जयपुर. जो बात हम कई पन्नों में बयां नहीं कर पाते वो बात कवि अपनी कविता की एक पंक्ति से कर देता है. इतिहास इस बात का गवाह है कि कविता से सत्ता हिल जाती है. फिर राजतंत्र के दौर में सिंहासन पर बैठे राजा हो या मौजूदा लोकतंत्र के हुक्मरान. इसलिए कवियों और उनके सृजन को सम्मानित करने लिए 21 मार्च को दुनिया भर में हिंदी विश्व कविता दिवस के रूप मनाया जाता है. आज विश्व कविता दिवस पर रू-ब-रू होते हैं ऐसे ही राजस्थान के युवा कवि सिद्धार्थ कुमार से जिन्होंने कविताओं के जरिये मौजूदा दौर के बारे बताया है.
विश्व कविता दिवस का इतिहास : कवियों और उनके सृजन को सम्मानित के लिए वर्ष 1999 में पेरिस में यूनेस्को के 30वें अधिवेशन में तय किया गया कि 21 मार्च को आधिकारिक रूप से हिंदी विश्व कविता दिवस के रूप में मनाया जाए. तब से लेकर आज तक हर साल 21 मार्च को बतौर विश्व कविता दिवस मनाया जाता है. इस दिन सभी के जीवन में कविता के महत्व और कविताओं के माध्यम से मानव को प्रेरित करना और कवियों को उनके योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है. इनके साथ कविता के माध्यम से लोगों को एकजुट कर शिक्षित करना और बदलने की क्षमता के बारे में जागरूकता फैलाना है.
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दृष्टि की जगह विषय दिए जाने लगे : राजस्थान के युवा गीतकार कवि सिद्धार्थ कुमार बताते हैं कि समस्या क्या है कि कवियों को विषय दिए जा रहे हैं, अन्यथा कवियों की दृष्टि होनी चाहिए जो किस तरीके से चीजों को देख सके. वो भी ऐसे दौर में जब संपादकों ने कलम तोड़ दी है जब बड़े-बड़े सेलिब्रिटी लोग अपने हित को देखकर चुप हो जा रहे हैं. ऐसे दौर में यदि किसी ने सच बोलने का काम है तो हम कवियों ने किया है, कवि सम्मेलन के मंचों ने किया है. सिद्धार्थ ने कहा कि जब राम नाम की धूम मच रही हो हर तरफ ऐसे दौर में भी एक अलग दृष्टि से चीजों को देखना हम सब कवियों की जिम्मेदारी है.
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कवियों का काम तोड़ना नहीं जोड़ना है : कवियों के विचारधारा में बांटने के सवाल पर सिद्धार्थ कहते हैं कि मुझे ऐसा लगता है कि हमारे राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा कि " बड़ी वह आत्मा जो बिना रोहित तन से निकलती है, बाद वह ज्ञान जिसे व्यर्थ की ना चिंता आती है. उन्होंने कहा कि बड़ा वह आदमी जो जिंदगी भर काम करता है, बड़ी वह कविता जो विश्व को सुंदर बनती है" तो कविता का काम तोड़ना नहीं होता कविता का काम जोड़ना होता है. भारतीय संस्कृति में क्या खूब कहा गया है "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:" अर्थात जहां नारी की पूजा की जाती है, उसका सम्मान किया जाता है वहां देवताओं का वास होता है. देश में जब रोज हमारी बहनों के साथ उत्पीड़न हो रहा हो, रोज महिलाओं के साथ बलात्कार जैसी स्थिति हो, तो कवि होने का युगधर्म में निभाते हुए चार पंक्तियां समझिये " सभ्यता के दायरों से किस जहां तक आ गए, हम सियासत में भी कैसे हुक्मरान तक आ गए. बेटियों की आंख से जब खून के आंसू बहे, सोचा थोड़ा कहां से हम कहां तक आ गए" हम सबको यह सोचने की जरूरत है और कवियों की कविताएं बर्फ की शीला के ऊपर अच्छी कलाकृति नहीं है, बल्कि वह तो किसी शीला के ऊपर उत्कीर्ण हुई वह शीला करती है जो बहुत ही अंधेरे समय में टॉर्च दिखाते हुए मानवता की हर पथिक को रास्ता दिखाएगी.