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गैस्ट्रोकॉन-24 का समापन, विशेषज्ञों ने साझा किया अनुभव - Medical conference

Doctors Conference in Ranchi. गैस्ट्रोकॉन-24 का समापन रविवार शाम को हो गया. इस दौरान देश भर के डॉक्टरों ने अपने-अपने अनुभवों को साझा किया.

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : 2 hours ago

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गैस्ट्रोकॉन-24 का दो दिवसीय वार्कशॉप समापन करते हुए (ईटीवी भारत)

रांची: इंडियन सोसायटी ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी द्वारा रांची में डोरंडा के शौर्य सभागार में आयोजित दो दिवसीय नेशनल कॉन्फ्रेंस गैस्ट्रोकॉन-24 का रविवार शाम को समापन हो गया. इस नेशनल कॉन्फ्रेंस में झारखंड के अलावा दूसरे राज्यों से पेट व लीवर रोग के करीब दो सौ से अधिक विशेषज्ञ चिकित्सक शामिल हुए. सम्मेलन के अंतिम दिन 6 अक्टूबर को भी पेट, लीवर, पैंक्रियाज, पित्त की थैली से जुड़े 20 से ज्यादा विभिन्न बीमारियों से संबंधित विषय पर विशेषज्ञ डॉक्टरों ने चर्चा की. कॉन्फ्रेंस के दौरान अलग-अलग टॉपिक पर एक्सपर्ट चिकित्सकों ने मेडिकल के क्षेत्र में हो रही नई अनुसंधान और दवाओं को लेकर अपनी-अपनी बात रखीं.

रविवार को कॉन्फ्रेंस की शुरूआत गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट डॉ. अमर प्रेम द्वारा गॉल ब्लैडर कैंसर की जल्द पहचान और प्रबंधन विषय के साथ हुई. उन्होंने बताया कि पित्ताशय के कैंसर का पता लगाना मुश्किल है. क्योंकि इसके लक्षण शुरुआती चरणों में दिखाई नहीं देते हैं. जब तक लक्षण दिखाई देते हैं, तो वे पित्त पथरी या पित्त नली में रुकावट जैसी अधिक सामान्य स्थितियों के समान हो जाते हैं. जिससे पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, पीली त्वचा और आंखों का सफेद भाग पीला पड़ने लगता है. ऐसे रोगियों की पहचान शुरूआती स्तर पर की जा सके और इसका प्रबंधन कैसे किया जा सके इसे जानना और समझना बहुत जरूरी है.

बिहार के डॉ. राजीव कुमार सिंह ने एंडोस्कोपी पर एआई के महत्व के बारे जानकारी दी. चंढीगढ़ के डॉ. सरोज कांत सिन्हा ने अल्सरेटिव कोलाइटिस का 2025 और इससे आगे के इलाज विषय पर अपनी बात रखी. डॉ सरोज ने बताया कि अल्सरेटिव कोलाइटिस, बड़ी आंत (कोलन) और मलाशय की अंदरूनी परत में सूजन होने वाली एक बीमारी है. इसे इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (IBD) के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने बताया कि अगर समय रहते इसका इलाज नही किया गया तो यह घातक साबित हो सकता है.

डॉ. सरोज सिन्हा के अनुसार, अल्सरेटिव कोलाइटिस के कई लक्षण हैं, जैसे पेट में दर्द और ऐंठन, आंत के ऊपर गुड़गुड़ाहट या छप-छप की आवाज, मल में रक्त और संभवतः मवाद होना, दस्त, बुखार, वजन घटना जैसे लक्षण शामिल हैं. कॉन्फ्रेंस के दौरान मुख्य रूप से नागपुर के डॉ. सौरभ मुकेवर, दिल्ली के डॉ. अनिल अरोड़ा, डॉ. पियुष रंजन, कोलकाता के डॉ. संदीप पाल, अपोलाे दिल्ली के डॉ. हितेंद्र गर्ग, कोलकाता के डॉ. संजय मंडल और डॉ. नीरव गोयल ने व्याख्यान दिए.

