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एलेंगनार के ग्राउंड जीरो पर पहुंचा ईटीवी भारत, नक्सलियों से बिना डरे पैदल चलकर ग्रामीणों ने डाला था वोट, लेकिन नहीं सुधरे हालात - Lok Sabha Election 2024 - LOK SABHA ELECTION 2024

ऐसा कहा जाता है कि यदि छत्तीसगढ़ की असली खूबसूरती को निहारना हो तो बस्तर चले आईए. बस्तर जहां बसती है छत्तीसगढ़ की आत्मा.इसके सौंदर्य का बखान और आदिवासियों की सादगी देखकर शायद ही कोई होगा जिसका हृदय प्रफुल्लित ना हो. फिर भी बस्तर के माथे में नक्सलवाद चांद पर उस दाग की तरह है, जो उसकी खूबसूरती में धब्बा लगाता है. कई सरकार आई और गई,लेकिन बस्तर के माथे पर लगे इस गहरे लाल दाग का रंग हल्का ना हुआ.आज हम आपको बस्तर की ऐसी ही एक तस्वीर को दिखाएंगे,जिसे सजाने के लिए पांच साल पहले ग्रामीणों ने जान हथेली में रखी थी.लेकिन आज भी इस तस्वीर में रंगों को भरा ना जा सका है.लिहाजा ना तो इस तस्वीर को कोई निहार रहा है और ना ही इसमें रंग भरकर इसे रंगत देने की पहल किसी ने की है.

Lok Sabha Election 2024
एलेंगनार के ग्राउंड जीरो पर ईटीवी भारत
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Apr 3, 2024, 3:01 PM IST

Updated : Apr 3, 2024, 5:03 PM IST

एलेंगनार के ग्राउंड जीरो पर ईटीवी भारत

जगदलपुर : बस्तर क्षेत्र छत्तीसगढ़ के उन इलाकों में से एक है जहां कुदरत का दिया सबकुछ है. हरे भरे जंगल, ऊंचे पहाड़, मनमोहक वादियां, नदियां का किनारा और विलुप्त होते वन्यजीवों का ठिकाना.इसी बस्तर में अबूझमाड़ क्षेत्र भी है,जिसके बारे में ये कहा जाता है कि इस जगह को पूरी तरह से आज तक कोई जान या समझ ना सका.इसलिए इसका नाम अबूझमाड़ पड़ा.लेकिन मन को मोहने वाली सुंदरता के बीच नक्सलवाद की जड़ें भी फैली हुई है.नक्सलवाद के पेड़ ने ना जाने कितने मासूम आदिवासियों का जीवन उजाले की जगह अंधेरे में धकेल दिया.नक्सली दहशत की हनक कुछ ऐसी फैली कि जहां-जहां इसकी आमद हुई वहां के विकास की रफ्तार कछुआ चाल जैसी हो गई.आज भले ही बस्तर के कई शहर विकास की राह की ओर अग्रसर है,लेकिन कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां नक्सली दहशत का खामियाजा ग्रामीण भुगत रहे हैं. ऐसा ही एक गांव एलेंगनार भी है.जहां आज से पांच साल पहले पहली बार लोकतंत्र के पर्व में हिस्सा लेने के लिए ग्रामीणों ने नक्सली धमकी को दरकिनार किया था.ग्रामीणों को उम्मीद थी कि उनका एक वोट गांव की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलेगा. लेकिन अब पांच साल बाद ना तो गांव की तस्वीर बदली और ना ही तकदीर.

Lok Sabha Election 2024
वोट डालने के बाद भी नहीं बदली तस्वीर

नक्सली धमकी के बाद भी दिया था वोट : ईटीवी भारत ने बस्तर में पहले चरण के मतदान से पहले एलेंगनार गांव का दौरा किया.मकसद था उस तस्वीर को आप तक पहुंचाना जिसे बदलने के लिए मासूम ग्रामीणों ने नक्सलियों से लोहा ले लिया था. ना तो इन्हें अपनी जान का डर था और ना ही वोटिंग के बाद होने वाली यातनाओं की चिंता.मन में सिर्फ एक उम्मीद थी कि यदि सरकार चुनने में हमारी भी भागीदारी हुई तो एक ना एक दिन गांवों को हर तरह के कष्ट से मुक्ति मिलेगी.इसलिए नक्सली धमकी के बाद भी ग्रामीणों ने 2019 के लोकसभा चुनाव में हिस्सा लेने की ठानी.

