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टाइगर नहीं अब बांधवगढ़ में इस जीव की हो रही गणना, जानें क्यों इसे कहते हैं सफाई का दारोगा?

Vulture counting in bandhavgarh : मध्य प्रदेश को टाइगर स्टेट के रूप में जाना जाता है लेकिन आपको जानकर काफी खुशी होगी कि एमपी में गिद्ध बहुतायात हैं. इनकी तादाद बांधवगढ़ नेशनल पार्क में काफी ज्यादा है.

Vulture counting in bandhavgarh
टाइगर नहीं अब बांधवगढ़ में इस जीव की हो रही गणना
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 17, 2024, 12:38 PM IST

उमरिया. बांधवगढ़ नेशनल पार्क (Bandhavgarh national park) में आपने बाघों की गणना के बारे में सुना होगा पर इसबार बाघों की नहीं गिद्धों की काउंटिंग (Vulture counting) शुरू हुई है. 3 दिवसीय गिद्धों की गणना में वन कर्मी घूम-घूम कर गिद्धों को काउंट कर रहे हैं और प्रपत्र भरकर लोकेशन समेत तमाम जानकारियां एकत्र कर रहे हैं. आपको बता दें कि भारत में कुल सात प्रजातियों के गिद्ध पाए जाते हैं, जिसमें से चार यहां की मूल प्रजाति हैं और तीन प्रवासी प्रजातियां हैं.

पर्यावरण में गिद्ध की अहम भूमिका

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर पीके वर्मा ने गिद्धों की काउंटिंग (Vulture counting) की जानकारी देते हुए कहा, 'कम ही लोग जानते हैं कि जंगलों की सफाई में गिद्ध कितनी अहम भूमिका निभाते हैं. जंगल को महामारी से बचाने के लिए वन प्रबंधन गिद्धों की संख्या बनाए रखने के प्रयास करता है. प्रकृति के सफाईकर्मी के रूप में गिद्ध जिस पर्यावरण में रहते हैं, उसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उनका सफाई करने का व्यवहार पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद करता है और संभवतः बीमारी के प्रसार को कम करता है.'

Vulture counting in bandhavgarh
टाइगर नहीं अब बांधवगढ़ में इस जीव की हो रही गणना

इस वजह से होती है गिद्धों की गणना

डिप्टी डायरेक्टर ने आगे बताया, 'गिद्ध जानवरों के शवों का कुशलतापूर्वक उपभोग करके शवों को इकट्ठा करने और प्रसंस्करण संयंत्रों तक ले जाने की आवश्यकता को समाप्त कर देते हैं. इससे हमें हर साल कचरा प्रबंधन में लाखों रु की बचत होती है. यही कारण है कि हर साल जंगलों में गिद्धों की गिनती की जाती है. लोग सोचते हैं कि शेर, तेंदुआ, तेंदुआ, जंगली कुत्ते और सियार जंगली जानवरों के मुख्य शिकारी हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। ‘मांसाहारी (स्तनधारी) इसका केवल 36 प्रतिशत ही खा सकते हैं और बाकी गिद्धों के पास चला जाता है. बैक्टीरिया और कीड़े इस संसाधन के लिए गिद्धों से प्रतिस्पर्धा करते हैं, फिर भी गिद्ध इसमें सबसे आगे हैं.'

गिद्ध को क्यों कहते हैं सफाई का दरोगा?

जंगल में मांसाहारी वन्यजीवों के द्वारा जब शिकार किया जाता है, तो उसे पूरा का पूरा नहीं खाया जाता. ऐसे में यदि यह बचा हुआ मांस जंगल में पड़ा रहेगा तो अनेक तरह की बीमारियां शाकाहारी वन्यजीवों के लिए खतरा बन जाएंगी. लेकिन शुक्र है कि जंगल में गिद्ध रहते हैं क्योंकि गिद्ध न केवल सड़ा हुआ मांस और मृत जानवरों खाते हैं बल्कि जिंदा कीड़े मकोड़े को भी निगल जाते हैं. गिद्ध की नजर काफी तेज होती है और उन्हें कई किलोमीटर दूर से भी अपना भोजन दिखाई दे जाता है. ऐसे में यदि जब बाघ या अन्य मांसाहारी जीव शिकार खाकर छोड़ देते हैं, तो गिद्ध उन्हें साफ कर देते हैं. यही कारण है कि गिद्ध को जंगल का सफाई का दरोगा भी कहा जाता है।

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गिद्ध हड्डियां भी पचा जाते हैं

गिद्ध उड़ने में जितना शक्तिशाली होता है उतनी मजबूत उसकी पाचन शक्ति भी होती है. दुनियाभर के पक्षियों में गिद्ध ही एक ऐसा पक्षी है जो हड्डियों को भी पचा लेने की ताकत रखता है. गिद्ध के पेट में एसिड ऐसे तमाम चीजों को पचाने के लिए काफी होता है जो बाकी वन्य जीव नहीं पचा पाते. गिद्ध के पेट में मौजूद एसिड इतना शक्तिशाली होता है जो हैजा और बैक्टीरिया को भी मार सकता है, जो अन्य वन जीवन के लिए खतरा बन सकते हैं.

