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'मोदी को लगता है उन्हें सब पता है, पर ऐसा है नहीं' - Former External Affairs Minister Yashwant Sinha

पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी सोचते हैं कि उन्हें सब कुछ पता है, लेकिन हकीकत ये है कि कश्मीर के लोग आज भी गहरे दुख में हैं. यशवंत सिन्हा ने 'ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सौरभ शर्मा के साथ विशेष साक्षात्कार में ये बात कही. देश के विदेश मंत्री और वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा वर्तमान में टीएमसी उपाध्यक्ष हैं. सिन्हा ने 2018 में भाजपा से इस्तीफा देने के पीछे के कारणों, भारत की विदेश नीति, सामाजिक अशांति और कश्मीर जैसे मुद्दों पर खुलकर बात की.

Yashwant Sinha
यशवंत सिन्हा
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Published : Apr 21, 2022, 8:41 PM IST

नई दिल्ली : पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने देश में सांप्रदायिक हिंसा, अजान के दौरान लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध की उठती मांग, अटल युग से लेकर मोदी कार्यकाल पर खुलकर अपनी बात रखी. महत्वपूर्ण मंत्री पद न मिलने के कारण भाजपा छोड़ने की बात को सिरे से खारिज किया. बातचीत के खास अंश.

सवाल : वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिवेश को देखते हुए, क्या आपको लगता है कि भारत की एकता और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत खतरे में हैं?

यशवंत सिन्हा से खास बातचीत

जवाब : हां, वास्तव में ऐसा है. चाहे हिजाब मुद्दा हो, अज़ान के दौरान लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध और सांप्रदायिक हिंसा, ये सभी देश को बहुसंख्यकों के बीच विभाजित करने की रणनीति का एक हिस्सा हैं. 80% बनाम 20% है. यह हिंदू मतदाताओं को लुभाने और मुस्लिम अल्पसंख्यकों को उनके बहुमत के वोट पाने के लिए और सत्ता में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए एक चुनावी रणनीति है.

सवाल : आप 80 के दशक में जनता दल के साथ थे और फिर बीजेपी के साथ. भाजपा छोड़ने के लिए किस बात ने मजबूर किया?

जवाब : भाजपा ने बहुत गलत रास्ता अपनाया था. मैंने पीएम मोदी के साथ काम करने में जो घुटन महसूस की, पहले कभी नहीं की. अगर आप पीएम मोदी की तुलना पूर्व पीएम वाजपेयी से करें तो वे बिल्कुल अलग हैं. उनके दृष्टिकोण, व्यक्तित्व अलग-अलग हैं. वाजपेयी के साथ काम करना सुखद था न कि मोदी के साथ.

सवाल : राजनीतिक गलियारों में, यहां तक ​​कि जनता भी सोचती है कि महत्वपूर्ण मंत्री पद नहीं देने के कारण आपने पार्टी छोड़ी?

जवाब- यह बहुत घटिया आरोप है. जब मेरी 12 साल की सेवा बाकी थी तो मैंने आईएएस से इस्तीफा दे दिया. कौन पागल आदमी ऐसा करेगा ? 1989 में जब मुझे वीपी सिंह ने पद की पेशकश की थी, तब मैंने मंत्री पद स्वीकार नहीं किया था. मैं हमेशा अपने सिद्धांतों पर कायम रहा, भले ही इसका मतलब महत्वपूर्ण पदों को छोड़ना ही क्यों न हो. किसी भी भाजपा वाले से पूछो! क्या वे ऐसा करेंगे?

सवाल : आखिरी बार पीएम मोदी या अमित शाह से कब बातचीत की? क्या अभी भी कैबिनेट में सेवारत किसी भाजपा सदस्य के संपर्क में हैं?

जवाब : अमित शाह से नहीं मिला. आखिरी बार पीएम मोदी से 2014 में मिला था, जब उन्हें 2014 में हजारीबाग में रेलवे लाइन के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया था. उन्होंने मेरा प्रस्ताव स्वीकार किया. आए भी. यह आखिरी बार था जब मैं उनसे मिला था या बातचीत की थी.
सवाल : टीएमसी पश्चिम बंगाल में 1990 के दशक से अपनी राजनीतिक हिंसा के लिए कुख्यात है. ममता बनर्जी के आने के बाद भी हिंसा जारी है. क्या आपको नहीं लगता कि यह भी लोकतंत्र पर हमला है?