Lok Sabha Election 2024
विकास की उम्मीद में आस लगाए हैं ग्रामीण

12 किलोमीटर पैदल चलकर डाला था वोट : बस्तर और सुकमा जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में बसे एलेंगनार गांव से पोलिंग बूथ की दूरी 12 किलोमीटर थी. नदी- नाले,पहाड़ और जंगल को पार करने के बाद ग्रामीणों को वोट डालना था.यही नहीं वोट डालने के बाद ग्रामीणों को वापस इसी रास्ते अपने गांव भी आना था.यदि रास्ते में नक्सली मिले तो समझ लिजिए वो दिन उनकी जिंदगी का आखिरी दिन होना तय था. 2019 में एलेंगनार गांव में रहने वाले 100 परिवारों को नक्सली पहले ही चुनाव बहिष्कार करने की धमकी दे चुके थे.ऐसे में वोटिंग वाले दिन गांव से बाहर कदम रखना मानो अपनी मौत अपने हाथों से चुनने जैसा था.फिर भी ग्रामीण बिना किसी डर के घर से बाहर निकले. अपना जीवन अपने हाथ में रखकर ग्रामीण निकल पड़े उस पोलिंग बूथ की ओर जहां उन्होंने उम्मीद का सूरज नजर आ रहा था. ग्रामीणों को उम्मीद थी कि उनका एक-एक वोट गांव में पसरे पिछड़ेपन के अंधेरे को विकास की रोशनी से दूर कर देगा.लिहाजा गांव से 12 किलोमीटर दूर ताहकवाड़ा पोलिंग बूथ में जाकर ग्रामीणों ने वोट डाला.

Lok Sabha Election 2024
12 किलोमीटर पैदल चलकर ग्रामीणों ने डाला था वोट

पांच साल बाद भी नहीं बदली तस्वीर : पांच साल पहले जिस उम्मीद के साथ ग्रामीण वोटिंग वाले दिन अपने घर से निकले थे,वो उम्मीद तब टूटी जब वोटिंग के पांच साल बाद भी गांव की हालत नहीं सुधरी.आज भी एलेंगनार के ग्रामीणों को 7 किलोमीटर दूर छिंदगढ़ विकासखंड के कनकापाल ग्राम पंचायत जाकर 35 किलो चावल लेने जाना पड़ता है. इस सात किलोमीटर के रास्ते में एक भी पक्की सड़क नहीं है. रास्ते में पहाड़ और नाले पार करने के बाद ही ग्रामीण कनकापाल पहुंचते हैं.इसके बाद 35 किलो चावल लादकर वापस इसी पथरीले रास्ते से वापस गांव आते हैं.

स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधाएं भी बेहाल : गांव में सड़क नहीं होने के कारण दूसरी सुविधाएं भी ग्रामीणों के लिए मयस्सर हैं.ग्रामीण यदि बीमार पड़ जाए तो इन्हें कंधे में उठाकर झीरम गांव तक ले जाना पड़ता है.जहां से बीमार व्यक्ति को पास के तोंगपाल या डिमरापाल गांव के उपचार केंद्र तक पहुंचाया जाता है.कई बार इलाज मिलने में देरी के कारण कई ग्रामीण मौत के मुंह में समा चुके हैं. यहीं नहीं गांव में ना ही स्कूल है ना ही आंगनबाड़ी केंद्र. बिजली तो मानिए इस गांव के लिए आसमान से तारे तोड़कर लाने बराबर है. कई साल पहले गांव में सोलर के जरिए बिजली पहुंचाई गई थी,लेकिन अब सोलर सिस्टम शो पीस बनकर रह गया है. इन सभी परेशानियों को झेल रहे ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव के समय नेता अपने वादों से लोगों का मन तो जीत लेते हैं,लेकिन जीतने के बाद एलेंगनार की तरफ कोई मुड़कर नहीं आता.

