लखनऊ : शैक्षणिक सत्र 2025-26 मैं प्रवेश के लिए देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय सहित कई राज्य विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की तरफ से आवेदन प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. वहीं दूसरी तरफ लखनऊ विश्वविद्यालय व दूसरे राज्य विश्वविद्यालय नए सत्र में प्रवेश के लिए आवेदन प्रक्रिया मार्च से शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं. बीते कुछ साल में केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रवेश के लिए शुरू हुए कॉमन एडमिशन टेस्ट का असर भी राज्य विश्वविद्यालय और उससे संबद्ध डिग्री कॉलेज के प्रवेश पर देखने को मिल रहा है.
एक दशक पहले तक राजधानी लखनऊ के डिग्री कॉलेजों में बीए, बीएससी और बीकॉम पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए लोग सिफारिश लगवाते थे. मेरिट कम हुई तो लोग छात्र नेताओं से लेकर विधायक मंत्री तक के लेटर लेकर इन कॉलेजों में पहुंचने थे. अब समय बदला गया है और प्रोफेशनल कोर्सों के आने से विश्वविद्यालय और डिग्री कॉलेज में संचालित हो रहे इन ट्रेडिशनल कोर्सेज की स्थिति काफी खराब हुई है.
बीए की जगह बीबीए ने ले ली तो साइंस वाले बीएससी से किनारा जेईई और नीट की तैयारी में जुट गए. ऐसे में अब इन कॉलेजों के ट्रेडीशनल कोर्सों में सीटें भरनी भी अब मुश्किल हो गई हैं. कॉलेजों में कई पाठ्यक्रम तो ऐसे हैं जहां 20 फीसदी सीटें भी नहीं भर रही हैं. इसके उलट प्रोफेशनल कोर्सों में आज भी लोग प्रवेश परीक्षा देकर प्रवेश ले रहे हैं. ऐसे में अब शिक्षा में बदलाव इस साल भी विश्वविद्यालय और डिग्री कॉलेज के लिए एक बड़ी चुनौती बने जा रही है.
लखनऊ में पांच राज्य व एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है. पहले सिर्फ एकेटीयू के कॉलेजों में इंजिनियरिंग की पढ़ाई होती थी, लेकिन छात्रों के रूझान में आई तब्दीली के बाद एलयू, बीबीएयू, शकुंतला विवि और भाषा विश्वविद्यालय ने अपने यहां इंजिनियरिंग फैकल्टी शुरू की. साथ ही कई अन्य प्रोफेशनल कोर्स शुरू कर दिए जिसके चलते यहां छात्रों की संख्या में इजाफा हो गया. जबकि डिग्री कॉलेज नए कोर्स शुरू करने में पीछे रह गए. कॉलेजों की तरह विश्वविद्यालयों में भी ट्रेडिशनल कोर्सों में प्रवेश लेने अब आधे से भी कम हो गए हैं, लेकिन प्रोफेशनल कोर्सों में प्रवेश से सीटें भर रही हैं. हालांकि कॉलेजों में लगातार संख्या घट रही है जिससे अब उनके अस्तित्व पर भी संकट आ रहा है.
आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस के कोर्स में रुझान बढ़ा : एकेटीयू के कुलपति प्रो. जेपी पांडेय बताते हैं कि आज आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस (एआई) से हर चीज तेजी से बदल रही है. काम से लेकर मनोरंजन तक में एआई का आ गया है. ऐसे में विश्वविद्यालयों ने भी पढ़ाई से लेकर पढ़ाई कराने के तरीके तक में एआई का उपयोग शुरू कर दिया है. एकेटीयू व उससे संबद्ध कॉलेजों में जहां बीटेक इन एआई पाठ्यक्रम शुरू किया गया है तो प्रश्नपत्र बनाने में अब एआई का उपयोग शुरू किया जा रहा है. इसके अलावा मशीन लर्निंग और डेटा साइंस से जुड़े पाठ्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं.
इसी तरह बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय (बीबीएयू) में साइबर क्राइम पर चलने वाले यूजी पाठ्यक्रम में इतने दाखिले होने लगे कि अब पीजी पाठ्यक्रम शुरू करने का प्रस्ताव तैयार किया गया है. इसके अलावा अब लीक से हटकर चलने वाले पाठ्यक्रमों में भी रुझान शुरू हो गया है. एक समय पर बंद होने की कगार पर पहुंच चुके एलयू के ज्योतिष पाठ्यक्रम में अब बड़ी संख्या में लोग दाखिला ले रहे हैं. रिमोट सेंसिंग, जीएसटी, साइबर लॉ समेत कई ऐसे पाठ्यक्रम विश्वविद्यालयों में चल रहे हैं जिनमें छात्र बड़ी संख्या में प्रवेश ले रहे हैं.