जवाब : देश के किसी भी हिस्से में अगर ऐसी कोई हिंसा होती है तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिन इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि पश्चिम बंगाल में जब भी कोई हिंसा होती है तो सोशल मीडिया पर सनसनी फैल जाती है. इसके बीच हम सब यह भूल जाते हैं कि उत्तर प्रदेश या बिहार जैसे अन्य राज्यों में भी राजनीतिक हिंसा या हिंसा और भी खराब है, लेकिन इस पर सोशल मीडिया का ध्यान नहीं जाता है.

सवाल : ममता बनर्जी की ताजा टिप्पणी 'पीड़िता का वास्तव में दुष्कर्म हुआ था या प्रेम प्रसंग था' क्या आपको नहीं लगता कि इस बयान से पीड़िता के परिजनों की भावनाओं को ठेस पहुंची होगी?

जवाब : उन्होंने जो कहा हम सभी जानते हैं, जल्दबाजी में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचें. सीबीआई मामले की जांच कर रही है. अधिकारियों को जांच करने दें, वे मामले का फैसला करेंगे.
सवाल : नागरिक समाज समूह 'द कंसर्नड सिटिजन्स ग्रुप' ने आपके नेतृत्व में हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि कश्मीर फाइल्स के समर्थन ने जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यकों और मुख्यधारा के राजनेताओं को खतरे में डाल दिया है. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से घाटी में माहौल खराब हो गया है...तो उपाय क्या है?

जवाब : कश्मीरियों के दिलों में घोर आक्रोश है. भारत सरकार जिस तरह से उनके साथ व्यवहार कर रही है वह बेहद चिंताजनक है. एक आख्यान है जिसे अब सामने रखा जा रहा है कि वहां सब कुछ सामान्य है और पर्यटक भारी संख्या में आ रहे हैं. लेकिन मुझे बताओ, कश्मीर के लोगों को इन पर्यटकों के साथ समस्या क्यों होगी. उन्हीं की वजह से वे रोटी कमा रहे हैं. लेकिन क्या हमें जीने के लिए सिर्फ रोटी और मक्खन की जरूरत है? जिस शब्द का पीएम मोदी ने जिक्र किया कि 'दिल की दूरी और दिल्ली से दूरी' (Dil ke doori aur Delhi se Doori) को कम किया जाना चाहिए. उन्होंने इसका अर्थ समझे बिना ही एक शब्द गढ़ा था. प्रधानमंत्री मोदी सोचते हैं कि उन्हें सब कुछ पता है, लेकिन हकीकत ये है कि कश्मीर को लोग आज भी गहरे दुख में हैं.

सवाल : रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में भारत की विदेश नीति पर आपकी क्या राय?

जवाब : विदेश नीति आमतौर पर यथार्थवाद, राष्ट्रीय और सामरिक हितों पर काम करती है और इसमें नैतिक सिद्धांतों की बहुत कम गुंजाइश होती है, लेकिन इस मामले में जब भारत और रूस के बीच बहुत सौहार्दपूर्ण संबंध हैं, भारत को शुरुआती चरण में रूसी पक्ष से बात करनी चाहिए थी. हमें कम से कम उनके कार्यों की निंदा करनी चाहिए या एक मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते थे जैसा कि तुर्की और इज़राइल ने किया था. एक विदेश मंत्री के रूप में मेरे कार्यकाल के दौरान 2003 में संसद ने सर्वसम्मति से इराक पर अमेरिकी आक्रमण की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था. इसके बाद, मैंने कहा था कि भारत और अमेरिका के बीच भले ही मतभेद हों लेकिन हमारे संबंध जारी रहने चाहिए और वह एक अच्छा दृष्टिकोण था. पंडित नेहरू ने विदेश नीति का एक बहुत अच्छा संतुलन स्थापित किया था जिसने नैतिक सिद्धांतों को भी महत्व दिया था. इस रूस-यूक्रेन युद्ध में हमें वह दृष्टिकोण अपनाना चाहिए था लेकिन इसके विपरीत, हम तटस्थ रहने का सिर्फ दिखावा कर रहे हैं.

सवाल : पीएम मोदी और पूर्व पीएम चंद्रशेखर के बीच कोई समानता?

जवाब : नहीं, बिल्कुल नहीं. दाढ़ी की सिर्फ एक समानता है और कुछ नहीं.
सवाल : पीएम मोदी और बीजेपी आपसे बात करने को लेकर इतने अनिच्छुक क्यों हैं?

