पटना: सरकारी विद्यालयों में तकनीकी शिक्षा के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की काफी कमी है. बच्चे 10 वीं कक्षा तक आ जाते हैं और वह कंप्यूटर से रूबरू नहीं हुए होते हैं. दुनिया की नवीनतम तकनीक को सरकारी स्कूल के बच्चों तक कैसे पहुंचा जा सकता है, एपीजे कलाम सेंटर के सीईओ सृजन पाल सिंह ने विस्तार से जानकारी दी. सृजन पाल सिंह पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के 2009 से 2015 तक ओएसडी और तकनीकी एवं नीति सलाहकार रहे हैं. वर्तमान में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए काम कर रहे हैं.
कैसे मिलेगी गुणवत्तापूर्ण शिक्षाः नई दिल्ली स्थित एपीजी कलाम सेंटर के सीईओ सृजन पाल सिंह ने बताया कि देश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए हम लोगों को तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए. हमें इमलसिव टेक्नोलॉजी, एआई और मशीन लर्निंग बेस्ड टेक्नोलॉजी पर काम करके उनसे हमें भारत के सभी भाषा में अच्छी शिक्षा को ट्रांसलेट करके गांव-गांव तक पहुंचाना होगा. 38 हजार बच्चों को बेस्ट क्वालिटी ट्रेनिंग दे रहे हैं.
"बच्चे एस्ट्रोनॉट बनना चाहते हैं, नोबेल लॉरेट बनना चाहते हैं, ड्रग डिस्कवरी करना चाहते हैं, हम लोग इन सब का वर्चुअल रिलाइजेशन तकनीक का इस्तेमाल करके बच्चों को ट्रेंड कर रहे हैं. लो कॉस्ट और हाईएस्ट क्वालिटी एजुकेशन बच्चों तक पहुंचाना होगा."- सृजन पाल सिंह, सीईओ, एपीजे कलाम सेंटर
बच्चों को देने होंगे ऊंचे सपने: सृजनपाल सिंह ने कहा कि भारत के बच्चों को ऊंचे सपने हमें देने होंगे. बच्चों को इस प्रकार प्रोत्साहित करना होगा कि वह ऊंचे सपने देख सकें और उसे हासिल करने के लिए अपना परिश्रम लगा सके. अगर कोई बच्चे उनसे जुड़ना चाहते हैं तो कलाम सेंटर की वेबसाइट पर जाकर जुड़ सकते हैं. इसके अलावा होमी लैब एक इनीशिएटिव है, www.homilab.com पर जाकर भी जुड़ सकते हैं. भारत में उन लोगों के 10 एमल्सिव सेंटर्स हैं, अगले वर्ष तक इसे 100 करने का लक्ष्य रखा गया है. यहां बच्चे जाएंगे और हेडसेट और कंप्यूटर स्क्रीन के मदद से लाइव चैट का इस्तेमाल कर दुनिया भर के बड़े-बड़े लैब और वहां के साइंटिस्ट से जुड़ सकते हैं.
जिला स्तर पर बने सेंटर आफ एक्सीलेंस: सरकारी विद्यालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी पर सृजन पाल सिंह ने कहा कि दसवीं तक बच्चे पढ़ाई कर लेते हैं और कंप्यूटर से रूबरू नहीं हो पाते हैं. यह बच्चों और तकनीक के बीच में बहुत बड़ा गैप है. इसके लिए हम लोगों को सेंटर्स तैयार करने होंगे. जैसे शॉपिंग मॉल होते हैं, लोग जाते हैं और जिस प्रकार का उन्हें प्रॉडक्ट खरीदना है उसे दुकान में पहुंचकर प्रोडक्ट खरीद लेते हैं. इसी तर्ज पर क्वालिटी एजुकेशन के लिए पहले हर जिले में और बाद में प्रखंड स्तर पर ऐसे छोटे-छोटे सेंटर आफ एक्सीलेंस तैयार करना होगा. यह अधिक महंगे नहीं होंगे. महज कुछ लाख में ही बनकर तैयार हो जाएगा.
हर भाषा में क्वालिटी एजुकेशनः सृजन पाल सिंह ने कहा कि इसके बाद पूरे जिले और आसपास के बच्चे यहां आएंगे और सीखेंगे. यहां कुछ समय जाकर बच्चे तकनीक को अनुभव करेंगे. न सिर्फ अनुभव कर सके बल्कि अगली बार जब ऐसे सेंटर आफ एक्सीलेंस में पहुंचे तो कुछ और नया अनुभव कर सकें. बच्चों के उम्र और कक्षा की शिक्षा के अनुसार उनका अनुभव बदलते रहे. इसमें भाषा की कोई बैरियर नहीं होना चाहिए कि इंग्लिश में चले और बच्चों को अंग्रेजी ना समझ में आए, या कहीं हिंदी में चले और बच्चों को हिंदी ना समझ में आए. बच्चे जिस भाषा में समझ सकते हैं उस भाषा में वह ज्ञान वाहन उपलब्ध हो.
बच्चों को शिक्षकों से मिलता है ज्ञानः सृजन पाल सिंह ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीक के वजह से हम यह न सिर्फ इस्तेमाल कर सकते हैं बल्कि हम यह कर चुके हैं. देश में यह प्रोडक्ट आ चुके हैं. इसे स्केल किया जा सकता है. बहुत सारे लोग इसमें अच्छा काम कर सकते हैं लेकिन इसमें मिशन मोड की आवश्यकता है. सरकार और अधिकारियों के द्वारा क्वालिटी एजुकेशन को अर्जेंट प्रायोरिटी देकर शिक्षकों को प्रशिक्षित करते हुए हम यह काम कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि इसमें सबसे महत्वपूर्ण है शिक्षकों को नई तकनीक से प्रशिक्षित करना. क्योंकि बच्चों को ज्ञान शिक्षकों के माध्यम से ही मिलती है.
शिक्षकों को बनाना होगा सशक्तः सृजन पाल सिंह ने कहा कि बच्चे कम संख्या में शिक्षक बनना चाहते हैं. अधिकांश बच्चे आईएएस और आईपीएस बनना चाहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इस पोजीशन पर बच्चों को पावर का एहसास होता है. बच्चों को लगता है कि इस पोजीशन पर जाकर हम कुछ बदलाव कर सकते हैं. शिक्षकों को भी एंपावर करना होगा. अभी शिक्षकों को यह पावर नहीं है कि वह अपने बूते स्कूल में कुछ नया बदलाव कर सके. जिस दिन यह पावर स्कूल के शिक्षक को दे दी जाएगी परिवर्तन शुरू हो जाएगा. इसके लिए शिक्षकों में मेरीटोक्रेसी लानी होगी, यानी जो शिक्षक अच्छे कर रहे हैं उनका प्रमोशन और इंसेंटिव मिले.