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पुष्कर में है विश्व की सबसे प्राचीन भगवान विष्णु की मूर्ति, यहीं विष्णु की नाभि से ब्रह्मा जी का हुआ था उद्भव - Kanbaye Temple pushkar - KANBAYE TEMPLE PUSHKAR

जन्माष्टमी के मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं पुष्कर से जुड़ा ऐसा इतिहास, जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है. जानिए पुष्कर के सूरजकुंड गांव के पास बने कानाबाय मंदिर के बारे में, जहां भगवान विष्णु की 4 हजार साल से भी ज्यादा पुरानी प्रतिमा मौजूद है और क्या है इस मंदिर की खासियत और पुष्कर से जुड़ी रोचक पौराणिक मान्यताएं पढ़िए पूरी खबर.

Kanbaye Temple pushkar
भगवान विष्णु की सबसे प्राचीन मूर्ति (ETV Bharat GFX)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 26, 2024, 5:19 PM IST

पुष्कर का कानबाय मंदिर (ETV Bharat AJmer)

अजमेर : देशभर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं. ईटीवी भारत आज आपको उस स्थान के दर्शन करवा रहा है, जहां धरती पर सर्वप्रथम भगवान श्री विष्णु का पदार्पण हुआ था. यहां आज भी विश्व की सबसे प्राचीन भगवान विष्णु की शेषनाग पर शयन करते हुए प्रतिमा मौजूद है. यह वही प्रतिमा है, जिसको स्वयं जगतपिता ब्रह्मा की ओर से पूजा जाता था. तीर्थ नगरी पुष्कर के अरण्य क्षेत्र में मौजूद सूरजकुंड गांव के समीप कानबाय के नाम से यह पवित्र स्थान विख्यात है. हरिवंश पुराण में श्रीहरि के इस पवित्र स्थान का उल्लेख मिलता है. पुष्कर अरण्य क्षेत्र इतना पवित्र है कि यहां ब्रह्मा विष्णु और महेश ने सृष्टि यज्ञ से पहले घोर तप किए थे. इस स्थान का अति पौराणिक महत्व है. यही वजह है कि भगवान श्रीराम दो बार और भगवान श्रीकृष्ण सात बार स्वयं यहां आए थे.

तीर्थ राज गुरु पुष्कर नगरी में जगतपिता ब्रह्मा का विश्व में इकलौता मंदिर है. सृष्टि के रचयिता जगतपिता ब्रह्मा का उद्भव भगवान विष्णु की नाभि से माना जाता है. करोड़ों वर्ष पहले पुष्कर से 12 किलोमीटर दूर नागौर की ओर समंदर था. शास्त्रों के मुताबिक यह समंदर ही क्षीर सागर था. पुष्कर से 8 किलोमीटर की दूरी पर सूरजकुंड गांव स्थित है, जहां समीप ही कानबाय नाम से विख्यात अति प्राचीन स्थान है. यहां करोड़ों वर्ष पहले क्षीर सागर हुआ करता था. समुद्र मंथन के बाद क्षीर सागर का दायरा सिमट गया. समुद्र मंथन में ही माता लक्ष्मी का भी उद्भव हुआ था. ऐसे में पुष्कर आरण्य क्षेत्र में ही लक्ष्मी का उद्भव समुद्र मंथन के दौरान होना माना जाता है.

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यहां भगवान विष्णु ने किया था सर्वप्रथम पदार्पण : पदम पुराण के अनुसार हजारों वर्ष पहले पुष्कर के कानबाय क्षेत्र में ही पंच धारों (नदी) का मिलन था. इन नदियों में नंदा, कनका, सुप्रभा, सुधा और प्राची शामिल थी. यही वह स्थान है जहां भगवान विष्णु ने धरती पर पहला पदार्पण किया था. पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने 10 वर्ष और भगवान शिव ने 9 वर्ष तक यहीं कठोर तप किया था. कानबाय में क्षीर सागर नामक एक कुंड भी है, जहां ऋषि च्यवन ने स्नान करके वृद्ध होने के श्राप से मुक्ति पाई थी. कानबाय में भगवान विष्णु की विश्व की सबसे प्राचीन मूर्ति है. वर्षो से यह स्थान आसपास के ग्रामीणों के लिए पूजित रहा है, लेकिन पुष्कर आने वाले तीर्थ यात्रियों को भगवान विष्णु के अति प्राचीन स्थान के बारे में कम ही जानकारी हो पाती है. यही वजह है कि वर्षो से शासन और प्रशासन की भी बेरुखी इस स्थान को लेकर रही है.

