ETV Bharat / state

'मैं अपने राम को रिझाऊं'...कुमाऊं की बैठकी होली, नई पीढ़ी समझ रही 'रागों' का 'राज' - KUMAON BAITHAKI HOLI

कुमाऊं की प्रसिद्ध बैठकी होली का दौर शुरू हो गया है. बैठकी होली का इतिहास चंद वंश से जुड़ा माना जाता है.

KUMAON BAITHAKI HOLI
कुमाऊं की बैठकी होली (PHOTO- ETV BHARAT)
author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 24, 2025, 11:51 AM IST

Updated : Jan 24, 2025, 1:57 PM IST

रामनगर (कैलाश सुयाल): उत्तराखंड के कुमाऊं में इन दिनों बैठकी होली का दौर चल रहा है. उत्तराखंड के कुमाऊं में होली गायन की परंपरा ऐतिहासिक है. पर्वतीय क्षेत्रों में होली गीत गायन का इतिहास 1000 साल से भी अधिक पुराना है. ऐसी मान्यता है कि कुमाऊं में होली गीतों के गायन की शुरुआत सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से हुई.

कुमाऊं में बैठकी होली का दौर: हर साल बैठकी होली पौष महीने से शुरू होती है. होली गायन की खुशबू बसंत पंचमी के दिन तक महकती है. कुमाऊं में पौष मास से शुरू हुई बैठकी होली के गीत इन दिनों रामनगर के साथ ही नैनीताल, अल्मोड़ा और हल्द्वानी आदि शहरों में गूंज रहे हैं. कुमाऊंनी होली पूरे देश दुनिया में अपनी खास पहचान रखते हैं. भारी ठंड के बीच कुमाऊं मंडल के अलग-अलग जगहों में इन रातों में निर्वाण का होली गायन चल रहा है. इन्हें विभिन्न रागों में गाया जाता है.

बैठकी होली के गीतों से गूंजा रामनगर (VIDEO- ETV Bharat)

चंद वंश के समय की मानी जाती है बैठकी होली: मान्यता है कि कुमाऊं में बैठकी होली की परंपरा 15वीं शताब्दी से शुरू हुई. चंद वंश के शासनकाल से होली गायन की परंपरा शुरू हुई. काली कुमाऊं, गुमदेश व सुई से शुरू होकर यह धीरे-धीरे सभी जगह फैल गई. आज पूरे कुमाऊं पर इसका रंग चढ़ गया है. होली गायन गणेश पूजन से शुरू होकर पशुपतिनाथ शिव की आराधना के साथ-साथ ब्रज के राधाकृष्ण की हंसी-ठिठोली से सराबोर होता है. शास्त्रीय रागों पर आधारित बैठकी होली घरों और मंदिरों में गाई जाती है.

Kumaon Baithaki Holi
रामनगर में बैठकी होली का दौर (PHOTO- ETV BHARAT)

रागों पर आधारित है बैठकी होली: बैठकी होली में विभिन्न रागों में होली गायन होता. "भव भंजन गुन गाऊं, मैं अपने राम को रिझाऊं" से होली गायन की शुरुआत और "क्या जिन्दगी का ठिकाना, फिरते मन क्यों रे भुलाना, कहां गये भीम कहां दुर्योधन, कहां पार्थ बलवाना, "गणपति को भेज लीजे, रसिक वह तो आदि कहावे" का गायन किया जाता. होली गायन में बड़ी संख्या में बुजुर्ग, युवा और बच्चे शामिल होते हैं.

रामनगर में बैठक होली गा रहे बुजुर्ग और संगीत विद्यालय संचालक हीरा बल्लभ पाठक कहते हैं कि-

यह होली खड़ी होली से भिन्न है. इसमें शुरू से आखिर तक भक्ति संगीत का रस होता है. गीत चाहे श्रृंगार रस से लबालब हों और या ना हों राधा कृष्ण से संबंधित होते हैं. पौष (दिसंबर) के पहले रविवार से जब बैठकी होली गायन का दौर शुरू होता है, तो सूर्य की आराधना की जाती है. दरअसल सूर्य का एक नाम भी पुषा भी है तो इसलिए सूर्य की आराधना की जाती है. इन दिनों सूर्य कमजोर होता है, उसको प्रबल बनाने के लिए सूर्य की उपासना का ज्यादा महत्व है. जैसे रामलीला की तालीम होती है, उसी प्रकार से बसंत पंचमी तक यह सिलसिला चलता है. लोग पुरानी चीज याद करते हैं. भूली बिसरी याद आती है और एक दूसरे से सुनकर यह गायन का दौर शुरू होता है. बसंत पंचमी तक यह रिहर्सल चलता है. बसंत पंचमी से होली अपनी पूरे शबाब में होती है.

