पटनाः यूजीसी के चेयरमैन जगदीश कुमार की उस नयी नीति की तारीफ हो रही है जिसमें उन्होंने ये एलान किया है कि शैक्षिक सत्र 2024-25 से विश्वविद्यालय में दो एडमिशन साइकिल चलेंगी. पहली जुलाई-अगस्त और दूसरी जनवरी-फरवरी. यानी अब यूनिवर्सिटी साल में दो बार दाखिला दे सकती हैं. यूजीसी के इस फैसले से वैसे छात्रों का साल बर्बाद नहीं होगा जो रिजल्ट में देरी या फिर स्वास्थ्य संबंधी या व्यक्तिगत समस्या के कारण जुलाई-अगस्त में एडमिशन नहीं ले पाते है.
क्या नयी नीति के लिए तैयार हैं बिहार के विश्वविद्यालय ?: यूजीसी की नयी नीति की सराहना तो हो रही है लेकिन बिहार के विश्वविद्यालय क्या पुरानी व्यवस्था के साथ इस नयी नीति के साथ कदमताल कर पाएंगे, ये बड़ा सवाल है. सवाल इसलिए कि सेमेस्टर सिस्टम को अभी भी बिहार के विश्वविद्यालय ठीक से अडॉप्ट नहीं कर पाए हैं. प्रदेश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में एग्जाम साइकल विलंब चल रही है.
"यूजीसी की यह पहला छात्र हित में बहुत सराहनीय है. इससे एक साथ शिक्षकों को सेमेस्टर वन को भी पढ़ाना होगा, सेमेस्टर 2 को भी पढ़ाना होगा. इससे शिक्षकों को दिक्कत नहीं होनी चाहिए क्योंकि शिक्षकों का काम ही बच्चों को पढ़ाना होता है. लेकिन यदि साल में ओपन यूनिवर्सिटीज की तर्ज पर दो नामांकन सत्र शुरू करना है तो उसके पहले तैयारी दुरुस्त करनी होगी." प्रो आदित्य चंद्र झा, विभागाध्यक्ष, इतिहास, गंगा देवी कॉलेज, जेपी यूनिवर्सिटी
सभी विश्वविद्यालयों में स्टाफ की भारी कमीः प्रोफेसर आदित्य चंद्र झा का कहना है कि "प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की काफी कमी है. सच तो ये है कि 55 फीसदी से अधिक अस्थायी शिक्षक हैं. ऐसे में यह पहल शुरू करनी है तो सबसे पहले जरूरी है कि मैन पावर की कमी को पूरा किया जाए और अभी जो शैक्षणिक सत्र विलंब से चल रहे हैं वह सुचारू हो."
'छात्र हित में है यूजीसी का फैसला': छात्र भी यूजीसी के नये फैसले की सराहना कर रहे हैं. छात्र नेता दिलीप ने कहा कि " छात्र हित में यूजीसी का ये सराहनीय फैसला है. लेकिन इसे धरातल पर उतारने में कई चुनौतियां हैं. यूजीसी पहले बिहार के विश्वविद्यालयों का इंफ्रास्ट्रक्चर दुरुस्त करवाए,इसके साथ ही जो शैक्षणिक सत्र लेट चल रहे हैं उसे सुचारू करें. विश्वविद्यालय में जो मैनपावर की कमी है वह दूर करें इसके साथ ही विश्वविद्यालयों को नई टेक्नोलॉजी से जोड़े. तभी इससे लाभ हो पाएगा."
शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं विश्वविद्यालयः फिलहाल प्रदेश के अधिकांश विश्वविद्यालयों में कई विभाग तो अतिथि शिक्षकों के भरोसे हैं. बिहार के मुंगेर विश्वविद्यालय के कुलपति ने हाल ही में राज्यपाल को ये बताया था कि "उनके यहां पोस्ट ग्रैजुएशन में शिक्षक और शिक्षकेत्तर कर्मियों के एक भी पद नहीं है. ग्रैजुएशन के शिक्षक ही पोस्ट ग्रैजुएशन के स्टूडेंट्स को पढ़ा रहे हैं."
कई विषयों के शिक्षक ही नहींः बीएन मंडल मधेपुरा यूनिवर्सिटी में 14 विषयों में सिर्फ तीन विषयों में ही शिक्षक हैं. पटना विश्वविद्यालय में बंगाली भाषा के शिक्षक नहीं है. वही एलन मिश्रा विश्वविद्यालय में शिक्षकों के 117 पद खाली हैं. बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर में शिक्षकों के कुल 1690 स्वीकृत पद हैं जिसमें 637 नियमित हैं, जबकि 501 अतिथि शिक्षक है और शेष पद खाली हैं.
हर जगह एक ही कहानीः इसके अलावा तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में 15 विषय में एक भी नियमित शिक्षक नहीं है, छपरा के जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय में 11 विषयों में स्थायी या अस्थायी कोई शिक्षक ही नहीं है. मगध विश्वविद्यालय में 11 विषयोंं के कोई शिक्षक नहीं है आर्यभट्ट विश्वविद्यालय में चार विषयों के कोई शिक्षक नहीं है. पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में पाली और बंगाली विषय में एक भी शिक्षक नहीं है.
पद स्वीकृत, शिक्षक नदारदः ऐसा ही हाल आरा के वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय का है. यहां 965 शिक्षकों के स्वीकृत पद हैं जिसमें 351 शिक्षक स्थायी हैं तो 264 अतिथि शिक्षक हैं, शेष पद रिक्त हैं. पूर्णिया विश्वविद्यालय में शिक्षकों के 782 पदों में 172 पर ही स्थायी शिक्षक हैं. शिक्षकों की भारी कमी के कारण यहां शैक्षणिक सत्र विलंब चल रहा है.बिहार कृषि विश्वविद्यालय में शिक्षकों के 676 पद हैं जिसमें सिर्फ 202 शिक्षक ही कार्यरत हैं.
क्या कहते हैं शिक्षा मंत्री ?: यूजीसी की नयी नीति को लेकर बिहार के शिक्षा मंत्री सुनील कुमार का कहना है कि "यूजीसी की जो भी गाइडलाइंस हैं, उसे हमें फॉलो करना है. जहां तक साल में दो एडमिशन साइकल की बात है तो इसके लिए बिहार में शिक्षा विभाग ने वाइस चांसलर्स की तीन सदस्यीय कमेटी बनाई है. कमेटी की अनुशंसाओं के अनुसार आगे काम होगा."
"विश्वविद्यालयों को सरकार हर तरह की मदद पहुंचाएगी. वाइस चांसलर की कमिटी ये तय करेगी कि नयी नीति को कैसे इसे लागू किया जा सकता है. जो कुछ भी प्रेक्टिकल तौर पर संभव होगा किया जाएगा. कुछ चीजों में थोड़ा वक्त लगेगा. विश्विवद्यालयों की मांगों की प्राथमिक सूची तैयार कर चरणबद्ध तरीके से विभाग काम करेगा." सुनील कुमार, शिक्षा मंत्री, बिहार सरकार