जोधपुर. घरेलू चिड़िया जिसे हम गौरेया भी कहते हैं, कभी घर के खुले आंगन, मेहराब और मुख्य द्वारों के पास बने खानों में बैठी नजर आती थी. घोसलें भी घरों में ही बनाती थी. सुबह शाम इनकी चहचहाट ध्यान खींचती थी, लेकिन आज के शहरीकरण के दौर में यह नजारा अब जैसे गायब ही हो गया. शहरों के परम्परागत पुराने स्थलों पर या गावों में यह सब कुछ दिखता है. इस घरेलू चिड़िया के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण चीज थी वो था मानव का घर, उसमें रहने वाले लोग. न वो घर अब रहे, और न ही वो लोग, जो पक्षियों के बारे में सोचते थे.
हर सप्ताह की जाती है स्पैरो वॉक : प्रदेश के जाने माने पक्षी व्यवहार विशेषज्ञ शरद पुरोहित बताते हैं कि जब से हमारा कल्चर बदला है, उसके बाद से स्पैरो की संख्या घटने लगी है. शहरों में बहुत अधिक कमी आई है. हम यह कह सकते हैं कि इनकी संख्या घट रही है, लेकिन विलुप्त नहीं है. शहरों में फैलते सीमेंट के जंगल सबसे बड़ी वजह है. जोधपुर में पुरोहित अपनी संस्था यूथ अरण्य के माध्यम से गौरेया के संरक्षण पर काम कर रहे हैं. वे बताते हैं कि हम जनवरी में घरेलू चिड़िया को लेकर जागरूकता अभियान शुरू करते हैं. इसके तहत हर सप्ताह स्पैरो वॉक की जाती है, जिसमें बच्चे बड़े बूढ़े सब शामिल होते हैं. जोधपुर के भीतरी शहर में कई जगह ऐसी है, जहां ये काफी संख्या में नजर आती हैं. वहां इनके लिए दाना पानी का इंतजाम किया जाता है.
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फिर से मिले वो दादी-नानी जैसा वातावरण : पुरोहित का कहना है कि इस पक्षी के लिए थोड़ा बदलाव हमें अपने आप में करना होगा. पुरानी व्यवस्था में घर में पक्षी का हिस्सा होता था. पुराने घर की मेहराब में चिड़िया के रहने लायक जगह छोड़ी जाती थी, भोजन करते हुए रोटी का टूकड़ा इनको डाला जाता था. घर में धान आने पर उसे साफ करने के बाद बचे हुए दाने को चिड़िया के लिए रखा जाता था. इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण गली-मोहल्लों में पेड़ ज्यादा होते थे, जो पक्षियों के लिए जरूरी थे. इस घरेलू चिड़िया को फिर से दादी-नानी के समय वाला वातावरण देने के लिए प्रयास करने होंगे, जिससे यह हमारे बीच रह सके. यूथ अरण्य संस्था के सदस्य छुट्टी के दिनों में बच्चों को इस घरेलू चिड़िया के बारे में इकट्ठा करके बताते हैं. संस्था का एक बैंड भी है, जो बच्चों को पुरानी दादी नानी के चिरेया से जुड़े गाने गा कर इनके संरक्षण के लिए प्रोत्साहित करते हैं.
तीन हजार घर बांटे, काम जारी : शरद पुरोहित बताते हैं कि हमने चिड़िया के लिए घर बनाए हैं, वह उनकी आवश्यकता के अनुसार तैयार किए गए हैं. मुंबई में दो बर्ड हाउस भी लगाए गए. वहां नेस्टिंग शुरू होने के बाद वहां भी सैकड़ों घर भेजे गए. पुरोहित का कहना है कि अब तक हम करीब 3000 घरों में यह निशुल्क चिड़िया के घर दे चुके हैं. इसके लिए शहर के कई लोग हमारा सहयोग कर रहे हैं. मेट्रो सिटी में सबसे ज्यादा कमीस्टेट इंडियन बर्डस की रिपोर्ट के अनुसार शहरों में सबसे ज्यादा छह मेट्रो सिटी बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में इनकी संख्या में कमी देखी गई है. इसके संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए दिल्ली सरकार ने 2012 और बिहार सरकार ने 2013 में गौरैया को राजकीय पक्षी भी घोषित किया है.