-हीरा बल्लभ पाठक, होली गायक-

कैसे चलता है बैठकी होली का दौर: इस वर्ष 15 दिसंबर 2024 से शुरू होकर बसंत पंचमी के बाद तक बैठकी होली का दौर चलेगा. होली गायक कैलाश चंद्र त्रिपाठी बैठकी होली को विस्तार से समझाते हुए बताते हैं कि, इसमें भक्ति गीत, भजन, प्रभु के भक्ति राग आदि गाए जाते हैं. जो कविता गायन होता है, वो निर्वाण संबंधित होती है. होली के टीके के दिन तक यह कार्यक्रम चलेगा. बैठकी होलियां विष्णुपति होलियां कहलाती हैं, इसमें भक्ति गीत का गायन होता है. उन्होंने बताया कि बैठकी होली का उद्देश्य यह रहा होगा कि होली के राग ताल गुनगुना सकें और जो नई पीढ़ी है, वह उसको सीखे. इससे ये परंपरा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित हो यही हमारा उद्देश्य है.

Kumaon Baithaki Holi
शास्त्रीय रागों पर गाए जाते हैं बैठकी होली गीत (PHOTO- ETV BHARAT)

आने वाली पीढ़ी सीखे: होली गायक शेखर चंद जोशी कहते हैं कि उद्देश्य यह है कि आने वाली पीढ़ी बैठकी होली में बैठे और इसको सीखे. वहीं पूर्व शिक्षक विपिन कुमार पंत कहते हैं कि चंद वंश के समय से होली गायन का यह दौर शुरू हुआ था. यह शास्त्रीय संगीत पर आधारित है. राग भैरवी और अलग-अलग रागों का मिश्रण है. इस समय जाड़ों में लोग आग जलाकर एक जगह इकट्ठा होकर इस बैठकीय होली का लुत्फ उठाते हैं.

ये भी पढ़ें: कुमाऊं मंडल में बैठकी होली शुरू, होल्यार जबरदस्त राग गाकर लूट रहे महफिल

रामनगर (कैलाश सुयाल): उत्तराखंड के कुमाऊं में इन दिनों बैठकी होली का दौर चल रहा है. उत्तराखंड के कुमाऊं में होली गायन की परंपरा ऐतिहासिक है. पर्वतीय क्षेत्रों में होली गीत गायन का इतिहास 1000 साल से भी अधिक पुराना है. ऐसी मान्यता है कि कुमाऊं में होली गीतों के गायन की शुरुआत सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से हुई.

कुमाऊं में बैठकी होली का दौर: हर साल बैठकी होली पौष महीने से शुरू होती है. होली गायन की खुशबू बसंत पंचमी के दिन तक महकती है. कुमाऊं में पौष मास से शुरू हुई बैठकी होली के गीत इन दिनों रामनगर के साथ ही नैनीताल, अल्मोड़ा और हल्द्वानी आदि शहरों में गूंज रहे हैं. कुमाऊंनी होली पूरे देश दुनिया में अपनी खास पहचान रखते हैं. भारी ठंड के बीच कुमाऊं मंडल के अलग-अलग जगहों में इन रातों में निर्वाण का होली गायन चल रहा है. इन्हें विभिन्न रागों में गाया जाता है.

बैठकी होली के गीतों से गूंजा रामनगर (VIDEO- ETV Bharat)

चंद वंश के समय की मानी जाती है बैठकी होली: मान्यता है कि कुमाऊं में बैठकी होली की परंपरा 15वीं शताब्दी से शुरू हुई. चंद वंश के शासनकाल से होली गायन की परंपरा शुरू हुई. काली कुमाऊं, गुमदेश व सुई से शुरू होकर यह धीरे-धीरे सभी जगह फैल गई. आज पूरे कुमाऊं पर इसका रंग चढ़ गया है. होली गायन गणेश पूजन से शुरू होकर पशुपतिनाथ शिव की आराधना के साथ-साथ ब्रज के राधाकृष्ण की हंसी-ठिठोली से सराबोर होता है. शास्त्रीय रागों पर आधारित बैठकी होली घरों और मंदिरों में गाई जाती है.

