देहरादून: देशभर में जिस गति से नशे का व्यापार फल फूल रहा है. इसी तरह मानसिक स्वास्थ्य केंद्र और नशा मुक्ति केंद्रों का जाल भी फैलता जा रहा है. ऐसे ही कुछ स्थिति उत्तराखंड की भी है. जिसको देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश में मौजूद सभी मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों और नशा मुक्ति केंद्रों पर लगाम लगाए जाने के लिए साल 2019 में मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण का गठन किया. ताकि, इन केंद्रों में इलाज ले रहे मरीजों पर होने वाले टॉर्चर को रोकने के साथ ही इलाज से संबंधित बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हो सके. ऐसे में जानते हैं मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की क्या है स्थिति, अब तक कितने लोग इस प्राधिकरण से करवा चुके हैं रजिस्ट्रेशन?
मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों और नशा मुक्ति केंद्रों पर नकेल कसने को लेकर भारत सरकार ने साल 2017 में मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम को लागू किया था. इसके साथ ही सभी राज्यों को इस अधिनियम के तहत नीति और नियमावली बनाने के निर्देश दिए थे. हालांकि, उत्तराखंड सरकार ने साल 2019 में राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण का गठन तो किया, लेकिन इसकी नियमावली न होने के चलते प्राधिकरण काम नहीं कर पा रहा था. जिसके चलते स्वास्थ्य विभाग ने मानसिक स्वास्थ्य नियमावली का ड्राफ्ट तैयार किया. साथ ही विभाग ने केंद्र सरकार की अनुमति के लिए प्रस्ताव भेजा था.
साल 2023 में केंद्र सरकार की अनुमति मिलने के बाद 7 जुलाई 2023 को धामी मंत्रिमंडल ने भी मानसिक स्वास्थ्य नियमावली को मंजूरी दे दी थी. जिसके बाद से ही प्रदेश में राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण काम कर रहा है. मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण ने शुरुआती दौर में सभी नशा मुक्ति केंद्र, मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के साथ ही मानसिक रोग विशेषज्ञ, नर्सों, मनोचिकित्सकीय सामाजिक कार्यकर्ताओं के रजिस्ट्रेशन करने पर जोर दिया गया. जिसके चलते अभी तक 113 सरकारी, निजी मेंटल हेल्थ सेंटर और नशा मुक्ति केंद्र बतौर टेंपरेरी रजिस्टर्ड हो चुके हैं. ऐसे में अब इन सभी नशा मुक्ति केंद्रों और मेंटल हेल्थ सेंटरों का परमानेंट रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू हो गई है.
अब तक 4 केंद्रों पर हो चुकी है कार्रवाई: साल 2023 में राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की नियमावली तैयार किए जाने के बाद ही प्राधिकरण ने काम करना शुरू कर दिया था. शुरुआती दौर में प्राधिकरण ने सभी मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों और नशा मुक्ति केंद्रों को इस बाबत निर्देश दिए कि वो इस नियम के तहत एक साल के भीतर अपने-अपने संस्थानों या केंद्रों का रजिस्ट्रेशन कर लें. ऐसे में रजिस्ट्रेशन करने की अंतिम तिथि भी सितंबर 2024 महीने में समाप्त हो चुकी है,
जिसके चलते बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे दो नशा मुक्ति केंद्रों को प्राधिकरण की ओर से बंद कराया गया. इसके साथ ही दो नशा मुक्ति केंद्रों से शिकायत आई थी कि वहां पर इलाज के लिए आए मरीजों के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है. जिसके चलते प्राधिकरण ने देहरादून स्थित इन दोनों नशा मुक्ति केंद्रों का रजिस्ट्रेशन निरस्त कर दिया. यानी अभी तक कुल चार केंद्रों पर प्राधिकरण कार्रवाई कर चुकी है.
