लखनऊ: अगर आप गन्ना किसान हैं और सबसे ज्यादा उपज देने वाली गन्ने की प्रजाति तलाश रहे हैं, तो यह खबर आपके लिए ही है. गन्ना विभाग ने दो ऐसी प्रजातियों को तैयार किया है, जिनसे किसानों की आय बढ़ेगी. विभाग ने को.शा. 19231 एवं को.से. 17451 को उपज और चीनी प्रतिशत के लिहाज से अधिक लाभकारी बताया है.
वहीं पुरानी तीन गन्ना किस्मों (को. 12029, को.शा. 99259 एवं को.शा. 96268) को सूची से हटाया जाएगा. इन तीनों किस्मों के क्षेत्रफल में कमी और किसानों की कम रुचि के कारण इसे हटाया जा रहा है. जबकि इस समय को .0238 सबसे ज्यादा उपज देने वाली प्रजाति है. को .0238 गन्ने की बुवाई का सबसे सर्वोत्तम समय 15 फरवरी से 15 मार्च तक है.
नई गन्ना किस्मों को लेकर हुई चर्चा: शुक्रवार को उत्तर प्रदेश गन्ना आयुक्त कार्यालय, लखनऊ में गन्ना आयुक्त की अध्यक्षता में 'बीज गन्ना एवं गन्ना किस्म स्वीकृति उप समिति' ने नई गन्ना किस्मों पर विस्तार से चर्चा की, जिसमें प्रदेश के किसान प्रतिनिधि एवं चीनी मिलों के अधिकारी शामिल हुए.
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए उत्तर प्रदेश गन्ना विभाग के अपर आयुक्त वीके शुक्ल ने कहा कि उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर के आंकड़ों के आधार पर दो नई अगेती गन्ना किस्मों एवं एक मध्य-देर किस्म को विकसित किया गया।
इनमें को.शा. 19231 को पूरे उत्तर प्रदेश के लिए और को.से. 17451 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए जबकि को.लख. 16470 (मध्य-देर) को पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए तैयार किया गया है.
नई गन्ना किस्मों की विशेषताएं
को.शा. 19231 (लाहिड़ी): औसत उपज– 92.05 टन/हेक्टेयर
शर्करा प्रतिशत (जनवरी)– रस में 17.85%, गन्ने में 13.20%
चीनी उत्पादन– 12.23 टन/हेक्टेयर
यह किस्म लाल सड़न रोग के प्रति मध्यम रोगरोधी पाई गई है.
को.से. 17451 (कृष्णा): औसत उपज – 87.96 टन/हेक्टेयर
शर्करा प्रतिशत (जनवरी)– रस में 16.63%, गन्ने में 12.82%
चीनी उत्पादन– 10.81 टन/हेक्टेयर
यह पुरानी गन्ना किस्म बि.उ.120 जी.सी. का उन्नत रूप है.
को.लख. 16470 (मध्य-देर पकने वाली किस्म): औसत उपज – 82.50 टन/हेक्टेयर
शर्करा प्रतिशत (12 माह बाद)– रस में 17.37%, गन्ने में 13.20%
यह भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित की गई है.
गन्ना किस्मों को मिले नए नाम : वीके शुक्ल ने बताया, दो गन्ना किस्मों को विशेष नाम दिया जाएगा. इनमें को.शा. 19231 को शहीद राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी की याद में 'लाहिड़ी' नाम दिया गया है. को.से. 17451 को वैज्ञानिक डॉ. कृष्णानंद के सम्मान में 'कृष्णा' नाम दिया गया.
को.शा. 19231 और को.से. 17451 अधिक उत्पादकता देने वाली किस्में : वीके शुक्ल ने बताया ने कहा कि को.शा. 19231 और को.से. 17451, को .0238 से अधिक उत्पादकता देने वाली किस्में हैं, लेकिन लाल शरण रोग से गन्ना किसान परेशान थे, इसी के चलते शाहजहांपुर गन्ना शोध संस्थान ने दो नई प्रजाति पर शोध किया है, जो गन्ना किसानों को खुशहाल करेंगे और अभी इनमें रोग होने की संभावना नहीं है।
को .0238 अब जमीन के अनुकुल नहीं : उन्होंने कहा कि को .0238 गन्ने की प्रजाति एक लंबे समय से किसान उपज कर रहे थे. अब जमीन इस प्रजाति के अनुकूल नहीं रह गई है और यही वजह है कि इसमें कई रोग लग जाते हैं, जिससे गन्ना किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि नवीन अगेती गन्ना किस्में को.0238 की तुलना में बेहतर उपज एवं शर्करा प्रतिशत दिखा रही हैं। को.0238 की औसत उपज 82.97 टन/हेक्टेयर है. जबकि चीनी उत्पादन क्षमता 10.89 टन/हेक्टेयर है.
नई किस्मों के बीज जल्द दिए जाएंगे : वीके शुक्ल ने बताया, गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर को निर्देश दिया गया है कि वह स्वीकृत नई किस्मों का बीज किसानों को उपलब्ध कराने के लिए तेजी से कार्यवाही करें.
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के लिए तीन नई उत्पादक किस्मों को स्वीकृत किया गया है, जिससे चीनी उत्पादन एवं किसानों की आय में वृद्धि होगी. साथ ही कम लोकप्रिय गन्ना किस्मों को हटाकर किसानों को बेहतर गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया.
उन्होंने यह भी बताया कि को.0238 गन्ना की प्रजाति उत्तर प्रदेश में बहुत लोकप्रिय हुई थी, लेकिन अब इसमें लाल कल्ले की सड़न रोग के चलते किसान उपज नहीं कर पा रहा है. शोध में यह भी बात सामने आई है कि गन्ने की इन दो नई प्रजातियां में अभी रोग की कोई संभावना नहीं है.
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