कुल्लू: हिमाचल प्रदेश के कण कण में देवी देवता वास करते हैं और देवी-देवता की आज्ञा के अनुसार ही यहां पर ग्रामीण अपने हर काम की शुरुआत करते हैं. वहीं, देवी देवता भी ग्रामीणों के हर सुख-दुख में शामिल होते हैं और उन्हें सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. हिमाचल प्रदेश के ऊपरी इलाकों में देवी-देवताओं से जुड़ी परंपराओं का आज भी पालन किया जाता है. यहां पर देवी देवताओं की आज्ञा से ही विवाह, जन्म संस्कार समेत अन्य शुभ कार्य किए जाते हैं. वहीं, खेतीबाड़ी से जुड़े हुए काम भी देवी देवताओं की आज्ञा से किए जाते हैं.
ऐसे में जिला कुल्लू की सैंज घाटी में जब धान की रोपाई की जाती है उस दौरान देवी-देवता भी खेतों में ग्रामीणों के साथ उपस्थित रहते हैं. वहीं, मनाली के सिमसा गांव में भी देवता अपने धान के खेतों की परिक्रमा करते हैं और छोटे बच्चों के साथ यहां कीचड़ में भी खूब खेलते हैं. इस बात का कोई भी ग्रामीण बुरा नहीं मानता और वह इस देव प्रक्रिया में शामिल होकर हंसी-खुशी से इस पूरे कार्य को अंजाम देते हैं. जिला कुल्लू की पर्यटन नगरी मनाली के साथ लगते सिमसा गांव में देवताओं के सेनापति कार्तिक स्वामी अपनी भूमि पर बिजी गई धान की खेती की परिक्रमा करते हैं और छोटे बच्चों के साथ कीचड़ में खेलते हैं. गांव के बच्चे देवता के ऊपर धान के खेत की मिट्टी को फेंकते हैं और देवता भी इसे सहर्ष स्वीकार करते हैं. धान की बालियों को देवता के रथ के ऊपर सजाया जाता है और सभी ग्रामीण इस कार्यक्रम में शामिल होते हैं.
मंदिर से बाहर निकलता है स्वामी कार्तिकेय का रथ
हर साल श्रावण मास में इस खेल का आयोजन किया जाता है. इतना ही नहीं इस कार्यक्रम के 15 दिनों के बाद देवता की शक्ति से धान के खेत दोबारा तैयार भी हो जाते है. देवता कार्तिक स्वामी मंदिर के पुजारी मकरध्वज शर्मा और केशव शर्मा ने बताया कि, 'सदियों से चली आ रही पंरपरा को आज भी लोगों ने कायम रखा है. मनाली के सिमसा गांव में भगवान कार्तिक स्वामी का प्रचिन मन्दिर है. जहां भगवान कार्तिकेय स्वामी निवास करते हैं. श्रावण मास में भगवान कार्तिकेय स्वामी का रथ मंदिर से बाहर निकाला जाता है. कार्तिक स्वामी पूरे गांव की परिक्रमा करते हैं और इस दौरान वो गांव के मध्य में स्थित धान के एक खेत में पहुंचकर यहां पर बच्चों के साथ देव धुन पर मिट्टी में भी खेलते हैं.'
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