रांचीः भाजपा को बाबूलाल मरांडी से बहुत उम्मीदें थी. बड़े तामझाम के साथ पार्टी में उनकी वापसी हुई थी. सदन में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिलने पर जुलाई 2023 में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई. पार्टी को भरोसा था कि बाबूलाल की बदौलत लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाजपा को माइलेज मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
2019 में झारखंड की 14 में से 11 लोकसभा सीटें जीतने वाली भाजपा, 2024 में खूंटी, लोहरदगा और दुमका सीट गंवाकर 09 पर सिमट गई. आदिवासी समाज के बीच भाजपा की ढीली पड़ती पकड़ का यह पहला चैप्टर था. लिहाजा, 2024 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने आजसू, जदयू और लोजपा (आर)के साथ गठबंधन बनाकर पूरी ताकत झोंक दी. एजेंडे सेट किए गये फिर भी नतीजा सिफर रहा.
2019 में विधानसभा की 25 सीटें जीतने वाली भाजपा 21 सीटों पर आ गई. दस सीटों पर चुनाव लड़ने वाले आजसू के खाते में बड़ी मुश्किल से मांडू सीट ही आई. जदयू और लोजपा के खाते में एक-एक सीट गई.
बाबूलाल पर भाजपा ने खूब बरसायी कृपा
राजनीति के गलियारे में इस बात की भी चर्चा है कि अगर भाजपा के बड़े नेताओं को जोर नहीं लगाया होता तो बाबूलाल मरांडी खुद अपनी धनवार सीट हार गये होते. चर्चा इस बात की भी हो रही है कि बाबूलाल मरांडी की जीत की राह को आसान करने में झामुमो ने भी बड़ी भूमिका निभाई है. क्योंकि इंडिया गठबंधन के तहत धनवार सीट पर भाकपा माले को चुनाव लड़ना था. पार्टी ने राजकुमार यादव को प्रत्याशी बनाया था. इसके बावजूद झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी को मैदान में उतार दिया.
लिहाजा, इस त्रिकोणीय मुकाबले में बाबूलाल मरांडी 35,438 वोट के अंतर से जीत गये. बाबूलाल मरांडी को कुल 1,06,296 वोट मिले. जबकि झामुमो को 70,858 और माले के खाते में 32,187 वोट गये. जाहिर है कि इंडिया गठबंधन का एकलौता प्रत्याशी होता तो बाबूलाल मरांडी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती थी.
भाजपा के दिग्गजों ने निरंजन राय को मनाया
बाबूलाल मरांडी की राह में निरंजन राय भी एक कांटा थे. पैसे और भूमिहार जाति के समीकरण के बूते धनवार के मैदान में उतरे निरंजन राय को मनाने के लिए निशिकांत दूबे के साथ-साथ असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा को लगना पड़ा. क्योंकि साफ हो गया था कि निरंजन राय को हटाए बगैर बाबूलाल मरांडी चुनाव नहीं जीत पाएंगे. आलम ये रहा कि निरंजन राय को 16 नवंबर को धनवार में आयोजित अमित शाह के चुनावी मंच पर ले जाकर भाजपा में शामिल कराया गया. इसका फायदा बाबूलाल मरांडी को मिला. मरांडी चुनाव जीत गये.
झारखंड में विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद उन्होंने भरोसा जताया था कि गठबंधन को 51 प्लस सीटें मिलेंगी. लेकिन 23 नवंबर को नतीजे कुछ और आए. इंडिया गठबंधन को 56 सीटों पर जीत मिली जबकि एनडीए सिर्फ 24 सीटों पर सिमट गई.
झारखंड में भाजपा को अबतक का सबसे बड़ा झटका लगा है. अब सवाल है कि इस हार के लिए प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी कितने जिम्मेदार हैं. डैमेज कंट्रोल के लिए भाजपा अब क्या स्टेप उठा सकती है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक बाबूलाल मरांडी ने प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने की इच्छा जता दी है. लेकिन 3 दिसंबर को दिल्ली में केंद्रीय नेताओं के साथ होने वाली बैठक के दौरान इसपर चर्चा होगी. उसी दिन संगठन के स्वरूप पर भी चर्चा होगी. इस बात की पूरी संभावना है कि बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष के पद से मुक्त कर दिया जाएगा. अब देखना है कि बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता चुना जाता है या नहीं.
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