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सुप्रीम कोर्ट ने आगरा नगर निगम की याचिका की खारिज, एनजीटी का 58.39 करोड़ के मुआवजा आदेश रखा बरकरार - SUPREME COURT

एनजीटी ने आगरा नगर निगम को यमुना नदी प्रदूषित करने पर लगाया था जुर्माना, आगरा के चिकित्सक ने दो साल पहले दायर की थी याचिका

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आगरा नगर निगम. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 5, 2024, 9:39 AM IST

आगराः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आगरा नगर निगम को यमुना नदी प्रदूषित करने के मामले में 58.39 करोड़ रुपये पर्यावरणीय मुआवजा देने का आदेश दिया है. आगरा के चिकित्सक डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ ने एनजीटी में याचिका दायर की थी, जिस पर नगर निगम पर जुर्माना लगाया गया था. इसके खिलाफ नगर निगम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए कानून के आदेश को हटाकर नगर निगम की याचिका खारिज कर दी. इसके साथ ही यमुना में प्रदूषण को लेकर नाराजगी भी जताई है.

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने आगरा नगर निगम की याचिका पर कड़ी असहमति व्यक्त की. आगरा नगर निगम ने एनजीटी के आदेश के खिलाफ पीएमएलए कानून हटाने और जुर्माना हटाने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी. जिसकी सुनवाई में न्यायाधीशों ने कहा कि नगर निगम अथोरिटी ने अनुपचारित अपशिष्टों को यमुना को प्रदूषित करने की अनुमति देकर नरक बना दिया है. पीठ ने कहा कि निष्कर्ष बहुत परेशान करने वाले हैं. आपने कुछ नहीं किया है. अनुपचारित सीवेज जाने के कारण सभी नदियां प्रदूषित हो रही हैं. अप्रैल में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश के निष्कषों का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट ने चताया कि पर्यावरण मानकों का पालन करने में विफल रहने के लिए नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारी अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते हैं.



ये है मामला
बता दें कि 24 अप्रैल 2024 को एनजीटी ने यमुना नदी में शोधित किए बिना नालों का पानी बहाने पर आगरा नगर निगम पर 288 दिनों तक की अवधि के लिए 58.39 और मथुरा-वृंदावन नगर निगम पर 7.20 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. इसको लेकर डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ ने सन 2022 में एनजीटी में याचिका दायर की थी. जिसकी सुनवाई में ही नगर निगम के 91 में से 61 नालों का पानी यमुना में ट्रीटमेंट के बिना ही पहुंचने की जानकारी दी गई थी. इस पर एनजीटी कोर्ट ने जुर्माना लगाया था. जुर्माना राशि का उपयोग पर्यावरण सुधार के लिए कायाकल्प योजना के आधार पर किया जाना था. लेकिन आगरा नगर निगम ने सुप्रीम कोर्ट में आदेश के खिलाफ याचिका दायर कर दी. जिसे सुनवाई के बाद सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया.


तर्क के बाद याचिका की खारिज
आगरा नगर निगम की ओर से अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने तर्क दिया कि नए एसटीपी की स्थापना में देरी का कारण न्यायालय और एनजीटी के समक्ष चार वर्षों से लंबित पेड़ काटने के आवेदन हैं. प्रदूषण को कम करने के प्रयास आगरा में चल रहे हैं. इस पर भी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. कहा कि हमें कोई कदम उठाए जाने जैसे हालात नहीं दिख रहे हैं. ये सब बहुत गंभीर है. देश भर में नदियां और जल निकाय इस तरह से गंभीर रूप से प्रदूषित ही रहे हैं. चिंता है कि यह पूरे देश में हो रहा है. पीठ ने एनजीटी के पर्यावरण क्षतिपूर्ति निर्देश के खिलाफ आगरा नगर निगम की अपील को खारिज कर दिया. पीठ ने इस पर दुख जताते हुए कहा कि नए एसटीपी के बारे में भूल जाइए. आपके मौजूदा एसटीपी न्यूनतम मानकों को भी पूरा नहीं कर रहे हैं. अनुपचारित अपशिष्ट को नदियों में बहाया जा रहा है. कहा कि कथित पर्यावरण उल्लंघन की धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत अपराध माना जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायाधिकरण का अधिकार क्षेत्र धन शोधन निवारण कानून के तहत अपराधों के पंजीकरण का आदेश देने तक विस्तारित नहीं है.