तो इसलिए कॉलेजों में छात्रों की कमी : खुन खुनजी डिग्री कॉलेज की प्रिंसिपल अंशू केडिया का कहना है कि प्रवेश न होने की बड़ी वजह है कि बीए, बीएससी करने बाद छात्रों को रोजगार नहीं मिल पाता है. डिग्री कॉलेज विश्वविद्यालय का सिलेबस फॉलो करते हैं. ऐसे में वह अपने स्तर से इसमें संशोधन नहीं कर सकते हैं. इसी के चलते छात्र अब इन कोर्सों की जगह प्रफेशनल कोर्सों में दाखिला ले रहे हैं. करामत डिग्री काॅलेज की प्रिंसिपल डॉ. हुमा के मुताबिक अगर इन कोर्सों में तब्दीली की जाए और इंडस्ट्री की डिमांड के मुताबिक इन कोर्सों को डिजाइन किया जाए तो एक बार फिर छात्रों का रुझान बढ़ेगा.
नए कॉलेज खुलने पर भी हो अंकुश : नवयुग की प्रिंसिपल डॉ. मंजुला उपाध्याय का कहना है कि पहले हमारे कॉलेज में आसपास के जिलों से छात्राएं प्रवेश लेती थीं. पिछले पांच साल में कॉलेजों की संख्या चार गुनी हो गई है. इस समय 551 कॉलेज पूरे प्रदेश में संबद्ध हैं. इसमें लखनऊ में 177, हरदोई में 140, लखीमपुर खीरी 65, रायबरेली 72 और सीतापुर में 97 कॉलेज लखनऊ विश्वविद्यालय से संबद्ध संचालित हो रहे हैं. पहले महज लखनऊ में डेढ़ सौ कॉलेज थे. अब छात्रों को अपने जिले में ही एलयू की डिग्री मिल रही है इसलिए वे अब लखनऊ के कॉलेजों में दाखिला नहीं ले रहे हैं.
विद्यांत हिंदू डिग्री काॅलेज की प्रिंसिपल डॉ. धर्म कौर का कहना है कि औसतन लखनऊ में लगभग आठ से दस हजार छात्र आसपास के जिलों से लखनऊ के कॉलेजों में प्रवेश लेते थे. यह सभी छात्र अब अपने अपने जिलों के कॉलेज में दाखिला ले रहे हैं. जिससे कॉलेज अब सीटें भरने के संकट से जूझ रहे हैं. इसलिए नए कॉलेज खोलने पर भी अब अंकुश लगना चाहिए. क्योंकि शिक्षा कोई उद्योग नहीं है, यहां गुणवत्ता पर ध्यान देना सबसे अहम है.
पाठ्यक्रम में बदलाव जरूरी : लविवि के डीन कॉलेज डेवलोपमेंट कमेटी प्रो. अवधेश कुमार ने बताया कि जिलों के कॉलेजों में बीए, बीएससी व ट्रेडीशन कोर्स के पाठ्यक्रम संचालित हो रहे हैं तो वही पाठ्यक्रम पुराने कॉलेज भी चला रहे, इसलिए छात्र कम हुए. ऐडेड कॉलेजों को अब अपने अपने पाठ्यक्रमों में भी बदलाव करना होगा. रोजगारपरक कार्यक्रम व प्रफेशनल कोर्सों को संचालित करना होगा. जिलो के कॉलेजों से अलग पाठ्यक्रम अगर चलाएंगे तो जरूरी जिलों से छात्र वापस लविवि के ऐडेड कॉलेजों का रुख करेंगे. लविवि भी इस पर काम कर रहा है. कॉलेजों को अपडेट कर रहा है. कई कॉलेज ऐसे भी है जहां अच्छे पाठ्यक्रम संचालित हो रहे हैं तो वहां आज भी छात्रों की लाइन लगी है.
प्रदेश में करीब 300 से अधिक डिग्री कॉलेज बंद : लखनऊ विश्वविद्यालय संबद्ध डिग्री कॉलेज शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष मौलिंदो मिश्रा ने बताया कि बीते कुछ साल में ट्रेडिशनल कोर्स में बदलाव ने डिग्री कॉलेज पर इसका व्यापक असर डाला है. प्रदेश में करीब 300 डिग्री कॉलेज बंद हो चुके हैं और इतने ही डिग्री कॉलेज बंद होने के कगार पर है. एक समय प्रदेश में 8400 संबद्ध डिग्री कॉलेज विभिन्न विश्वविद्यालय से जुड़े थे. जिनकी संख्या आज घटकर 7800 के आसपास रह गई है.