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मंडल कमीशन के गठन से लेकर लागू होने तक की पूरी कहानी

भारत में मंडल आयोग को लागू होने के तीस वर्ष पूरे हो गए हैं. इस आयोग का गठन देश में पिछड़े तबके की सामाजिक बदहाली को दूर करने और बराबरी में खड़े होने के लिए किया गया था. आइए जानते हैं मंडल आयोग की मांग से लेकर लागू होने तक की कहानी...

thirty Years of Mandal commission
मंडल आयोग
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Published : Aug 11, 2020, 10:11 AM IST

हैदराबाद : मंडल आयोग ने भारत की सियासत का नक्शा हमेशा के लिए बदल दिया था. संविधान के लागू होने के बाद पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति/ जनजाति पर कई प्रकार के प्रश्न उठे. जिसके बाद 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का एलान संसद में किया. मंडल आयोग की सिफारिश के मुताबिक पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरी में 27 फीसदी आरक्षण देने की बात कही गई. आइए जानते है मंडल आयोग के मांग से लेकर इसके लागू होने तक की पूरी कहानी.

सात अगस्त 1990 को वीपी सिंह ने घोषणा की कि सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को स्वीकरा कर लिया है.

मंडल आयोग का गठन

01.01.1979 : एक जनवरी, 1979 को मोरारजी देसाई सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल को द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग का प्रमुख चुना गया.

31.12.1980 : बीपी मंडल की अध्यक्षता वाले मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. जिसमें उन्होंने सरकारी नौकरियों और शिक्षित संस्थानों में निचली जातियों के सदस्यों के लिए आरक्षण की सिफारिश की थी.

रिपोर्ट की सुध नहीं ली गई

इस रिपोर्ट में 11 संकेतकों का उपयोग करते हुए सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक आयोग ने 3,743 विभिन्न जातियों, समुदायों की पहचान और अन्य पिछड़ वर्ग के सदस्यों के रूप में की थी.

यह अनुमान लगाया गया है कि ओबीसी श्रेणी में कुल आबादी का 52 प्रतिशत शामिल है.

यह पिछड़ा वर्ग पर गठित पहला आयोग नहीं था

1950 में जब भारत का संविधान लागू हुआ था, तब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रश्न पहले से ही तय था, लेकिन पिछड़े वर्गों से क्या मतलब है और इस श्रेणी में किसे शामिल किया जाना चाहिए यह सवाल दशकों से विवादों में घिर रहे हुए थे.

जनवरी 1953 में सरकार ने समाज सुधारक काका कालेलकर की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया था.

आयोग ने मार्च 1955 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें 2,399 पिछड़ी जातियों या समुदायों की सूचीबद्ध किया गया. जिसमें से 837 को 'सबसे पिछड़े' के रूप में वर्गीकृत किया गया था, लेकिन रिपोर्ट को कभी लागू नहीं किया गया.

रिपोर्ट और बाद के घटनाक्रम की स्वीकृति

07.08.1990 : वीपी सिंह सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को स्वीकर किया और घोषणा की कि वह आरक्षण योजना को लागू करेगी, जिसके तहत अन्य पिछड़ा वर्ग के सदस्यों को 27 प्रतिशत नौकरियां दी जाएंगी.

15.08.1990 : तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की याद में घोषणा की कि सरकार ने हाल ही में सरकारी और सार्वजनिक श्रेत्र में नौकरियों में पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने का निर्णय लिया गया है.

मंडल कमीशन आंदोलन पर विरोध
मंडल आयोग के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली के देशबंधु कॉलेज के राजीव गोस्वामी ने खुद को आग लगा ली. इससे पूरे उत्तर भारत में हिंसक विरोध प्रदर्शन और घटनाएं होती रहीं.

