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वक्फ बोर्ड सम्मेलन पर नीतीश की सियासी दुविधा: मुसलमानों के हमदर्द बनाम गठबंधन की राजनीति

वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पर चर्चा के लिए जमीयत उलेमा सम्मेलन का आयोजन करने जा रहा है. इसको लेकर बिहार का सियासी पारा चढ़ गया.

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नीतीश कुमार. (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 5 hours ago

पटनाः जमीयत उलेमा बिहार ने वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पर चर्चा के लिए पटना के बापू सभागार में 24 नवंबर को बड़े जलसे का आयोजन किया है. इस सम्मेलन में मुख्य अतिथि के तौर पर मौलाना अरशद मदनी शामिल होंगे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी इसमें आमंत्रित किया गया है. राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद, जो मुस्लिम समुदाय के बड़े हिमायती माने जाते हैं उनको निमंत्रण नहीं भेजा गया. वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक के इर्द-गिर्द मची सियासी हलचल, राजनीतिक समीकरणों को नया मोड़ दे सकती है.

क्या नीतीश सम्मेलन में शामिल होंगे: राजनीति के जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार के लिए यह सम्मेलन कठिन स्थिति पैदा कर सकता है. अगर वह सम्मेलन में भाग लेते हैं, तो यह भाजपा को नाराज कर सकता है. वहीं, इसमें शामिल न होने से उनकी मुस्लिम समर्थक छवि को नुकसान पहुंच सकता है. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नीतीश कुमार इस सियासी कशमकश के बीच कोई नया राजनीतिक संदेश देते हैं या सम्मेलन से दूरी बनाए रखते हैं.

पटना में जमीयत उलेमा का जलसा. (ETV Bharat)

"मदनी एक तीर से कई निशाना साधने की कोशिश करेंगे. एक और जहां वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के खिलाफ माहौल तैयार किया जाएगा तो दूसरी तरफ एनडीए सरकार को अस्थिर करने की कोशिश भी होगी. नीतीश कुमार के सामने द्वंद्व की स्थिति है. नहीं जाने पर वोटों का नुकसान हो सकता है, तो कार्यक्रम में जाने पर एनडीए की एकजुटता पर सवाल खड़े होंगे."- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

सेकुलरिज्म के इर्द-गिर्द बिहार की राजनीतिः जमीयत उलेमा बिहार के तत्वावधान में वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के खिलाफ हल्ला बोल की तैयारी है. देशभर से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को आमंत्रित किया गया है. जमीयत उलेमा से जुड़े तमाम कार्यकर्ता भी बिहार पहुंचेंगे. एक तरह से अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से शक्ति प्रदर्शन की कवायद होगी. राजनीति के जानकारों का मानना है कि जमीयत उलेमा, नीतीश कुमार के सहारे केंद्र पर दबाव बनाना चाहता है. क्योंकि, अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव होना है.

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संसद में वक्फ बिल का समर्थन करते ललन सिंह.(फाइल फोटो) (सौजन्य लोकसभा टीवी.)

बिहार की धरती से मदनी भरेंगे हुंकार: वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर चर्चा पर जमीयत उलेमा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आमंत्रित कर बिहार का सियासी पारा चढ़ा दिया है. जमीयत उलेमा ने जदयू के लिए धर्म संकट की स्थिति उत्पन्न कर दी है. नीतीश कुमार जलसे में शामिल होंगे या नहीं इसे लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है. लालू प्रसाद यादव का सियासी आधार 'माय' समीकरण है. जमीयत उलेमा ने जलसा से राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं को फिलहाल दूर रखा है.

"यह पहला मौका है जब कोई बिल स्टैंडिंग कमेटी में गया है. मेरे विचार से वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को वापस लिया जाना चाहिए. यह धार्मिक मामला है और मुस्लिम समुदाय इसके खिलाफ है. पटना में होने वाले सम्मेलन में मुख्यमंत्री जाएंगे या नहीं यह मैं नहीं कर सकता हूं, लेकिन मैंने बिल के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद किया था."- गुलाम गौस, जदयू नेता

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जदयू नेता गुलाम गौस. (ETV Bharat)

नीतीश कुमार के समक्ष द्वंद्व क्योंः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनडीए की बैठक में कहा था कि तमाम नेता अल्पसंख्यक समुदाय के बीच जाएं और लोगों को यह बताएं की नीति सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए क्या कुछ किया है. जाहिर तौर पर नीतीश कुमार को अल्पसंख्यक वोट की चिंता है. नीतीश कुमार किसी जातिगत कार्यक्रम में हिस्सा लेने से परहेज करते रहे हैं. धार्मिक कार्यक्रम से भी दूरी बनाते रहे हैं. नीतीश कुमार के समक्ष द्वंद्व की स्थिति बनी हुई है कि वह कार्यक्रम में हिस्सा लें या नहीं.

