सवाल खड़े करना ठीक नहीं. संसदीय कार्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि इस प्रस्ताव पर चर्चा के लिए दोपहर बाद का समय तय किया गया है, ऐसे में विपक्ष की ओर से आपत्ति निराधार है. इसके बाद ध्वनिमत से प्रस्ताव को स्वीकृत कर लिया गया.
गौरतलब है कि कोविड-19 संबंधी हालात में काफी सुधार आने के कारण लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही पूर्वाह्न 11 बजे से साथ-साथ चल रही है. केंद्र सरकार ने संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक को भी लोकसभा में विचार किये जाने और पारित करने के लिए भी सूचीबद्ध किया है.
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बता दें कि संसद के बजट सत्र के पहले चरण में 29 जनवरी से 11 फरवरी तक दो अलग-अलग पालियों में लोक सभा और राज्य सभा की कार्यवाही संचालित की गई थी. बजट सत्र का पहला चरण संसद के सेंट्रल हॉल में लोकसभा एवं राज्यसभा के संयुक्त सत्र में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण से 29 जनवरी को शुरु हुआ था, जिसके बाद आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया गया था. सीतारमण ने एक फरवरी को केंद्रीय बजट पेश किया था, जिसके बाद राष्ट्रपति के अभिभाषण और केंद्रीय बजट के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा हुई थी.