मंडल कमीशन पर सुप्रीम कोर्ट

सर्वोच्च न्यायालय ने मंडल आयोग की सिफारिशों को बरकरार रखा, यह 16 नवंबर 1992 को इंद्रा साहनी बनाम संघ के मामले में एक निर्णय दिया गया, जबकि सामाजिक रूप से उन्नत व्यक्तियों, वर्गों के बहिष्कार के लिए ओबीसी के लिए 27% आरक्षण को बरकरार रखा गया. ओबीसी और सरकार को इस क्रीमी लेयर की पहचान के लिए मानदंड विकसित करने का निर्देश दिया गया.

सितंबर 1993 में केंद्र और राज्य सरकारों के सभी मंत्रियों के विभागों के बीच सिफारिशों को स्वीकर कर लिया गया और प्रसारित किया गया. इशमें ओबीसी समुदायों के लिए आरक्षण लाया गया था.

केंद्र सरकार के संस्थानों में ओबीसी आरक्षण के लिए सिफारिश अंततह 1992 में लागू की गई थी, जबकि शिक्षा कोटा 2006 में लागू हुआ था.

ओबीसी कल्याण पर 2019 की संसदीय पैनल की रिपोर्ट

ओबीसी के कल्याण पर एक संसदीय पैनल ने फरवरी 2019 की अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया था कि 1997 के बाद से आय मानदंडों के चार संशोधनों के बावजूद, ओबीसी के पक्ष में आरक्षित 27 प्रतिशत रिक्त पदों को नहीं भरा जा रहा था.

समिति ने कहा कि एक मार्च 2016 को केंद्र सरकार के पदों और सेवाओं में ओबीसी के प्रतिनिधित्व के संबंध में 78 मंत्रालयों और विभागों से प्राप्त आंकड़े केंद्र सरकार के मंत्रालयों में खराब ओबीसी अधिभोग स्तरों को दर्शाते हैं.

अक्टूबर 2017 में नरेंद्र मोदी सरकार ने सेवानिवृत्त दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी। रोहिणी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया.

रोहिणी आयोग प्रमुख निष्कर्ष

ओबीसी में 6,000 जातियों और समुदायों में से, केवल 40 ऐसे समुदायों ने केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और सिविल सेवाओं में भर्ती के लिए आरक्षण लाभ का 50 प्रतिशत प्राप्त किया था.

पैनल ने आगे पाया कि 20 प्रतिशत से अधिक ओबीसी समुदायों को 2014 से 2018 तक लाभ देने के लिए कोटा नहीं मिला.

हैदराबाद : मंडल आयोग ने भारत की सियासत का नक्शा हमेशा के लिए बदल दिया था. संविधान के लागू होने के बाद पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति/ जनजाति पर कई प्रकार के प्रश्न उठे. जिसके बाद 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का एलान संसद में किया. मंडल आयोग की सिफारिश के मुताबिक पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरी में 27 फीसदी आरक्षण देने की बात कही गई. आइए जानते है मंडल आयोग के मांग से लेकर इसके लागू होने तक की पूरी कहानी.

सात अगस्त 1990 को वीपी सिंह ने घोषणा की कि सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को स्वीकरा कर लिया है.

मंडल आयोग का गठन

01.01.1979 : एक जनवरी, 1979 को मोरारजी देसाई सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल को द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग का प्रमुख चुना गया.

31.12.1980 : बीपी मंडल की अध्यक्षता वाले मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. जिसमें उन्होंने सरकारी नौकरियों और शिक्षित संस्थानों में निचली जातियों के सदस्यों के लिए आरक्षण की सिफारिश की थी.

रिपोर्ट की सुध नहीं ली गई

इस रिपोर्ट में 11 संकेतकों का उपयोग करते हुए सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक आयोग ने 3,743 विभिन्न जातियों, समुदायों की पहचान और अन्य पिछड़ वर्ग के सदस्यों के रूप में की थी.

यह अनुमान लगाया गया है कि ओबीसी श्रेणी में कुल आबादी का 52 प्रतिशत शामिल है.

यह पिछड़ा वर्ग पर गठित पहला आयोग नहीं था

1950 में जब भारत का संविधान लागू हुआ था, तब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रश्न पहले से ही तय था, लेकिन पिछड़े वर्गों से क्या मतलब है और इस श्रेणी में किसे शामिल किया जाना चाहिए यह सवाल दशकों से विवादों में घिर रहे हुए थे.