देहरादून में सबसे ज्यादा 78 केंद्र और संस्थान हैं मौजूद: राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की नियमावली तैयार होने के बाद से अभी तक प्रदेश भर के 113 नशा मुक्ति केंद्र और मानसिक स्वास्थ्य संस्थान टेंपरेरी रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं. जिसमें देहरादून जिले में सबसे ज्यादा 78 केंद्र और संस्थान मौजूद हैं. इन संस्थानों में 2 संस्थान सरकारी है, जिसमें राजकीय दून मेडिकल कॉलेज और स्टेट मेंटल हेल्थ हॉस्पिटल सेलाकुई शामिल है.
इसके अलावा चंपावत जिले में 2, हरिद्वार जिले में 8, उधमसिंह नगर जिले में 9, नैनीताल जिले में 10, पिथौरागढ़ जिले में 2 और पौड़ी जिले में 4 केंद्र एवं संस्थान मौजूद है. हालांकि, इन सभी संस्थान और केंद्रों का टेंपरेरी रजिस्ट्रेशन किया गया है. साथ ही इसी अक्टूबर महीने से ही परमानेंट रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू हो गई है.
उत्तराखंड में मात्र 52 मनोचिकित्सक दे रहे सेवाएं: देश-दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से संबंधित मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. उत्तराखंड में भी लगातार मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे लोगों की संख्या बढ़ रही है. खासकर इस युवाओं में एंजायटी, इरिटेशन, डिप्रेशन समेत तमाम समस्याएं देखी जा रही हैं, लेकिन हैरानी की बात ये है कि करीब 1 करोड़ 40 लाख आबादी वाले उत्तराखंड में मात्र 52 मनोचिकित्सक ही सेवाएं दे रहे हैं.
यह सभी डॉक्टर राष्ट्रीय मेंटल हेल्थ प्रोग्राम के तहत सेवाएं दे रहे हैं. जिसमें से प्रदेश के तमाम अस्पतालों में काम कर रहे 30 चिकित्सा डिप्लोमाधारी हैं. राज्य के सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में 15 मानसिक रोग विशेषज्ञ हैं. प्रदेश के हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में एकमात्र क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट काम कर रहे हैं. इसके अलावा एम्स ऋषिकेश में 6 मनोरोग विशेषज्ञ संकाय सदस्य काम कर रहे हैं.
स्वास्थ्य विभाग के सहायक निदेशक कुलदीप मर्तोलिया ने दी अहम जानकारी: वहीं, ईटीवी भारत से बातचीत में स्वास्थ्य विभाग के सहायक निदेशक डॉ. कुलदीप सिंह मर्तोलिया ने बताया कि साल 2017 में भारत सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम बनाया था. इसके बाद 29 मई 2018 में उत्तराखंड सरकार ने इस अधिनियम को अडॉप्ट कर लिया था. इसके बाद 13 फरवरी 2019 में उत्तराखंड राज्य में राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण का गठन किया गया. ऐसे में प्रदेश में मौजूद मानसिक स्वास्थ्य संस्थान और नशा मुक्ति केंद्रों का टेंपरेरी रजिस्ट्रेशन पिछले एक साल से किया जा रहा था.
अब इन सभी केंद्रों और संस्थाओं का परमानेंट रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण का गठन इसी उद्देश्य से किया गया था कि प्रदेश में संचालित सभी संस्थानों और केंद्रों पर लगाम लगाया जा सके. ताकि, प्राधिकरण के नियम के अनुसार यह सभी संस्थान और केंद्र संचालित हो. उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उत्तराखंड की ओर से स्टेट मेंटल हेल्थ प्रोग्राम भी संचालित किया जा रहा है. जिसके तहत प्रदेश के सभी बड़े अस्पतालों में मनोवैज्ञानिकों को तैनात किया गया है, जो मरीजों की काउंसलिंग करते हैं.