जवाब : वे मुझसे डरते हैं. जब कोई व्यक्ति सोचता है कि वह सब कुछ जानता है और वह सब कुछ समझता है, तो उसे अपने साथ किसी की आवश्यकता नहीं है. यहां ऐसा ही है. मुझे पार्टी नहीं नहीं निकाला, बल्कि मैं ही था जो अपने सिद्धांतों पर कायम रहा और पार्टी से इस्तीफा दे दिया.

पढ़ें- ईटीवी भारत से बोले यशवंत सिन्हा- जम्मू-कश्मीर में परिसीमन अभ्यास की कोई आवश्यकता नहीं

पढ़ें- The Kashmir Files : यशवंत सिन्हा का तंज, 'कानून बनाकर फिल्म देखना अनिवार्य बनाएं'

नई दिल्ली : पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने देश में सांप्रदायिक हिंसा, अजान के दौरान लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध की उठती मांग, अटल युग से लेकर मोदी कार्यकाल पर खुलकर अपनी बात रखी. महत्वपूर्ण मंत्री पद न मिलने के कारण भाजपा छोड़ने की बात को सिरे से खारिज किया. बातचीत के खास अंश.

सवाल : वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिवेश को देखते हुए, क्या आपको लगता है कि भारत की एकता और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत खतरे में हैं?

यशवंत सिन्हा से खास बातचीत

जवाब : हां, वास्तव में ऐसा है. चाहे हिजाब मुद्दा हो, अज़ान के दौरान लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध और सांप्रदायिक हिंसा, ये सभी देश को बहुसंख्यकों के बीच विभाजित करने की रणनीति का एक हिस्सा हैं. 80% बनाम 20% है. यह हिंदू मतदाताओं को लुभाने और मुस्लिम अल्पसंख्यकों को उनके बहुमत के वोट पाने के लिए और सत्ता में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए एक चुनावी रणनीति है.

सवाल : आप 80 के दशक में जनता दल के साथ थे और फिर बीजेपी के साथ. भाजपा छोड़ने के लिए किस बात ने मजबूर किया?

जवाब : भाजपा ने बहुत गलत रास्ता अपनाया था. मैंने पीएम मोदी के साथ काम करने में जो घुटन महसूस की, पहले कभी नहीं की. अगर आप पीएम मोदी की तुलना पूर्व पीएम वाजपेयी से करें तो वे बिल्कुल अलग हैं. उनके दृष्टिकोण, व्यक्तित्व अलग-अलग हैं. वाजपेयी के साथ काम करना सुखद था न कि मोदी के साथ.

सवाल : राजनीतिक गलियारों में, यहां तक ​​कि जनता भी सोचती है कि महत्वपूर्ण मंत्री पद नहीं देने के कारण आपने पार्टी छोड़ी?

जवाब- यह बहुत घटिया आरोप है. जब मेरी 12 साल की सेवा बाकी थी तो मैंने आईएएस से इस्तीफा दे दिया. कौन पागल आदमी ऐसा करेगा ? 1989 में जब मुझे वीपी सिंह ने पद की पेशकश की थी, तब मैंने मंत्री पद स्वीकार नहीं किया था. मैं हमेशा अपने सिद्धांतों पर कायम रहा, भले ही इसका मतलब महत्वपूर्ण पदों को छोड़ना ही क्यों न हो. किसी भी भाजपा वाले से पूछो! क्या वे ऐसा करेंगे?

सवाल : आखिरी बार पीएम मोदी या अमित शाह से कब बातचीत की? क्या अभी भी कैबिनेट में सेवारत किसी भाजपा सदस्य के संपर्क में हैं?

जवाब : अमित शाह से नहीं मिला. आखिरी बार पीएम मोदी से 2014 में मिला था, जब उन्हें 2014 में हजारीबाग में रेलवे लाइन के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया था. उन्होंने मेरा प्रस्ताव स्वीकार किया. आए भी. यह आखिरी बार था जब मैं उनसे मिला था या बातचीत की थी.
सवाल : टीएमसी पश्चिम बंगाल में 1990 के दशक से अपनी राजनीतिक हिंसा के लिए कुख्यात है. ममता बनर्जी के आने के बाद भी हिंसा जारी है. क्या आपको नहीं लगता कि यह भी लोकतंत्र पर हमला है?

जवाब : देश के किसी भी हिस्से में अगर ऐसी कोई हिंसा होती है तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिन इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि पश्चिम बंगाल में जब भी कोई हिंसा होती है तो सोशल मीडिया पर सनसनी फैल जाती है. इसके बीच हम सब यह भूल जाते हैं कि उत्तर प्रदेश या बिहार जैसे अन्य राज्यों में भी राजनीतिक हिंसा या हिंसा और भी खराब है, लेकिन इस पर सोशल मीडिया का ध्यान नहीं जाता है.