जन्माष्टमी पर रात भर होता है कीर्तन : मंदिर के महंत दामोदर वैष्णव बताते हैं कि कानाबाय पुष्कर से दूर खजूर के वन में स्थित होने के कारण तीर्थ यात्रियों को इस पवित्र स्थान के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है. आसपास के दर्जनों गांव के अलावा अन्य जिलों से बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए यहां आते हैं. जन्माष्टमी के पर्व पर रात भर यहां कीर्तन होता है. अगले दिन मेला भरता है. श्रद्धालु बताते हैं कि कानबाय मंदिर में आने वाले लोगों को यहां विशेष अनुभूति होती है. पहली बार आने पर श्रद्धालु की आस्था स्वतः ही मंदिर से जुड़ जाती है. श्रद्धालु नरेंद्र जोशी ने बताया कि वह बचपन से ही अपने माता-पिता के साथ मंदिर आया करते थे. जन्माष्टमी के पर्व पर वह हमेशा मंदिर आते हैं. उन्होंने बताया कि पुष्कर आने वाले तीर्थ यात्रियों को भगवान विष्णु के इस पवित्र स्थान के बारे में जानकारी नहीं हो पाती है. ऐसे में वह यहां तक नहीं पहुंच पाते. यही वजह है कि कम ही लोगों को मंदिर के इतिहास और यहां के पौराणिक महत्व के बारे में जानकारी है. आसपास के गांव से बड़ी संख्या में लोग जन्माष्टमी पर्व की रात को यहां दर्शनों के लिए आते हैं.

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विश्व की प्राचीनतम भगवान विष्णु की प्रतिमा : कानबाय में स्थित प्राचीन मंदिर में भगवान विष्णु की शेषनाग पर शयन करते हुए विश्व की प्राचीनतम प्रतिमा है. भगवान विष्णु के चरणों में माता लक्ष्मी जी विराजमान हैं. काले पत्थर से बनी यह प्रतिमा काफी आकर्षक और सुंदर है. मंदिर के महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि पुराणों के अनुसार जगतपिता ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण किया था. वैष्णव ने बताया कि हरिवंश पुराण के अनुसार भगवान विष्णु की यह अद्भुत बड़ी प्रतिमा 4 हजार 79 वर्ष पुरानी है. उन्होंने बताया कि मूर्ति से लिए गए कार्बन की जांच में 3200 वर्ष पुरानी मूर्ति बताई जाती है. यह आकलन अमेरिका के वैज्ञानिकों ने किया था, जबकि भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार यह मूर्ति 4 हजार वर्ष पहले की बताई जाती है.

दो बार आए थे यहां श्री राम : श्री राम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं. पुराणों के अनुसार श्री राम दो बार पुष्कर आए थे. कानाबाय मंदिर के महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि वनवास के दौरान श्री राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ पुष्कर आए थे. यहां पर गया कुंड में उन्होंने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था. वनवास के दौरान ही श्री राम एक माह तक पुष्कर के अरण्य क्षेत्र कानबाय में रुके थे. दूसरी बार श्री राम अपने भाई भरत के साथ अयोध्या से लंका विभीषण से मिलने पुष्पक विमान से जाते हुए यहां रुके थे. दरअसल, श्री राम ने भरत को लंका जाते हुए वह सभी स्थान दिखाए थे, जहां पर उन्होंने वनवास के दिन काटे थे.
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भगवान श्री कृष्ण आए 7 बार : पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण 7 बार कानबाय आए थे. मंदिर के महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि श्री कृष्ण प्रथम बार मथुरा से द्वारका जाते वक्त कानबाय में रुके थे. दूसरी बार ऋषि दुर्वासा के आग्रह पर हंस और डिम्बक नामक राक्षस से रक्षा करने के लिए कृष्ण और बलराम अपनी सेना के साथ यहां आए थे. दोनों शक्तिशाली राक्षसों का वध करने के बाद भगवान कृष्ण के साथ आए कई लोग कानबाय क्षेत्र के आसपास बस गए. हरिवंश पुराण में इसका उल्लेख भी है. इसके बाद श्री कृष्ण जब भी द्वारका से मथुरा, कुरुक्षेत्र आते और जाते समय यहां रुका करते थे. महंत वैष्णव बताते हैं कि श्री कृष्ण के साथ आए लोगों ने ही यहां आस-पास कई गांव बसाए और उनका नाम भी ब्रज में स्थित गांवों के नामों के समान रखा, जो बाद में अपभ्रंश हो गए. मसलन गोकुल से गोयला हो गया, नन्द से नांद और बरसाना से बासेली गांव का नाम हो गया.