उत्तराखंड में 113 रिहैबिलिटेशन सेंटर का रजिस्ट्रेशन: वर्तमान समय में प्रदेश में एक राजकीय स्टेट मेंटल हेल्थ हॉस्पिटल देहरादून के सेलाकुई में संचालित किया जा रहा है. इसके साथ ही प्रदेश भर में 113 रिहैबिलिटेशन सेंटर का रजिस्ट्रेशन किया गया है, लेकिन जब किसी रिहैबिलिटेशन सेंटर से ऐसी शिकायत मिलती है कि वहां मानव अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जाती है. इस सिलसिले में अभी तक चार रिहैबिलिटेशन सेंटर पर कार्रवाई करते हुए उसको बंद कराया गया है.
नशा मुक्ति केंद्रों में इन नियमों का पालन करना है अनिवार्य-
- नशा मुक्ति केंद्र मानसिक रोगी को कमरे में बंधक बना कर नहीं रख सकते
- डॉक्टर के परामर्श पर नशा मुक्ति केंद्रों में मरीज को रखा जाएगा
- डॉक्टर के परामर्श पर मरीजों को डिस्चार्ज किया जाएगा
- केंद्र में फीस, ठहरने, खाने का मेन्यू प्रदर्शित करना अनिवार्य होगा
- मरीजों के इलाज के लिए मनोचिकित्सक, डॉक्टर को रखना जरूरी होगा
- केंद्र में मानसिक रोगियों के लिए खुली जगह का होना अनिवार्य होगा
- मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड के माध्यम से जिला स्तर पर निगरानी की जाएगी
- मानसिक रोगी को परिजनों से बात करने के लिए फोन की सुविधा
- कमरों में एक बेड से दूसरे बेड की दूरी भी निर्धारित की गई है
नियमों के उल्लंघन पर जेल और जुर्माने का है प्रावधान-
- मानसिक स्वास्थ्य नियमावली के नियमों का उल्लंघन करने पर होगी कार्रवाई
- पहली बार उल्लंघन पर 5 हजार से 50 हजार तक का जुर्माना का प्रावधान
- दूसरी बार उल्लंघन पर दो लाख रुपए तक के जुर्माना का प्रावधान
- बार-बार उल्लंघन पर पांच लाख रुपए तक के जुर्माना का प्रावधान
- बिना रजिस्ट्रेशन संचालित संस्थानों पर 25 हजार रुपए का जुर्माना का प्रावधान
- अधिनियम के अधीन बनाए गए नियम के उल्लंघन पर व्यक्ति पर भी कार्रवाई का प्रावधान
- पहली बार उल्लंघन पर 6 माह की जेल या 10 हजार रुपए का जुर्माना या फिर दोनों दंड का प्रावधान
- बार-बार उल्लंघन पर दो साल की जेल या 50 हजार से 5 लाख रुपए का जुर्माना या फिर दोनों दंड का प्रावधान
गढ़वाल क्षेत्र में मौजूद है 100 बेड का मेंटल हेल्थ हॉस्पिटल: वहीं, ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की सीईओ डॉ. सुनीता टम्टा ने बताया कि अभी फिलहाल गढ़वाल क्षेत्र में एक मेंटल हेल्थ हॉस्पिटल मौजूद है. यह मेंटल हेल्थ हॉस्पिटल पहले 30 बेड का था, लेकिन अभी से अपग्रेड करके 100 बेड का कर दिया गया है, जिसे जल्द ही लोकार्पण किया जाएगा.
कुमाऊं क्षेत्र में भी बनाया जाएगा मेंटल हेल्थ हॉस्पिटल: इसके अलावा कुमाऊं क्षेत्र में एक मेंटल हेल्थ हॉस्पिटल बनाया जा रहा है. इसके लिए नैनीताल जिले के गेठिया में जगह चिन्हित की गई है. जहां पर 100 बेड का मानसिक चिकित्सालय बनाया जाना है. साथ ही बताया कि प्राधिकरण बनने से पहले रिहैबिलिटेशन सेंटर से मानव अधिकार संबंधित मामले सामने आते थे. जिसके चलते ही राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण बनाया गया है.
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