आगराः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आगरा नगर निगम को यमुना नदी प्रदूषित करने के मामले में 58.39 करोड़ रुपये पर्यावरणीय मुआवजा देने का आदेश दिया है. आगरा के चिकित्सक डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ ने एनजीटी में याचिका दायर की थी, जिस पर नगर निगम पर जुर्माना लगाया गया था. इसके खिलाफ नगर निगम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए कानून के आदेश को हटाकर नगर निगम की याचिका खारिज कर दी. इसके साथ ही यमुना में प्रदूषण को लेकर नाराजगी भी जताई है.

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने आगरा नगर निगम की याचिका पर कड़ी असहमति व्यक्त की. आगरा नगर निगम ने एनजीटी के आदेश के खिलाफ पीएमएलए कानून हटाने और जुर्माना हटाने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी. जिसकी सुनवाई में न्यायाधीशों ने कहा कि नगर निगम अथोरिटी ने अनुपचारित अपशिष्टों को यमुना को प्रदूषित करने की अनुमति देकर नरक बना दिया है. पीठ ने कहा कि निष्कर्ष बहुत परेशान करने वाले हैं. आपने कुछ नहीं किया है. अनुपचारित सीवेज जाने के कारण सभी नदियां प्रदूषित हो रही हैं. अप्रैल में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश के निष्कषों का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट ने चताया कि पर्यावरण मानकों का पालन करने में विफल रहने के लिए नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारी अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते हैं.



ये है मामला
बता दें कि 24 अप्रैल 2024 को एनजीटी ने यमुना नदी में शोधित किए बिना नालों का पानी बहाने पर आगरा नगर निगम पर 288 दिनों तक की अवधि के लिए 58.39 और मथुरा-वृंदावन नगर निगम पर 7.20 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. इसको लेकर डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ ने सन 2022 में एनजीटी में याचिका दायर की थी. जिसकी सुनवाई में ही नगर निगम के 91 में से 61 नालों का पानी यमुना में ट्रीटमेंट के बिना ही पहुंचने की जानकारी दी गई थी. इस पर एनजीटी कोर्ट ने जुर्माना लगाया था. जुर्माना राशि का उपयोग पर्यावरण सुधार के लिए कायाकल्प योजना के आधार पर किया जाना था. लेकिन आगरा नगर निगम ने सुप्रीम कोर्ट में आदेश के खिलाफ याचिका दायर कर दी. जिसे सुनवाई के बाद सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया.


तर्क के बाद याचिका की खारिज
आगरा नगर निगम की ओर से अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने तर्क दिया कि नए एसटीपी की स्थापना में देरी का कारण न्यायालय और एनजीटी के समक्ष चार वर्षों से लंबित पेड़ काटने के आवेदन हैं. प्रदूषण को कम करने के प्रयास आगरा में चल रहे हैं. इस पर भी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. कहा कि हमें कोई कदम उठाए जाने जैसे हालात नहीं दिख रहे हैं. ये सब बहुत गंभीर है. देश भर में नदियां और जल निकाय इस तरह से गंभीर रूप से प्रदूषित ही रहे हैं. चिंता है कि यह पूरे देश में हो रहा है. पीठ ने एनजीटी के पर्यावरण क्षतिपूर्ति निर्देश के खिलाफ आगरा नगर निगम की अपील को खारिज कर दिया. पीठ ने इस पर दुख जताते हुए कहा कि नए एसटीपी के बारे में भूल जाइए. आपके मौजूदा एसटीपी न्यूनतम मानकों को भी पूरा नहीं कर रहे हैं. अनुपचारित अपशिष्ट को नदियों में बहाया जा रहा है. कहा कि कथित पर्यावरण उल्लंघन की धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत अपराध माना जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायाधिकरण का अधिकार क्षेत्र धन शोधन निवारण कानून के तहत अपराधों के पंजीकरण का आदेश देने तक विस्तारित नहीं है.

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