पुष्कर ने दी थी दुनिया को मिठास : जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना करने के बाद माता लक्ष्मी की आराधना की थी. संपूर्ण जगत को माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिले, इसलिए माता लक्ष्मी को खुश करने के लिए जगतपिता ब्रह्मा ने पहली बार गन्ने की वनस्पति की रचना पुष्कर में ही की थी. गन्ने के रस से ब्रह्मा ने माता लक्ष्मी का अभिषेक किया था. तब से ही विश्व को गन्ने की मिठास मिली. बताया जाता है कि एक दशक पहले तक पुष्कर में गन्ने की फसल बहुत हुआ करती थी. बाद में पानी की कमी के कारण गन्ना उगाना यहां किसानों ने ना के बराबर कर दिया.

पुष्कर का कानबाय मंदिर (ETV Bharat AJmer)

अजमेर : देशभर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं. ईटीवी भारत आज आपको उस स्थान के दर्शन करवा रहा है, जहां धरती पर सर्वप्रथम भगवान श्री विष्णु का पदार्पण हुआ था. यहां आज भी विश्व की सबसे प्राचीन भगवान विष्णु की शेषनाग पर शयन करते हुए प्रतिमा मौजूद है. यह वही प्रतिमा है, जिसको स्वयं जगतपिता ब्रह्मा की ओर से पूजा जाता था. तीर्थ नगरी पुष्कर के अरण्य क्षेत्र में मौजूद सूरजकुंड गांव के समीप कानबाय के नाम से यह पवित्र स्थान विख्यात है. हरिवंश पुराण में श्रीहरि के इस पवित्र स्थान का उल्लेख मिलता है. पुष्कर अरण्य क्षेत्र इतना पवित्र है कि यहां ब्रह्मा विष्णु और महेश ने सृष्टि यज्ञ से पहले घोर तप किए थे. इस स्थान का अति पौराणिक महत्व है. यही वजह है कि भगवान श्रीराम दो बार और भगवान श्रीकृष्ण सात बार स्वयं यहां आए थे.

तीर्थ राज गुरु पुष्कर नगरी में जगतपिता ब्रह्मा का विश्व में इकलौता मंदिर है. सृष्टि के रचयिता जगतपिता ब्रह्मा का उद्भव भगवान विष्णु की नाभि से माना जाता है. करोड़ों वर्ष पहले पुष्कर से 12 किलोमीटर दूर नागौर की ओर समंदर था. शास्त्रों के मुताबिक यह समंदर ही क्षीर सागर था. पुष्कर से 8 किलोमीटर की दूरी पर सूरजकुंड गांव स्थित है, जहां समीप ही कानबाय नाम से विख्यात अति प्राचीन स्थान है. यहां करोड़ों वर्ष पहले क्षीर सागर हुआ करता था. समुद्र मंथन के बाद क्षीर सागर का दायरा सिमट गया. समुद्र मंथन में ही माता लक्ष्मी का भी उद्भव हुआ था. ऐसे में पुष्कर आरण्य क्षेत्र में ही लक्ष्मी का उद्भव समुद्र मंथन के दौरान होना माना जाता है.

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यहां भगवान विष्णु ने किया था सर्वप्रथम पदार्पण : पदम पुराण के अनुसार हजारों वर्ष पहले पुष्कर के कानबाय क्षेत्र में ही पंच धारों (नदी) का मिलन था. इन नदियों में नंदा, कनका, सुप्रभा, सुधा और प्राची शामिल थी. यही वह स्थान है जहां भगवान विष्णु ने धरती पर पहला पदार्पण किया था. पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने 10 वर्ष और भगवान शिव ने 9 वर्ष तक यहीं कठोर तप किया था. कानबाय में क्षीर सागर नामक एक कुंड भी है, जहां ऋषि च्यवन ने स्नान करके वृद्ध होने के श्राप से मुक्ति पाई थी. कानबाय में भगवान विष्णु की विश्व की सबसे प्राचीन मूर्ति है. वर्षो से यह स्थान आसपास के ग्रामीणों के लिए पूजित रहा है, लेकिन पुष्कर आने वाले तीर्थ यात्रियों को भगवान विष्णु के अति प्राचीन स्थान के बारे में कम ही जानकारी हो पाती है. यही वजह है कि वर्षो से शासन और प्रशासन की भी बेरुखी इस स्थान को लेकर रही है.

