अजमेर: विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 813वें उर्स की विधिवत शुरुआत रजब का चांद दिखाई देने पर बुधवार से हो गई. इसके साथ ही दरगाह में पारंपरिक रस्मों को अंजाम दिया जाएगा. उर्स की पहली महफिल दरगाह दीवान की सदारत में महफिल खाने में होगी. वहीं देर रात ख्वाजा गरीब नवाज की मजार को गुस्ल दिया जाएगा. उर्स शुरू होने के साथ ही दरगाह में कव्वालियों का दौर भी शुरू हो जाएगा.
ख्वाजा गरीब नवाज के 813वें उर्स का आगाज रजब का चांद दिखने के साथ हो आज हो गया. हिलाल कमेटी ने रजब का चांद दिखने की घोषणा कर दी है. उर्स के पहले दिन दरगाह के महफिल खाने में दरगाह दीवान की सदारत में पहली महफिल होगी. इसमें शाही कव्वालों की ओर से पारंपरिक कलम और कव्वालियां पेश की जाएंगी. महफिल के बाद देर रात दरगाह दीवान आस्ताने में जाएंगे. जहां ख्वाजा गरीब नवाज की मजार को उर्स पर पहला गुस्ल दिया जाएगा. उर्स के छह दिन महफिल और कव्वालियां सुनने के लिए देर रात तक जायरीन दरगाह में जुटे रहते हैं.
अंजुमन कमेटी के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने बताया कि बुजुर्ग सूफी संत के मृत्यु के दिन को सम्मानपूर्वक मनाने को उर्स कहते हैं. मसलन अल्लाह वाले का अल्लाह से मुलाकात. उन्होंने बताया कि छठी रजब को ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का विसाल (निधन) हुआ था. ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की पैशानी पर लिखा था अल्लाह का दोस्त अल्लाह की याद में रुखसत हुआ. ख्वाजा गरीब नवाज की पुण्यतिथि के मनाए जाने को उर्स कहते हैं. ख्वाजा के चाहने वाले उर्स में बड़ी संख्या में जियारत के लिए आते हैं. जायरीन को खादिम जियारत करवाते हैं.
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उर्स की पहली रस्म छड़ी का जुलूस: उन्होंने बताया कि उर्स की पहली रस्म छड़ी का जुलूस होता है, जो महरौली से बाबा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह से आता है. हर वर्ष कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी छड़ी लेकर आया करते थे और आज भी उस परंपरा को उस शिद्दत के साथ ही निभाया जाता है. बुधवार को छड़ी पेश करने की परंपरा निभाई गई. चिश्ती ने बताया कि यह सबसे पुरानी परंपरा है. छड़ी के जुलूस की अगवानी खादिम निजाम गेट पर करते हैं. जुलूस में शामिल कलंदर देशभर से महरौली में कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह जुटे और पैदल अजमेर दरगाह छड़ी (झंडे) लेकर आए.
उर्स में खिदमत का बदल जाता है समय: चिश्ती ने बताया कि उर्दू तारीख 25 जुमादा उल थानी (28 दिसंबर) से दरगाह में खिदमत का समय बदल गया है. आम दिनों में दोपहर को 3 बजे आस्ताने में खिदमत होती थी. वहीं अब देर शाम को खिदमत होती है. कुतुबुद्दीन सकी ने बताया कि बुधवार 1 जनवरी को चांद रात थी. चांद दिखने पर उर्स की रस्में शुरू हो गई हैं. इसमें दो ग़ुस्ल होते हैं. एक मगरिब की नवाज के बाद खादिम मजार को गुस्ल देते हैं. इसमें खादिम ही गुस्ल देते हैं. वहीं रात को 1 बजे बाद मजार को गुस्ल दिया जाता है. इसमें 7 खादिम, एक बारीदार और दरगाह दीवान होते हैं.
छठी रजब है विशेष: खादिम सैयद कुतुबुद्दीन सकी बताते हैं कि उर्स सभी रस्मों में मुख्यतः छठी की रस्म है जो सदियों से निभाई जाती रही है. ख्वाजा गरीब नवाज के ऊपर जीतने भी मुर्शिद (गुरु) हैं, उनके नाम छठी पर लिए जाते हैं. इसके बाद फरियाद पढ़ी जाती है. वहीं सलातो सलाम पढ़ा जाता है. मुल्क, इंसानियत, इस्लाम और अकितदत मन्दों के लिए दुआएं की जाती हैं. इसको ही असल उर्स कहा जाता है. इसको छोटा कुल कहा जाता है.
बड़ा उर्स 9 रजब को: चिश्ती ने बताया कि बड़ा कुल 9 रजब (10 जनवरी) को बड़े कुल में आखरी गुस्ल होता है. खादिम ग़ुस्ल की रस्म को निभाते हैं. इसके साथ ही उर्स का समापन होता है. बता दें कि 4 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से चादर पेश की जाएगी. केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलात मंत्री किरेन रिजिजू पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से दरगाह में चादर पेश करेंगे.