शिमला: शिमला के हीरानगर में स्थित बाल सुधार गृह के अधीक्षक कौशल गुलेरिया को आवासी बच्चों की पिटाई एवं अन्य दुर्व्यवहार के आरोपों के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है. उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने बाल सुधार गृह में बच्चों के मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन पर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखा था, जिसे आपराधिक जनहित याचिका मानकर अदालत ने 17 मई को सरकार को नोटिस जारी किए थे. सोलन के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में कुछ बच्चों ने अधीक्षक एवं अन्य स्टाफ के खिलाफ मारपीट की शिकायत भी दर्ज कराई थी.
उल्लेखनीय है कि महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित बाल सुधार गृह में आपराधिक मामलों में विचाराधीन एवं सजा प्राप्त बच्चों को रखा जाता है. इसका उद्देश्य अपराधों में लिप्त बच्चों को सुधरने का अवसर देकर एक अच्छा नागरिक बनाना है. लेकिन इसके विपरीत यहां बच्चों के साथ बुरी तरह मारपीट के अलावा मानसिक प्रताड़ना दी जाती है. इससे बचने के लिए बच्चे कई बार सुधार गृह से भाग चुके हैं. विभाग इसकी निष्पक्ष जांच नहीं करता है और पकड़े जाने के बाद बच्चों के साथ यातनाएं और बढ़ा दी जाती है.
हैरानी की बात यह है कि पीड़ित बच्चे महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों को समय-समय पर मौखिक और लिखित शिकायत करते रहे हैं. लेकिन दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की बजाय अधिकारी विभाग को कथित बदनामी से बचाने के नाम पर इन मामलों को दबा देते हैं. यह सिलसिला लंबे अरसे से चल रहा है. अजय श्रीवास्तव के अनुसार राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की सदस्य प्रीति भारद्वाज दलाल ने पिछले वर्ष 17 मई को बाल सुधार गृह जाकर हालात का जायजा लिया था और अधिकारियों को लताड़ लगाई थी. इसके बावजूद अधिकारियों ने सुधार करने की बजाय आरोपियों को पूरा संरक्षण दिया और बच्चों के साथ मारपीट का सिलसिला कई गुना बढ़ गया.
उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष ने कहा कि हाईकोर्ट में याचिका दायर होने से बच्चों के साथ मारपीट और मानसिक यातनाएं बंद होने की उम्मीद बढ़ी है. अदालत ने मुख्य सचिव एवं महिला एवं बाल विकास विभाग की निदेशक के साथ ही विभाग की जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ), सुधार गृह के पूर्व अधीक्षक कौशल गुलेरिया, कुक और किचन हेल्पर को नोटिस जारी कर 24 जून तक जवाब मांगा है.
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