''चुनाव के समय सभी दलों के लोग वोट मांगने आते हैं. गांव की समस्या का समाधान करने की बात कहते हैं. लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद कोई वापस गांव में मुंह दिखाने नहीं आता है.'' ग्रामीण, एलेंगनार


एक बार फिर जगी उम्मीद : इन परेशानियों के बाद भी एलेंगनार के ग्रामीण इस बार भी लोकतंत्र के महापर्व का हिस्सा बनेंगे.इस बार भी बिना जान की परवाह किए ग्रामीण लोकसभा चुनाव में वोट डालने के लिए 12 किलोमीटर पैदल चलेंगे.लेकिन विडंबना देखिए अब तक इन्हें ये तक नहीं पता है कि कौन सा प्रत्याशी किस दल से चुनाव लड़ रहा है.इस गांव में 18 किलोमीटर सड़क बनाने का काम 2023 में शुरु हुआ था. लेकिन आज तक एक मीटर सड़क का काम भी पूरा ना हो सका.लिहाजा ग्रामीणों ने पहाड़ काटकर खुद से ही काम चलाऊ रास्ता तैयार कर लिया है.अब ग्रामीणों की मांग है कि जल्द से जल्द सरकार और प्रशासन उनके गांव के विकास की ओर ध्यान दे,ताकि एलेंगनार गांव का आने वाला कल स्वर्णिम युग की गाथा लिखने में अपनी भागीदारी निभा सके.

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एलेंगनार के ग्राउंड जीरो पर ईटीवी भारत

जगदलपुर : बस्तर क्षेत्र छत्तीसगढ़ के उन इलाकों में से एक है जहां कुदरत का दिया सबकुछ है. हरे भरे जंगल, ऊंचे पहाड़, मनमोहक वादियां, नदियां का किनारा और विलुप्त होते वन्यजीवों का ठिकाना.इसी बस्तर में अबूझमाड़ क्षेत्र भी है,जिसके बारे में ये कहा जाता है कि इस जगह को पूरी तरह से आज तक कोई जान या समझ ना सका.इसलिए इसका नाम अबूझमाड़ पड़ा.लेकिन मन को मोहने वाली सुंदरता के बीच नक्सलवाद की जड़ें भी फैली हुई है.नक्सलवाद के पेड़ ने ना जाने कितने मासूम आदिवासियों का जीवन उजाले की जगह अंधेरे में धकेल दिया.नक्सली दहशत की हनक कुछ ऐसी फैली कि जहां-जहां इसकी आमद हुई वहां के विकास की रफ्तार कछुआ चाल जैसी हो गई.आज भले ही बस्तर के कई शहर विकास की राह की ओर अग्रसर है,लेकिन कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां नक्सली दहशत का खामियाजा ग्रामीण भुगत रहे हैं. ऐसा ही एक गांव एलेंगनार भी है.जहां आज से पांच साल पहले पहली बार लोकतंत्र के पर्व में हिस्सा लेने के लिए ग्रामीणों ने नक्सली धमकी को दरकिनार किया था.ग्रामीणों को उम्मीद थी कि उनका एक वोट गांव की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलेगा. लेकिन अब पांच साल बाद ना तो गांव की तस्वीर बदली और ना ही तकदीर.

Lok Sabha Election 2024
वोट डालने के बाद भी नहीं बदली तस्वीर

नक्सली धमकी के बाद भी दिया था वोट : ईटीवी भारत ने बस्तर में पहले चरण के मतदान से पहले एलेंगनार गांव का दौरा किया.मकसद था उस तस्वीर को आप तक पहुंचाना जिसे बदलने के लिए मासूम ग्रामीणों ने नक्सलियों से लोहा ले लिया था. ना तो इन्हें अपनी जान का डर था और ना ही वोटिंग के बाद होने वाली यातनाओं की चिंता.मन में सिर्फ एक उम्मीद थी कि यदि सरकार चुनने में हमारी भी भागीदारी हुई तो एक ना एक दिन गांवों को हर तरह के कष्ट से मुक्ति मिलेगी.इसलिए नक्सली धमकी के बाद भी ग्रामीणों ने 2019 के लोकसभा चुनाव में हिस्सा लेने की ठानी.

Lok Sabha Election 2024
विकास की उम्मीद में आस लगाए हैं ग्रामीण

12 किलोमीटर पैदल चलकर डाला था वोट : बस्तर और सुकमा जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में बसे एलेंगनार गांव से पोलिंग बूथ की दूरी 12 किलोमीटर थी. नदी- नाले,पहाड़ और जंगल को पार करने के बाद ग्रामीणों को वोट डालना था.यही नहीं वोट डालने के बाद ग्रामीणों को वापस इसी रास्ते अपने गांव भी आना था.यदि रास्ते में नक्सली मिले तो समझ लिजिए वो दिन उनकी जिंदगी का आखिरी दिन होना तय था. 2019 में एलेंगनार गांव में रहने वाले 100 परिवारों को नक्सली पहले ही चुनाव बहिष्कार करने की धमकी दे चुके थे.ऐसे में वोटिंग वाले दिन गांव से बाहर कदम रखना मानो अपनी मौत अपने हाथों से चुनने जैसा था.फिर भी ग्रामीण बिना किसी डर के घर से बाहर निकले. अपना जीवन अपने हाथ में रखकर ग्रामीण निकल पड़े उस पोलिंग बूथ की ओर जहां उन्होंने उम्मीद का सूरज नजर आ रहा था. ग्रामीणों को उम्मीद थी कि उनका एक-एक वोट गांव में पसरे पिछड़ेपन के अंधेरे को विकास की रोशनी से दूर कर देगा.लिहाजा गांव से 12 किलोमीटर दूर ताहकवाड़ा पोलिंग बूथ में जाकर ग्रामीणों ने वोट डाला.