इलाज के नए-नए एडवांस तकनीक से अवगत हुए झारखंड समेत दूसरे राज्य के युवा चिकित्सक

इस कॉन्फ्रेंस के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. मनोहर लाल और को-चेयरपर्सन डॉ. जयंत घोष ने बताया कि पेट, आंत व लीवर से संबंधित इस दो दिवसीय नेशनल कॉन्फ्रेंस में अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ अलग-अलग राज्यों से शामिल होकर झारखंड समेत दूसरे जगह के डाॅक्टरों को नए-नए तकनीक व अपने अनुभव से अवगत कराया. कॉन्फ्रेंस के दौरान लाइव सर्जरी से युवा चिकित्सकों ने ईलाज की नई और अत्याधुनिक तकनीक सीखी. सम्मेलन में उपस्थित डॉक्टरों ने एक्लेसिया कार्डिया का ऑपरेशन, पैंक्रियाज से संबंधित बीमारी, पैंक्रियाटिक स्यूडोसिस्ट का ड्रेनेज, ईआरसीपी के द्वारा पित्त की नली में स्थित बड़े-बड़े स्टोन का स्पाई ग्लास के द्वारा ऑपरेशन की तकनीक को सीखा.

एंडोस्कोपी से पोयम तकनीक का इस्तेमाल कर खाने की नली की सर्जरी संभव: डॉ. विकास सिंघला

मैक्स हॉस्पिटल दिल्ली के डॉ. विकास सिंघला ने पोयम यानी बिना चीर-फाड़ के कैसे खाने की नली की सर्जरी कर उसे ठीक किया जा सकता है इस विषय प्रस्तुति दी. इसके बाद लाइव सर्जरी कर इसकी बारीकियों को भी बताया गया. उन्होंने बताया कि बिना चीर-फाड़ के एंडोस्कोपी से पोयम (ओरल एंडोस्कोपिक मायटोमी) तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक में, मुंह के रास्ते जाकर आहार नली में छोटा कट लगाया जाता है, इसके बाद, इसोफेगस के ऊपरी हिस्से से लेकर जंक्शन के नीचे तक बढ़ी मांसपेशियों को काटा जाता है. इस प्रक्रिया में करीब 45 मिनट का समय लगता है. जिसके बाद मरीज को परेशानी से निजात मिल जाता है.

क्रोनिक पैंक्रियाटिक से अग्नाशय की संरचना व कार्य-प्रणाली हो सकती है खराब, समय से पहचान जरूरी : डॉ. संजीव झा

आईजीआईएमएस पटना के डॉ. संजीव कुमार झा ने बताया कि क्रोनिक पैंक्रियाटिस अग्नाशय की लंबे समय से चली आ रही सूजन होता है. इस वजह से अग्नाशय की संरचना और कार्य-प्रणाली खराब हो जाती है. अल्कोहल का अधिक सेवन और सिगरेट धुम्रपान कोनिक पैंक्रियाटिक के दो प्रमुख कारण होते हैं. पेट में दर्द लगातार हो सकता है और कई बार दर्द पर सामान्य दवाईयां काम नहीं करती है. इसके लिए अन्य सर्जिकल तरीको को अपना पड़ता है.

डॉ. ए.के सिंह ने एसाइटिस के बारे दी जानकारी

पटना के डॉ. एके सिंह ने बताया कि एसाइटिस का मतलब पेट में पानी भरना है. इसके कई वजह हो सकता है. पेट में पानी भरना ही बड़े बीमारी का लक्षण हो सकता है. लीवर सिरोसिस, टीबी फेल्योर और हृदय रोग के कारण भी यह होता है. ऐसे मरीजों को अपने स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सजग रहने की जरूरत है. पेट में पानी का पता अल्ट्रासाउंड से डायग्नोसिस कर लगाया जा सकता है.

बैठक में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा

कॉन्फ्रेंस के दौरान इंडियन सोसायटी ऑफ गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी की गर्वनिंग बॉडी की बैठक रविवार को रांची में संपन्न हुई. बैठक के दौरान नई कमेटी का चयन किया गया जिसमें सर्वसम्मति से रिम्स के डॉ. मनोहर लाल प्रसाद को इंडियन सोसायटी ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी बिहार-झारखंड चैप्टर का प्रेसिडेंट चुना गया. डॉ. आशीष कुमार झा को प्रेसिडेंट (इलेक्ट), डॉ. विजय शंकर को वाइस प्रेसिडेंट, डॉ. संजीव कुमार झा को सेक्रेटरी, डॉ. रवि कांत व डॉ. रविश को ज्वाइंट सेक्रेटरी और डॉ. सौरभ जयसवाल को कोषाध्यक्ष चुना गया. इसके अलावा गवर्निंग काउंसिल के सदस्यों के रुप में डॉ. संजीव ठाकुर, डॉ. जयंत घोष, डॉ. शैलेश कुमार सिंह, डॉ. तेज नारायण, डॉ. दीपक कुमार सिंह और डॉ. प्रणव मंडल को मनोनित किया गया.