एनडीए की एकजुटता पर सवालः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अगर जलसे में शामिल होते हैं तो नीतीश कुमार बिहार में अल्पसंख्यकों के रहनुमा बन सकते हैं. लेकिन इसके साइड इफेक्ट भी होंगे. इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता नीतीश कुमार के जाने से एनडीए की एकजुटता पर जहां सवाल उठेगा, वहीं नीतीश कुमार को लेकर नरेंद्र मोदी के मन में अविश्वास होगा. संदेश यह भी जाएगा कि केंद्र सरकार स्थिर नहीं है.

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नीतीश से मुलाकात करते मुस्लिम नेता. (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

केंद्र पर दबाव बनाने की राजनीतिः जनता दल यूनाइटेड के 12 सांसद हैं. केंद्र सरकार, जनता दल यूनाइटेड के समर्थन से चल रही है. ऐसे में मौलाना अरशद मदनी नीतीश कुमार के जरिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहते हैं. इसी कोशिश के तहत नीतीश कुमार को कार्यक्रम में आने के लिए न्योता भेजा गया है. जमीयत उलेमा बिहार के प्रवक्ता अनवारुल होदा का कहना है कि चूंकि नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं, इसलिए उनको न्योता भेजा गया है.

निशाने पर 2025 विधानसभा चुनावः 2025 में विधानसभा चुनाव होना है. विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यक वोट की भूमिका अहम होने वाली है. बिहार में 17 प्रतिशत से अधिक अल्पसंख्यक वोटर हैं. राजनीतिक दलों को अल्पसंख्यक वोट की चिंता है. नीतीश कुमार के अलावा राजद का आधार वोट बैंक मुसलमानों को माना जाता है. प्रशांत किशोर भी मुसलमानों को अपने पाले में करने के लिए तरह-तरह के दांव चल रहे हैं. ऐसे में इस कार्यक्रम का महत्व और बढ़ गया है.

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मो. अनवारुल होदा (ETV Bharat)

संविधान सुरक्षा एवं राष्ट्रीय एकता सम्मेलनः जमीयत उलेमा बिहार के प्रवक्ता मो. अनवारुल होदा ने कहा है कि देश इस समय अति गंभीर दौर से गुजर रहा है. मुस्लिम पर्सनल लाॅ में हस्तक्षेप, वक्फ संशोधन बिल, पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.) के अपमान पर आधारित द्वेषपूर्ण टिप्पणियां और इन जैसे अन्य सुलगते मुद्दों पर 'भारतीय संविधान सुरक्षा एवं राष्ट्रीय एकता सम्मेलन' का आयोजन किया जा रहा है. मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में पूरे देश से प्रसिद्ध बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकता और उलमा भाग ले रहे है.

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बिहार वक्फ बोर्ड. (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

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पटनाः जमीयत उलेमा बिहार ने वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पर चर्चा के लिए पटना के बापू सभागार में 24 नवंबर को बड़े जलसे का आयोजन किया है. इस सम्मेलन में मुख्य अतिथि के तौर पर मौलाना अरशद मदनी शामिल होंगे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी इसमें आमंत्रित किया गया है. राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद, जो मुस्लिम समुदाय के बड़े हिमायती माने जाते हैं उनको निमंत्रण नहीं भेजा गया. वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक के इर्द-गिर्द मची सियासी हलचल, राजनीतिक समीकरणों को नया मोड़ दे सकती है.

क्या नीतीश सम्मेलन में शामिल होंगे: राजनीति के जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार के लिए यह सम्मेलन कठिन स्थिति पैदा कर सकता है. अगर वह सम्मेलन में भाग लेते हैं, तो यह भाजपा को नाराज कर सकता है. वहीं, इसमें शामिल न होने से उनकी मुस्लिम समर्थक छवि को नुकसान पहुंच सकता है. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नीतीश कुमार इस सियासी कशमकश के बीच कोई नया राजनीतिक संदेश देते हैं या सम्मेलन से दूरी बनाए रखते हैं.

पटना में जमीयत उलेमा का जलसा. (ETV Bharat)

"मदनी एक तीर से कई निशाना साधने की कोशिश करेंगे. एक और जहां वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के खिलाफ माहौल तैयार किया जाएगा तो दूसरी तरफ एनडीए सरकार को अस्थिर करने की कोशिश भी होगी. नीतीश कुमार के सामने द्वंद्व की स्थिति है. नहीं जाने पर वोटों का नुकसान हो सकता है, तो कार्यक्रम में जाने पर एनडीए की एकजुटता पर सवाल खड़े होंगे."- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

सेकुलरिज्म के इर्द-गिर्द बिहार की राजनीतिः जमीयत उलेमा बिहार के तत्वावधान में वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के खिलाफ हल्ला बोल की तैयारी है. देशभर से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को आमंत्रित किया गया है. जमीयत उलेमा से जुड़े तमाम कार्यकर्ता भी बिहार पहुंचेंगे. एक तरह से अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से शक्ति प्रदर्शन की कवायद होगी. राजनीति के जानकारों का मानना है कि जमीयत उलेमा, नीतीश कुमार के सहारे केंद्र पर दबाव बनाना चाहता है. क्योंकि, अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव होना है.

