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Special : ईरान-अफगानिस्तान तक स्वाद का जादू बिखेरने वाले पान से विमुख हो रहे किसान, नुकसान से खेती छोड़ पलायन को मजबूर - Betel Producing In Bharatpur

भरतपुर के पान की देश ही नहीं बल्कि अरब देशों में भी काफी डिमांड रहती है, लेकिन सरकारी सहायता न मिलने और लगातार प्राकृतिक कारणों से पान की फसल करने वाले किसानों को नुकसान झेलना पड़ रहा है. नतीजन, किसान अब पान की खेती छोड़ पलायन करने को मजबूर है. पेश है खास रिपोर्ट...

BETEL PRODUCING IN BHARATPUR
पान की खेती में नुकसान (Photo : Etv bharat)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jun 7, 2024, 10:02 AM IST

Updated : Jun 7, 2024, 10:14 AM IST

पान की खेती में नुकसान (Video : Etv bharat)

भरतपुर. अपने खास स्वाद के लिए ईरान व अफगानिस्तान तक खासी पहचान रखने वाले जिले के पान से अब यहां के किसान भी धीरे-धीरे मुंह फेरने लगे हैं. स्वाद और तीखेपन की वजह से जिले के पान की देश के साथ ही अरब देशों में भी खासी डिमांड रहती है, लेकिन पान की खेती से जुड़े किसानों को लगातार कई सालों से नुकसान पर नुकसान झेलना पड़ रहा है. यही वजह है कि परंपरागत तरीके से पान की खेती करने वाले किसान सरकारी सहायता नहीं मिलने की वजह से अब पान की खेती छोड़कर रोजगार के लिए शहरों का रुख करने लगे हैं.़

400 किसान पान की खेती से जुड़ें : जिले के बयाना और वैर क्षेत्र के गांव उमरैण, खरौरी, बागरैन और खरबेरा गांव के तमोली समाज के करीब 400 किसान पान की खेती से जुड़े हुए हैं. ये किसान कई पीढ़ियों से परंपरागत रूप से पान की खेती करते आ रहे हैं. इस क्षेत्र के पान की विशिष्ट स्वाद और तीखेपन की वजह से उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान तक डिमांड रहती है.

कोरोना से अब तक लगातार नुकसान : खरैरी गांव के पान उत्पादक किसान चंदन सिंह ने बताया कि कोरोना के समय पान की अच्छी पैदावार हुई थी, लेकिन लॉकडॉउन की वजह से पान की फसल मंडी तक नहीं पहुंच पाई, जिसकी वजह से किसानों को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ा. इसके बाद हर साल पान की खेती में तेज सर्दी और पाले से काफी नुकसान हो जाता है, लेकिन कभी भी अन्य फसलों की तरह पान की खेती में नुकसान का ना तो सर्वे हुआ और ना ही सरकार की ओर से मुआवजा दिया गया.

इसे भी पढ़ें : Special : उदयपुर के इकबाल ने विश्व की सबसे छोटी सोने की ऐश ट्रे, कंकाल और सिगरेट से दिया तंबाकू सेवन न करने का संदेश - World No Tobacco Day 2024

पलायन कर रहे किसान : किसान चंदन और पदम ने बताया कि किसान 500 रुपए प्रति पौधे के हिसाब से पान की पौध खरीदकर लाता है. बड़ी मेहनत से पान का उत्पादन करता है लेकिन जब मौसम की मार से फसल में नुकसान हो जाता है तो मुश्किल से परिवार पालने के लायक आमदनी हो पाती है. यही वजह है कि इन चारों गांवों से कई किसान पान की खेती छोड़कर रोजगार की तलाश में शहर की तरफ पलायन कर गए हैं.

दूध, दही से सींचते हैं तब आता है खास स्वाद : किसान चंदन ने बताया कि पान की खेती में बहुत लागत और मेहनत करनी पड़ती है. जिले के पान में खास स्वाद और तीखापन है. इसके लिए पान की खेती में दूध, दही, छाछ, सरसों की खली, सरसों और तिल के तेल का उपयोग किया जाता है.