Lok Sabha Election 2024
12 किलोमीटर पैदल चलकर ग्रामीणों ने डाला था वोट

पांच साल बाद भी नहीं बदली तस्वीर : पांच साल पहले जिस उम्मीद के साथ ग्रामीण वोटिंग वाले दिन अपने घर से निकले थे,वो उम्मीद तब टूटी जब वोटिंग के पांच साल बाद भी गांव की हालत नहीं सुधरी.आज भी एलेंगनार के ग्रामीणों को 7 किलोमीटर दूर छिंदगढ़ विकासखंड के कनकापाल ग्राम पंचायत जाकर 35 किलो चावल लेने जाना पड़ता है. इस सात किलोमीटर के रास्ते में एक भी पक्की सड़क नहीं है. रास्ते में पहाड़ और नाले पार करने के बाद ही ग्रामीण कनकापाल पहुंचते हैं.इसके बाद 35 किलो चावल लादकर वापस इसी पथरीले रास्ते से वापस गांव आते हैं.

स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधाएं भी बेहाल : गांव में सड़क नहीं होने के कारण दूसरी सुविधाएं भी ग्रामीणों के लिए मयस्सर हैं.ग्रामीण यदि बीमार पड़ जाए तो इन्हें कंधे में उठाकर झीरम गांव तक ले जाना पड़ता है.जहां से बीमार व्यक्ति को पास के तोंगपाल या डिमरापाल गांव के उपचार केंद्र तक पहुंचाया जाता है.कई बार इलाज मिलने में देरी के कारण कई ग्रामीण मौत के मुंह में समा चुके हैं. यहीं नहीं गांव में ना ही स्कूल है ना ही आंगनबाड़ी केंद्र. बिजली तो मानिए इस गांव के लिए आसमान से तारे तोड़कर लाने बराबर है. कई साल पहले गांव में सोलर के जरिए बिजली पहुंचाई गई थी,लेकिन अब सोलर सिस्टम शो पीस बनकर रह गया है. इन सभी परेशानियों को झेल रहे ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव के समय नेता अपने वादों से लोगों का मन तो जीत लेते हैं,लेकिन जीतने के बाद एलेंगनार की तरफ कोई मुड़कर नहीं आता.

''चुनाव के समय सभी दलों के लोग वोट मांगने आते हैं. गांव की समस्या का समाधान करने की बात कहते हैं. लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद कोई वापस गांव में मुंह दिखाने नहीं आता है.'' ग्रामीण, एलेंगनार


एक बार फिर जगी उम्मीद : इन परेशानियों के बाद भी एलेंगनार के ग्रामीण इस बार भी लोकतंत्र के महापर्व का हिस्सा बनेंगे.इस बार भी बिना जान की परवाह किए ग्रामीण लोकसभा चुनाव में वोट डालने के लिए 12 किलोमीटर पैदल चलेंगे.लेकिन विडंबना देखिए अब तक इन्हें ये तक नहीं पता है कि कौन सा प्रत्याशी किस दल से चुनाव लड़ रहा है.इस गांव में 18 किलोमीटर सड़क बनाने का काम 2023 में शुरु हुआ था. लेकिन आज तक एक मीटर सड़क का काम भी पूरा ना हो सका.लिहाजा ग्रामीणों ने पहाड़ काटकर खुद से ही काम चलाऊ रास्ता तैयार कर लिया है.अब ग्रामीणों की मांग है कि जल्द से जल्द सरकार और प्रशासन उनके गांव के विकास की ओर ध्यान दे,ताकि एलेंगनार गांव का आने वाला कल स्वर्णिम युग की गाथा लिखने में अपनी भागीदारी निभा सके.

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Last Updated : Apr 3, 2024, 5:03 PM IST
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