अलीगढ़: यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर 20 नवंबर को मतदान होगा. इनमें से एक खैर सीट भी शामिल हैं. जाट, दलित, मुस्लिम और ठाकुर समुदाय की अच्छी संख्या वाली इस सीट पर जीत के लिए प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंक दी है. भाजपा से यहां सुरेंद्र दिलेर जबकि सपा से डॉ. चारु केन को मैदान में हैं. यहां सपा-भाजपा में ही मुख्य मुकाबला देखने को मिल रहा है. अखिलेश यादव की पार्टी को अब तक इस सीट पर जीत नसीब नहीं हुई है.
इस बीच etvbharat जमीनी हालात जानने इलाके में पहुंचा, लोगों से बातचीत की. मतदाताओं ने अपने कई मुद्दे गिनाए. कहा कि वे विकास से नाम पर वोट करेंगे. पढ़िए- पूरी ग्राउंड रिपोर्ट...
स्थानीय निवासी वीरपाल सिंह ने बताया कि प्रत्याशी धर्म और जाति के नाम पर बांटने वाला नहीं होना चाहिए. इलाके का विकास, रोजगार मुहैया कराने वाला, शिक्षा पर काम क रने वाला और किसानों की समस्याओं का समाधान कराने वाला होना चाहिए. प्रत्याशी ईमानदार और शिक्षित होना चाहिए. इलाके में रोजगार, शिक्षा, जाम के अलावा किसानों की भी कई समस्याएं हैं. इनका समाधान होना चाहिए.
जनता चाहती है बदलाव: सलीम खान बॉबी ने बताया कि जनता इस बार बदलाव चाहती है. एक ऐसा पढ़ा-लिखा नेता चाहती है जो सभी के काम करें, विधानसभा क्षेत्र का का विकास कराएं. शिक्षा, बेरोजगारी पर काम करे. यहां का किसान बहुत परेशान है. उनकी समस्याओं को समाधान कराएं. सरकारी स्कूल में पढ़ाई नहीं होती. प्राइवेट स्कूलों की फीस इतनी ज्यादा है कि गरीब का बच्चा वहां पढ़ नहीं सकता.
छोटे किसानों को नहीं मिलती खाद: योगेश कुमार ने बताया कि खैर विधानसभा में खेतीबाड़ी ज्यादा होती है. यहां पर सबसे ज्यादा आलू बोया जाता है. यहां के छोटे किसानों को दुकानदार खाद नहीं देते हैं जबकि बड़े किसानों को खाद मिल जाती है. लिहाजा हम ऐसे प्रत्याशी को चुनेंगे जो इन सभी समस्याओं से छुटकारा दिला सके.
ट्रैफिक जाम की इतनी बड़ी समस्या है कि निकलने में तीन घंट से ज्यादा का वक्त लग जाता है. सालों से खैर बाईपास निकालने की बात कही जा रही है लेकिन अभी तक यहां से बाईपास नहीं निकला है. इससे लोगों को रोजाना परेशानियों का सामना करना पड़ता है. प्रत्याशी को खैर विधानसभा क्षेत्र का ही होना चाहिए था. दूसरे इलाके का प्रत्याशी जनता का दर्द क्या समझेगा.
नगर का विकास और बेरोजगारी है मुद्दा: रामकुमार शर्मा ने बताया कि यहां पर जाति के आधार पर भी वोट बंटेंगे. किसान उसी को वोट देगा जो उनकी समस्याओं को दूर करेगा. किसानों को उनकी फसलों के उचित दाम नहीं मिल रहे हैं. भाजपा ने काम तो कराया है, लेकिन अब बीजेपी में गुटबाजी हो रही है. इससे हो सकता है कि इस पार्टी का प्रत्याशी चुनाव में हार जाए. स्थानीय लोगों की माने तो उनका चुनावी मुद्दा नगर का विकास और बेरोजगारी है.
खैर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र भारत के 403 निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है. यह अलीगढ़ जिले का एक हिस्सा है. इस विधानसभा क्षेत्र में पहला चुनाव 1951 में हुआ था. साल 2008 में संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के आदेश का परिसीमन पारित होने के बाद, निर्वाचन क्षेत्र को पहचान संख्या 71 सौंपी गई.
इस सीट से इतने लोग रह चुके हैं विधायक: चेतन्य राज सिंह, स्वतंत्र पार्टी (1962), पियारे लाल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1967), महेंद्र सिंह, भारतीय क्रांति दल (1969), पियारे लाल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1974), पियारे लाल, जनता पार्टी (1977), शिवराज सिंह, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इंदिरा) (1980), जग वीर, लोक दल (1985), जगवीर सिंह, जनता दल (1989), चौ. महेंद्र सिंह, भारतीय जनता पार्टी (1991), जगवीर सिंह, जनता दल (1993), ज्ञान वती, भारतीय जनता पार्टी (1996), प्रमोद गौड़, बहुजन समाज पार्टी (2002), सत्य पाल सिंह, राष्ट्रीय लोकदल (2007), भगवती प्रसाद, राष्ट्रीय लोकदल (2012), अनूप प्रधान, भारतीय जनता पार्टी (2017) और (2022).
दो बार से भाजपा के खाते में जा रही सीट : खैर विधानसभा क्षेत्र में 4.04 लाख मतदाता है. इसमें 2.6 लाख पुरुष और 1.8 लाख महिलाएं हैं. पिछले दो बार से भाजपा के अनूप प्रधान यहां विधायक बने और उन्हें राजस्व राज्य मंत्री का पद भी दिया गया. 2023 के लोकसभा चुनाव में प्रधान के सांसद बन जाने से ये सीट खाली हुई थी. अब दादा और पिता के बाद तीसरी पीढ़ी के सुरेंद्र दिलेर भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे हैं. खैर विधानसभा क्षेत्र में सुरेंद्र दिलेर के पिता राजवीर दिलेर का अच्छा दबदबा रहा था. लोकसभा चुनाव 2024 में उनका टिकट कट गया था.
अलीगढ़ की खैर विधानसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने चारु केन को उम्मीदवार बनाकर दलित और जाट वोट बैंक को साधने की रणनीति अपनाई है. चारु का मुकाबला बीजेपी के सुरेंद्र दिलेर से है. बसपा ने यहां से डॉक्टर पहल सिंह को प्रत्याशी बनाया है. एससी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली चारु जाट समुदाय से भी जुड़ी हैं. ऐसे में उन्हें दोनों समुदायों का समर्थन मिलने की संभावना है. पहले बसपा और फिर कांग्रेस का हिस्सा रह चुकीं चारु अब सपा से मैदान में हैं और सामाजिक न्याय तथा महिला सशक्तिकरण के मुद्दों पर जोर दे रही हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि सपा इस सीट पर इतिहास बना पाती है या नहीं?
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