उन्होंने बताया कि सर्दी के मौसम में पाले से और ओलावृष्टि से फसल में ज्यादा नुकसान होने की आशंका रहती है. ज्यादा गर्मी के मौसम में भी फसल को बचाने के लिए फूंस की टाटी आदि लगा के इंतजाम किए जाते हैं. लगातार पानी की तलाई करनी पड़ती है. तब जाकर फसल को सुरक्षित रख पाते हैं, फिर भी फसल में कुछ ना कुछ नुकसान हो जाता है. इसके बाद पान की पैदावार को नजदीकी आगरा मंडी में बेचने के लिए ले जाते हैं, जहां से विदेशों तक सप्लाई होता है.

पान की खेती में नुकसान (Video : Etv bharat)

भरतपुर. अपने खास स्वाद के लिए ईरान व अफगानिस्तान तक खासी पहचान रखने वाले जिले के पान से अब यहां के किसान भी धीरे-धीरे मुंह फेरने लगे हैं. स्वाद और तीखेपन की वजह से जिले के पान की देश के साथ ही अरब देशों में भी खासी डिमांड रहती है, लेकिन पान की खेती से जुड़े किसानों को लगातार कई सालों से नुकसान पर नुकसान झेलना पड़ रहा है. यही वजह है कि परंपरागत तरीके से पान की खेती करने वाले किसान सरकारी सहायता नहीं मिलने की वजह से अब पान की खेती छोड़कर रोजगार के लिए शहरों का रुख करने लगे हैं.़

400 किसान पान की खेती से जुड़ें : जिले के बयाना और वैर क्षेत्र के गांव उमरैण, खरौरी, बागरैन और खरबेरा गांव के तमोली समाज के करीब 400 किसान पान की खेती से जुड़े हुए हैं. ये किसान कई पीढ़ियों से परंपरागत रूप से पान की खेती करते आ रहे हैं. इस क्षेत्र के पान की विशिष्ट स्वाद और तीखेपन की वजह से उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान तक डिमांड रहती है.

कोरोना से अब तक लगातार नुकसान : खरैरी गांव के पान उत्पादक किसान चंदन सिंह ने बताया कि कोरोना के समय पान की अच्छी पैदावार हुई थी, लेकिन लॉकडॉउन की वजह से पान की फसल मंडी तक नहीं पहुंच पाई, जिसकी वजह से किसानों को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ा. इसके बाद हर साल पान की खेती में तेज सर्दी और पाले से काफी नुकसान हो जाता है, लेकिन कभी भी अन्य फसलों की तरह पान की खेती में नुकसान का ना तो सर्वे हुआ और ना ही सरकार की ओर से मुआवजा दिया गया.

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पलायन कर रहे किसान : किसान चंदन और पदम ने बताया कि किसान 500 रुपए प्रति पौधे के हिसाब से पान की पौध खरीदकर लाता है. बड़ी मेहनत से पान का उत्पादन करता है लेकिन जब मौसम की मार से फसल में नुकसान हो जाता है तो मुश्किल से परिवार पालने के लायक आमदनी हो पाती है. यही वजह है कि इन चारों गांवों से कई किसान पान की खेती छोड़कर रोजगार की तलाश में शहर की तरफ पलायन कर गए हैं.

दूध, दही से सींचते हैं तब आता है खास स्वाद : किसान चंदन ने बताया कि पान की खेती में बहुत लागत और मेहनत करनी पड़ती है. जिले के पान में खास स्वाद और तीखापन है. इसके लिए पान की खेती में दूध, दही, छाछ, सरसों की खली, सरसों और तिल के तेल का उपयोग किया जाता है.

उन्होंने बताया कि सर्दी के मौसम में पाले से और ओलावृष्टि से फसल में ज्यादा नुकसान होने की आशंका रहती है. ज्यादा गर्मी के मौसम में भी फसल को बचाने के लिए फूंस की टाटी आदि लगा के इंतजाम किए जाते हैं. लगातार पानी की तलाई करनी पड़ती है. तब जाकर फसल को सुरक्षित रख पाते हैं, फिर भी फसल में कुछ ना कुछ नुकसान हो जाता है. इसके बाद पान की पैदावार को नजदीकी आगरा मंडी में बेचने के लिए ले जाते हैं, जहां से विदेशों तक सप्लाई होता है.

Last Updated : Jun 7, 2024, 10:14 AM IST
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