गया : बिहार के प्रभात कुमार महज 35 साल की उम्र में ही 30 देश घूम आए लेकिन इन्हें बिहार के गया की धरती ही शूट की. वह जब वापस लौटे तो गया को ही अपनी कर्मस्थली बनाया. पिता और दादा खेती की ओर ध्यान न देकर नौकरी करने के लिए प्रेरित करते थे लेकिन उन्होंने ऐसी तकनीक इजाद की थी कि खेती किसानी को भी फायदे का धंधा बनाया जा सकता है.
35 की उम्र में 30 देशों का भ्रमण किया: इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग की फिर विदेश भ्रमण पर निकले. यूएस, इंग्लैंड, स्वीटजरलैंड, दक्षिण कोरिया तकरीबन हर जगह घूम लिए, लेकिन आखिरकार बिहार की मिट्टी ही भायी. बिहार की मिट्टी से जुड़े तो धीरे-धीरे हजारों किसानों से जुड़ते चले गए और कृषि के क्षेत्र में बड़े कैरियर को हासिल कर लिया. यह कहानी है, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर से किसान बने गया के टिकारी के बड़गांव के रहने वाले प्रभात कुमार की.
![इंगलैंड में हाईटेक किसान प्रभात कुमार](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/03-09-2024/kisan-prabhat_02092024124558_0209f_1725261358_29.jpg)
मशरूम किंग हैं प्रभात : बिहार में प्रभात आज मशरूम के बड़े उत्पादकों में गिने जाते हैं. वहीं, कृषि की इंजीनियरिंग ऐसी कि इन्होंने तकरीबन 25000 किसानों को जोड़कर उनकी आय दुगनी करने में मदद की. प्रभात कुमार किसानों को स्वावलंबी बनाने में हर तरह की मदद करते हैं. यही वजह है कि उनके पास मशरूम के अलावा स्ट्रॉबेरी, प्याज, मकई, बेबी कॉर्न की खेती से जुड़े 25000 किसानें की लंबी लिस्ट है.
450 गांवों को अपने आईडिया से जोड़ा : टिकारी के किसान प्रभात कुमार की इंजीनियरिंग से बिहार के 450 से लेकर 500 गांव में 25 से 28000 किसानों के जीवन को संवारा है और उनकी आय दुगनी की है. इन किसानों को पुरानी कृषि पद्धति से बाहर निकाला और इन हजारों किसानों की आय दुगनी हो गई. वहीं, मशरूम उत्पादन का सबसे बड़ा प्रोसेसिंग प्लांट इनके पास है, जिससे 10 हजार किलोग्राम तक मशरूम का उत्पादन प्रतिदिन किया जा सकता है.
![हाईटेक किसान प्रभात कुमार](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/03-09-2024/22361812_success.jpg)
ठुकराया कोरिया का प्रस्ताव : भारत सरकार की मिनी रत्ना कंपनी गुजरात में इनकी पोस्टिंग मिली थी. इसके बीच एक हेल्थ केयर कंपनी की स्थापना की. इसके बीच इलेक्ट्रिकल इंजीनियर ने 30 देश की यात्रा की. किंतु इसमें कैरियर नजर नहीं आया. इसके बाद वापस बिहार को लौट आए और मशरूम की खेती करने का निर्णय लिया, जबकि दक्षिण कोरिया में वहां की सरकार ने पूरी दुनिया से 20 लोगों को बुलाया था, जिसमें प्रभात कुमार इंडिया से अकेले थे. दक्षिण कोरिया में बड़ा प्रस्ताव मिला था, लेकिन उन्होंने उसे भी ठुकरा दिया और बिहार वापस लौट गए.
'खेती में भी पैसा है' : मेरे पिता और दादा मना करते थे, कि खेती नहीं करना है. पूरी दुनिया में इसका जवाब ढूंढा, लेकिन नहीं मिला कि खेती क्यों नहीं करनी है. लोगों ने सिर्फ एक कारण बताया कि खेती में पैसा नहीं है. दुनिया घूमने के बाद सोचा कि अब पिताजी नहीं है. पिता ने कहा था कि उनकी आखिरी इच्छा है, जमीन और घर नहीं बेचना. फिर सोचा की जमीन बेचना नहीं है और खेती नहीं करना है. इसके बीच में सामंजस्य करके खेती शुरू किया. इस मकसद से शुरू किया कि पैसा बनाना है. ताकि पिता के बनाए खेत और घर न बिक सकें.