जनवरी 1953 में सरकार ने समाज सुधारक काका कालेलकर की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया था.

आयोग ने मार्च 1955 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें 2,399 पिछड़ी जातियों या समुदायों की सूचीबद्ध किया गया. जिसमें से 837 को 'सबसे पिछड़े' के रूप में वर्गीकृत किया गया था, लेकिन रिपोर्ट को कभी लागू नहीं किया गया.

रिपोर्ट और बाद के घटनाक्रम की स्वीकृति

07.08.1990 : वीपी सिंह सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को स्वीकर किया और घोषणा की कि वह आरक्षण योजना को लागू करेगी, जिसके तहत अन्य पिछड़ा वर्ग के सदस्यों को 27 प्रतिशत नौकरियां दी जाएंगी.

15.08.1990 : तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की याद में घोषणा की कि सरकार ने हाल ही में सरकारी और सार्वजनिक श्रेत्र में नौकरियों में पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने का निर्णय लिया गया है.

मंडल कमीशन आंदोलन पर विरोध
मंडल आयोग के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली के देशबंधु कॉलेज के राजीव गोस्वामी ने खुद को आग लगा ली. इससे पूरे उत्तर भारत में हिंसक विरोध प्रदर्शन और घटनाएं होती रहीं.

मंडल कमीशन पर सुप्रीम कोर्ट

सर्वोच्च न्यायालय ने मंडल आयोग की सिफारिशों को बरकरार रखा, यह 16 नवंबर 1992 को इंद्रा साहनी बनाम संघ के मामले में एक निर्णय दिया गया, जबकि सामाजिक रूप से उन्नत व्यक्तियों, वर्गों के बहिष्कार के लिए ओबीसी के लिए 27% आरक्षण को बरकरार रखा गया. ओबीसी और सरकार को इस क्रीमी लेयर की पहचान के लिए मानदंड विकसित करने का निर्देश दिया गया.

सितंबर 1993 में केंद्र और राज्य सरकारों के सभी मंत्रियों के विभागों के बीच सिफारिशों को स्वीकर कर लिया गया और प्रसारित किया गया. इशमें ओबीसी समुदायों के लिए आरक्षण लाया गया था.

केंद्र सरकार के संस्थानों में ओबीसी आरक्षण के लिए सिफारिश अंततह 1992 में लागू की गई थी, जबकि शिक्षा कोटा 2006 में लागू हुआ था.

ओबीसी कल्याण पर 2019 की संसदीय पैनल की रिपोर्ट

ओबीसी के कल्याण पर एक संसदीय पैनल ने फरवरी 2019 की अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया था कि 1997 के बाद से आय मानदंडों के चार संशोधनों के बावजूद, ओबीसी के पक्ष में आरक्षित 27 प्रतिशत रिक्त पदों को नहीं भरा जा रहा था.

समिति ने कहा कि एक मार्च 2016 को केंद्र सरकार के पदों और सेवाओं में ओबीसी के प्रतिनिधित्व के संबंध में 78 मंत्रालयों और विभागों से प्राप्त आंकड़े केंद्र सरकार के मंत्रालयों में खराब ओबीसी अधिभोग स्तरों को दर्शाते हैं.

अक्टूबर 2017 में नरेंद्र मोदी सरकार ने सेवानिवृत्त दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी। रोहिणी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया.

रोहिणी आयोग प्रमुख निष्कर्ष

ओबीसी में 6,000 जातियों और समुदायों में से, केवल 40 ऐसे समुदायों ने केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और सिविल सेवाओं में भर्ती के लिए आरक्षण लाभ का 50 प्रतिशत प्राप्त किया था.

पैनल ने आगे पाया कि 20 प्रतिशत से अधिक ओबीसी समुदायों को 2014 से 2018 तक लाभ देने के लिए कोटा नहीं मिला.

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