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संसद में वक्फ बिल का समर्थन करते ललन सिंह.(फाइल फोटो) (सौजन्य लोकसभा टीवी.)

बिहार की धरती से मदनी भरेंगे हुंकार: वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर चर्चा पर जमीयत उलेमा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आमंत्रित कर बिहार का सियासी पारा चढ़ा दिया है. जमीयत उलेमा ने जदयू के लिए धर्म संकट की स्थिति उत्पन्न कर दी है. नीतीश कुमार जलसे में शामिल होंगे या नहीं इसे लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है. लालू प्रसाद यादव का सियासी आधार 'माय' समीकरण है. जमीयत उलेमा ने जलसा से राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं को फिलहाल दूर रखा है.

"यह पहला मौका है जब कोई बिल स्टैंडिंग कमेटी में गया है. मेरे विचार से वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को वापस लिया जाना चाहिए. यह धार्मिक मामला है और मुस्लिम समुदाय इसके खिलाफ है. पटना में होने वाले सम्मेलन में मुख्यमंत्री जाएंगे या नहीं यह मैं नहीं कर सकता हूं, लेकिन मैंने बिल के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद किया था."- गुलाम गौस, जदयू नेता

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जदयू नेता गुलाम गौस. (ETV Bharat)

नीतीश कुमार के समक्ष द्वंद्व क्योंः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनडीए की बैठक में कहा था कि तमाम नेता अल्पसंख्यक समुदाय के बीच जाएं और लोगों को यह बताएं की नीति सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए क्या कुछ किया है. जाहिर तौर पर नीतीश कुमार को अल्पसंख्यक वोट की चिंता है. नीतीश कुमार किसी जातिगत कार्यक्रम में हिस्सा लेने से परहेज करते रहे हैं. धार्मिक कार्यक्रम से भी दूरी बनाते रहे हैं. नीतीश कुमार के समक्ष द्वंद्व की स्थिति बनी हुई है कि वह कार्यक्रम में हिस्सा लें या नहीं.

एनडीए की एकजुटता पर सवालः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अगर जलसे में शामिल होते हैं तो नीतीश कुमार बिहार में अल्पसंख्यकों के रहनुमा बन सकते हैं. लेकिन इसके साइड इफेक्ट भी होंगे. इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता नीतीश कुमार के जाने से एनडीए की एकजुटता पर जहां सवाल उठेगा, वहीं नीतीश कुमार को लेकर नरेंद्र मोदी के मन में अविश्वास होगा. संदेश यह भी जाएगा कि केंद्र सरकार स्थिर नहीं है.

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नीतीश से मुलाकात करते मुस्लिम नेता. (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

केंद्र पर दबाव बनाने की राजनीतिः जनता दल यूनाइटेड के 12 सांसद हैं. केंद्र सरकार, जनता दल यूनाइटेड के समर्थन से चल रही है. ऐसे में मौलाना अरशद मदनी नीतीश कुमार के जरिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहते हैं. इसी कोशिश के तहत नीतीश कुमार को कार्यक्रम में आने के लिए न्योता भेजा गया है. जमीयत उलेमा बिहार के प्रवक्ता अनवारुल होदा का कहना है कि चूंकि नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं, इसलिए उनको न्योता भेजा गया है.

निशाने पर 2025 विधानसभा चुनावः 2025 में विधानसभा चुनाव होना है. विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यक वोट की भूमिका अहम होने वाली है. बिहार में 17 प्रतिशत से अधिक अल्पसंख्यक वोटर हैं. राजनीतिक दलों को अल्पसंख्यक वोट की चिंता है. नीतीश कुमार के अलावा राजद का आधार वोट बैंक मुसलमानों को माना जाता है. प्रशांत किशोर भी मुसलमानों को अपने पाले में करने के लिए तरह-तरह के दांव चल रहे हैं. ऐसे में इस कार्यक्रम का महत्व और बढ़ गया है.

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मो. अनवारुल होदा (ETV Bharat)

संविधान सुरक्षा एवं राष्ट्रीय एकता सम्मेलनः जमीयत उलेमा बिहार के प्रवक्ता मो. अनवारुल होदा ने कहा है कि देश इस समय अति गंभीर दौर से गुजर रहा है. मुस्लिम पर्सनल लाॅ में हस्तक्षेप, वक्फ संशोधन बिल, पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.) के अपमान पर आधारित द्वेषपूर्ण टिप्पणियां और इन जैसे अन्य सुलगते मुद्दों पर 'भारतीय संविधान सुरक्षा एवं राष्ट्रीय एकता सम्मेलन' का आयोजन किया जा रहा है. मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में पूरे देश से प्रसिद्ध बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकता और उलमा भाग ले रहे है.

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बिहार वक्फ बोर्ड. (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

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