सरगुजा : सरगुजा में पहला मामला फरवरी महीने में सामने आया. जब जिले में महज 22 दिनों में 3 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाया. फरवरी के पहले ही 15 दिन में एक ही निजी स्कूल के 2 छात्राओं ने सुसाइड किया था. 7 फरवरी को स्कूल की 6वीं की छात्रा ने सुसाइड किया था.फिर 22 फरवरी को एक 8वीं की छात्रा ने भी सुसाइड किया.29 फरवरी को आदिवासी छात्रावास में एक 8वीं के छात्र ने आत्महत्या की थी. ये सिलसिला यहीं नही रुका हाल ही में 19 मई को जिले के लखनपुर थाना क्षेत्र के दर्रापारा में 10 वर्षीय किशोर ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली. बच्चे ने घर के पास रतनजोत के पेड़ में पुरानी साड़ी का फंदा बनाकर फांसी लगाई थी.
क्यों बच्चों में आत्महत्या की बढ़ रही मानसिकता : आखिर क्यों बच्चे इतना बड़ा कदम उठाते हैं.उनके दिमाग में ऐसी कौन सी चीज चलती है जिसके कारण वो आत्महत्या करते हैं. इस अजीब ट्रेंड की वजह क्या है, इससे बचने के क्या तरीके हैं और हमारी सरकार या सरकारी सिस्टम इस विषय पर क्या कर रहा है, ऐसे तमाम सवालों के जवाब के लिये हमने मेडिकल कालेज अस्पताल में मनोरोग विभाग के क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. सुमन से बातचीत की है.आईए जानते हैं उन्होंने इस बारे में क्या जानकारी दी है.
बच्चों में आत्महत्या का कारण : डॉ. सुमन कहते हैं " आज कल बच्चों में सुसाइडल टेंडेंसी बढ़ रही है, सुसाइड 2 वजह से होते है, पहला एक मानसिक रोग के कारण होता है जिसे डिप्रेशन बोलते हैं. सर्वे में बताया गया है को 90% सुसाइड डिप्रेशन की वजह से होते हैं. दूसरा कारण होता है इम्पलसिव बच्चों में या किशोरावस्था में अधिकतर सुसाइड करते हैं. वो इम्पलसिविटी के कारण होती है. इसमें बच्चे को कोई मानसिक रोग नही होता है, इसमे सहन शक्ति कम होने के कारण होता है, जैसे कोई डांट दिया, या घर में कोई मार दिया, दोस्तों से झगड़ा हो गया, गर्लफ्रेंड छोड़ दी, परीक्षा में फेल हो गया या टीचर ने डांट दिया तो इस तरह की छोटी चीजों से वो आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं"
कैसे सुसाइडल सोच से बच्चों को निकालें : डॉ सुमन के मुताबिक "सबसे पहले बच्चों में सहन शक्ति बढ़ाना पड़ेगा, स्ट्रेस मैनेजमेंट सीखना पड़ेगा, जैसे रोजाना जीवन में आप के तनाव आता है तक कैसे हम उसे सहजता से लेते हुए आगे बढ़े. मायने रखता है कि आप स्ट्रेस को कैसे लेते हैं. बहुत विचलित हो जाते हैं या ईजी लेते हैं. इसके लिये आप अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र, जिला अस्पताल या मेडिकल कालेज में देखिये मनोरोग विभाग में काउंसलिंग की सुविधा होती है. आप वहां सम्पर्क करें. भारत सरकार ने इसके लिये हेल्पलाइन नंबर जारी किया हुआ है, टेली मानस के नंबर 14416 ,18008914416 - इन दो नम्बरों पर आप सम्पर्क कर सकते हैं"
''बच्चे मोबाइल एडिक्ट हो रहे हैं, जब से कोरोना आया है तब से बच्चों में मोबाइल की लत बढ़ी है. उससे उन्हें नए नए तरीके सीखने को मिल रहे हैं, वो सोचते हैं कि जो वो कर रहे है वो अच्छा कर रहे हैं. पर बच्चों में इतनी समझ नही होती है. इनकी एक छोटी सी नादानी से बड़ा नुकसान हो जाता है. छत्तीसगढ़ शासन सुसाइड प्रीवेंशन गेट कीपर ट्रेनिंग स्कूल में बच्चों को दे रही है. ताकि बच्चे ही अगर किसी दूसरे बच्चे को देखें की कुछ उस तरह की एक्टिविटी हो रही है जो कहीं सुसाइड ना कर ले उसके लिए हमे गेटकीपर टाइप सिखाया जाता है"- डॉ सुमन,क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट
बच्चों के साथ कैसा हो बर्ताव : आज कल पैरेंट्स या टीचर कल बच्चों से फ्रेंडली बिहेव करना चाहिए. हर कोई अपनी लाइफ में व्यस्त है. आप घर आते हैं अपने कमरे में चले जाते हैं. बच्चा अपने कमरे में रहता है, ऐसा नहीं होना चाहिये. आप बच्चे को समय दीजिये उससे बात करिये. क्योंकि ऐसे में जब बच्चे के साथ कुछ होता है तो उसको लगता है ऐसा सिर्फ उसके साथ हो रहा है. वो उस बात को जर्नलाइज नहीं कर पाता है. उन्हें समय दें, वीकेन्ड में बाहर ले जाए, दोस्तों रिश्तेदारों से मिलवाएं, मोहल्ले में होने वाले आयोजनों में शामिल होने दें"
पैरेंट्स वार्निंग साइन को समझें : वार्निग साइन समझना बहुत जरूरी है चाहे वो घर में रहे या स्कूल में रहे. बच्चों में अकेला रहने की प्रवत्ति आने लगती है. बच्चे की एकाग्रता कम होती है, पढ़ाई में मन नहीं लगता, फेल होने लगते हैं, वो इस विषय में बातें करते है कि उसे सुसाइड कर लेना चाहिए. वो तैयारी भी करने लगते हैं, जैसे रस्सी इकट्ठा करना, इस बारे में वो अपने दोस्तों से बात करते हैं. इस तरह के लक्षणों से आपको समझना और पता लगाना होगा कि कहीं बच्चों में सुसाइडल टेंडेंसी तो नही जन्म ले रही है.
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