कोटा : रेल कर्मचारियों के संगठन को मान्यता को लेकर 4 और 5 दिसंबर को चुनाव होने हैं. वहीं, रनिंग कर्मचारियों के लिए 6 दिसंबर की तारीख भी तय की गई है. इसके लिए सभी यूनियन ने कमर कस ली है. कोटा में लगातार यूनियन प्रचार कर रही है और अपने पक्ष में ज्यादा से ज्यादा मतदान के लिए कार्मिकों से मुलाकात कर रही है. पूरे जोन में ही इस तरह से चुनाव का शोर छाया हुआ है. रेलवे ने इसी साल सभी कर्मचारियों के लिए नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) की जगह यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) लागू कर दी है. रेल कर्मचारी इससे खुश नहीं हैं और इसी को लेकर चुनाव में हर संगठन ओल्ड पेंशन स्कीम को ही मुद्दा बनाकर प्रचार में जुटी हुई है.
यूपीएस में एनपीएस से ज्यादा लाभ : वेस्ट सेंट्रल रेलवे एम्पलाइज यूनियन (WCREU) के मंडल सचिव मुकेश गालव का कहना है कि एनपीएस की जगह ओपीएस के लिए संघर्ष AIRF और WCREU ने शुरू किया था. इसके चलते ही यूपीएस के रूप में सफलता मिली है. यूपीएस में करीब 80 फीसदी तक लाभ मिलने लगा है, लेकिन हम पूरा ओपीएस की तरह 100 फीसदी लाभ दिलाएंगे. इसे सरकार से लड़ाई लड़ कर लिया जाएगा. यह संघर्ष यूपीएस को ओपीएस से भी बेहतर बनाने तक जारी रहेगा. साथ ही किसी भी सूरत में रेलवे में निजीकरण नहीं होने दिया जाएगा. कोरोना का 18 माह का बकाया डीए का भुगतान, 8वां वेतन आयोग, ट्रैक पर काम करने वाली सभी कैटेगरी को हार्ड शिप और रिस्क एलाउंस सहित कई मांग शामिल हैं.
मजदूर संगठन की तरह ही काम करेंगे : वेस्ट सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ की भी कैडर गठन और ओल्ड पेंशन स्कीम प्रमुख मांग है. मंडल अध्यक्ष एसके गुप्ता का कहना है कि कुछ कर्मचारियों का कहना है कि एनपीएस से भी ज्यादा खराब यूपीएस है. इसे बिल्कुल स्वीकार नहीं करेंगे. सचिव मोहम्मद खालिक ने कहा कि वह केवल मजदूर संगठन है. उनके यहां पर आने वाले रेलवे कार्मिकों की मदद करते हैं, जबकि अन्य संगठन व्यवसाय कारण की तरफ जा रहे हैं. शॉपिंग मॉल के अलावा बैंक व गैस एजेंसी खोल रहे हैं. साथ ही इन बैंकों में भी अपने ही परिवार के लोगों को नियुक्त किया जा रहा है.
रेलवे में निजीकरण और निगमीकरण का विरोध : वेस्ट-सेंट्रल रेलवे वर्कर्स यूनियन के संयोजक मोहन सिंह ने कहा कि पुरानी पेंशन के लिए उनका संघर्ष निरंतर जारी रहेगा. पुरानी पेंशन के लिए धोखा देने वाले मान्यता प्राप्त संगठनों के भरोसे नहीं रहकर कर्मचारियों को खुद संकल्पबद्ध होना पड़ेगा. तभी यह लड़ाई जीती जा सकती है. इस मामले में किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाएगा. कर्मचारियों के साथ मिलकर इस लड़ाई को मुकाम पर पहुंचाया जाएगा, क्योंकि कमजोर संगठन अक्सर दूसरों को अपनी ढाल बनाते हैं और अपने हितों की रक्षा के लिए दूसरों का सहारा लेते हैं. रेलवे में निजीकरण और निगमीकरण की प्रक्रिया चरम पर है, जिससे रेल कर्मचारियों के हितों पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है.
यूनियन ने ही लागू करवाई यूपीएस : अखिल भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बी. सुरेंद्रन का कहना है कि रेलवे बोर्ड में कोई भी बड़ा निर्णय मान्यता प्राप्त फेडरेशनों की सहमति के बिना नहीं होता है. ये फेडरेशन दोबारा से पुरानी पेंशन स्कीम के पक्ष में नहीं है. कर्मचारियों के लगातार बढ़ते दवाब के कारण यह नई योजना एकिकृत पेंशन स्कीम (यूपीएस) ले आए. अब कर्मचारियों ने इस योजना को भी पूरी तरह नकार दिया है. अब कुछ संगठनों ने यूपीएस पर अपनी सहमति देने के बाद भी कर्मचारियों के वोट के खातिर पुरानी पेंशन स्कीम का झंठा उठाया हुआ है. उन्होंने आंठवें वेतन आयोग के गठन के अलावा रिक्त पदों को भरने, ट्रैकमैटेनरों को समय पर पदोन्नति, दुर्घटनाएं रोकने के लिए रक्षक यंत्र दिलवाने, लंच के साथ आठ घंटे ड्यूटी व रेलवे आवासों की दशा सुधारने का भी का मुद्दा है.
इन चुनाव में पहले 6 यूनियन में मैदान में थी, लेकिन एक यूनियन अब हट गई है. ऐसे में पांच यूनियन के बीच में मुकाबला हो रहा है. वेस्ट सेंट्रल रेलवे में तीन दिनों में होने वाले मतदान में करीब 54 हजार कर्मचारी मतदान करेंगे. कोटा रेल मंडल में 15 हजार कार्मिक हैं. कोटा रेल मंडल में 27 बूथों पर मतदान किया जाना है, जिन पर रेलवे ने कर्मचारियों की ड्यूटी भी लगा दी है. दूसरी तरफ कर्मचारी संगठनों ने भी मतदान केंद्रों के बाहर कर्मचारी की मदद के लिए टेंट लगाकर अपने संगठन के पदाधिकारी को बैठाने की व्यवस्था कर दी है. इन चुनाव में वेस्ट सेंट्रल रेलवे एम्पलाइज यूनियन (WCREU) व वेस्ट सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ (WCRMS) पहले से मान्यता प्राप्त हैं. इसके अलावा पश्चिम मध्य रेलवे कर्मचारी परिषद (बीएमएस) (PMRKP), वेस्ट सेंट्रल रेलवे वर्कर्स यूनियन (WCRWU) व स्वतंत्र रेलवे बहुजन कर्मचारी यूनियन (SRBKU) मैदान में हैं.