Kumaon Baithaki Holi
रामनगर में बैठकी होली का दौर (PHOTO- ETV BHARAT)

रागों पर आधारित है बैठकी होली: बैठकी होली में विभिन्न रागों में होली गायन होता. "भव भंजन गुन गाऊं, मैं अपने राम को रिझाऊं" से होली गायन की शुरुआत और "क्या जिन्दगी का ठिकाना, फिरते मन क्यों रे भुलाना, कहां गये भीम कहां दुर्योधन, कहां पार्थ बलवाना, "गणपति को भेज लीजे, रसिक वह तो आदि कहावे" का गायन किया जाता. होली गायन में बड़ी संख्या में बुजुर्ग, युवा और बच्चे शामिल होते हैं.

रामनगर में बैठक होली गा रहे बुजुर्ग और संगीत विद्यालय संचालक हीरा बल्लभ पाठक कहते हैं कि-

यह होली खड़ी होली से भिन्न है. इसमें शुरू से आखिर तक भक्ति संगीत का रस होता है. गीत चाहे श्रृंगार रस से लबालब हों और या ना हों राधा कृष्ण से संबंधित होते हैं. पौष (दिसंबर) के पहले रविवार से जब बैठकी होली गायन का दौर शुरू होता है, तो सूर्य की आराधना की जाती है. दरअसल सूर्य का एक नाम भी पुषा भी है तो इसलिए सूर्य की आराधना की जाती है. इन दिनों सूर्य कमजोर होता है, उसको प्रबल बनाने के लिए सूर्य की उपासना का ज्यादा महत्व है. जैसे रामलीला की तालीम होती है, उसी प्रकार से बसंत पंचमी तक यह सिलसिला चलता है. लोग पुरानी चीज याद करते हैं. भूली बिसरी याद आती है और एक दूसरे से सुनकर यह गायन का दौर शुरू होता है. बसंत पंचमी तक यह रिहर्सल चलता है. बसंत पंचमी से होली अपनी पूरे शबाब में होती है.

-हीरा बल्लभ पाठक, होली गायक-

कैसे चलता है बैठकी होली का दौर: इस वर्ष 15 दिसंबर 2024 से शुरू होकर बसंत पंचमी के बाद तक बैठकी होली का दौर चलेगा. होली गायक कैलाश चंद्र त्रिपाठी बैठकी होली को विस्तार से समझाते हुए बताते हैं कि, इसमें भक्ति गीत, भजन, प्रभु के भक्ति राग आदि गाए जाते हैं. जो कविता गायन होता है, वो निर्वाण संबंधित होती है. होली के टीके के दिन तक यह कार्यक्रम चलेगा. बैठकी होलियां विष्णुपति होलियां कहलाती हैं, इसमें भक्ति गीत का गायन होता है. उन्होंने बताया कि बैठकी होली का उद्देश्य यह रहा होगा कि होली के राग ताल गुनगुना सकें और जो नई पीढ़ी है, वह उसको सीखे. इससे ये परंपरा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित हो यही हमारा उद्देश्य है.

Kumaon Baithaki Holi
शास्त्रीय रागों पर गाए जाते हैं बैठकी होली गीत (PHOTO- ETV BHARAT)

आने वाली पीढ़ी सीखे: होली गायक शेखर चंद जोशी कहते हैं कि उद्देश्य यह है कि आने वाली पीढ़ी बैठकी होली में बैठे और इसको सीखे. वहीं पूर्व शिक्षक विपिन कुमार पंत कहते हैं कि चंद वंश के समय से होली गायन का यह दौर शुरू हुआ था. यह शास्त्रीय संगीत पर आधारित है. राग भैरवी और अलग-अलग रागों का मिश्रण है. इस समय जाड़ों में लोग आग जलाकर एक जगह इकट्ठा होकर इस बैठकीय होली का लुत्फ उठाते हैं.

ये भी पढ़ें: कुमाऊं मंडल में बैठकी होली शुरू, होल्यार जबरदस्त राग गाकर लूट रहे महफिल

Last Updated : Jan 24, 2025, 1:57 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.