![हाईटेक किसान प्रभात कुमार](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/03-09-2024/22361812_successa.jpg)
''मशरूम की खेती सबसे पहले शुरू की. यह पारंपरिक व्यवसाय है. 6 महीने तक धान गेहूं में पैसे फंसे रहते हैं. सब कुछ ठीक रहा तो पैसे वापस मिलते हैं. इसलिए मशरूम की खेती करना शुरू किया. क्योंकि मशरूम में ऐसा व्यवसाय है, जहां बार-बार पैसा नहीं लगता है. एक बार पैसा लगता है और तीन महीने तक पैसा मिलता रहता है.''- प्रभात कुमार, आधुनिक किसान
मशरूम उत्पादन में बिहार प्रथम : प्रभात कुमार बताते हैं कि पहले लोग मशरूम के बारे में जानते नहीं थे. कैसे मार्केटिंग प्रोसेसिंग होगी यह इश्यू था. छोटा स्तर पर शुरू किया. आज मशरूम के मामले में बिहार काफी आगे चला आया है. यह एक बड़ा बदलाव है, कि 2016-17 में जब हमने मशरूम की खेती की शुरुआत की थी, तो दिल्ली एनसीआर से 500 किलोग्राम मशरूम गया आता था, लेकिन आज बंगाल, रांची, झारखंड में बिहार से मशरूम जा रहा है. बिहार देश का नंबर वन मशरूम उत्पादक है. आज बिहार का जो करोड़ों रुपया बाहर जाता था, वह बिहार आ रहा है.
![सम्मानित होते हाईटेक किसान प्रभात कुमार](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/03-09-2024/kisan-prabhat_02092024124558_0209f_1725261358_124.jpg)
''मशरूम की खेती जब शुरू की, तो सब यही करते थे, कि कहां से गनौरा उठा लाया है. मुश्किल से 50 किलो से इसकी शुरुआत की थी. 50 किलो का उत्पादन करते थे, तो उसे बेचने के लिए बाहर जाना पड़ता था. सब कुछ सही होता चला गया और आज मशरूम का सबसे बड़ा प्रोसेसिंग प्लांट मेरे पास है.''- प्रभात कुमार, आधुनिक किसान
अकेले मशरूम का 2 करोड़ का टर्न ओवर : प्रभात कुमार अकेले मशरूम का करीब 2 करोड़ का टर्नओवर सालाना करते हैं. वही बेबी कार्न, स्वीट कॉर्न, प्याज, हनी, स्ट्रॉबेरी को मिलाकर अलग से 25000 किसानों से जुड़े हैं. मशरूम की खेती में उनके साथ 3000 किसान जुड़े हैं. प्रभात कुमार के मुताबिग बड़गांव में बिहार का सबसे बड़ा प्रोसेसिंग प्लांट है, जिससे प्रतिदिन 10000 किलोग्राम तक मशरूम उत्पादन किया जा सकता है.
![हाईटेक किसान प्रभात कुमार](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/03-09-2024/kisan-prabhat_02092024124558_0209f_1725261358_238.jpg)
अभी मशरूम में बचा है पूरा स्कोप : प्रभात कुमार बताते हैं, कि अभी गया में मशरूम के क्षेत्र में पूरा स्कोप बचा है. अभी सिर्फ 3000 गांव में से डेढ़ सौ गांवों में ही मशरूम का अच्छा उत्पादन हो रहा है. यह उदाहरण देते हैं, कि मशरूम की डिमांड क्यों बढ़ी है. मशरूम और पनीर जो कि वेज हैं. इसमें मार्केटिंग को लेकर काफी कंपटीशन है. कंपटीशन के मुख्य वजह है कि पनीर जहां हर रेट में मिल जाएगा, लेकिन मशरूम के साथ ऐसा नहीं है. पनीर में मिलावट है. मशरूम में मिलावट नहीं है.
''कई पुरस्कार लगातार जीत रहे थे. दुनिया के कई देशों में सफल लोगों से मिल रहे थे, लेकिन आखिरकार बिहार की मिट्टी ही भायी और मुकाम पर हूं. सबसे पहले गया के सरकारी विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की. इसके बाद जलपाईगुड़ी गवर्नमेंट इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. अशोका यूनिवर्सिटी और यूपईएनएन यूएसए से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया. 2016-17 से मशरूम का उत्पादन शुरू किया. 2014 से खुद का काम करते आ रहे हैं.''- प्रभात कुमार, आधुनिक किसान
![सिंगापुर में हाईटेक किसान प्रभात कुमार](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/03-09-2024/kisan-prabhat_02092024124558_0209f_1725261358_633.jpg)
विदेश में दर्जन पर पुरस्कार : वहीं, प्रभात कुमार को विदेशों में दर्जन भर पुरस्कार मिले हैं. यूएसए में सिलिकॉन वैली फैलोशिप विनर रहे. सिंगापुर में डीबीएस एनयूएस कंपटीशन विनर रहे. विदेशों में अन्य कई पुरस्कार मिले. बिहार में उत्कृष्ट किसान का भी पुरस्कार मिला. उनकी यात्राएं यूएसए, साउथ कोरिया, यूके, स्विट्जरलैंड समेत 30 देश में रही. बिहार लौटकर उन्होंने कृषि के क्षेत्र में कांति लानी शुरू कर दी. अब ये हजारों किसानों के लिए मिसाल हैं.
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