सवाल : ममता बनर्जी की ताजा टिप्पणी 'पीड़िता का वास्तव में दुष्कर्म हुआ था या प्रेम प्रसंग था' क्या आपको नहीं लगता कि इस बयान से पीड़िता के परिजनों की भावनाओं को ठेस पहुंची होगी?

जवाब : उन्होंने जो कहा हम सभी जानते हैं, जल्दबाजी में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचें. सीबीआई मामले की जांच कर रही है. अधिकारियों को जांच करने दें, वे मामले का फैसला करेंगे.
सवाल : नागरिक समाज समूह 'द कंसर्नड सिटिजन्स ग्रुप' ने आपके नेतृत्व में हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि कश्मीर फाइल्स के समर्थन ने जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यकों और मुख्यधारा के राजनेताओं को खतरे में डाल दिया है. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से घाटी में माहौल खराब हो गया है...तो उपाय क्या है?

जवाब : कश्मीरियों के दिलों में घोर आक्रोश है. भारत सरकार जिस तरह से उनके साथ व्यवहार कर रही है वह बेहद चिंताजनक है. एक आख्यान है जिसे अब सामने रखा जा रहा है कि वहां सब कुछ सामान्य है और पर्यटक भारी संख्या में आ रहे हैं. लेकिन मुझे बताओ, कश्मीर के लोगों को इन पर्यटकों के साथ समस्या क्यों होगी. उन्हीं की वजह से वे रोटी कमा रहे हैं. लेकिन क्या हमें जीने के लिए सिर्फ रोटी और मक्खन की जरूरत है? जिस शब्द का पीएम मोदी ने जिक्र किया कि 'दिल की दूरी और दिल्ली से दूरी' (Dil ke doori aur Delhi se Doori) को कम किया जाना चाहिए. उन्होंने इसका अर्थ समझे बिना ही एक शब्द गढ़ा था. प्रधानमंत्री मोदी सोचते हैं कि उन्हें सब कुछ पता है, लेकिन हकीकत ये है कि कश्मीर को लोग आज भी गहरे दुख में हैं.

सवाल : रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में भारत की विदेश नीति पर आपकी क्या राय?

जवाब : विदेश नीति आमतौर पर यथार्थवाद, राष्ट्रीय और सामरिक हितों पर काम करती है और इसमें नैतिक सिद्धांतों की बहुत कम गुंजाइश होती है, लेकिन इस मामले में जब भारत और रूस के बीच बहुत सौहार्दपूर्ण संबंध हैं, भारत को शुरुआती चरण में रूसी पक्ष से बात करनी चाहिए थी. हमें कम से कम उनके कार्यों की निंदा करनी चाहिए या एक मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते थे जैसा कि तुर्की और इज़राइल ने किया था. एक विदेश मंत्री के रूप में मेरे कार्यकाल के दौरान 2003 में संसद ने सर्वसम्मति से इराक पर अमेरिकी आक्रमण की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था. इसके बाद, मैंने कहा था कि भारत और अमेरिका के बीच भले ही मतभेद हों लेकिन हमारे संबंध जारी रहने चाहिए और वह एक अच्छा दृष्टिकोण था. पंडित नेहरू ने विदेश नीति का एक बहुत अच्छा संतुलन स्थापित किया था जिसने नैतिक सिद्धांतों को भी महत्व दिया था. इस रूस-यूक्रेन युद्ध में हमें वह दृष्टिकोण अपनाना चाहिए था लेकिन इसके विपरीत, हम तटस्थ रहने का सिर्फ दिखावा कर रहे हैं.

सवाल : पीएम मोदी और पूर्व पीएम चंद्रशेखर के बीच कोई समानता?

जवाब : नहीं, बिल्कुल नहीं. दाढ़ी की सिर्फ एक समानता है और कुछ नहीं.
सवाल : पीएम मोदी और बीजेपी आपसे बात करने को लेकर इतने अनिच्छुक क्यों हैं?

जवाब : वे मुझसे डरते हैं. जब कोई व्यक्ति सोचता है कि वह सब कुछ जानता है और वह सब कुछ समझता है, तो उसे अपने साथ किसी की आवश्यकता नहीं है. यहां ऐसा ही है. मुझे पार्टी नहीं नहीं निकाला, बल्कि मैं ही था जो अपने सिद्धांतों पर कायम रहा और पार्टी से इस्तीफा दे दिया.

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