देहरादून: उत्तराखंड हिमालय की जटिल बायोडायवर्सिटी का एक हिस्सा है. यहां पर पाई जाने वाली खास तरह की वनस्पतियों पर शोध करने, उनके गुणों को पहचानने और उन पर काम करने के लिए सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स की स्थापना की गई. यहां पर उत्तराखंड की ऐसी खास वनस्पति प्रजाति पर शोध किया जाता है, जो आने वाले समय में मानव जाति के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकती है.
लेमनग्रास नींबू का बेहतर विकल्प: सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स के डेमोंसट्रेशन ब्लॉक में लेमनग्रास और जिंजरग्रास जैसी नेचुरल घास है, जो नींबू और अदरक का बेहतर विकल्प बनकर सामने आ सकती हैं. साथ ही डेमोंसट्रेशन ब्लॉक में मिंट यानी पुदीने की चार अलग-अलग प्रजाति भी हैं. इसके अलावा डेमोंसट्रेशन ब्लॉक में स्टीविया भी है. स्टीविया का एक पत्ता चीनी जैसा मीठा स्वाद देता है.
CAP के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉक्टर ललित अग्रवाल ने बताया कि उत्तराखंड की खास वनस्पतियों पर सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स में एक डेमोंसट्रेशन ब्लॉक (डेमों ) बनाया गया है, जहां पर तकरीबन 40 ऐसी वनस्पतियों को एक साथ दिखाया गया है, जो उत्तराखंड के अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग एटमॉस्फेयर में पाई जाती हैं. इन सभी के गुण भी अलग-अलग हैं. उन्होंने बताया कि पुदीना का इंडस्ट्रियल इस्तेमाल काफी ज्यादा है. मिंट का च्यूइंग गम, टूथपेस्ट और अन्य तमाम तरह के रिफ्रेशमेंट में इस्तेमाल होता है. हर इस्तेमाल के लिए अलग तरह की प्रजाति काम आती है.
डॉक्टर ललित अग्रवाल ने बताया कि स्टीविया चीनी का बेहतर विकल्प बन सकता है, जो कि चीनी से डेढ़ गुना ज्यादा मीठा होता है और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि स्टीविया पूरी तरह से शुगर फ्री है. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में कई इस तरह के पौधे हैं, जो कि जंगलों में पाए जाते हैं. गनियाग्रास उत्तराखंड के जंगलों में पाए जाने वाली एक ऐसी घास है, जिसकी खुशबू लग्जरी ब्रांड के परफ्यूम से कई गुना है. गुलाब की कई प्रजाति उत्तराखंड के हाई एल्टीट्यूड वाले इलाकों में पाई जाती हैं और इसके कई व्यावसायिक इस्तेमाल भी हैं.
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