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जलीय जीवों के लिए जानलेवा है चंबल नदी में बढ़ती जलकुंभी, ऐसे पड़ रहा है असर - चंबल नदी में जलकुंभी

चंबल नदी में बढ़ती जलकुंभी जलीय जीवों के लिए हानिकारक है. जलकुंभी के कारण पानी में सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती. इससे पानी में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है और जलीय जीवों का दम घुटता है.

चंबल नदी में बढ़ती जलकुंभी
चंबल नदी में बढ़ती जलकुंभी
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 13, 2024, 4:27 PM IST

बूंदी. जिले के रामगढ़-विषधारी टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में बहने वाली चंबल नदी का पानी इन दिनों जलकुंभी से अटा पड़ा है. बहते पानी के साथ यह जल वनस्पति जलीय जीवों के साथ-साथ नदी किनारे रहने वाले लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रही है.

पर्यावरणविद् नरेंद्र पाटिल ने बताया कि चंबल की डाउन स्ट्रीम से राजस्थान में बहने वाली चंबल नदी के लगभग पूरे क्षेत्र में पानी के बहाव के साथ जलकुंभी फैलती जा रही है. कोटा महानगर सहित अन्य गांव-कस्बों से नदी में मिलने वाले गंदे नाले इस वनस्पति के पोषक बन रहे हैं. जल गोभी, नील गोभी, जल सलाद और जलकुंभी आदि नामों से पहचानी जाने वाली इस वनस्पति के कारण पानी में सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती. इसके कारण पानी में ऑक्सीजन स्तर कम हो जाता है. इस कारण जलीय जीवों और मछलियों का दम घुटता है. कई बार तो जलीय जीवों की मौत भी हो जाती है.

इसे भी पढ़ें-चंबल नदी में जलीय जीवों की गणना, 500 किलोमीटर के एरिया में तीन राज्य के विशेषज्ञ करेंगे गणना

जलीय जीवों पर प्रभाव : वन्यजीव संरक्षणकर्ताओं ने चंबल नदी में जलकुंभी पर चिंता व्यक्त की है. पर्यावरणविद् नरेंद्र पाटिल ने जलकुंभी को नदियों के स्वरूप पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाला बताया. उन्होंने इसके समाधान की कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता बताई. घड़ियाल संरक्षण से जुड़े हरिराम मीणा ने बताया कि इससे घड़ियाल, कछुए और अन्य जलीय जीव भी प्रभावित हो रहे हैं. आसपास के ग्रामीणों ने नदी में स्नान करना बंद कर दिया है.

बूंदी. जिले के रामगढ़-विषधारी टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में बहने वाली चंबल नदी का पानी इन दिनों जलकुंभी से अटा पड़ा है. बहते पानी के साथ यह जल वनस्पति जलीय जीवों के साथ-साथ नदी किनारे रहने वाले लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रही है.

पर्यावरणविद् नरेंद्र पाटिल ने बताया कि चंबल की डाउन स्ट्रीम से राजस्थान में बहने वाली चंबल नदी के लगभग पूरे क्षेत्र में पानी के बहाव के साथ जलकुंभी फैलती जा रही है. कोटा महानगर सहित अन्य गांव-कस्बों से नदी में मिलने वाले गंदे नाले इस वनस्पति के पोषक बन रहे हैं. जल गोभी, नील गोभी, जल सलाद और जलकुंभी आदि नामों से पहचानी जाने वाली इस वनस्पति के कारण पानी में सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती. इसके कारण पानी में ऑक्सीजन स्तर कम हो जाता है. इस कारण जलीय जीवों और मछलियों का दम घुटता है. कई बार तो जलीय जीवों की मौत भी हो जाती है.

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जलीय जीवों पर प्रभाव : वन्यजीव संरक्षणकर्ताओं ने चंबल नदी में जलकुंभी पर चिंता व्यक्त की है. पर्यावरणविद् नरेंद्र पाटिल ने जलकुंभी को नदियों के स्वरूप पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाला बताया. उन्होंने इसके समाधान की कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता बताई. घड़ियाल संरक्षण से जुड़े हरिराम मीणा ने बताया कि इससे घड़ियाल, कछुए और अन्य जलीय जीव भी प्रभावित हो रहे हैं. आसपास के ग्रामीणों ने नदी में स्नान करना बंद कर दिया है.

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