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हाईकोर्ट की एकलपीठ ने संज्ञेय अपराधों में हैड कांस्टेबल के अनुसंधान करने पर सवाल उठाते हुए मामला खंडपीठ को भेजा - Single bench of the High Court

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई की. एकलपीठ ने संज्ञेय अपराधों में हैड कांस्टेबल के अनुसंधान करने पर सवाल उठाते हुए मामला खंडपीठ को भेजा है.

sent the case to the division bench,  investigation into cognizable crime
राजस्थान हाईकोर्ट.
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Mar 15, 2024, 9:04 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट की एकलपीठ ने संज्ञेय अपराधों में हैड कांस्टेबल द्वारा किए गए अनुसंधान को वैध ठहराने वाले पूर्ववर्ती आदेश पर सवाल उठाते हुए मामला खण्डपीठ को भेजने का आदेश दिया है. इसके साथ ही अदालत ने कहा कि उनकी राय में ऐसे मामलों में सहायक उप निरीक्षक से ऊपर के अधिकारियों को ही अनुसंधान सौंपा जाना चाहिए. जस्टिस अनिल कुमार उपमन की एकलपीठ ने यह आदेश भरत कुमार की याचिका पर दिए.

अदालत ने हाईकोर्ट प्रशासन से कहा कि एकलपीठ को पूर्ववर्ती आदेश पर विरोधाभास है, इसलिए मामला मुख्य न्यायाधीश के सामने रखकर सुनवाई के लिए खण्डपीठ गठित करने का आग्रह किया जाए. याचिका के जरिए आग्रह किया कि याचिकाकर्ता के संबंध में जयपुर के सांगानेर स्थित महानगर मजिस्ट्रेट न्यायालय में लंबित ट्रायल और एफआईआर को रद्द किया जाए, क्योंकि अतिरिक्त महानिदेशक (अपराध) कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार संज्ञेय अपराध में सहायक उप निरीक्षक से नीचे का पुलिस कर्मी ऐसे मामलों में अनुसंधान नहीं कर सकता.

पढ़ेंः अतिक्रमणों पर हाईकोर्ट ने लिया स्वप्रेरित प्रसंज्ञान, अफसरों को बुलाकर कहा- रिपोर्ट नहीं कार्रवाई चाहिए

एकलपीठ ने पुलिस नियमों का हवाला देकर कहा कि इस पीठ की राय में संज्ञेय अपराध में सहायक उप निरीक्षक ही अनुसंधान कर सकता है. पूर्ववर्ती आदेश इस राय के विपरीत होने के कारण खण्डपीठ स्थिति स्पष्ट करे कि क्या संज्ञेय अपराध में सहायक उप निरीक्षक से नीचे का पुलिसकर्मी अनुसंधान कर सकता है. यदि सहायक उप निरीक्षक से नीचे का पुलिसकर्मी संज्ञेय अपराध में अनुसंधान के लिए अधिकृत नहीं है तो इसके विपरीत किए गए अनुसंधान के परिणाम पर क्या असर होगा?.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट की एकलपीठ ने संज्ञेय अपराधों में हैड कांस्टेबल द्वारा किए गए अनुसंधान को वैध ठहराने वाले पूर्ववर्ती आदेश पर सवाल उठाते हुए मामला खण्डपीठ को भेजने का आदेश दिया है. इसके साथ ही अदालत ने कहा कि उनकी राय में ऐसे मामलों में सहायक उप निरीक्षक से ऊपर के अधिकारियों को ही अनुसंधान सौंपा जाना चाहिए. जस्टिस अनिल कुमार उपमन की एकलपीठ ने यह आदेश भरत कुमार की याचिका पर दिए.

अदालत ने हाईकोर्ट प्रशासन से कहा कि एकलपीठ को पूर्ववर्ती आदेश पर विरोधाभास है, इसलिए मामला मुख्य न्यायाधीश के सामने रखकर सुनवाई के लिए खण्डपीठ गठित करने का आग्रह किया जाए. याचिका के जरिए आग्रह किया कि याचिकाकर्ता के संबंध में जयपुर के सांगानेर स्थित महानगर मजिस्ट्रेट न्यायालय में लंबित ट्रायल और एफआईआर को रद्द किया जाए, क्योंकि अतिरिक्त महानिदेशक (अपराध) कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार संज्ञेय अपराध में सहायक उप निरीक्षक से नीचे का पुलिस कर्मी ऐसे मामलों में अनुसंधान नहीं कर सकता.

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एकलपीठ ने पुलिस नियमों का हवाला देकर कहा कि इस पीठ की राय में संज्ञेय अपराध में सहायक उप निरीक्षक ही अनुसंधान कर सकता है. पूर्ववर्ती आदेश इस राय के विपरीत होने के कारण खण्डपीठ स्थिति स्पष्ट करे कि क्या संज्ञेय अपराध में सहायक उप निरीक्षक से नीचे का पुलिसकर्मी अनुसंधान कर सकता है. यदि सहायक उप निरीक्षक से नीचे का पुलिसकर्मी संज्ञेय अपराध में अनुसंधान के लिए अधिकृत नहीं है तो इसके विपरीत किए गए अनुसंधान के परिणाम पर क्या असर होगा?.

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