जन्माष्टमी पर रात भर होता है कीर्तन : मंदिर के महंत दामोदर वैष्णव बताते हैं कि कानाबाय पुष्कर से दूर खजूर के वन में स्थित होने के कारण तीर्थ यात्रियों को इस पवित्र स्थान के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है. आसपास के दर्जनों गांव के अलावा अन्य जिलों से बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए यहां आते हैं. जन्माष्टमी के पर्व पर रात भर यहां कीर्तन होता है. अगले दिन मेला भरता है. श्रद्धालु बताते हैं कि कानबाय मंदिर में आने वाले लोगों को यहां विशेष अनुभूति होती है. पहली बार आने पर श्रद्धालु की आस्था स्वतः ही मंदिर से जुड़ जाती है. श्रद्धालु नरेंद्र जोशी ने बताया कि वह बचपन से ही अपने माता-पिता के साथ मंदिर आया करते थे. जन्माष्टमी के पर्व पर वह हमेशा मंदिर आते हैं. उन्होंने बताया कि पुष्कर आने वाले तीर्थ यात्रियों को भगवान विष्णु के इस पवित्र स्थान के बारे में जानकारी नहीं हो पाती है. ऐसे में वह यहां तक नहीं पहुंच पाते. यही वजह है कि कम ही लोगों को मंदिर के इतिहास और यहां के पौराणिक महत्व के बारे में जानकारी है. आसपास के गांव से बड़ी संख्या में लोग जन्माष्टमी पर्व की रात को यहां दर्शनों के लिए आते हैं.

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विश्व की प्राचीनतम भगवान विष्णु की प्रतिमा : कानबाय में स्थित प्राचीन मंदिर में भगवान विष्णु की शेषनाग पर शयन करते हुए विश्व की प्राचीनतम प्रतिमा है. भगवान विष्णु के चरणों में माता लक्ष्मी जी विराजमान हैं. काले पत्थर से बनी यह प्रतिमा काफी आकर्षक और सुंदर है. मंदिर के महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि पुराणों के अनुसार जगतपिता ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण किया था. वैष्णव ने बताया कि हरिवंश पुराण के अनुसार भगवान विष्णु की यह अद्भुत बड़ी प्रतिमा 4 हजार 79 वर्ष पुरानी है. उन्होंने बताया कि मूर्ति से लिए गए कार्बन की जांच में 3200 वर्ष पुरानी मूर्ति बताई जाती है. यह आकलन अमेरिका के वैज्ञानिकों ने किया था, जबकि भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार यह मूर्ति 4 हजार वर्ष पहले की बताई जाती है.

दो बार आए थे यहां श्री राम : श्री राम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं. पुराणों के अनुसार श्री राम दो बार पुष्कर आए थे. कानाबाय मंदिर के महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि वनवास के दौरान श्री राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ पुष्कर आए थे. यहां पर गया कुंड में उन्होंने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था. वनवास के दौरान ही श्री राम एक माह तक पुष्कर के अरण्य क्षेत्र कानबाय में रुके थे. दूसरी बार श्री राम अपने भाई भरत के साथ अयोध्या से लंका विभीषण से मिलने पुष्पक विमान से जाते हुए यहां रुके थे. दरअसल, श्री राम ने भरत को लंका जाते हुए वह सभी स्थान दिखाए थे, जहां पर उन्होंने वनवास के दिन काटे थे.
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भगवान श्री कृष्ण आए 7 बार : पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण 7 बार कानबाय आए थे. मंदिर के महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि श्री कृष्ण प्रथम बार मथुरा से द्वारका जाते वक्त कानबाय में रुके थे. दूसरी बार ऋषि दुर्वासा के आग्रह पर हंस और डिम्बक नामक राक्षस से रक्षा करने के लिए कृष्ण और बलराम अपनी सेना के साथ यहां आए थे. दोनों शक्तिशाली राक्षसों का वध करने के बाद भगवान कृष्ण के साथ आए कई लोग कानबाय क्षेत्र के आसपास बस गए. हरिवंश पुराण में इसका उल्लेख भी है. इसके बाद श्री कृष्ण जब भी द्वारका से मथुरा, कुरुक्षेत्र आते और जाते समय यहां रुका करते थे. महंत वैष्णव बताते हैं कि श्री कृष्ण के साथ आए लोगों ने ही यहां आस-पास कई गांव बसाए और उनका नाम भी ब्रज में स्थित गांवों के नामों के समान रखा, जो बाद में अपभ्रंश हो गए. मसलन गोकुल से गोयला हो गया, नन्द से नांद और बरसाना से बासेली गांव का नाम हो गया.

पुष्कर ने दी थी दुनिया को मिठास : जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना करने के बाद माता लक्ष्मी की आराधना की थी. संपूर्ण जगत को माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिले, इसलिए माता लक्ष्मी को खुश करने के लिए जगतपिता ब्रह्मा ने पहली बार गन्ने की वनस्पति की रचना पुष्कर में ही की थी. गन्ने के रस से ब्रह्मा ने माता लक्ष्मी का अभिषेक किया था. तब से ही विश्व को गन्ने की मिठास मिली. बताया जाता है कि एक दशक पहले तक पुष्कर में गन्ने की फसल बहुत हुआ करती थी. बाद में पानी की कमी के कारण गन्ना उगाना यहां किसानों ने ना के बराबर कर दिया.

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