उमरिया. बांधवगढ़ नेशनल पार्क (Bandhavgarh national park) में आपने बाघों की गणना के बारे में सुना होगा पर इसबार बाघों की नहीं गिद्धों की काउंटिंग (Vulture counting) शुरू हुई है. 3 दिवसीय गिद्धों की गणना में वन कर्मी घूम-घूम कर गिद्धों को काउंट कर रहे हैं और प्रपत्र भरकर लोकेशन समेत तमाम जानकारियां एकत्र कर रहे हैं. आपको बता दें कि भारत में कुल सात प्रजातियों के गिद्ध पाए जाते हैं, जिसमें से चार यहां की मूल प्रजाति हैं और तीन प्रवासी प्रजातियां हैं.

पर्यावरण में गिद्ध की अहम भूमिका

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर पीके वर्मा ने गिद्धों की काउंटिंग (Vulture counting) की जानकारी देते हुए कहा, 'कम ही लोग जानते हैं कि जंगलों की सफाई में गिद्ध कितनी अहम भूमिका निभाते हैं. जंगल को महामारी से बचाने के लिए वन प्रबंधन गिद्धों की संख्या बनाए रखने के प्रयास करता है. प्रकृति के सफाईकर्मी के रूप में गिद्ध जिस पर्यावरण में रहते हैं, उसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उनका सफाई करने का व्यवहार पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद करता है और संभवतः बीमारी के प्रसार को कम करता है.'

Vulture counting in bandhavgarh
टाइगर नहीं अब बांधवगढ़ में इस जीव की हो रही गणना

इस वजह से होती है गिद्धों की गणना

डिप्टी डायरेक्टर ने आगे बताया, 'गिद्ध जानवरों के शवों का कुशलतापूर्वक उपभोग करके शवों को इकट्ठा करने और प्रसंस्करण संयंत्रों तक ले जाने की आवश्यकता को समाप्त कर देते हैं. इससे हमें हर साल कचरा प्रबंधन में लाखों रु की बचत होती है. यही कारण है कि हर साल जंगलों में गिद्धों की गिनती की जाती है. लोग सोचते हैं कि शेर, तेंदुआ, तेंदुआ, जंगली कुत्ते और सियार जंगली जानवरों के मुख्य शिकारी हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। ‘मांसाहारी (स्तनधारी) इसका केवल 36 प्रतिशत ही खा सकते हैं और बाकी गिद्धों के पास चला जाता है. बैक्टीरिया और कीड़े इस संसाधन के लिए गिद्धों से प्रतिस्पर्धा करते हैं, फिर भी गिद्ध इसमें सबसे आगे हैं.'

गिद्ध को क्यों कहते हैं सफाई का दरोगा?

जंगल में मांसाहारी वन्यजीवों के द्वारा जब शिकार किया जाता है, तो उसे पूरा का पूरा नहीं खाया जाता. ऐसे में यदि यह बचा हुआ मांस जंगल में पड़ा रहेगा तो अनेक तरह की बीमारियां शाकाहारी वन्यजीवों के लिए खतरा बन जाएंगी. लेकिन शुक्र है कि जंगल में गिद्ध रहते हैं क्योंकि गिद्ध न केवल सड़ा हुआ मांस और मृत जानवरों खाते हैं बल्कि जिंदा कीड़े मकोड़े को भी निगल जाते हैं. गिद्ध की नजर काफी तेज होती है और उन्हें कई किलोमीटर दूर से भी अपना भोजन दिखाई दे जाता है. ऐसे में यदि जब बाघ या अन्य मांसाहारी जीव शिकार खाकर छोड़ देते हैं, तो गिद्ध उन्हें साफ कर देते हैं. यही कारण है कि गिद्ध को जंगल का सफाई का दरोगा भी कहा जाता है।

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गिद्ध हड्डियां भी पचा जाते हैं

गिद्ध उड़ने में जितना शक्तिशाली होता है उतनी मजबूत उसकी पाचन शक्ति भी होती है. दुनियाभर के पक्षियों में गिद्ध ही एक ऐसा पक्षी है जो हड्डियों को भी पचा लेने की ताकत रखता है. गिद्ध के पेट में एसिड ऐसे तमाम चीजों को पचाने के लिए काफी होता है जो बाकी वन्य जीव नहीं पचा पाते. गिद्ध के पेट में मौजूद एसिड इतना शक्तिशाली होता है जो हैजा और बैक्टीरिया को भी मार सकता है, जो अन्य वन जीवन के लिए खतरा बन सकते हैं.

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