ये भी पढ़ें- रांची में दो दिवसीय गैस्ट्रोकॉन-24: पहले दिन बिना इंडोस्कोपी विधि से लाइव सर्जरी, युवा डॉक्टराें ने जाना आधुनिक तकनीक - Two day Gastrocon 24 in Ranchi

गैस्ट्रोकॉन-24ः झारखंड में जुटेंगे देशभर के पेट और लीवर रोग के विशेषज्ञ डॉक्टर्स - Gastrocon 24

रांची: इंडियन सोसायटी ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी द्वारा रांची में डोरंडा के शौर्य सभागार में आयोजित दो दिवसीय नेशनल कॉन्फ्रेंस गैस्ट्रोकॉन-24 का रविवार शाम को समापन हो गया. इस नेशनल कॉन्फ्रेंस में झारखंड के अलावा दूसरे राज्यों से पेट व लीवर रोग के करीब दो सौ से अधिक विशेषज्ञ चिकित्सक शामिल हुए. सम्मेलन के अंतिम दिन 6 अक्टूबर को भी पेट, लीवर, पैंक्रियाज, पित्त की थैली से जुड़े 20 से ज्यादा विभिन्न बीमारियों से संबंधित विषय पर विशेषज्ञ डॉक्टरों ने चर्चा की. कॉन्फ्रेंस के दौरान अलग-अलग टॉपिक पर एक्सपर्ट चिकित्सकों ने मेडिकल के क्षेत्र में हो रही नई अनुसंधान और दवाओं को लेकर अपनी-अपनी बात रखीं.

रविवार को कॉन्फ्रेंस की शुरूआत गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट डॉ. अमर प्रेम द्वारा गॉल ब्लैडर कैंसर की जल्द पहचान और प्रबंधन विषय के साथ हुई. उन्होंने बताया कि पित्ताशय के कैंसर का पता लगाना मुश्किल है. क्योंकि इसके लक्षण शुरुआती चरणों में दिखाई नहीं देते हैं. जब तक लक्षण दिखाई देते हैं, तो वे पित्त पथरी या पित्त नली में रुकावट जैसी अधिक सामान्य स्थितियों के समान हो जाते हैं. जिससे पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, पीली त्वचा और आंखों का सफेद भाग पीला पड़ने लगता है. ऐसे रोगियों की पहचान शुरूआती स्तर पर की जा सके और इसका प्रबंधन कैसे किया जा सके इसे जानना और समझना बहुत जरूरी है.

बिहार के डॉ. राजीव कुमार सिंह ने एंडोस्कोपी पर एआई के महत्व के बारे जानकारी दी. चंढीगढ़ के डॉ. सरोज कांत सिन्हा ने अल्सरेटिव कोलाइटिस का 2025 और इससे आगे के इलाज विषय पर अपनी बात रखी. डॉ सरोज ने बताया कि अल्सरेटिव कोलाइटिस, बड़ी आंत (कोलन) और मलाशय की अंदरूनी परत में सूजन होने वाली एक बीमारी है. इसे इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (IBD) के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने बताया कि अगर समय रहते इसका इलाज नही किया गया तो यह घातक साबित हो सकता है.

डॉ. सरोज सिन्हा के अनुसार, अल्सरेटिव कोलाइटिस के कई लक्षण हैं, जैसे पेट में दर्द और ऐंठन, आंत के ऊपर गुड़गुड़ाहट या छप-छप की आवाज, मल में रक्त और संभवतः मवाद होना, दस्त, बुखार, वजन घटना जैसे लक्षण शामिल हैं. कॉन्फ्रेंस के दौरान मुख्य रूप से नागपुर के डॉ. सौरभ मुकेवर, दिल्ली के डॉ. अनिल अरोड़ा, डॉ. पियुष रंजन, कोलकाता के डॉ. संदीप पाल, अपोलाे दिल्ली के डॉ. हितेंद्र गर्ग, कोलकाता के डॉ. संजय मंडल और डॉ. नीरव गोयल ने व्याख्यान दिए.

