गया: मकर संक्रांति के दिन तिल खाने का बड़ा ही महत्व बताया जाता है. इस अवसर पर तिल के लड्डू और तिल की मिठाइयां वगैरह खूब बिकते हैं. बाजार तिलकुट की सोंधी खुशबू से गुलजार रहता है. बिहार के छोटे से गांव गया के डंगरा के तिलकुट का स्वाद चखने की लालसा देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में रहने वालों के बीच भी रहती है. डंगरा के तिलकुट का सफर वर्तमान में लंदन-अमेरिका तक है.
डंगरा के तिलकुट की धमक लंदन से अमेरिका तक: ठंड के सीजन में बनने वाले गुड़ के तिलकुट को विदेशों में अपने रिश्तेदारों के पास भेजने की होड़ सी लग जाती है. लंदन-अमेरिका के अलावा पड़ोसी देश पाकिस्तान व सऊदी अरब, कुवैत समेत अन्य देशों तक है. कोई कूरियर से तो कोई खुद अपने साथ डंगरा के तिलकुट को देेश या विदेश ले जाना नहीं भूलता. वहीं, विदेशों से जो आते हैं, वह अपने साथ यहां के तिलकुट जरूर ले जाते हैं.
पंजे भर का तिलकुट जितना खूबसूरत, स्वाद उतना ही लजीज: डंगरा का गुड़ का तिलकुट पंजे भर का होता है. यह तिलकुट देखने में जितना खूबसूरत होता है. स्वाद भी उतना ही लजीज होता है. यदि एक बार जो खा ले वह जिंदगी भर इसका मुरीद हो जाता है. गया में वैसे कई स्थानों पर तिलकुट का निर्माण होता है. जिसमें गया शहर का रमना रोड, टिकारी रोड आदि शामिल हैं, लेकिन कहा जाता है कि इन शहरी क्षेत्र में चीनी का ही तिलकुट बड़े पैमाने पर बनाया जाता है. अब गुड़ का तिलकुट भले ही बनने लगा है, लेकिन गुड़ के तिलकुट का आविष्कार डंगरा से है और आज भी यहीं के गुड़ के तिलकुट की काफी प्रसिद्धी है.
हर सप्ताह करोड़ों का कारोबार: हर सप्ताह करोड़ों का कारोबार तिलकुट का होता है. औसतन एक कारोबारी तकरीबन 4 से 5 क्विंटल तिलकुट रोज बनाता है. कोई कारोबारी 6 क्विंटल बनाता है तो कोई कारोबारी तीन क्विंटल भी बनाता है. तकरीबन 30 तिलकुट की दुकानें हैं. ठंड के सीजन में तकरीबन हर हफ्ते करोड़ों का कारोबार तिलकुट का होता है. 3 महीने के सीजन में कई करोड़ के तिलकुट की यहां से बिक्री होती है.
उड़ीसा-झारखंड से लेकर दिल्ली-कोलकाता तक होलसेल सप्लाई: डंगरा के तिलकुट की बात करें तो प्रचार-प्रसार से काफी दूर जरूर है, लेकिन इसके सोंधी खुशबू लजीज स्वाद ने इसे देश के अलावा विदेश तक पहुंचा दिया है. देश में बात करें तो बिहार -झारखंड, कोलकाता, दिल्ली तक इसकी होलसेल सप्लाई होती है. यहां का तिलकुट उड़ीसा भी जाता है.
1000 से अधिक लोगों को मिलता है रोजगार: देश के कई राज्यों में इसकी सप्लाई किलो में नहीं, बल्कि टन में में होती है. यहां ठंड के दो-तीन महीने तक करीब 1000 से अधिक लोगों को रोजगार मिल जाता है. तिलकुट कूटने की कारीगरी सीखे लोग 3 महीने का रोजगार पा लेते हैं और अपनी कारीगरी के बदले अच्छी-खासी आमदनी भी कर लेते हैं.
"गुड़ के तिलकुट का आविष्कार डंगरा में ही हुआ था. गया शहर में भले ही आज तिलकुट की प्रसिद्धि के लिए रमना रोड को जाना जाता है, लेकिन यहां मुख्य रूप से चीनी के तिलकुट का निर्माण कहीं ज्यादातर होता है. वहीं, डंगरा में सिर्फ गुड का तिलकुट बनता है. सबसे पहले गुड़ के तिलकुट बनाने का आविष्कार डांगरा में ही हुआ था. इसके बाद ही चीनी का तिलकुट बनना शुरू हुआ." -कारू गुप्ता प्रसाद, कारोबारी
डंगरा में मिट्टी के हांडी में बनता है तिलकुट: तिलकुट के कारोबारी मनोज कुमार गुप्ता उर्फ पप्पू कुमार गुप्ता बताते हैं कि तिलकुट यूं तो हर जगह लोहे की कढ़ाई में तिलकुट की सामग्री तैयार होती है. डंगरा में सिर्फ मिट्टी की हांडी में ही इसे बनाया जाता है. मिट्टी की हांडी में सामग्री के बनने के कारण जब तिलकुट कूटकर तैयार होता है, तो वह सोंधी-सोंधी खुशबू वाला होता है. सोंधी खुशबू वाला स्वादिष्ट डंगरा का तिलकुट का नाम इतिहास के पन्नों में भी है. यहां का पानी की अपनी खासियत है.
" इस साल ठंड के सीजन में अपने पाकिस्तान में रहने वाले परिवार के लिए डंगरा की तिलकुट भेजा हूं. डंगरा का तिलकुट काफी प्रसिद्ध है. यह स्वादिष्ट और लजीज है. पुश्त दर पुश्त से तिलकुट का कारोबार यहां के लोग संभाल रहे हैं. गुड़ के तिलकुट से डंगरा की पहचान है. यह सैकड़ों सालों से डंगरा में बन रहा है. यहां का तिलकुट दिल्ली, उड़ीसा, रांची, बंगाल के अलावे विदेश की बात करें तो सउदिया, पाकिस्तान, कुवैत, अमेरिका समेत कई देशों में डिमांड के अनुसार जाता है."-मोहम्मद सुल्तान, ग्राहक
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