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कानपुर में हजारों लोगों ने की रावण मंदिर में पूजा, मांगे बुद्धि और बल

दशहरे पर दो सौ साल से हो रही रावण की पूजा, साल में सिर्फ एक ही दिन खुलता है मंदिर

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 3 hours ago

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कानपुर का दशानन मंदिर (Photo Credit; ETV Bharat)

कानपुर: बुराई पर अच्छाई का पर्व विजयादशमी जहां देशभर में मन रहा. जगह जगह लोग लंकापति रावण के पुतले का दहन कर रहे. लेकिन इससे उलट कानपुर के शिवाला इलाके में रावण का एक मंदिर भी है, जो साल में सिर्फ दशहरे के दिन ही खुलता है और यहां पर रावण की पूजा अर्चना की जाती है. रावण मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए दूसरे जिले से भी लोग पहुंचते हैं. मान्यता है कि दशहरे वाले दिन जो कोई भी इस मंदिर के दर्शन करता है और अपनी मन्नत पूरी होने की आस रखता है तो एक साल के अंदर यानी कि अगले विजयादशमी पर्व तक वह मन्नत जरूर पूरी होती है. शनिवार को दशहरे के दिन हजारों की संख्या में भक्त रावण के मंदिर पहुंचे.

मंदिर के पुजारी राम बाजपेई ने बताया कि कानपुर के शिवाला में जो रावण का मंदिर है वह करीब 200 साल पुराना है. इस मंदिर के पट केवल दशहरे वाले दिन सुबह में खुलती हैं और शाम को जैसे ही रावण के पुतले का दहन होता है, उसके बाद पट बंद कर दिए जाते हैं. मंदिर से कुछ दूरी पर ही बने मैदान में रावण के पुतले को भी जलाया जाता है. पुजारी ने कहा कि जो भक्त यहां रावण के मंदिर में दर्शन करने आते हैं वह यहां पर तरोई के फूल भी चढ़ाते हैं,साथ में दीया भी जलाते हैं. वहीं भक्तों का मानना है कि रावण सबसे अधिक विद्वान था. इसलिए उसकी विद्वता को देखते हुए यहां पर पूजा अर्चना की जाती है और यह एक कानपुर की सालों की परंपरा है जिसको लोग अभी तक निभाते आ रहे हैं.

रावण की पूजा कर मांगते मन्नत (Video Credit; ETV Bharat)

रावण के मंदिर में दर्शन करने के लिए जो भक्त पहुंचते हैं वह मौके पर ही एक पंथ दो कार्य करते हैं. एक ओर जहां वो मंदिर में दशानन के दर्शन करते हैं, वहीं मंदिर के आसपास उनको नीलकंठ पक्षी के भी दर्शन हो जाते हैं. कई लोग तो सिर्फ नीलकंठ पक्षी के दर्शन करने के लिए भी रावण के मंदिर जरूर आते हैं.


यह भी पढ़ें:यहां भगवान राम से पहले की जाती है रावण की पूजा, नहीं जलाते रावण का पुतला, वध के बाद होता है तेरहवीं संस्कार

कानपुर: बुराई पर अच्छाई का पर्व विजयादशमी जहां देशभर में मन रहा. जगह जगह लोग लंकापति रावण के पुतले का दहन कर रहे. लेकिन इससे उलट कानपुर के शिवाला इलाके में रावण का एक मंदिर भी है, जो साल में सिर्फ दशहरे के दिन ही खुलता है और यहां पर रावण की पूजा अर्चना की जाती है. रावण मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए दूसरे जिले से भी लोग पहुंचते हैं. मान्यता है कि दशहरे वाले दिन जो कोई भी इस मंदिर के दर्शन करता है और अपनी मन्नत पूरी होने की आस रखता है तो एक साल के अंदर यानी कि अगले विजयादशमी पर्व तक वह मन्नत जरूर पूरी होती है. शनिवार को दशहरे के दिन हजारों की संख्या में भक्त रावण के मंदिर पहुंचे.

मंदिर के पुजारी राम बाजपेई ने बताया कि कानपुर के शिवाला में जो रावण का मंदिर है वह करीब 200 साल पुराना है. इस मंदिर के पट केवल दशहरे वाले दिन सुबह में खुलती हैं और शाम को जैसे ही रावण के पुतले का दहन होता है, उसके बाद पट बंद कर दिए जाते हैं. मंदिर से कुछ दूरी पर ही बने मैदान में रावण के पुतले को भी जलाया जाता है. पुजारी ने कहा कि जो भक्त यहां रावण के मंदिर में दर्शन करने आते हैं वह यहां पर तरोई के फूल भी चढ़ाते हैं,साथ में दीया भी जलाते हैं. वहीं भक्तों का मानना है कि रावण सबसे अधिक विद्वान था. इसलिए उसकी विद्वता को देखते हुए यहां पर पूजा अर्चना की जाती है और यह एक कानपुर की सालों की परंपरा है जिसको लोग अभी तक निभाते आ रहे हैं.

रावण की पूजा कर मांगते मन्नत (Video Credit; ETV Bharat)

रावण के मंदिर में दर्शन करने के लिए जो भक्त पहुंचते हैं वह मौके पर ही एक पंथ दो कार्य करते हैं. एक ओर जहां वो मंदिर में दशानन के दर्शन करते हैं, वहीं मंदिर के आसपास उनको नीलकंठ पक्षी के भी दर्शन हो जाते हैं. कई लोग तो सिर्फ नीलकंठ पक्षी के दर्शन करने के लिए भी रावण के मंदिर जरूर आते हैं.


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