इलाज के नए-नए एडवांस तकनीक से अवगत हुए झारखंड समेत दूसरे राज्य के युवा चिकित्सक

इस कॉन्फ्रेंस के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. मनोहर लाल और को-चेयरपर्सन डॉ. जयंत घोष ने बताया कि पेट, आंत व लीवर से संबंधित इस दो दिवसीय नेशनल कॉन्फ्रेंस में अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ अलग-अलग राज्यों से शामिल होकर झारखंड समेत दूसरे जगह के डाॅक्टरों को नए-नए तकनीक व अपने अनुभव से अवगत कराया. कॉन्फ्रेंस के दौरान लाइव सर्जरी से युवा चिकित्सकों ने ईलाज की नई और अत्याधुनिक तकनीक सीखी. सम्मेलन में उपस्थित डॉक्टरों ने एक्लेसिया कार्डिया का ऑपरेशन, पैंक्रियाज से संबंधित बीमारी, पैंक्रियाटिक स्यूडोसिस्ट का ड्रेनेज, ईआरसीपी के द्वारा पित्त की नली में स्थित बड़े-बड़े स्टोन का स्पाई ग्लास के द्वारा ऑपरेशन की तकनीक को सीखा.

एंडोस्कोपी से पोयम तकनीक का इस्तेमाल कर खाने की नली की सर्जरी संभव: डॉ. विकास सिंघला

मैक्स हॉस्पिटल दिल्ली के डॉ. विकास सिंघला ने पोयम यानी बिना चीर-फाड़ के कैसे खाने की नली की सर्जरी कर उसे ठीक किया जा सकता है इस विषय प्रस्तुति दी. इसके बाद लाइव सर्जरी कर इसकी बारीकियों को भी बताया गया. उन्होंने बताया कि बिना चीर-फाड़ के एंडोस्कोपी से पोयम (ओरल एंडोस्कोपिक मायटोमी) तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक में, मुंह के रास्ते जाकर आहार नली में छोटा कट लगाया जाता है, इसके बाद, इसोफेगस के ऊपरी हिस्से से लेकर जंक्शन के नीचे तक बढ़ी मांसपेशियों को काटा जाता है. इस प्रक्रिया में करीब 45 मिनट का समय लगता है. जिसके बाद मरीज को परेशानी से निजात मिल जाता है.

क्रोनिक पैंक्रियाटिक से अग्नाशय की संरचना व कार्य-प्रणाली हो सकती है खराब, समय से पहचान जरूरी : डॉ. संजीव झा

आईजीआईएमएस पटना के डॉ. संजीव कुमार झा ने बताया कि क्रोनिक पैंक्रियाटिस अग्नाशय की लंबे समय से चली आ रही सूजन होता है. इस वजह से अग्नाशय की संरचना और कार्य-प्रणाली खराब हो जाती है. अल्कोहल का अधिक सेवन और सिगरेट धुम्रपान कोनिक पैंक्रियाटिक के दो प्रमुख कारण होते हैं. पेट में दर्द लगातार हो सकता है और कई बार दर्द पर सामान्य दवाईयां काम नहीं करती है. इसके लिए अन्य सर्जिकल तरीको को अपना पड़ता है.

डॉ. ए.के सिंह ने एसाइटिस के बारे दी जानकारी

पटना के डॉ. एके सिंह ने बताया कि एसाइटिस का मतलब पेट में पानी भरना है. इसके कई वजह हो सकता है. पेट में पानी भरना ही बड़े बीमारी का लक्षण हो सकता है. लीवर सिरोसिस, टीबी फेल्योर और हृदय रोग के कारण भी यह होता है. ऐसे मरीजों को अपने स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सजग रहने की जरूरत है. पेट में पानी का पता अल्ट्रासाउंड से डायग्नोसिस कर लगाया जा सकता है.

बैठक में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा

कॉन्फ्रेंस के दौरान इंडियन सोसायटी ऑफ गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी की गर्वनिंग बॉडी की बैठक रविवार को रांची में संपन्न हुई. बैठक के दौरान नई कमेटी का चयन किया गया जिसमें सर्वसम्मति से रिम्स के डॉ. मनोहर लाल प्रसाद को इंडियन सोसायटी ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी बिहार-झारखंड चैप्टर का प्रेसिडेंट चुना गया. डॉ. आशीष कुमार झा को प्रेसिडेंट (इलेक्ट), डॉ. विजय शंकर को वाइस प्रेसिडेंट, डॉ. संजीव कुमार झा को सेक्रेटरी, डॉ. रवि कांत व डॉ. रविश को ज्वाइंट सेक्रेटरी और डॉ. सौरभ जयसवाल को कोषाध्यक्ष चुना गया. इसके अलावा गवर्निंग काउंसिल के सदस्यों के रुप में डॉ. संजीव ठाकुर, डॉ. जयंत घोष, डॉ. शैलेश कुमार सिंह, डॉ. तेज नारायण, डॉ. दीपक कुमार सिंह और डॉ. प्रणव मंडल को मनोनित किया गया.

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