बगहा: बिहार-यूपी सीमा से सटे एक ऐसा गांव जहां से जान जोखिम में डालकर दर्जनों बच्चे पढ़ाई करने रोज उत्तर प्रदेश जाते हैं और फिर वापस आते हैं. बरवा पंचायत स्थित सिसवा घाट बना यह चचरी पुल आसपास के दर्जनों गांव के लिए लाइफ लाइन है. चचरी पुल की जगह पक्का पुल बनवाने के लिए चुनाव का इंतजार रहता है, क्योंकि अमूमन चुनाव के पहले ही नेता या जनप्रतिनिधि पहुंचते हैं. चचरी पुल की जगह पक्का पुल बनवाने का वादा करते हैं पर 30 वर्ष से यह चचरी पुल जस का तज पड़ा हुआ है.
एक बार फिर लोगों की जगी आस: दरअसल लोगों की जरुरतें और समस्याएं पड़ोसी राज्य से जुड़ी हुई है. लेकिन, दोनों राज्यों के बीच आवाजाही के पर्याप्त और खास नजदीकी साधन नहीं हैं. लिहाजा कई बार जनप्रतिनिधियों से इस नदी पर पुल और पक्की सड़क बनाने की मांग की गई. इस बीच तीन विधायक और चार सांसदों का कार्यकाल गुजर गया, लेकिन लोगों को आश्वासनों के सिवा कुछ नहीं मिला. यहीं वजह है की एक बार फिर लोकसभा चुनाव नजदीक है तो लोगों को आश्वासनों की फिर आस जगी है.
"30 वर्षों से ऐसे ही चचरी पुल है. जिस रास्ते से हमलोग यूपी जाते आते हैं. यहां तक की बच्चे भी पढ़ाई करने के लिए जाते हैं. बरसात के मौसम में बाढ़ आने पर पुल बह जाता है तब दोबारा बनाया जाता है.पक्का पुल बनवाने की मांग की गई लेकिन नेता सिर्फ दिलासा देकर चले जाते हैं." -सागर यादव, स्थानीय
जान जोखिम में डालकर आवाजाहीः ग्रामीणों ने बताया स्थायी पुल नहीं होने के कराण हर साल इस चचरी पुल को वो लोग खुद बनाते हैं. आपसी सहयोग व चंदा इकट्ठा कर श्रमदान से हर साल यहां चचरी पुल बनाया जाता है. बिहार यूपी को जोड़ने वाला यह चचरी पुल प्रत्येक चुनाव में मुद्दा बनता है. जनप्रतिनिधि ग्रामीणों को दिलासा देकर अपना वोट लेते हैं और फिर इस तरफ कोई पलट कर नहीं देखता है. लिहाजा जान जोखिम में डालकर दर्जनों गांवों के लोग इसी चचरी पुल से आवाजाही करते हैं.
हर साल पुल को खुद बनाते हैं ग्रामीण: स्थानीय ग्रामीण बताते हैं की विगत दो दशकों से बिहार यूपी को जोड़ने वाला यह चचरी पुल साल में दो से तीन मर्तबा बनाया जाता है. स्थानीय गांव के ही एक बुजुर्ग मुस्लिम ने इस चचरी पुल का श्रमदान से निर्माण किया. तब से हर साल बनता आ रहा है. बता दें की इस नदी को पहले लोग तैरकर या छोटी नाव के माध्यम से पार कर यूपी जाते थे. तब इस गांव के हीं एक मुस्लिम व्यक्ति समसुद्दीन मियां ने इस समस्या के समाधान के तौर पर खुद से चचरी पुल बनाया.
"हमलोग के गांव से प्राइवेट स्कूल बिहार के इलाके में 20 से 25 किमी दूर है. यूपी का प्राइवेट विद्यालय नजदीक होने के कारण इस चचरी पुल के रास्ते हमलोग पढ़ने जाते हैं, लेकिन हादसा कभी भी हो सकता है इसका डर भी बना रहता है." -सोनी प्रसाद, छात्रा
बच्चे इसी पुल से होकर जाते हैं स्कूलः दर्जनों गांव के बच्चे शिक्षा ग्रहण के लिए उत्तर प्रदेश में चचरी पुल के सहारे जाते हैं. इस चचरी पुल से हमेशा दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती है. ग्रामीणों के मुताबिक हर साल बरसात में अधिक पानी होने के कारण चचरी पुल बह जाता है. उसके बाद ग्रामीण एवं बच्चे नाव के सहारे आते जाते हैं. इसी क्रम में पिछले वर्ष बच्चों से भरी नाव पलट गई थी. बाढ़ व बरसात के बाद ग्रामीणों द्वारा चचरी पुल पुनः तैयार कर आवाजाही किया जाता है. इस पुल से होकर बाइक भी गुजरती है.
"बांसी नदी के इस सिसवा घाट के रास्ते सिसवा, बरवा, कठहा, धनहा, घघवा रूपहि, खैरवा, संतपट्टी सहित दर्जनों गांव के लोग इसी रास्ते आते जाते हैं. व्यवसाय करना हो या पढ़ाई यहीं एक मात्र सुलभ रास्ता है. वर्षों से इस नदी पर चचरी पुल की जगह पक्के पूल की मांग चल रही है. जब जब चुनाव आता है तो बिहार और यूपी दोनों तरफ के नेता आकर पुल का फोटो खींचते हैं और यह कहकर जाते हैं की पूल बनवाने की सहमति मिल गई है." -भगन राय, यात्री
600 मीटर दूर है सिसवा बाजार: पश्चिमी चंपारण जिला के मधुबनी प्रखंड अंतर्गत बरवा पंचायत स्थित सिसवा घाट पर बने इस चचरी पुल के ठीक एक तरफ बिहार है तो दूसरी तरफ यूपी की सीमा शुरू हो जाती है. लिहाजा बिहार के अधिकांश लोगों को यूपी जाने के लिए यह नजदीकी रास्ता है. यूपी के इलाके का सबसे नजदीकी बाजार सिसवा है. इस चचरी पुल से महज 600 मीटर की दूरी पर है. जबकि बिहार के लोगों के लिए यदि बिहार के क्षेत्र में मार्केट करने जाना हो तो 15 से 20 किमी दूर का सफर तय कर बाजार पहुंचना पड़ता है.
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